क़ानून एवं न्याय मंत्रालय, भारत सरकार
साँचा:unsourced क़ानून एवं न्याय मंत्रालय भारत सरकार का एक प्रमुख मंत्रालय है।
विधि और न्याय मंत्रालय भारत सरकार का सबसे पुराना अंग है। इसकी स्थापना वर्ष 1833 में उस समय हुई थी जब ब्रिटिश संसद द्वारा चार्टर अधिनियम, 1833 लागू किया गया था। उक्त अधिनियम ने पहली बार विधायी शक्ति को किसी एकल प्राधिकारी, अर्थात गवर्नर जनरल की काउंसिल में निहित किया था। इस प्राधिकार के नाते और इंडियन काउंसिल अधिनियम, 1861 की धारा 22 के अधीन उसमें निहित प्राधिकार के द्वारा गवर्नर जनरल की काउंसिल ने सन् 1834 से 1920 तक देश के लिए कानून बनाए । भारत सरकार अधिनियम, 1919 के लागू होने के बाद विधायी शक्ति का प्रयोग उसके अधीन गठित भारत के विधानमंडल द्वारा किया गया। भारत सरकार अधिनियम, 1919 के बाद भारत सरकार अधिनियम, 1935 आया। भारतीय । स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के पारित होने के साथ भारत एक डोमिनियन बन गया और डोमिनियन विधानमंडल ने भारत (अनंतिम संविधान) आदेश, 1947 द्वारा यथा अंगीकृत भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 100 के उपबंधों के अधीन वर्ष 1947 से 1949 तक कानून बनाए। 26 जनवरी, 1950 से भारत का संविधान लागू होने के बाद विधायी शक्ति संसद में निहित है।
मन्त्रालय का संगठन
विधि और न्याय मंत्रालय में विधायी विभाग, विधि कार्य विभाग और न्याय विभाग सम्मिललित हैं। विधि कार्य विभाग केन्द्रीय सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों को विधिक सलाह देता है जबकि विधायी विभाग केन्द्रीय सरकार के प्रधान विधान के प्रारूपण का कार्य करता है।
लक्ष्य
इस मंत्रालय का लक्ष्य सरकार को दक्ष और उत्तरदायी वादकारी बनाना है। विधि शिक्षा, विधि व्यवसाय और भारतीय विधि सेवा सहित विधिक सेवाओं में विस्तार, समावेशन और उत्कृष्टता लाने के लिए भारतीय विधि व्यवस्था में सुधार करना। विधिक पेशेवरों के सृजन की एक प्रणाली विकसित करना ताकि वे न केवल भारत के बल्कि विश्व के मुकदमा और गैर-मुकदमा क्षेत्रों की भविष्य की चुनौतियों का सामना कर सकें, तथा उनके सामाजिक उत्तरदायित्व और एक दृढ़ व्यायवसायिक आचार नीति पर ध्यान केंद्रित करें। १२वीं पंचवर्षीय योजना की आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए मुकदमों की भारी संख्या (3.3 करोड़), उसके फलस्वररूप राजकोष पर और मानवशक्ति सहित संसाधनों पर बढ़ते हुए बोझ जैसी बाधाओं को देखते हुए तथा सरकारी प्राधिकारियों को व्यापक विवेकाधीन शक्तियां प्रदान करने की आवश्यकता को महसूस करते इसका लक्ष्य प्रशासनिक शक्ति के सुव्यवस्थित प्रवाह, विरोध के प्रबंधन, विधि का शासन लागू करने और सरकार के विभिन्न स्कंधों द्वारा निर्धारित किए गए उद्देश्यों की प्राप्ति में मदद देने के लिए एक उचित विधिक ढांचा तैयार करना है।
उद्देश्य
- मंत्रालयों और विभागों द्वारा भेजे गए मामलों पर विधिक सलाह/राय देकर और उनके विधायी प्रस्तावों की जांच करके उनके कार्य संचालन में सहायता देना और सुशासन को बढ़ाना।
- भारतीय विधि सेवा में सुधार करके उसे अधिक दक्ष, अनुक्रियाशील और वैश्विकक स्तर पर प्रतिस्पर्धा के योग्य बनाना।
- केन्द्रीय अभिकरण अनुभाग के लिए एक वृहद ई-शासन प्रणाली विकसित करना और सूचना प्रौद्योगिकी के आधार पर विधि कार्य विभाग को नया रूप देना।
- मुकदमों को कम करना और विवाद समाधान के वैकल्पिक तरीकों द्वारा विवादों के समाधान को प्रोत्साहित करना ।
- विधि व्यवसाय में उत्कृष्टता को बढ़ावा देना और विधि शिक्षा के क्षेत्र में नवीन युग के प्रवर्तन की रूपरेखा तैयार करना।
- विधिक सुधार करना।
- इस विभाग के कार्यक्षेत्र के अंतर्गत आने वाले अधिनियमों, अर्थात अधिवक्ता अधिनियम, 1961, नोटरी अधिनियम, 1952, विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 और अधिवक्ता कल्याण निधि अधिनियम, 2001 को प्रभावी रूप से लागू करना।