द रिटर्न ऑफ़ द किंग
द लॉर्ड ऑफ़ द रिंग्स--द रिटर्न ऑफ़ द किंग (The Lord of the Rings--The Return of the King, मतलब अंगूठियों का मालिक--राजा की वापसी) अंग्रेज़ी में रचित उपन्यास सिलसिले अंगूठियों का मालिक की तीसरी कड़ी है जिसके (ब्रिटिश) लेखक जे. आर. आर. टोल्किन हैं। इसपर 2003 में एक हॉलिवुड फ़िल्म भी बनी है जिसने कई ऑस्कर भी जीते।
उपन्यास की कहानी
द लॉर्ड ऑफ़ द रिंग्स--द रिटर्न ऑफ़ द किंग (The Lord of the Rings--The Return of the King, यानि, अंगूठियों का मालिक--राजा की वापसी) इस सिलसिले की तीसरी और आख़िरी कड़ी है।
1. पहला अध्याय : अंगूठी की जंग
गैन्डैल्फ़ और पिप्पिन पहुँचते हैं गोन्डोर के शासनाध्यक्ष डेनेथोर के दरबार में, जहाँ गैन्डैल्फ़ डेनेथोर को समझाता है कि सौरॉन उनपर तुरन्त युद्ध छेड़ने वाला है। गोन्डोर ने रोहान से मदद पहले से ही मांगी हुई थी। पिप्पिन डेनेथोर की ख़िदमत में चला जाता है। रोहान में आरागॉर्न को टूटी हुई नूमेनोरी तल्वार नार्सिल गन्धर्वों द्वारा पुनर्निर्मित मिल जाती है। आरागॉर्न, गिम्ली और लेगोलास एक पुराने अभिशाप को अपने पाले में करने के लिये मृतकों की राह पर चले जाते हैं। वहाँ नूमेनोरियों का राजा-समान आरागॉर्न मृतक प्रेतात्माओं से युद्ध में अपनी ओर से लड़ने का भरोसा ले लेता है। सौरॉन, जैसा कि अनुमान था, दैत्य सेना द्वारा गोन्डोर की राजधानी मीनास तिरिथ पर चढ़ाई कर देता है। डेनेथोर पागल हो जाता है और आत्महत्या कर लेता है। पेलेन्नोर के मैदानों में गोन्डोर और रोहान की सेनाओं और मोर्डोर के दैत्यों के बीच भयानक जंग होती है। थेओडन की भांजी एओवेन (जो भेस बदलकर लड़ रही थी) और पिप्पिन के हाथों मोर्डोर के सिपहसलार अंग्मार के डायनराज का स्वाहा हो जाता है। इससे और प्रेतात्माओं की सेना के आ जाने से मीनास तिरिथ बच जाता है। आरागॉर्न एक योजना बनाता है कि अगर उनकी बची-खुची सेना मोर्डोर जाकर युद्ध करे, तो शायद फ़्रोडो को अंगूठी नष्ट करने का समय मिल सकता है। आरागॉर्न अपनी सेना लेकर मोर्डोर में मोरन्नोन के फाटक तक पहुँचता है।
2. दूसरा अध्याय : तीसये युग का अन्त
फ़्रोडो को नंगा करके और बान्धकर दैत्य कैद कर लेते हैं, पर ज़ाहिर है कि उनको अंगूठी नहीं मिली। सैम कुछ वक़्त तक अंगूठीवाहक बनकर उस कैदख़ाने में पहुँचता है, जहाँ उसकी चालाकी से और दैत्यों की अपनी झगड़ालू प्रवृत्ति की वजह से लगभग सभी दैत्य आपस में ही लड़ मरते हैं। फ़्रोडो अंगूठी वापस लेकर सैम के साथ विनाश की ज्वालामुखी को निकल पड़ता है। अंगूठी के शैतानी जादू ने अबतक फ़्रोडो और सैम को लगभग बेहोश और अधमरा कर दिया था। उधर मोरान्नोन में इन्सानों और दैत्यों के बीच भीषण जंग चल रही थी। फ़्रोडो जब किसी तरह लावा उगलती ज्वालामुखी की गुफा में पहुँचता है, तो अंगूठी के जादू उसपर हावी हो जाता है और फ़्रोडो अंगूठी पहल लेता है। इससे सौरॉन को तुरन्त अंगूठी का पता लग जाता है। लेकिन उसी वक़्त गोल्लुम गुफा में पहुँचता है और अंगूठी छीनने के लिये फ़्रोडो की पूरी उंगली ही दाँत से काट लेता है। अंगूठी पाकर गोल्लुम ख़ुशी से झूम उठता है और ग़लती से नीचे लावे में अंगूठी लिये गिर जाता है। इस तरह गोल्लुम और शैतानी अंगूठी दोनो ही लावे में स्वाहा हो जाते हैं और सौरॉन का वजूद प्रेतात्मा समेत ख़त्म हो जाता है। उसकी दैत्य सेना भी नष्ट कर दी जाती है। फ़्रोडो और सैम को भीषण रूप से आग उगलते ज्वालामुखी से विशाल गरुड़ बचाकर लाते हैं।
गोन्डोर में नये राजा आरागॉर्न की ताजपोशी होती है और जल्द ही उसकी प्रेमिका आर्वेन से शादी भी। तीसरे युग का अन्त होता है और मध्य धरती पर शान्ति और ख़ुशहाली वापस लौटती है। होबिट वापस शायर लौटते हैं, जहाँ उनको मालूम होता है की कोई दुष्ट शार्की (जो असल में सारुमान था) हॉबिटॉन पर कब्ज़ा जमाये हुए है। पिप्पिन और मेरी के नेतृत्व में सारुमान और ग्रीमा का अन्त होता है। शायर में ख़ुशहाली वापस आती है। लेकिन फ़्रोडो को अंग्मार के डायनराज का दिया पुराना जादुई घाव सालों तक तड़पाता रहता है। इसलिये फ़्रोडो कुछ समय बाद बिल्बो, एल्रोन्ड और गैन्डैल्फ़ के साथ समन्दर पार देवताओं की भूमि वालिनोर चला जाता है।
3. परिशिष्ट
इस कड़ी के अन्त में कई परिशिष्ट हैं। इन परिशिष्टों में बहुत ही ख़ूबसूरत तरीके से कई चीज़ें दी गयी हैं, जैसे :
- राजाओं और शासकों के काल
- वर्षों की दास्तान (पश्चिमी धरती की गाथा)
- हॉबिटों के परिवार
- सम्वत्सर
- लेखन और अक्षरी
- उच्चारण
- लेखन
- मध्य-भूमि की भाषाएँ
पिछली कड़ियाँ
बाकी की कहानी सिलसिले की पहली और दूसरी कड़ियों से जारी है। देखिये :
- (1) द लॉर्ड ऑफ़ द रिंग्स--द फ़ॅलोशिप ऑफ़ द रिंग (The Lord of the Rings--The Fellowship of the Ring, यानी अंगूठियों का मालिक--अंगूठी की मैत्री)
- (2) द लॉर्ड ऑफ़ द रिंग्स--द टू टावर्स (The Lord of the Rings--The Two Towers, यानी अंगूठियों का मालिक--दो मीनारें)