गोंड (जनजाति)

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(गोण्ड से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गोंड
कुल जनसंख्या
4 करोड़
विशेष निवासक्षेत्र
साँचा:spacesमध्य प्रदेश,4,357,718[१]
भाषाएँ
हिन्दी,गोंडी
धर्म
गोंडी/कोयापुनेम/आदिवासी

साँचा:template otherसाँचा:main otherसाँचा:main other

गोंड (जाति) समुदाय, भारत की एक प्रमुख जातीय समुदाय हैं। भारत के कटि प्रदेश - विंध्यपर्वत,सिवान, सतपुड़ा पठार, छत्तीसगढ़ मैदान में दक्षिण तथा दक्षिण-पश्चिम - में गोदावरी नदी तक फैले हुए पहाड़ों और जंगलों में रहनेवाली आस्ट्रोलायड नस्ल तथा द्रविड़ परिवार की एक जनजाति, जो संभवत: पाँचवीं-छठी शताब्दी में दक्षिण से गोदावरी के तट को पकड़कर मध्य भारत के पहाड़ों में फैल गई। आज भी मोदियाल गोंड जैसे समूह हैं जो गोंडों की जातीय भाषा गोंडी है जो द्रविड़ परिवार की है और तेलुगु, कन्नड़, तमिल आदि से संबन्धित है। परिचय यह जाति उत्तर प्रदेश में सोनभद्र, मीरजपुर, वाराणसी, चंदौली, जौनपुर, भदोही, आजमगढ़, गाज़ीपुर, मऊ, देवरिया, बलिया, आदि जनपदों में निवास करती है। जिनकी जनसंख्या 15 लाख से भी ज्यादा है।

परिचय

आस्ट्रोलायड नस्ल की जनजातियों की भाँति विवाह संबंध के लिये गोंड भी सर्वत्र दो या अधिक बड़े समूहों में बंटे रहते हैं। एक समूह के अंदर की सभी शांखाओं के लोग 'भाई बंद' कहलाते हैं और सब शाखाएँ मिलकर एक बहिर्विवाही समूह बनाती हैं। विवाह के लिये लड़के द्वारा लड़की को भगाए जाने की प्रथा है। भीतरी भागों में विवाह पूरे ग्राम समुदाय द्वारा सम्पन्न होता है और वही सब विवाह संबंधी कार्यो के लिये जिम्मेदार होता है। ऐसे अवसर पर कई दिन तक सामूहिक भोज और सामूहिक नृत्यगान चलता है। हर त्यौहार तथा उत्सव का मद्यपान आवश्यक अंग है। वधूमूल्य की प्रथा है और इसके लिए बैल तथा कपड़े दिए जाते हैं।

युवकों की मनोरंजन संस्था - गोटुल का गोंडों के जीवन पर बहुत प्रभाव है। बस्ती से दूर गाँव के अविवाहित युवक एक बड़ा घर बनाते हैं। जहाँ वे रात्रि में नाचते, गाते और सोते हैं; एक ऐसा ही घर अविवाहित युवतियाँ भी तैयार करती हैं। बस्तर के मारिया गोंडों में अविवाहित युवक और युवतियों का एक ही कक्ष होता है जहाँ वे मिलकर नाचगान करते हैं।

गोंड खेतिहर हैं और परंपरा से दहिया खेती करते हैं जो जंगल को जलाकर उसकी राख में की जाती है और जब एक स्थान की उर्वरता तथा जंगल समाप्त हो जाता है तब वहाँ से हटकर दूसरे स्थान को चुन लेते हैं। किंतु सरकारी निषेध के कारण यह प्रथा बहुत कम हो गई है। समस्त गाँव की भूमि समुदाय की सपत्ति होती है और खेती के लिये व्यक्तिगत परिवरों को आवश्यकतानुसार दी जाती है। दहिया खेती पर रोक लगने से और आबादी के दबाव के कारण अनेक समूहों को बाहरी क्षेत्रों तथा मैदानों की ओर आना पड़ा। किंतु वनप्रिय होने के कारण गोंड समूह शुरू से खेती की उपजाऊ जमीन की ओर आकृष्ट न हो सके और धीरे धीरे बाहरी लोगों ने इनके इलाकों की कृषियोग्य भूमि पर सहमतिपूर्ण अधिकार कर लिया। इस दृष्टि से गोंड कि बड़ी उपजाति मिलती हैं : एक तो वे हैं जो सामान्य किसान और भूमिधर हो गए हैं, जैसे-: रघुवल, डडवे और कतुल्या गोंड। दूसरे वे हैं जो मिले जुले गाँवों में खेत मजदूरों, भाड़ झोंकने, पशु चराने और पालकी ढोने जैसे सेवक जातियों के काम करते हैं।

गोंडों का प्रदेश गोंडवाना के नाम से भी प्रसिद्ध है जहाँ 15वीं तथा 17वीं शताब्दी गौंड राजवंशों के शासन स्थापित थे। किंतु गोंडों की छिटपुट आबादी समस्त मध्यप्रदेश में है। उड़ीसा, आंध्र और बिहार राज्यों में से प्रत्येक में दो से लेकर चार लाख तक गोंड हैं।

वास्तव में गोंडों को शुद्ध रूप में एक जनजाति है। इनके विभिन्न समूह सभ्यता के विभिन्न स्तरों पर हैं और धर्म, भाषा तथा वेशभूषा संबंधी एकता भी उनमें नहीं है; न कोई ऐसा जनजातिय संगठन है जो सब गोंडों को एकता के सूत्र में बाँधता हो। इनका इतिहास बहुत पुराना और रहस्यमई है चुके हैं। इनका इतिहास बहुत गौरवशाली है। गोंड हिन्दू धर्म से संबंधित है, कुछ ने इस्लाम को चुना है।

राजाओं का इतिहास

गोंड का भारत की जातियों में महत्वपूर्ण स्थान है जिसका मुख्य कारण उनका इतिहास है। 15वीं से 17वीं शताब्दी के बीच गोंडवाना में अनेक गोंड राजवंशों का दृढ़ और सफल शासन स्थापित था। इन शासकों ने बहुत से दृढ़ दुर्ग, तालाब तथा स्मारक बनवाए और सफल शासकीय नीति तथा दक्षता का परिचय दिया। इनके शासन की परिधि मध्य भारत से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार तक पहुँचती थी। 15 वीं शताब्दी में चार महत्वपूर्ण गोंड़़ साम्राज्य थे। जिसमें खेरला, गढ मंडला, देवगढ और चाँदागढ प्रमुख थे। गोंड राजा बख्त बुलंद शाह ने नागपुर शहर की स्थापना कर अपनी राजधानी देवगढ से नागपुर स्थानांतरित किया था |गोंडवाना की प्रसिद्ध रानी दुर्गावती गोंड राजवंश की रानी थी।

गोंडों का नाम प्राय: खोंडों के साथ लिया जाता है संभवत: उनके भौगोलिक सांन्निध्य के कारण है।

गोंड जनजाति का इतिहास उतना ही पुराना है जितना इस पृथ्वी -ग्रह पर मनुष्य, परन्तु लिखित इतिहास के प्रमाण के अभाव में खोज का विषय है। यहाँ गोंड जनजाति के प्राचीन निवास के क्षेत्र में आदि के शाक्ष्य उपलब्ध है। गोंड समुदाय द्रविढ़वर्ग के माने जाते है, जिनमे जाती व्यस्था नहीं थी। गहरे रंग के ये लोग इस देश में कोई ५-६ हजार वर्ष पूर्व से निवासरत है। एक प्रमाण के आधार पर कहा जा सकता है कि गोंड जनजाति का सम्बन्ध सिन्धु घटी की सभ्यता से भी रहा है।

गोंडवाना रानी दुर्गावती के शौर्य गाथाओं को आज भी गोंडी, हल्बी व भतरी लोकगीतों में बड़े गर्व के साथ गया जाता है। आज भी कई पारंपरिक उत्सवों में गोंडवाना राज्य के किस्से कहानियो को बड़े चाव से सुनकर उनके वैभवशाली इतिहास की परम्परा को याद किया जाताविभिन्न हिस्सों में अपने-अपने राज्य विकसित किए, जिनमे से नर्मदा नदी बेसिन पर स्थित गढ़मंडला एक प्रमुख गोंडवाना राज्य रहा है। राजा संग्राम शाह इस साम्राज्य के पराक्रमी राजाओं में से एक थे, जिन्होंने अपने पराक्रम के बल पर राज्य का विस्तार व नए-नए किलों का निर्माण किया। १५४१ में राजा संग्राम की मृत्यु पश्चात् कुंवर दल्पत्शाह ने पूर्वजों के अनुरूप राज्य की विशाल सेना में इजाफा करने के साथ-साथ राज्य का सुनियोजित रूप से विस्तार व विकास किया

इस्लाम नगर भोपाल स्थित गोंड महल
गोंड महल का एक और दृश्य
गोंड महल की वास्तुकला

गुबरा के राजा का इतिहास

17 वी शताब्दी के समय गोंड राजा प्रतापसिंह जू देव गुबरा नरेश का उल्लेख मिलता है। यह बहुत ही बुद्धिमान व प्रतापी राजा थे। ग्राम गुबरा से 2 मील दूर प्रसिद्ध स्थान सिध्द बाबा मन्दिर जो राजा प्रतापसिंह जू ने बनवाया था यहाँ पर आज भी 15 जनबरी को बहुत बड़ा मेला लगता है। राजा प्रतापसिंह जू देव ने अपने जीवन में बकल में एक बहुत बड़ा अखिल भारतीय गोंड सभा का सम्मलेन सिहोरा बकल में करवाया था। जिस में 30 हजार गोंड भाई उपस्थित हुये यह बहुत बड़ा सम्मलेन मना जाता है उस समय राजा प्रतापसिंह जूदेव मध्यप्रदेश सभापति थे।

वे गोंडी एवं हिन्दी भाषाएँ बोलते हैं।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ