कण त्वरक
कण-त्वरक वह युक्ति है जिसके द्वारा आवेशित कणों की गतिज ऊर्जा बढाई जाती हैं। यह एक ऐसी युक्ति है, जो किसी आवेशित कण (जैसे इलेक्ट्रान, प्रोटान, अल्फा कण आदि) का वेग बढ़ाने (या त्वरित करने) के काम में आती हैं। वेग बढ़ाने (और इस प्रकार ऊर्जा बढाने) के लिये वैद्युत क्षेत्र का प्रयोग किया जाता है, जबकि आवेशित कणों को मोड़ने एवं फोकस करने के लिये चुम्बकीय क्षेत्र का प्रयोग किया जाता है। त्वरित किये जाने वाले आवेशित कणों के समूह या किरण-पुंज (बीम) धातु या सिरैमिक के एक पाइप से होकर गुजरती है, जिसमे निर्वात बनाकर रखना पड़ता है ताकि आवेशित कण किसी अन्य अणु से टकराकर नष्ट न हो जायें।
टीवी आदि में प्रयुक्त कैथोड किरण ट्यूब (CRT) भी एक अति साधारण कण-त्वरक ही है। जबकि लार्ज हैड्रान कोलाइडर विश्व का सबसे विशाल और शक्तिशाली कण त्वरक है।
कण त्वरकों का महत्त्व इतना है कि उन्हें 'अनुसंधान का यंत्र' (इंजन्स ऑफ डिस्कवरी) कहा जाता है।
प्रकार
कण त्वरक मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं:
- रेखीय त्वरक (लिनैक / Linac) और
- चक्रीय त्वरक या वृत्तीय त्वरक (Cyclic accelerators)
माइक्रोट्रान, साइक्लोट्रान, बीटाट्रान, सिंक्रोट्रान आदि चक्रीय त्वरक हैं।
त्वरकों के उपयोग
उच्च उर्जा वाली आवेशित किरण पुंज कई कार्यों के लिये उपयोगी है। इसका सबसे महत्वपूर्ण उपयोग परमाणु के अन्दर झांकने और इस बात का पता लगाने के लिये किया जाता है परमाणु का सबसे मौलिक कण क्या है।
- प्रत्येक टीवी के कैथोड-किरण ट्यूब में १० कजार एलेक्ट्रॉन-वोल्ट से लेकर २५ हजार एलेक्ट्रान-वोल्ट का छोटा सा डीसी त्वरक होता है।
- उच्च-ऊर्जा भौतिकी के प्रयोग करने के लिये -- नाभिक की संरचना के बारे में अधिकांश जानकारी उच्च ऊर्जा के कणों के उपयोग से ही मिली है।
- सूक्ष्म मशीनिंग (माइक्रो-मशीनिंग) के लिये
- एकीकृत परिपथ (आइ सी) के निर्माण में
- कैंसर के इलाज के लिये
- खाद्य पदार्थों का विकिरण करके संरक्षित करने हेतु
- उद्योगों में (जैसे, केबल की क्रास-लिंकिंग करने के लिये)
- ब्लैक होल के निर्माण के लिये
- आयन रोपण
- इलेक्ट्रॉन पुंज द्वारा पदार्थ-संस्करण (मैटेरिअल प्रोसेसिंग)
- अविनाशी परीक्षण (nondestructive testing)
- न्यूट्रॉन जनन -- जो सब-क्रिटिकल रिएक्टर में तथा न्यूट्रॉन स्कैतरिंग के प्रयोगों में काम आते हैं।
- रेडियो समस्थानिकों के उत्पादन के लिये
- सिंक्रोट्रॉन विकिरण उत्पन्न करने के लिये
- नाभिकीय रिएक्टरों से निकले रेडियोसक्रिय कचरे के प्रकार्य-परिवर्तन (ट्रान्सम्युटेशन) के लिये।
- दवाओं का विकास -- एक्स-किरण क्रिस्टलिकी का उपयोग दवा निर्माण में हो रहा है। एक्स-किरण क्रिस्टलिकी के लिये कण त्वरक आवश्यक हैं।
कणों को त्वरित करने का सिद्धान्त
आवेशित कणों को त्वरित करने के लिए (अर्थात उनकी उर्जा बढाने के लिये) उन्हें एक वैद्युत क्षेत्र से होकर गुजारा जाता है जिसकी दिशा आवेश के गति की दिशा में होती है।
जब किसी q आवेश को V वोल्ट विभवान्तर वाले दो बिन्दुओं के बीच से गुजारा जाता है तो उसकी उर्जा में qV जूल की वृद्धि हो जाती है। उदाहरण के लिये किसी एलेक्ट्रान को 1 वोल्ट विभवान्तर से होकर गुजारा जाय तो उसकी उर्जा में 1 eV (1 electron-volt) की वृद्धि हो जाती है। ज्ञातव्य है कि एलेक्ट्रॉन का आवेश e = 1.6×10^-19 कूलॉम्ब होता है।
त्वरण की विधियाँ
- आवेशों को बहुत अधिक उर्जा प्रदान करने के लिये साधारणतः कई चरणों में त्वरित किया जाता है।
- प्रथम चरण में प्रायः आवेशित कण को एक विद्युतस्थैतिक क्षेत्र (एलेक्ट्रोस्टैटिक फिल्ड) से होकर गुजारना पड़ता है।
- रेखीय त्वरक में रेडियो आवृत्ति के विद्युत्चुम्बकीय क्षेत्र के द्वारा त्वरण प्रदान किया जाता है।
- चक्रीय त्वरकों में त्वरण के लिये रेडियो आवृत्ति की कैविटी (आर एफ् कैविटी) का प्रयोग किया जाता है।
- अधिक उर्जा के आवेशित कणों के मार्ग में उच्च निर्वात की व्यवस्था होती है ताकि ये कण किसी द्रव्य से टक्कर करके अपनी उर्जा नष्ट न कर दें। इसके लिये इन कणों का मार्ग बीम पाइप से होकर जाता है। बीम पाइप में निर्वात पैदा करने के लिये तरह-तरह के पम्प प्रयोग किये जाते हैं।
सरल त्वरक भौतिकी
- जब कोई आवेशित कण किसी विद्युत क्षेत्र में (स्थिर या गतिमान) हो तो उस पर विद्युत क्षेत्र के समानान्तर वैद्युत बल लगता है। यदि कण इस क्षेत्र में गति करने के लिये स्वतन्त्र हो तो उसकी गतिज उर्जा बढ जाती है। यही सिद्धान्त आवेशित कणों की उर्जा बढाने में तरह-तरह से प्रयुक्त किया जाता है।
- जब कोई आवेशित कण किसी चुम्बकीय क्षेत्र में गतिमान हो तो उस पर चुम्बकीय बल लगता है। यह बल चुम्बकीय क्षेत्र एवं आवेश के वेग दोनो के लम्बवत लगता है तथा इस बल का मान आवेश के मान, चुम्बकीय क्षेत्र के मान एवं वेग के मान के गुणनफल के समानुपाती होता है। इस सिद्धान्त का उपयोग आवेशित कणों को मोड़ने तथा उन्हे फोकस करने में होता है।
- जब कोई आवेशित कण प्रकाश के वेग के लगभग बराबर वेग से गति कर रहा होता है और उसका संवेग परिवर्तित किया जाय (जैसे उसे मोड़कर या किसी अन्य विधि से) तो वह विकिरण छोड़ता है। इसे सिंक्रोट्रान विकिरण कहते हैं। यह विकिरण कई कार्यों के लिये बहुत उपयोगी होता है।
त्वरकों के प्रमुख घटक
कण त्वरक एक बहुत जटिल तन्त्र है जो कई तन्त्रों से मिलकर बना होता है। इसके मुख्य घटक इस प्रकार हैं:
- आवेश का स्रोत - प्रायः एलेक्ट्रॉन्, प्रोटॉन एवं अल्फा कण ही त्वरित किये जाते हैं क्योंकि ये स्थिर (स्टेबल) कण हैं। दूसरे कण क्षणभंगुर (कम अर्धआयु के) होते हैं जिन्हे उनके अत्यन्त लघु जीवनकाल (कुछ मिलीसेकेण्ड) में त्वरित करना लगभग असम्भव है।
- कणों की उर्जा बढाने का उपकरण : रेडियो आवृति कैविटी (आरएफ् कैविटी) आदि
- चुम्बक : आवेशित कणों को मोड़ने एवं फोकस करने के लिये
- द्विध्रुव चुम्बक (डाइपोल मैग्नेट) - कणोंको मोड़ने के लिये
- चतुर्ध्रुवी चुम्बक (क्वाड्रूपोल मैग्नेट) - कणों के पुंज को फोकस करने हेतु
- अन्य - षटध्रुवी, अष्टध्रुवी, किकर चुम्बक, विग्लर आदि
- चुम्बकों में आवश्यक विद्युत धारा प्रदान करने के शक्ति आपूर्ति ताकि चुम्बक आवश्यक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न कर सकें।
- बीम पाइप : जिसमें से आवेशित कण गमन करते हैं। बीम पाइप में निर्वात पैदा करने के लिये तरह-तरह के निर्वात-पम्प प्रयोग किये जाते हैं।
- जाँच एवं निदान से सम्बन्धित उपकरण (डायग्नोस्टिक डिवाइसेस) - जैसे बीम-धारा का मापन, बीम प्रोफाइल (आकार) का मापन, बीम पाइप के अन्दर बीम की स्थिति का मापन आदि
- नियन्त्रण तन्त्र तथा नियन्त्रण कक्ष - विभिन्न अवयवों (जैसे शक्ति आपूर्ति) को उचित मान पर सेट करना, बीम एवं अन्य तन्त्रों के महत्वपूर्ण राशियों के बारे में जानकारी एकत्र करके कन्ट्रोल रूम में प्रदर्शित करना व कम्प्यूटर पर उसका भण्डारण करना।
- विकिरण सुरक्षा के लिये कांक्रीट, शीशा (लेड) आदि के द्वारा शिल्डिंग ; विकिरण के मापन के लिये उपकरण आदि।
कण त्वरकों का इतिहास
- 1930 — पहला कण त्वरक
- 1931 — 'वान डी ग्राफ' (Van de Graaff) नामक त्वरक का प्रादुर्भाव
- 1931 — रैखिक त्वरक (Linac), बीटाट्रान (Betatron), एवं साइक्लोट्रॉन (Cyclotron)
- 1931 — An American Linac
- 1931 — A Close Second: The First Cyclotron
- 1932-1940 — The Decade of the Cyclotron
- 1940 — The Betatron
- 1945 — New Ideas: Synchronous Acceleration Leads to the Microtron
- 1947 — More Synchronicity: The Electron Synchrotron
- 1947 — The Synchrocyclotron
- 1952 — Even Higher Energies: The Proton Synchrotron
- 1952 — A Strong Leap Ahead: Focusing the Beam
- 1953 — Synchrotrons Become Stronger
- 1946-1954 — The Linac Grows Up: An Electron and Proton Linac
- 1966 — Stanford Gets Serious About the Linac: SLAC
- 1960 — The Storage Ring Collider
- 1969 — CERN Enters the Collider Age T
- 1970 — Germany Joins the Collider Age
- 1981 — The First Proton-Antiproton Colliders: CERN and FNAL
- 1981 — CERN Gets Into the Electron-Positron Business
- 1983 — Illinois Builds a Big Collider: The Tevatron
- 1993 — Everything is Bigger in Texas-The SSC
- 2000 — Heavy Ion Colliders: RHIC and the LHC
- 2010 — The LHC collides two 3.5 TeV beams of protons resulting in a 7 TeV centre of mass energy collision. LHC collides lead ions.
- 2011 — Quark - gluon plasma is created at the LHC
- 2012 — The LHC collides two 4 TeV beams resulting in a 8 TeV centre of mass energy collision. A new particle which could be the Higgs boson is discovered at the LHC.
विश्व में त्वरक
विश्व के सभी प्रमुख देशों में कण त्वरक बनाये गये हैं। इस समय विश्व के विभिन्न देशों में विभिन्न प्रकार के, विभिन्न उर्जा वाले एवं विभिन्न उपयोग के लिये निर्मित कई हजार कण त्वरक हैं। जेनेवा स्थित सर्न (CERN) लार्ज हैड्रान कोलाइडर विश्व का सबसे विशाल और शक्तिशाली कण त्वरक है।
भारत में कण त्वरक
- कोलकाता स्थित परिवर्ती उर्जा साइक्लोट्रॉन केन्द्र में साइक्लोट्रान
- इन्दौर स्थित राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केन्द्र में इन्डस-१ व इन्डस-२ ---> दोनो एलेक्ट्रान सिन्क्रोट्रान हैं।
- मुम्बई स्थित भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र में वान डी ग्राफ
- मुम्बई स्थित टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान में पेल्ट्रान
- दिल्ली स्थित नाभिकीय विज्ञान केन्द्र (अब अन्तरविश्वविद्यालय त्वरक केन्द्र) में वान डी ग्राफ
त्वरक के बारें में अन्यत्र
- Formulas: Accelerator Physics and Synchrotron Radiation
- त्वरकों के उपयोग (अंग्रेजी में)साँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
- Present and Future Applications ofIndustrial Accelerators - Craig S. Nunan Varian Associates, Inc.
- What are particle accelerators used for?
- Stanley Humphries (1999) Principles of Charged Particle Acceleration
- Particle Accelerators around the world
- Wolfgang K. H. Panofsky: The Evolution of Particle Accelerators & Colliders, (पीडीऍफ), स्टैनफोर्ड, 1997
- P.J. Bryant, A Brief History and Review of Accelerators (पीडीऍफ), सर्न, 1994.
- साँचा:cite book
- David Kestenbaum, Massive Particle Accelerator Revving Up NPR's Morning Edition article on April 9, 2007
- Hellborg, Ragnar, ed. Electrostatic Accelerators: Fundamentals and Applications [N.Y., N.Y.: Springer, 2005]. [१]
इन्हें भी देखें
- कण भौतिकी
- परिवर्ती उर्जा साइक्लोट्रॉन केन्द्र, कोलकाता
- राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केन्द्र, इन्दौर
- लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर
- स्प्रिंग-८ या एसपीरिंग-८ (SPring-8)
- कण भौतिकी के त्वरकों की सूची
- रैखिक त्वरक (लिनैक)
- वान डी ग्राफ़ जेनरेटर
- साइक्लोट्रॉन
- माइक्रोट्रॉन