चेरो

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साँचा:ethnic group चेरो उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड राज्यों में पाई जाने वाली जाति है।

इतिहास और मूल

यह समुदाय मूल रूप से आदिवासी क्षत्रिय होने का दावा करता है। जनजाति के अन्य सदस्य नागवंशी होने का दावा करते हैं। चेरो मूल रूप से कई आदिवासी समुदायों में से एक हैं, जैसे कि भर और कोल , जो उत्तर प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी कोने में रहते हैं। वे उत्तर बिहार और पलामू क्षेत्र के पारंपरिक शासक थे, जब तक कि उन्हें राजपूत और ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा हटा नहीं दिया गया था।

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बिहार में, चेरो को चारवा या चेरु के रूप में जाना जाता है। पलामू में उन्हें बाराहज़ारी के रूप में जाना जाता है।दक्षिणी छोटनगपुर में पच्चासी के रूप में जाने जाते हैं,चेरो जनजाति के मुख्य पर्व सोहराई, कर्मा, फागुन,सरहुल,नवाखनी, कादोलेटा, जनीशिकार, खुट, पाट, सरना पूजा आदि है । मुड़मा घाटी में घटित घटना के अनुसार मुडाओं के साथ जो चेरो लोग थे हिंदू हो गए थे,और हिंदू होने के कारण ही रौतिआ कहलाए। और केकड़े को मारने के कारण ही मुंडा लोग दक्षिणी छोटनागपुर के चेरो जनजाति के लोगों को खखरा कूचा रौतीआ कहते हैं । खखरा कूचा रौतीआ कहलाने वाले चेरो जनजाति के लोग दक्षिणी छोटनगपुर के रांची, खूंटी, गुमला, सिमडेगा, पश्चिमी सिंहभूम आदि जिलों में निवास करते हैं और पच्चासी उप - मंडल के नाम से जाने जाते हैं । दक्षिणी छोटनगपुर प्रमंडल में निवास करने वाले चेरो जनजाति के लोग उपनाम राय , साय, रौतीआ, सिंह लिखते हैं।

इनके गोत्र प्रकृतिक जीव जन्तु अथवा पेड़ पौधों पर आधारित है , और अपने गोत्र के पहचान से जुड़े जीव जन्तु अथवा पेड़ पौधों को क्षति नहीं पहुंचाते हैं चेरो समुदायाय मुख्य रूप से झारखंड में पाए जाते हैं, खासकर पलामू ,रांची,खूंटी, गुमला , सिमडेगा , पश्चिमी सिंहभूम और मोंगहियर में । पलामू के लोग काफी ज़मींदार थे, और इस क्षेत्र के प्रभावी शासक थे। ये चेरो ऋषि च्यवन से वंश का दावा करते हैं, और ठेठ नागपुुुुरी बोली बोलते हैं।[३]

वर्तमान परिस्थितियाँ

चेरो को उत्तर प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में एक अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है, लेकिन सोनभद्र और वाराणसी जिलों में एक अनुसूचित जनजाति है। उन्हें बिहार और झारखंड में अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है।[४] [५]

समुदाय के पास एक पारंपरिक जाति परिषद है जो समुदाय पर एक मजबूत सामाजिक नियंत्रण रखता है। इनके पूर्वज हिंदू नहीं थे , चेरो जनजाति के लोग कई आदिवासी देवताओं की पूजा भी करते हैं, जैसे कि सायरी-मा, गँवार भभानी और दूल्हा देव। ।चेरो जनजाति के मुख्य पर्व सोहराई, कर्मा, फागुन,सरहुल,नवाखानी, कादोलेटा, जनीशिकार, खुट, पाट, सरना पूजा आदि है ।[६]

झारखंड के चेरो में तीन उप-मंडल, बरहज़ारी , तेराज़ारी और पच्चासी हैं। दक्षिणी छोटनगपुर में निवास करने वाले चेरो जनजाति पच्चासी उप - मंडल के नाम से जाने जाते हैं ये तीनो समूह एंडोगैमस हैं, और अंतर्जातीय विवाह नहीं करते हैं। वे कबीले बहिर्मुखता का अभ्यास करते हैं, और उनके मुख्य कबीले मावर, कुँवर, महतो, राजकुमार, मंझिया, वामवत और हंटिया हैं। चेरो जनजाति के लोग उपनाम राय, सिंह, रौतीआ,महतो आदि लिखते हैं , इनके गोत्र प्रकृतिक जीव जन्तु अथवा पेड़ पौधों पर आधारित है , और अपने गोत्र के पहचान से जुड़े जीव जन्तु अथवा पेड़ पौधों को क्षति नहीं पहुंचाते हैं झारखंड के चेरो मुख्य रूप से किसान हैं, जिनमें से कई पर्याप्त भूस्वामी थे। [३]

इन्हें भी देखें

संदर्भ

  1. People of India Uttar Pradesh Volume XLII Part One edited by A Hasan & J C Das page 374
  2. Lahiry 2014, पृ॰ 30.
  3. People of India Bihar Volume XVI Part One edited by S Gopal & Hetukar Jha pages 229 to 231 Seagull Books
  4. साँचा:cite web
  5. साँचा:cite web
  6. People of India Uttar Pradesh Volume XLII Part One edited by A Hasan & J C Das page 375