केलनसर

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केलनसर गाँव

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केलनसर ग्राम पंचायत के अधीन केलनसर सहित 6 छः राजस्व ग्राम है ।

1.केलनसर

2.ढाढरवाला

3.छीलानाडी

4.कोडियानाडा

5.जालदङा

6.सुथारानाडा

केलनसर गांव (अंग़्रेजी -Kelansar) गाँव यह एक भारतीय प्रांत के राजस्थान राज्य के जोधपुर जिले के बाप तहसिल तथा पंचायत समिति एवं उप तहसिल घंटियाली में स्थित हैं। यह लोकसभा क्षेत्र जोधपुर एवं फलौदी विधानसभा क्षेत्र भाग-122 के क्षेत्र में आता हैं। इस गाँव के ज्यादातर लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि पर निर्भर हैं, कृषि के साथ-साथ पशुपालन- गाय , भैंस, भेङ और बकरी आदि लोगों का प्रमुख आर्थिक व्यवसाय हैं। इस क्षेत्र में कई सरकारी व निजी प्राथमिक विद्यालय एवं एक राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र , आँगनबाङी केन्द्र भी हैं। गांव के अधिकांश लोगों की स्थिति गरीबी , निरक्षर होने के कारण अधिकांश लोग झुग्गी झोपङीयों में निवास करते हैं। स्थानीय भाषा: हिंदी और राजस्थानी इस गांव मैं एक उचित मूल्य की दुकान है जिसे सहकारी विभाग की उपशाखा पिन कोड नंबर 342311 यह गांव मुख्य रूप से एकमात्र ऐसा गांव है जहां पर भारतीय जनता पार्टी एवं राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी तथा आरएलपी यानी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के समर्थक लोग हैं यह राजनीति का प्रमुख केंद्र माना जाता यहां पर हिंदू धर्म के लोग रहते हैं बड़े-बड़े धोरे जिन्हें टीले कहते हैं यह रेगिस्तान का भाग सिंचित कृषि एवं असिंचित कृषि की जाती है वर्षा के अनिश्चितता के कारण कभी-कभी जल संकट का सामना करना पड़ता है। वर्तमान समय 07:02 अपराह्न बुधवार, 18 दिसंबर 2017 (IST) समय क्षेत्र: IST (UTC + 5) : 30) ऊंचाई / ऊँचाई: 188 मीटर। ऊपर सील स्तर टेलीफोन कोड / एसटीडी कोड

ग्राम पंचायत केलनसर की जनसंख्या सन् 2011 के अनुसार [१]

नैण गोत्र का संक्षिप्त इतिहास

नैण गोत्र का अत्यंत ही प्राचीन गोत्र है यह चंद्रवंशी गोत्र है , जाट जाति के इतिहास कार ठाकुर देशराज के अनुसार नेण 'शाखा' अनंगपाल तोमर (तंवर) के नाम पर चली । नैण और उनके पूर्वज क्षत्रियों के उस प्रसिद्ध राजघराने में से थे , जो तोमर या तंवर कहलाते हैं , जिनका अंतिम प्रतापी राजा अनंगपाल तोमर था । तोमर के 12 पुत्र थे, उनमें नैंणसी (1100 ई•) के वंशज कहलाये ।

नैंणसी के वंशज नैण आन मान मर्यादा और स्वाभिमान के धनी है ।जहां भी उनके स्वाभिमान को ठेस पहुंची वहां उन्होंने साका (सामूहिक आत्मोत्सर्ग) किया,तथा उस स्थान को त्याग दिया । जिसे स्थानीय भाषा में तागा यानी (त्यागना) (उस स्थान या गांव का अंन जल त्यागना) कहते हैं । भिराणी और बालासर (नोहर भादरा जिला हनुमानगढ़) में साका किया तदनंतर ढिंगसरी के सामंतवादियों से कुंठित होकर 'नाथूसर गांव ' को त्यागा । गांव नाथूसर नोखा जिला बीकानेर में पड़ता है । त्यागें हुए गांव में आज भी नैण गौत्र के विश्नोई या जाट बारहमासी (स्थायी) आवास बनाकर नहीं रहते हैं ।

सन् 1485 सवंत् 1542 में राजस्थान में भयंकर अकाल पड़ा अकाल से व्यथित होकर लोग मालवा (मध्य प्रदेश और सिंध ) प्रदेश पलायन को मजबूर हो गए थे , उसी समय समराथल धोरे (नोखा जिला बीकानेर) के पास श्री जांभोजी द्वारा 'बिश्नोई पंथ' का प्रवर्तन किया गया । अकाल की कोख में जन्मे इस 'विश्नोई संप्रदाय में दीक्षा का विशेष कार्यक्रम विक्रम संवत् 1542 की कार्तिक वदी अष्टमी से दीपावली तक चला रहा । बिश्नोई धर्म में दीक्षा का कार्यक्रम आगे भी चलता रहा इस दीक्षा कार्यक्रम 36 खङो ( गांवो) के लोगों ने विश्नोई धर्म स्वीकार किया । ये गांव ज्यादातर 'नोखा' बीकानेर के आसपास बसे हुए थे , विक्रमी संवत 1440 तक नैण भामटसर नोखा में आबाद थे । कतिपय नैण उसके बाद भी भामटसर में रहे। भामटसर में श्री खिदलजी जाट (नैण) के दो पुत्र ऊदोजी व ऊदोजी हुए । ऊमोजी जाट ही रहे ऊदोजी ने ही 'विश्नोई धर्म' स्वीकार किया । 'विश्नोई धर्म' में दीक्षित होने के बाद श्री ऊदोजी ने अलग ही अपना ढोर 'ठिकाना' बसाया । ऊदोजी नैण के पुत्र बालोजी हुए , बालोजी के पुत्र भोजराज जी हुए, भोजराजजी के पुत्र हलजीरामजी हुए, हलजीराम जी के पुत्र श्री जागणजी हुए ।

#केलनसर (फलोदी-बाप) जिला जोधपुर में विश्नोईयों का आगमन#

जागरण जी के सुपुत्र श्री सोनग जी नैण खारा गांव (नोखा के पास) से प्रस्थान कर अपनी तीन पीढ़ियों (दादा पुत्र पोता परिवार) के साथ विक्रमी संवत 1613 को वैशाख सुदी तीज के दिन (आखातीज) केलनसर गांव के मध्य अपना आवास (घर) बसाया । घर के ठीक सामने 'खावे' की थरपना की , खावा वह स्थान विशेष (जगह) है, जहां प्रतिवर्ष होली के बाद धूलंडी के दिन गांव के सभी विश्नोईजन थापन अथवा गयणों से पाहल (मंत्रों से अभिमंत्रित आवाहित जल) बनवाते हैं । सामूहिक पाहल जिसे अमृत जल कहते हैं , सामूहिक रूप से विश्नोईजन अमृत रूपी जलपान करते हैं, यह पाहल शारीरिक और आत्मिक शुद्धि के लिए बनाया जाता है । इस दिन खावे की जगह पर चुग्गा इकट्ठा करते हैं कभी कभार तो सुकाल के समय यह चुग्गा 500 मया 600 मण के आसपास इकट्ठा हो जाता है । कुण चुग्गा इकट्ठा करवाने में श्री भेरूजी साजेङ का विशेष योगदान रहता है । भेरूजी के सुपुत्र श्री गौतमजी छाजेङ बेजुबान निरीह और मूक प्राणियों के लिए चूण चुबग्गा इकट्ठा करने -करवाने में अपनी महती भूमिका आज भी निभाते हैं , उनका यह प्रयास प्रशंसनीय है ।

खावे मैं सामूहिक पाहल बनाने की परम्परा सन 1990 तक अनवरत रूप से चलती रही । सन 1990 तक गांव के सभी विश्नोई जन 'खावे' का ही पाहल ग्रहण करते थे । उसके बाद पाहल कई जगह बनाए जाने लगा ।

जिस समय श्री सोनग जी नेण केलनसर आकर बसे थे उस समय यहां पानी की विकट समस्या थी । "घी" मिलना आसान था परंतु पानी की बहुत तंगाई थी , गांव के पास प्यास बुझाने के लिए दो सागरी कुएँ थे एक का नाम पाबू'र यानी (पाबूसर) दूसरे का नाम सामिल था । पाबू'र कुएं का पानी अत्यधिक खारा था ,सामीर कुएं का पानी कुछ पीने लायक था ।

सन्दर्भ

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