क्लोरल
क्लोरल (Chloral, ट्रॉइक्लोरी ऐसीटेल्डीहाइड, CCI3 CHO) एक कार्बनिक यौगिक है। यह एक निद्रापक (hypnotie) है। औद्योगिक पैमाने पर यह एथिल ऐलकोहल पर क्लोरिन की क्रिया से प्राप्त किया जाता है। पहले ठंडे एथिल ऐलकोहल में क्लोरीन प्रवाहित किया जाता है और फिर ६०० सें. ताप पर तब तक प्रवाहित किया जाता जब तक क्लोरीन का अधिक अवशोषण नहीं हो जाता। अंतिम क्रियाफल क्लोरल ऐलकोहोलेंट (CCI3 CH (OH) OC2 H5) का मणिभीय ठोस रूप होता है, जिसका सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ आसवन करने पर क्लोरल प्राप्त होता है :
गुणधर्म
यह रंगीनहीन, लाक्षणिक सुगंधवाला तैलीय द्रव, क्वथनांक ९७० सें. पानी, एथिल ऐलकोहल और ईथर में विलेय है। पोटैशियम हाइड्राक्साइड के सांद्र विलयन के साथ गरम करने पर शुद्ध क्लोरोफार्म प्राप्त होता है। सांद्र नाइट्रिक अम्ल द्वारा आक्सीकृत होकर ट्राइक्लोरोऐसीटिक अम्ल और ऐल्यूमिनियम एथाक्साइड के द्वारा अवकृत होकर ड्राइक्लोरो एथिल ऐलकोहल देता है :
HNO3 2H CCI 3 COOH <------------ HNO 3 CCI 3 CHO-------> 2H CCI 3 CH 2 OH
यह ऐलडिहाइड की साधारण अभिक्रियाएँ फल देता है। पानी और ऐलकोहल से मिलने पर ऊष्मा के निकास के साथ संयोजन होता है और मणिभीय ठोस-क्रमश: क्लोरल हाइड्रेट (गलनांक ५७०) तथा क्लोरल ऐलकोहोलेट (गलनांक ४६०) बनते है। ये यौगिक स्थायी होते हैं, जिनसे जल अथवा ऐलकोहल केवल सांद्र सलफ्यूरिक अम्ल से ही पृथक् किए जा सकते हैं। इससे यह विदित होता है कि क्लोरल हाइड्रेट में जल उसके अणुआें में संघटित है और उसका अणुसूत्र CCI 3 CH (OH)2 तथा क्लोरेल ऐलकोहोलेट का CCI 3 CH (OH OC 2 H5) है। यह यौगिक सैद्धांतिक महत्व का है, क्योंकि इसमें दो हाइड्राक्सिल समूह एक ही कार्बन परमाणु से संबद्ध रहते हैं। इसका उपयोग संमोहन के रूप में किया जाता है तथा विशेष उपयोग प्रसिद्ध कीटनाशक डी. डी. टी. के निर्माण में होता है।
[े[en:Chloral]]
। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात् इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (=) है, ऐसीटिलीन में त्रिगुण बंध (º) वाले यौगिक अस्थायी हैं। ये आसानी से ऑक्सीकृत एवं हैलोजनीकृत हो सकते हैं। हाइड्रोकार्बनों के बहुत से व्युत्पन्न तैयार किए जा सकते हैं, जिनके विविध उपयोग हैं। ऐसे व्युत्पन्न क्लोराइड, ब्रोमाइड, आयोडाइड, ऐल्कोहाल, सोडियम ऐल्कॉक्साइड, ऐमिन, मरकैप्टन, नाइट्रेट, नाइट्राइट, नाइट्राइट, हाइड्रोजन फास्फेट तथा हाइड्रोजन सल्फेट हैं। असतृप्त हाइड्रोकार्बन अधिक सक्रिय होता है और अनेक अभिकारकों से संयुक्त हा सरलता से व्युत्पन्न बनाता है। ऐसे अनेक व्युत्पंन औद्योगिक दृष्टि से बड़े महत्व के सिद्ध हुए हैं। इनसे अनेक बहुमूल्य विलायक, प्लास्टिक, कृमिनाशक ओषधियाँ आदि प्राप्त हुई हैं। हाइड्रोकार्बनों के ऑक्सीकरण से ऐल्कोहॉल ईथर, कीटोन, ऐल्डीहाइड, वसा अम्ल, एस्टर आदि प्राप्त होते हैं। ऐल्कोहॉल प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक हो सकते हैं। इनके एस्टर द्रव सुगंधित होते हैं। अनेक सुगंधित द्रव्य इनसे तैयार किए जा सकते हैं। इसी प्रकार क्लोरल को भी विभिन्न प्रयोगों में लिया जा सकता है।