चोक्कनाथ
मदुरै नायक राजवंश के शासक | |
---|---|
तमिलनाडु का इतिहास विषय के अंतर्गत | |
मदुरै के नायक शासक | |
विश्वनाथ नायक | 1529–1563 |
कुमार कृष्णप्पा | 1563–1573 |
Joint Rulers Group I | 1573–1595 |
Joint Rulers Group II | 1595–1602 |
मुट्टु कृष्णप्पा | 1602–1609 |
मुट्टु वीरप्पा | 1609–1623 |
तिरुमल नायक | 1623–1659 |
मुट्टु अलकद्रि | 1659–1662 |
चोक्कनाथ | 1662–1682 |
रंगकृष्ण मुथु वीरप्पा | 1682–1689 |
रानी मंगम्मल‡ | 1689–1704 |
विजय रंग चोक्कनाथ | 1704–1731 |
रानी मीनाक्षी‡ | 1731–1736 |
‡ नायक वंश की रानियाँ | |
राजधानियाँ | |
मदुरै | 1529–1616 |
तिरुचिरापल्ली | 1616–1634 |
मदुरै | 1634–1665 |
तिरुचिरापल्ली | 1665–1736 |
प्रमुख दुर्ग | |
मदुरै का किला | |
तिरुचिरापल्ली का किला | |
डिंडीगुल किला | |
तिरुनेलवेली किला | |
महल | |
तिरुमल नायक महल, मदुरै | |
चोक्क्नाथ नायक महल a.k.a. दरबार हाल, तिरुचिरापल्ली | |
रानी मंगल्लम तमुक्कम महल तिरुचिरापल्ली | |
साँचा:navbar |
चोक्क्नाथ नायक अथवा मन्नार चोक्क्नाथ नायकार (1662—1682) मदुरै नायक राजवंश का राजा था जिसने अपने पिता मुट्टु अलकद्रि की मृत्यु के उपरांत १६ वर्ष की आयु में सिंहासन संभाला। सिंहासनारूढ़ होने के समय मदुरै राज्य की दशाएँ बहुत अनुकूल नहीं थीं और चोक्क्नाथ को एक बड़ी सेना मुस्लिम आक्रमणकारियों को खदेड़ने के लिये जिंजी के किले को भेजनी पड़ी। उसका सेनापति मुस्लिम सेना से मिल गया और इस युद्ध में निरर्थक धन-जन की हानि हुयी। तंजावुर के शाशकों के साथ मिलकर इसी सेनापति और मुस्लिम आक्रमणकारियों ने चोक्क्नाथ को काफ़ी नुकसान पहुँचाया। अंततः चोक्क्नाथ को अपने सेनापतियों के धोखे से परेशान होकर खुद सैन्य संचलन संभालना पड़ा और कुछ समय के लिये वह मुस्लिम आक्रमणकारियों को तंजौर और वहाँ से वापस जिंजी तक खदेड़ने में सफल रहा।
हालाँकि, यह सफलता बहुत दिनों तक कायम न रह सकी और बाद के दिनों में भी उसे इन आक्रमणकारियों और तिरुचिरापल्ली के राजाओं से युद्धरत रहना पड़ा।
इसके अलावा उसे कई बार मैसूर के शासकों और मराठों से भी युद्ध करना पड़ा जिसके दौरान उसे अपने दादा द्वारा बनवाए तिरुमलै नायक महल को स्वयं नष्ट कर यहाँ रखी मूल्यवान चीजों को इधर उधर छिपाना पड़ा।[१]
चोक्कनाथ के बाद उसका पुत्र रंगकृष्ण मुथु वीरप्पा मदुरै का शासक बना और मात्र सात वर्षों ((1682—1689) के शासन के बाद रंगकृष्ण की मृत्यु के पश्चात् रानी मंगम्मल (1689—1704) को शासन संभालना पड़ा क्योंकि चोक्कनाथ का पौत्र अभी अल्पायु ही था।[२]