कौरव
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कौरव महाभारत के विशिष्ट पात्र हैं। कौरवों की संख्या 100+1 थी तथा वे सभी सहोदर थे। दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण कुमार की पत्नी गर्भवती थी उसका मायका मथुरा में था सीरीपत जी की पुत्री थी महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद वो अपने मायके चली गयी वहां कुलगुरु कृपाचार्य के वंशज रहते थे उन्होंने उस लड़की की रक्षा की कानावती से पुत्र कानकुंवर हुआ नौ पीढ़ी तक मथुरा में रहने के बाद विजय पाल ने वैशाली मे राज किया जो अब मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर ग्वालियर-भिंड-दतिया जबलपुर , विदिशा, भोपाल, रायसेन, होशंगाबाद , आदि जिलो में रहते हैं। कौरव जाति में कुल 36 गोत्र हैं। इनमें मुख्य रूप से ममार,अतरौलिया,खिचरौलिया,करहैया,तिहैया,अतरसूमा,डींड़े,लटकना, गेगला,पगुआ,गोहल,लुलावत,मरैया,ढिड़कोले,सरेठा,पहारिया,टिकरहा, जरहा,जहुआ इत्यादि शामिल हैं।
कौरवों के माता पिता
कौरवों के माता पिता का नाम गान्धारी तथा धृतराष्ट्र था।
कौरवों का जन्म
कुन्ती के पुत्र युधिष्ठिर के जन्म होने पर धृतराष्ट्र की पत्नी गान्धारी के हृदय में भी पुत्रवती होने की लालसा जागी। गान्धारी ने वेद व्यास जी से पुत्रवती होने का वरदान प्राप्त कर लिया। गर्भ धारण के पश्चात् दो वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी जब पुत्र का जन्म नहीं हुआ तो क्षोभवश गान्धारी ने अपने पेट में मुक्का मार कर अपना गर्भ गिरा दिया। योगबल से वेद व्यास ने इस घटना को तत्काल जान लिया। वे गान्धारी के पास आकर बोले, "गान्धारी तूने बहुत गलत किया। मेरा दिया हुआ वर कभी मिथ्या नहीं जाता। अब तुम शीघ्र सौ कुण्ड तैयार कर के उनमें घृत भरवा दो।" गान्धारी ने उनकी आज्ञानुसार सौ कुण्ड बनवा दिये। वेदव्यास ने गान्धारी के गर्भ से निकले मांसपिण्ड पर अभिमन्त्रित जल छिड़का जिसे उस पिण्ड के अँगूठे के पोरुये के बराबर सौ टुकड़े हो गये। वेदव्यास ने उन टुकड़ों को गान्धारी के बनवाये सौ कुण्डों में रखवा दिया और उन कुण्डों को दो वर्ष पश्चात् खोलने का आदेश दे अपने आश्रम चले गये। दो वर्ष बाद सबसे पहले कुण्ड से दुर्योधन की उत्पत्ति हुई। दुर्योधन के जन्म के दिन ही कुन्ती का पुत्र भीम का भी जन्म हुआ। दुर्योधन जन्म लेते ही गधे की तरह रेंकने लगा। ज्योतिषियों से इसका लक्षण पूछे जाने पर उन लोगों ने धृतराष्ट्र को बताया, "राजन्! आपका यह पुत्र कुल का नाश करने वाला होगा। इसे त्याग देना ही उचित है। किन्तु पुत्रमोह के कारण धृतराष्ट्र उसका त्याग नहीं कर सके। फिर उन कुण्डों से धृतराष्ट्र के शेष 100 पुत्र एवं दुश्शला नामक एक कन्या का जन्म हुआ। गान्धारी गर्भ के समय धृतराष्ट्र की सेवा में असमर्थ हो गयी थी अतएव उनकी सेवा के लिये एक दासी रखी गई। धृतराष्ट्र के सहवास से उस दासी का भी युयुत्स नामक एक पुत्र हुआ। युवा होने पर सभी राजकुमारों का विवाह यथायोग्य कन्याओं से कर दिया गया। दुश्शला का विवाह जयद्रथ के साथ हुआ।
- दुर्योधन
- दुश्शासन
- विकर्ण
- युयुत्सु
- दुश्शल
- जलसन्ध
- सम
- सह
- विन्द
- अनुविन्द
- दुर्धर्ष
- सुबाहु
- दु़ष्ट्रधर्षण
- दुर्मर्षण
- दुर्मुख
- दुष्कर्ण
- कर्ण
- विविशन्ति
- दुस्सह
- शल
- सत्त्व
- सुलोचन
- चित्र
- उपचित्र
- चित्राक्ष
- चारुचित्रशारानन
- दुर्मद
- दुरिगाह
- विवित्सु
- विकटानन
- ऊर्णनाभ
- सुनाभ
- नन्द
- उपनन्द
- चित्रबाण
- चित्रवर्मा
- सुवर्मा
- दुर्विरोचन
- अयोबाहु
- चित्रांग
- चित्रकुण्डल
- भीमवेग
- भिमबल
- बलाकि
- बलवर्धन
- उग्रायुध
- सुषेण
- कुण्डोदर
- महोदर
- चित्रायुध
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- पाशी
- वृन्दारक
- दृढवर्मा
- दृढक्षत्र
- सोमकीर्ति
- अनूर्दर
- दृढसन्ध
- जरासन्ध
- सत्यसन्ध
- सदस्सुवाक्
- उग्रश्रव
- उग्रसेन
- सेनानी
- दुष्पराजय
- अपराजित
- पण्डितक
- विशलाक्ष
- दुराधर
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- सुहस्त
- वातवेग
- सुवर्चस
- आदित्यकेतु
- बह्वाशी
- नागदत्त
- अग्रयायॊ
- कवची
- क्रथन
- दण्डी
- दण्डधार
- धनुर्ग्रह
- उग्र
- भीमरथ
- वीरबाहु
- अलोलुप
- अभय
- रौद्रकर्मा
- द्रुढरथाश्रय
- अनाधृष्य
- कुण्डभेदी
- विरावी
- प्रमथ
- प्रमाथी
- दीर्घारोम
- दीर्घबाहु
- व्यूढोरु
- कनकध्वज
- कुण्डाशी
- विरसज
- दुश्शला (पुत्री)
[[श्रेणी:महाभारत के पात्र] कुछ कौरव छत्रिय उत्तर प्रदेश में भी रहते हैं जो कि इस प्रकार है जालौन और झांसी में भी रहते हैं कौरव जाति