तापमान का व्युत्क्रमण

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भूगोल विषय में आने वाले इस तापमान के व्युत्क्रमण को तापमान का प्रतिलोमन या तापमान की विलोमता भी कहते हैं। सामान्यतः वायुमण्डल में 165 मीटर की ऊंचाई पर 1℃ तापमान कम हो जाता है। परन्तु कभी कभी इसका अपवाद भी हो जाता है। [१]

परिभाषा

सामान्य परिस्थितियों में ऊँचाई के साथ तापमान घटता है। परन्तु कुछ परिस्थितियों में ऊँचाई के साथ तापमान घटने के स्थान पर बढ़ता है। ऊँचाई के साथ तापमान के बढ़ने को तापमान का व्युत्क्रमण अथवा विलोमता कहते हैं।[२]

कारक

इसके लिए लम्बी रातें, स्वच्छ आकाश, शान्त वायु, शुष्क वायु एव हिमाच्छादन इत्यादि भौगोलिक परिस्थितियाँ प्रमुख कारक है। ऐसी परिस्थितियों में धरातल और वायु की निचली परतों से ऊष्मा का विकिरण तेज गति से होता है। परिणामस्वरूप निचली परत की हवा ठण्डी होने के कारण घनी व भारी हो जाती है। ऊपर की हवा जिसमें ऊष्मा का विकिरण धीमी गति से होता है, अपेक्षाकृत गर्म रहती है। ऐसी परिस्थति में तापमान ऊँचाई के साथ घटने के स्थान पर बढ़ने लगता है।[३]

प्रकार

यह प्रायः तीन प्रकार का हो सकता है:-

तापीय या विकिरण प्रतिलोमन

यह प्रतिलोमन धरातल के निकट वायुमंडल के सबसे निचले भाग में घटित होता है।

खासतौर पर मध्य तथा उच्च अक्षांशों के बर्फ से ढके क्षेत्रों में जहाँ जाड़े की लम्बी रात्रि पाई जाती है।

अनुकूल दशाओं के तहत आकाश स्वच्छ तथा बादल रहित होना चाहिये, धरातल के पास शुष्क पवनें पाई जानी चाहिये।


अभिवहनीय या सम्पर्कीय प्रतिलोमन

जब क्षैतिज रूप से ठंडी हवा के ऊपर गर्म हवा आ जाती है। उदाहरणस्वरूप: शीतोष्ण चव्रवातों में।

क्षैतिज तौर पर गर्म वायु का अपेक्षाकृत ठंडी वायु के क्षेत्र में या विपरीत स्थिति हो। उदाहरणस्वरूप- सागर तटीय क्षेत्रों में।

जब गर्म एवं ठंडी हवा मेें लम्बवत गति हो। उदाहरणस्वरूप- पर्वतीय घाटियों में।

यांत्रिक प्रतिलोमन

ऐसा प्रतिलोमन धरातल से ऊपर वायुमंउल में ऊँचाई पर होता है।

इस प्रतिलोमन के कारणों में पार्थिव विकिरण, अवशोषण एवं पवन संपर्क जैसे कारकों का हाथ नहीं होता।

यह प्रतिलोमन वायुमण्डल में वायु के ऊपर या नीचे गतिशील होने के कारण होता है, जो प्रतिचक्रवात की दशाओं के साथ अधिकांशत: पाया जाता है।

मध्य अक्षांशों में वायु के उतरने के स्थान पर यांत्रिक प्रतिलोमन एक सामान्य प्रक्रिया मानी जाती है।[४]

तापमान की विलोमता

घाटी में प्रतिलोमन

अन्तरापर्वतीय घाटियों में शीत ऋतू की रातों में ऐसा प्रायः होता है। यही कारण है कि पर्वतीय घाटियों में बस्तियाँ और फलों के बगीचे सबसे नीचे नहीं बल्कि पर्वतीय ढ़ालों से थोड़े ऊपरी भाग में विकसित किये जाते हैं। हिमालय क्षेत्र में पर्यटकों लए विश्रामस्थल घाटी से थोड़े ऊपरी ढालों पर स्थित है । हिमाचल प्रदेश में सेब के बागान भी घाटियों के ऊपरी ढ़ालों पर। ही है।


सन्दर्भ

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