डिगबोई

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शहर
उपनाम: तेल नगरी (आयल टाउन)
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देशसाँचा:flag
राज्यअसम
जिलातिनसुकिया
ऊँचाईसाँचा:infobox settlement/lengthdisp
जनसंख्या (2001)
 • कुल२०,४०५
 • घनत्वसाँचा:infobox settlement/densdisp
भाषाएँ
 • आधिकारिकअसमी
समय मण्डलभा.मा.स. (यूटीसी+5:30)
पिन कोड786171

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डिगबोई भारत के असम राज्य के तिनसुकिया जिले के उत्तर पूर्वी हिस्से में स्थित एक छोटा सा नगर है।

19वीं सदी के अंतिम वर्षों में यहाँ कच्चे तेल की खोज की गयी थी। डिगबोई असम के तेल नगरी के रूप में जाना जाता है। डिगबोई में एशिया में पहली बार तेल कुएँ का खनन हुआ था। 1901 में यहाँ एशिया की पहली रिफाइनरी को शुरू किया गया था। डिगबोई में अभी तक उत्पादन करने वाली कुछ सबसे पुराने तेल कुएँ हैं।[१] भारत की स्वतंत्रता के दशकों बाद तक असम तेल कंपनी के लिए काम कर रहे ब्रिटिश पेशेवरों की एक महत्वपूर्ण संख्या थी। इसीलिए ब्रिटिश लोगों ने डिगबोई को अच्छी तरह से विकसित किया था तथा बुनियादी सुविधाओं से परिपूर्ण किया था। यहाँ मौजूद कुछ बंगले अभी तक ब्रिटिश काल की याद दिलाते हैं। यहाँ डिगबोई क्लब के भाग के रूप में अठारह होल्स का एक गोल्फ कोर्स है।

व्युत्पत्ति और इतिहास

१९वीं सदी के शुरुआती वर्षों में ब्रिटिश सरकार के लोगों ने तिनसुकिया के पूर्वी इलाकों में कोयले और काष्ठ उद्योग के लिए प्रवेश किया। तब यह इलाका घने जंगलों से भरा हुआ था। १८८२ में इंग्लैंड में पंजीकृत कंपनी असम रेलवे एंड ट्रेडिंग कंपनी (ए आर एंड टीसी) के इंजीनियर, डब्ल्यू. एल. लेक और कई मजदूर लेडो तक डिब्रू-सदिया रेलवे लाइन का विस्तार करने में व्यस्त थे। काम में अनेक हाथियों को भी इस्तेमाल किया जा रहा था। घने जंगल के बाहर निकलते हुए एक हाथी के तेल से सने पैरों को देखकर डब्ल्यू. एल. लेक जो कि कनाडा के थे, चिल्लाये “डिग बॉय ..डिग”.[२]. संभवतः इसी तरह डिगबोई का नामकरण हुआ होगा. डिगबोई के नामकरण की शायद यह सबसे मजेदार कहानी है। परन्तु इसके कोई ठोस तथ्य नहीं है।

अन्य कहानियों के अनुसार दिहिंग नदी की उपनदी डिगबोई नाला से डिगबोई का नाम पड़ा. हाथी के पैरों पर लगे तेल से कच्चे तेल के पता लगने की कहानी पर कुछ लोग यकीन नहीं करते. कुछ पुराने तथ्यों से पता चलता है की बरबिल अंचल से जमीन से तेल रिसने की घटना को कई ब्रिटिश अफसरों और इंजिनिरिओं ने प्रत्यक्ष किया था। ब्रिटिश सैन्य अधिकारी जो १८२५ में इन जंगलों में आये थे, उनकी डायरियों और चिठ्ठियों से पता चलता है की इन इलाकों में कच्चे तेल की मौजूदगी के बारे में उन्हें मालूम था। लेफ्टिनेंट आर. विलकॉक्स, मेजर ए. व्हाइट, कैप्टन फ्रांसिस जेनकींस, कैप्टन पी.एस. हीने आदि वे सब अफसर थे जिन्होंने अलग अलग समय में दिहिंग नदी, बरबिल और वर्तमान डिगबोई के आस पास कच्चे तेल होने का दावा किया था। 1828 में सी.ए. ब्रूस ने और 1865 में जियोलाजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के एच.बी. मेडीकाट ने भी ऊपरी असम में कच्चे तेल देखने की बात कही थी। तब यह सारे इंजिनियर कोयले के लिए सर्वेक्षण कर रहे थे।

इन्ही घटनाक्रमों के बीच एक उत्साही अंग्रेज़ इंजिनियर, डब्ल्यू. एल. लेक जो की तेल इंजीनियरिंग में भी रूचि रखता था, ब्रिटिश सरकार की कंपनी को तेल की खोज के लिए राजी कर लिया। १८८९ में खुदाई परियोजना को मंजूरी दी गई। इंजिनियर लेक ने उपकरण, बॉयलर, स्थानीय श्रमिकों और हाथियों को इकठ्ठा करना शुरू किया और सितंबर 1889 में तेल के पहली खुदाई की गयी। इस खुदाई को नवम्बर १८९० तक जारी रखा गया। कुछ लोगों का मानना है की इसी खुदाई के दौरान लेक ने किसी मजदूर से कहा होगा...“डिग बॉय ..डिग” यानी "खोद लड़के ...खोद"

कुछ अन्य स्रोतों के मुताबिक कोलकाता की कंपनी मेकिलोप स्टीवर्ट एंड कंपनी के मिस्टर गुडएनफ ने नवंबर 1886 में तेल के लिए खुदाई का एक व्यवस्थित कार्यक्रम शुरू करने का बीड़ा उठाया था। डिगबोई के ३० किमी दक्षिण पूर्व में नाहरपुंग नामक स्थान में भारत में पहला तेल का कुआँ खोदा गया। यह १०२ फुट गहरा था था परन्तु इसमें से तेल नहीं निकला. लेकिन डिगबोई से २३ किमी उत्तर पश्चिम में माकुम नामक स्थान के द्वितीय तेल कुएँ से तेल निकला.

घटनाक्रम कुछ भी रहे हो पर पेनसिल्वेनिया, संयुक्त राज्य अमेरिका में कर्नल ई.एल. ड्रेक को कच्चे तेल की खोज के २३ साल बाद कहीं कच्चे तेल कही पता चला था। तब भारत में शासन कर रहे ब्रिटिश सरकार के लिए बहुत उत्साहित करने वाली खबर थी।

भौगोलिक स्थिति

जनसांख्यिकी

परिवहन

आकर्षण

सन्दर्भ

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इन्हें भी देखें