जारवा
विशेष निवासक्षेत्र | |
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दक्षिण और मध्य अंणडेमान | |
भाषाएँ | |
जारवा भाषा | |
सम्बन्धित सजातीय समूह | |
ओंग्स, सौपेंज़, सेंटीनिलिज़ साँचा:main other |
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जारवा, भारत के अण्डमान एवं निकोबार द्वीपसमूह की एक प्रमुख जनजाति है। वर्तमान समय में इनकी संख्या २५० से लेकर ४०० तक अनुमानित है जो कि अत्यन्त कम है। जारवा लोगों की त्वचा का रंग एकदम काला होता है और कद छोटा होता है। करीब १९९० तक जारवा जनजाति किसी की नज़रों में नहीं आई थी और एक अलग तरह का जीवन जी रही थी। अगर कोई बाहरी आदमी इनके दायरे में प्रवेश करता था, तो ये लोग उसे देखते ही मार देते थे, हालाँकि 1998 के बाद इनकी इस आदत में बहुत बदलाव आ चुका है।[१]
जारवा जनजाति 5 हजार साल से यहाँ रहती है, लेकिन 1990 तक बाहरी दुनिया के लोगों से इनका कोई सम्पर्क नहीं था। जनजाति अब भी तीर-धनुष से अपने लिए शिकार करती है।[२] इनकी आबादी प्रतिवर्ष घटती देखी गई है, एक अनुमान के अनुसार वर्तमान में इनकी आबादी 250 से 400 के बीच है.[३]
जनजातियों की दयनीय हालत
जारवा जनजाति की महिलाओं को पर्यटकों के आगे अर्धनग्न नचवाने के कुछ मामले सामने आए हैं। इस कार्य के लिए बिस्किट और सिक्कों का लालच दिया जाता है।[४]
बच्चों की हत्या
इस समुदाय में परंपरा के अनुसार यदि बच्चे की माँ विधवा हो जाए या उसका पिता किसी दूसरे समुदाय का हो तो बच्चे को मार दिया जाता है। बच्चे का रंग थोड़ा भी गोरा हो तो कोई भी उसके पिता को दूसरे समुदाय का मानकर उसकी हत्या कर देता है और समुदाय में इसके लिये कोई दंड नहीं है।[५]
चित्रावली
सरकार द्वारा उठाऐ गऐ कदम
इन्हें भी देखें
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