करतल कमल कमल दल नयन

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करतल कमल कमल दल नयन (असमिया: কৰতল কমল কমল দল নয়ন) असम के प्रख्यात कवि, समाज सुधारक, दार्शनिक तथा धार्मिक मार्गदर्शक श्रीमन्त शंकरदेव द्वारा रचित एक कविता है।[१] इस कविता में भगवान विष्णु के रूप का वर्णन किया गया हैं, जो अपने कर, अर्थात हाथ में कमल थामे रखते हैं, और जिनकी आंखें भी कमल सदृश हैं। श्रीमन्त शंकरदेव के वैष्णव एकशरण धर्म में भगवान विष्णु को विशेष महत्व प्रदान किया जाता है।

लेखन

'करतल कमल' असमिया साहित्य मे एक विशेष स्थान रखता हैं, क्योंकि यह श्रीमंत शंकरदेव के पेहले कवितओं मे से एक हैं, जिनके साहित्य कर्म ने बाद में असम के समाज व्यवस्था को पूर्णतः परिवर्तित करके रख दिया।[२]

श्रीमंत शंकरदेव ने गुरु माधव कंदलि के पास अपनी शिक्षा आरम्भ की थी। 'करतल कमल' रचना करने से पूर्व उनको केवल स्वर वर्ण (अ, आ आदि) और व्यंजन वर्ण (क, ख आदि) सिखाए गए थे।[३] अपने शिक्षा के प्रारंभिक काल मे रहे शंकरदेव को उस समय स्वरचिह्नो की, अर्थात मात्राओं की शिक्षा नही दी गई थी। इसके बावजूद श्रीमंत शंकरदेव ने यह कविता लिखी थी अपनी साहित्यिक कला का प्रकाश करते हुए। इसी कारण से, इस कविता में किसी भी स्वरचिह्न या मात्रा का प्रयोग नही हुआ है[४] शंकरदेव ने १२ वर्ष की आयु में कविता लिखी थी।[२][५]

बोल

असमिया लिपि में

देवनागरी लिपि में

करतल कमल कमल दल नयन।

भवदव दहन गहन वन शयन॥

नपर नपर पर शततर गमय।

सभय मभय भय ममहर शततय॥

खरतर वरसर हतदश वदन।

खगचर नगधर फनधर शयन॥

जगदघ मपहर भवभय तरण।

परपद लयकर कमलज नयन॥

सन्दर्भ

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