खरोष्ठी
सिंधु घाटी की चित्रलिपि को छोड़ कर, खरोष्ठी भारत की दो प्राचीनतम लिपियों में से एक है। यह दाएँ से बाएँ को लिखी जाती थी। सम्राट अशोक ने शाहबाजगढ़ी और मनसेहरा के अभिलेख खरोष्ठी लिपि में ही लिखवाए हैं। इसके प्रचलन की देश और कालपरक सीमाएँ ब्राह्मी की अपेक्षा संकुचित रहीं और बिना किसी प्रतिनिधि लिपि को जन्म दिए ही देश से इसका लोप भी हो गया। ब्राह्मी जैसी दूसरी परिष्कृत लिपि की विद्यमानता अथवा देश की बाएँ से दाहिने लिखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति संभवत: इस लिपि के विलुप्त होने का कारण रहा हो।
नाम की व्युत्पत्ति
प्रारंभ में इसके पढ़ने का प्रयास करनेवाले यूरोपीय विद्वानों ने इसे बैक्ट्रियन, इंडो-बैक्ट्रो-पालि या एरियनो-पालि जैसे नाम दिए थे। खरोष्ठी नाम ललितविस्तर में उल्लिखित 64 लिपियों की सूची में है। इसके नाम की व्युत्पत्ति के संबंध में अनेक मत हैं जिनमें सर्वाधिक मान्य प्रजलुस्की का है। उनके मतानुसार खरोष्ठी का मूल खरपोस्त (ऊखरपोस्त ऊखरोष्ठ) है। पोस्त ईरानी भाषा का वह शब्द है जिसका अर्थ 'खाल' होता है। महामायूरी में उत्तरपश्चिम भारत के एक नगरदेता का नाम खरपोस्त आया है। चीनी परंपरा के अनुसार इसका आविष्कार ऋषि खरोष्ठ ने किया था। लिपि के नाम से व्युत्पत्ति चाहे जो हो, इसमें संदेह नहीं कि इस देश में यह उत्तरपश्चिम से आई और कुछ काल तक, अशोक के अतिरिक्त, मात्र विदेशी राजकुलों द्वारा उनके ही प्रभाव के क्षेत्र में प्रयुक्त होकर उनके साथ ही समाप्त हो गई।
खरोष्ठी लिपि के उदाहरण
खरोष्ठी लिपि के उदाहरण प्रस्तरशिल्पों, धातुनिर्मित पत्रों, भांडों, सिक्कों, मूर्तियों तथा भूर्जपत्र आदि पर उपलब्ध हुए हैं। खरोष्ठी के प्राचीनतम लेख तक्षशिला और चार (पुष्कलावती) के आसपास से मिले हैं, किंतु इसका मुख्य क्षेत्र उत्तरी पश्चिमी भारत एवं पूर्वी अफगानिस्तान था। मथुरा से भी कुछ खरोष्ठी अभिलेख प्राप्त हुए हैं। इनके अतिरिक्त दक्षिण भारत, उज्जैन तथा मैसूर के सिद्दापुर से भी खरोष्ठी में लिखे स्फुट अक्षर या शब्द मिले हैं। मुख्य सीमा के उत्तर एवं उत्तर पूर्वी प्रदेशों से भी खरोष्ठी लेखोंवाले सिक्के, मूर्तियाँ तथा खरोष्ठी में लिखे हुए प्राचीन ग्रंथ उपलब्ध हुए हैं। ई. पू. की चौथी, तीसरी शताब्दी से ईसा की तीसरी शताब्दी तक उत्तरपश्चिम भारत में मथुरा तक खरोष्ठी का प्रचलन रहा। कुषाणयुग के बाद इस लिपि का भारत से बाहर चीनी तुर्किस्तान में प्रवेश हुआ और कम से कम एक शताब्दी वह वहाँ जीवित रही। खरोष्ठी भाषा से हैं झारखंड में खोरठा भाषा का उदय हुआ है जो शुरुआत में खरोठ खरोठी और खोरठा हो गया
खरोष्ठी के उद्भव के संबंध में सर्वाधिक प्रचलित मत है कि हखमनी शासकों को परिस्थितिवश पहले असूरिया और काबुल में प्रयुक्त होनेवाली अरमई () लिपि को शासन संबंधी कार्यों के लिए अपनाना पड़ा और उनके शासन के साथ ही उत्तरपश्चिम भारत में इसका प्रवेश हुआ। आवश्यकतावश कुछ भारतीयों को इसे सीखना पड़ा, किंतु बाद में ब्राह्मी के सिद्धांतों के आधार पर इसमें परिवर्तन हुए और इस प्रकार खरोष्ठी का जन्म हुआ। मुख्य रूप से भारत के ईरान द्वारा अधिकृत प्रदेश में इसका प्रचार, प्राचीन फारसी शब्द दिपि (लिखना) एवं इससे उद्भूत दिपपति शब्दों का अशोक के अभिलेखों में प्रयोग, दीर्घस्वरों का अभाव, ईरानी आहत सिक्कों पर ब्राह्मी अक्षरों के साथ खरोष्ठी अक्षरों की विद्यमानता तथा कुछ खरोष्ठी वर्णों का अरमई के वर्णों से साम्य एवं अनेकों के अरमई वर्णों से उद्भव की प्रतिपाद्यता इस मत के पोषक तत्व हैं।
खरोष्ठी लिपि की कुछ विशेषताएँ
प्रत्येक व्यंजन में अ की विद्यमानता, दीर्घस्वरों एवं स्वरमात्राओं का अभाव, अन्य स्वरमात्राओं का ऋजुदंडों द्वारा व्यक्तीकरण, व्यंजनों के पूर्व पंचम वर्णों के लिए सवंत्र अनुस्वार का प्रयोग तथा संयुक्ताक्षरों की अल्पता खरोष्ठी लिपि की कुछ विशेषताएँ हैं।
इसकी विशेषताओं एवं वर्णों के घसीट स्वरूप से सिद्ध होता है कि यह लिपिकों और व्यापारियों आदि की लिपि थी किंतु खरोष्ठी में लिखी ख़ोतान से प्राप्त पांडुलिपि से इसके एक दूसरे परिष्कृत रूप का अस्तित्व भी सिद्ध होता है, जिसका प्रयोग शास्त्रों के लेखन में होता था।
अ | इ | उ | ए | ओ | ऋ |
क | ख | ग | घ | |
च | छ | ज | ञ | |
ट | ठ | ड | ढ | ण |
त | थ | द | ध | न |
प | फ | ब | भ | म |
य | र | ल | व | |
श | ष | स | ह |
ḱ | ṭ́h |
चित्र वीथिका
Double-wedged wooden tablet in Gandhari written in Kharosthi script, 2nd to 4th century CE
Wooden tablet inscribed with Kharosthi characters (2nd–3rd century CE). Excavated at the Niya ruins in Xinjiang, China. Collection of the Xinjiang Museum.
Wooden Kharosthi document found at Loulan, China by Aurel Stein
Fragmentary Kharosthi Buddhist text on birchbark (Part of a group of early manuscripts from Gandhara), first half of 1st century CE. Collection of the British Library in London
Silver bilingual tetradrachm of Menander I (155-130 BCE). Obverse: Greek legend, ΒΑΣΙΛΕΩΣ ΣΩΤΗΡΟΣ ΜΕΝΑΝΔΡΟΥ (BASILEOS SOTEROS MENANDROU), literally, "Of Saviour King Menander". Reverse: Kharosthi legend: MAHARAJA TRATARASA MENADRASA "Saviour King Menander". Athena advancing right, with thunderbolt and shield. Taxila mint mark.
Coin of Menander II Dikaiou Obverse: Menander wearing a diadem. Greek legend: ΒΑΣΙΛΕΩΣ ΔΙΚΑΙΟΥ ΜΕΝΑΝΔΡΟΥ "King Menander the Just". Reverse: Winged figure bearing diadem and palm, with halo, probably Nike. The Kharoshthi legend reads MAHARAJASA DHARMIKASA MENADRASA "Great King, Menander, follower of the Dharma, Menander".
The Indo-Greek Hashtnagar Pedestal symbolizes bodhisattva and ancient Kharosthi script. Found near Rajar in Gandhara, Pakistan. Exhibited at the British Museum in London.
Mathura lion capital with addorsed lions and Prakrit inscriptions in Kharoshthi script
Fragments of stone well railings with a Buddhist inscription written in Kharoshthi script (late Han period to the Three Kingdoms era). Discovered at Luoyang, China in 1924.
Portion of Emperor Ashoka's Rock Edicts at Shahbaz Garhi
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- List of all known Kharoṣṭhī (Gandhārī) inscriptions.
- information on the Kharoṣṭhī alphabet by Omniglot
- http://www.andrewglass.org/download.php?fname=Glass_2000&extn=pdfA Preliminary Study of Kharoṣṭhī Manuscript Paleography स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। by Andrew Glass, University of Washington (2000)
- On The Origin Of The Early Indian Scripts: A Review Article by Richard Salomon, University of Washington (via archive.org)
- Proposal to encode Kharoṣṭhī in Unicode (includes good background info)
- Bibliography of sources relating to the Arapacana alphabet in Buddhism