गंगाईनाथजी योगी
गंगाईनाथजी योगी | |
---|---|
जन्म | साँचा:br separated entries |
मृत्यु | साँचा:br separated entries |
गुरु/शिक्षक | श्री भाउनाथ जी |
धर्म | हिन्दू |
के लिए जाना जाता है | साँचा:if empty |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
श्री गंगाईनाथजी योगी (मृत्यु: 31 जुलाई,1983)आईपंथी नाथ सम्प्रदाय के सन्यांसी योगी थे। उनका जन्म राजस्थान में पाली जिले के सिरमा ग्राम में हुआ। वे बाल्यकाल से ही ईश्वर की भक्ति में लीन रहते थे। भगवान में तीव्र रूचि होने के कारण उन्होंने कम उम्र में ही गृह त्याग करके सन्यांस ले लिया। उनका प्रारम्भिक आराधना काल आइपंथी नाथों के अस्थलभोर अखाड़े (हरियाणा), बनारस व हिमाचल प्रदेश में बीता।
फिर काजलवास तपोस्थली, जो पाली जिले के सिरयारी गाँव से चार किलोमीटर पूर्व में प्राचीन धार्मिक महत्व का स्थान है, और जहाँ ग्यारह नाथों की जीवित समाधियाँ हैं, वहाँ पर आराधना कर रहे नाथ योगी बाबा श्री भाउनाथ जी ने अपनी आध्यात्मिक शक्ति से गंगाईनाथ जी को अपने पास बुलाया तथा अपनी शक्तिपात की सम्पूर्ण सामर्थ्य उन्हें प्रदान की। उसके पश्चात् गंगाईनाथ जी कुछ वर्षों तक काजलवास में ही रहे। उसके बाद बाबा गंगाईनाथ जी अपनी आन्तरिक प्रेरणा से बीकानेर के पास जामसर नामक स्थान पर आए एवं रेत के टीले पर धूनी स्थापित करके उन्होंने यहाँ लम्बे समय तक तपस्या की।
फिर अप्रेल 1983 में उन्होंने अपनी योग शक्ति से अध्यात्म विज्ञान सत्संग केन्द्र, जोधपुर के संस्थापक एवं संरक्षक, श्री रामलाल जी सियाग [१] को अपने पास बुलाया जो उस समय बीकानेर में भारतीय रेलवे में कार्यरत थे। उसके पश्चात मई 1983 में जब श्री रामलाल जी सियाग उनसे दुबारा मिलने गए तब श्री गंगाईनाथ जी ने उनको दीक्षा देकर गुरुपद का भार सौंप दिया। तत्पश्चात 1984 में ध्यान की अवस्था में उन्होंने श्री रामलाल जी सियाग[२] को आदेश दिया कि ‘वैदिक दर्शन को विश्व दर्शन बनाना है।’
बाबा श्री गंगाईनाथ जी 31 दिसंबर, 1983 को सुबह 5 बजकर 22 मिनट पर जामसर, में ब्रह्मलीन हुए। प्रतिवर्ष इस दिन बाबा के जामसर स्थित समाधि स्थल पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन[३] बाबा के शिष्यों द्वारा उनके सम्मान में किया जाता है।