जमाली कमाली मकबरा
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (दिसम्बर 2020) साँचा:find sources mainspace |
चिश्तीयाँ सिलसिले के महान सूफीसंत ख्वाजा गरीब नवाज के ख़लीफ़ाए खास कुतुबशाह के बाइस ख्वाजा में शुमार हजरत मखदूम समाउद्दीन सहरवर्दी देहलवी के ख़ास मुरीद और खलीफा हजरत मौलाना शेख जमाली अपने समय के महान सूफी और लोधी सम्राट के दरबारी कवि थे। मौलाना शेख जमाली अपने समय के महान कवि थे। अपनी प्रतिभा के दम पर लोदी और मुगल दोनों राजवंश के दरबारी कवि बने रहे। मौलाना जमाली बहलोल लोधी , सिंकदर लोधी , इब्राहिम लोधी से लेकर बाबर और हुमायूं तक सभी बादशाहों के दरबारी कवि रहे। शेख जमाली अल्लाह के वली है । आप इसी मस्जिद में रहकर इबादत किया करते । मृत्यु के बाद उन्हें इसी मस्जिद के अहाते में दफनाया गया । मौलाना कमाली के मकबरे पर खूबसूरती से उनकी शेरो-शायरी उकेरी गई है ।
जमाली-कमाली मस्जिद का निर्माण कब और किसने करवाया
इस मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट बाबर द्वारा सन 1528 के आसपास करवाया गया । हजरत जमाली यही रहते और अल्लाह की इबादत किया करते । सन 1536 में मौलाना जमाली की मृत्यु के बाद उन्हें इसी मस्जिद के आंगन में दफनाया गया। उनके समीप उनके साथी कमाली की भी कब्र है । इस तरह इन दोनों की कब्र एक साथ होने से इसे जमाली-कमाली की दरगाह कहते है । चूंकि इनकी कब्रे मस्जिद के आंगन है इस कारण ये जमाली-कमली की मस्जिद से यह स्थान प्रसिध्द हुआ । कहते है आज भी रात के समय इस वीरान जगह में इन कब्रों में से दुआ की आवाज़ें आती है। यह मस्जिद दिल्ली में कुटुबमीबार प्रांगण के पास स्थित है। मस्जिद में दिन के समय आने जाने की पूर्ण अनुमति है परंतु कहा जाता है कि रात्रि में यहाँ जिन्नात इबादत किया करते हैं। स्थानीय निवासी दावा करते हैं कि रात्रि के समय किसी के नहीं होने पर भी इस मस्जिद से इबादत तिलावत की आवाज आती है।