त्रिआयामी चलचित्र

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त्रिआयामी चलचित्र (अंग्रेज़ी:थ्री-डी फिल्म) एक चलचित्र होता है, जिसकी छवियां आम चलचित्रों से कुछ भिन्न बनती हैं। चित्रों की छाया अंकित (रिकॉर्ड) करने के लिए विशेष मोशन पिक्चर कैमरे का प्रयोग किया जाता है।[१] त्रि-आयामी चलचित्र १८९० के दौरान भी हुआ करते थे, लेकिन उस समय के इन चलचित्रों को थिएटर पर दिखाया जाना काफी महंगा काम होता था। मुख्यत: १९५० से १९८० के अमेरिकी सिनेमा में ये फिल्में प्रमुखता से दिखने लगी।

सैद्धांतिक त्रि-आयामी चलचित्र (थियोरिटिकल थ्री-डी इमेज) प्रस्तुत करने का आरंभिक तरीका एनाजिफ इमेज होता है। इन तरीकों को इसलिये प्रसिद्धि मिली, क्योंकि इनका निर्माण और प्रदर्शन सरल था। इसके अलावा, इकलिप्स मैथड, लेंटीकुलर और बैरियर स्क्रीन, इंटरफेरेंस फिल्टर प्रौद्योगिकी और ध्रुवीकरण प्रणाली (पोलराइजेशन सिस्टम) इसकी प्रचलित तकनीक हुआ करती थी।[१] मोशन पिक्चर का स्टीरियोस्कोपिक युग १८९० के दशक के अंतिम दौर में आरंभ हुआ जब ब्रिटिश फिल्मों के पुरोधा विलियम ग्रीन ने त्रि-आयामी प्रक्रिया का पेटेंट फाइल किया। फ्रेडरिक युजीन आइव्स ने स्टीरियो कैमरा रिग का पेटेंट १९०० में कराया। इस कैमरे में दो लैंस लगाये जाते थे जो एक दूसरे से तीन-चौथाई इंच की दूरी पर होते थे। २७ सितंबर, १९२२ को पहली बार दर्शकों को लॉस एंजिल्स के एंबैसेडर थिएटर होटल में द पावर ऑफ लव का प्रदर्शन आयोजित किया गया था। सन १९५२ में प्रथम रंगीन त्रिविम यानि कलर स्टीरियोस्कोपिक फीचर, वान डेविल बनाई गई। इसके लेखक, निर्माता और निर्देशक एम.एल.गुंजबर्ग थे। स्टीरियोस्कोपिक साउंड में बनी पहली थ्री-डी फीचर हाउस ऑफ वैक्स थी। २८ मई, १९५३ से वॉल्ट डिजनी इंका. ने भी निर्माण प्रारंभ किया था।

पूर्ण वर्ण एनाक्रोम लाल (बायीं आंख)
एवं क्यान (दायीं आंख) फिल्टर
त्रिआयामी red_cyan ऐनक, आपके दर्शन आनंद हेतु

चलचित्र में तीसरा आयाम जोड़ने के लिए उसमें अतिरिक्त गहराई जोडने की आवश्यकता पड़ती है। वैसे असल में यह केवल छद्म प्रदर्शन मात्र होता है। त्रि-आयामी फिल्म के फिल्मांकन के लिए प्रायः ९० डिग्री पर स्थित दो कैमरों का एक-साथ प्रयोग कर चित्र उतारे जाते हैं और साथ में दर्पण का भी प्रयोग किया जाता है। दर्शक थ्री-डी चश्मे के साथ दो चित्रों को एक ही महसूस करते हैं और वह उसे त्रि-आयामी लगती है। ऐसी फिल्में देखने के लिए वर्तमान उपलब्ध तकनीक में एक खास तरीके के चश्मे को पहनने की आवश्यकता होती है। इस चश्मे का मूल्य लगभग ४०० रूपए होता है और दर्शकों से इसकी वापसी सुनिश्चित करने के लिए उनसे सौ रूपए जमानत के रूप में वसूले जाते हैं। हाल ही निर्माता-निर्देशक स्टीवन स्पीलर्ब ने एक ऐसी तकनीक का पेटेंट कराया है, जिसमें थ्री-डी फिल्म देखने के लिए चश्मे की कोई जरूरत नहीं रहेगी।

भारत में भी कई त्रि-आयामी चलचित्र निर्मित हो चुके हैं। यहां १९८५ में छोटा चेतन त्रि-आयामी तकनीक के साथ रिलीज हुई थी। उस समय इसकी बहुत चर्चा हुई थी और बच्चों ने इसे बहुत पसंद किया था।[२] रंगीन चश्मे के साथ फिल्म देखने का अनुभव एकदम नया था। आज थ्री-डी तकनीक में जो बदलाव आया है, वह उस समय की अपेक्षा बिल्कुल अलग है। उस समय दर्शक आंखों पर जोर पड़ने व आंखों से पानी बहने की बात करते थे, लेकिन अब यह बहुत साफ और गहराई से दिखाई देती है। वैसे इससे पूर्व भी १९८५ में शिवा का इन्साफ बन चुकी थी। त्रिआयामी चलचित्र में लोगों की बढ़ती रुचि को देखते हुए रिलायंस मीडियावर्क्स ने पुराने द्विआयामी चलचित्रों को त्रिआयामी में बदलने वाली कंपनी इन-थ्री के साथ करार किया है। भारत में रिलायंस मीडियवर्क्स और इन-थ्री मिलकर विश्व की सबसे बड़ी द्विआयामी फिल्मों को त्रिआयाम में बदलने वाली इकाई स्थापित करेंगे।[३] इस करार के तहत साल में २०-२५ नये और पुराने चलचित्रों को त्रिआयामी में बदला जायेगा। इन-थ्री ने कुछ समय पूर्व ही डिजनी की जी-फोर्स नामक फिल्म को थ्री डी में बदला था, जो काफी कामयाब रही थी।

द्वि-आयामी फिल्मों के दर्शक जहां लगातार कम होते जा रहे हैं, वहीं त्रि-आयामी फिल्मों में लोगों की रुचि दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। मुंबई के आंकड़ों के अनुसार जब एक ही फिल्म द्वि-आयामी और त्रि-आयामी स्क्रीन पर एक साथ रिलीज की जाती है, तो त्रि-आयामी स्क्रीन पर मिलने वाला लां प्रतिशत द्वि-आयामी स्क्रीन की अपेक्षा ४० प्रतिशत अधिक होता है।[२] इसके साथ ही प्रति शो दर्शकों की संख्या भी २० प्रतिशत अधिक होती है। इस कारण ही इस नई तकनीक में लोगों की रुचि को देखते हुए मल्टीप्लेक्स सिनेमा स्वामी अब त्रि-आयामी स्क्रीन्स पर बडा निवेश कर रहे हैं।

सन्दर्भ

  1. थ्री-डी फिल्म । हिन्दुस्तान लाइव। २० दिसम्बर २००९
  2. 3-डी फिल्म क्रांति की तीसरी आंख! स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।। राजस्थान पत्रिका। ४ अक्टूबर २००९। अभिगमन तिथि: २२ दिसम्बर २००९
  3. रिलायंस मीडियावर्क्स ने इन-थ्री के साथ किया करार स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।। दैनिक भास्कर। ७ दिसम्बर २००९

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