गोबिंदगढ़ किला
गोबिंदगढ़ किला एक ऐतिहासिक सैन्य किला हैं भारतीय राज्य पंजाब के अमृतसर शहर के बीच में स्थित है। इस किले का निर्माण इस्वी सन १७०० की सदी अथवा इअससे भी पूर्व हुआ था।
किले की दावेदारी
महाराजा रणजीत सिंह के आठवे पीढ़ी के वंशज ने गोबिंदगढ़ किले पर अपना दावा पेश कर दिया है, इसके अलावा उन्होंने सरकार से से मांग की है। इसके अलावा ब्रिटेन से सिख साम्राज्य के अंतिम महाराजा महाराजा दलीप सिंह के अवशेष वापस लाने और सिख रिवाज़ के अनुसार यहां दाह संस्कार करने के लिए बोला हैं। जसविंदर सिंह जो महाराजा रणजीत सिंह के सबसे छोटे बेटे और उनकी दूसरी पत्नी राज कौर से जन्मे रतन सिंह के सातवीं पीढ़ी के वंशज हैं वे अन्य वंशजो हरविंदर सिंह, तेजिंदर सिंह और सुरजीत सिंह के साथ मुख्य सचिव, सांस्कृतिक मामले, पुरातत्व और संग्रहालय विभाग से चंडीगढ़ में मिले एवं इस किले में अपनी दावेदारी ठोकी। उन्होंने दावा किया कि महाराजा रणजीत सिंह की अवधि के दौरान बननाए गए इस किले के कानूनी वारिसों हैं। उन्होंने कहा कि वे लोगों ने सभी सरकारी दस्तवेज़ भी सरकार के सामने प्रस्तुत किये हैं जिनमे उनके नाम के बारे में वर्णन हैं। दस्तावेजों में सजरे नस्बे, कुर्सी नामा (जो साबित करता है कि रतन सिंह महाराजा रणजीत सिंह की दूसरी पत्नी से पैदा हुए थे) महाराजा रणजीत सिंह और उनके बेटे रतन सिंह के चित्र शामिल हैं। उन्होंने दावा किया कि वे भी थे बाजार गडवेइं एवं कटरा दल सिंह के मालिक हैं जो स्वर्ण मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के सामने स्थित हैं। जसविंदर सिंह, जो शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के साथ काम करते हैं उन्होंने कहा की 'मेरी राज्य सरकार से यही दरख्वास्त हैं उन परिवारों को जिन्होंने ऐतिहासिक भूमिकाओं के माध्यम से महाराजा रणजीत सिंह के शासन को समृद्ध बनाने में पूरा समर्थन दिया था बदले में उनकी सेवाओं और बलिदान की सराहना की जाने की आवश्यकता है इसके लिए पर्याप्त उपाय किये जाने चाहिए "। उन्होंने कहा वास्तविक वारिस निर्धारित करने के लिए कहा की इतिहासकारों की एक उच्च स्तरीय समिति गठित करने की आवश्यकता हैं जो उन परिवारों को पहचान कर उन्हें मान्यता दिला सके। उन्होंने कहा कि परिवार का मानना है कि महाराजा दलीप सिंह की अवशेष को यहाँ लाया जाए एवं सिख अनुष्ठान के रूप में अंतिम संस्कार किया जाए।
इतिहास
आरम्भ में 1760 एवं 1770 के दशक में यह "गुजर सिंह किले" के रूप में जाना जाता था, जब यहाँ भंगी मिसल के शासकों का शासन था। [१]
यह मिट्टी से बना हुआ हैं और 1805 में नाम इसका नाम बदला गया जब महाराजा रणजीत सिंह ने पाँच बड़ी तोपों के साथ के साथ कब्जा कर लिया जिसमे ज़मज़मा भी था जिसे भंगियन दी तोप के नाम से जाना जाता था और बाद में किम गन के रूप में जाना जाने लगा। महाराजा रणजीत सिंह ने इस किले को और मजबूत किया और सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह के नाम पर इस किले का नाम "गोबिंद गढ़" रखा।
सरदार शमीर सिंह किले के पहले गवर्नर थे। उनके उत्तराधिकारी फकीर अजीजुद्दीन थे जिनके मार्गदर्शन में इस किले का उनयन किया गया था। रणजीत सिंह के शासन के बाद, किले का नियंत्रण ब्रिटिश साम्राज्य के पास आ गया जिसने यहाँ आपराधिक जांच विभाग कार्यालय स्थापित किया। भारत की स्वतंत्रता के बाद भारतीय सेना के किले में एक आधार की स्थापना की।
निर्माण
गोबिंदगढ़ किले का निर्माण ईंटों और चूने से किया गया है एवं इसका आकर चौकोर हैं। इसके प्राचीर पर 25 तोप लगे हुए हैं। [२] इसके मुख्य प्रवेश द्वार का नाम नलवा गेट हैं जो हरि सिंह नलवा के नाम पर है। खूनी द्वार पीछे तरफ का प्रवेश द्वार है। यहाँ से लाहौर के लिए एक भूमिगत सुरंग है।