कठुआ
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देश | साँचा:flag/core |
प्रान्त | जम्मू और कश्मीर |
ज़िला | कठुआ ज़िला |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | ५९,८६६ |
• घनत्व | साँचा:infobox settlement/densdisp |
भाषा | |
• प्रचलित | डोगरी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
कठुआ (Kathua) भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के कठुआ ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है और इसी नाम की तहसील का मुख्यालय भी।[१][२][३][४]
नामोत्पत्ति
कठुआ' शब्द डोगरी भाषा के ठुआं' से व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ 'बिच्छू' है। कुछ लोगों का मत है कि कठुआ शब्द 'कश्यप' ऋषि के नाम से उत्पन्न हुआ है।
विवरण
कठुआ, जम्मू से 87 किलोमीटर और पठानकोट से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पहले इसे 'कठुई' के नाम से जाना जाता था लेकिन बाद में इसका नाम बदलकर कठुआ रख दिया गया। ऐतिहासिक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण माना जाने वाला यह जिला लगभग 2000 वर्ष पुराना माना जाता है। यह स्थान जहां एक ओर मंदिरों, जैसे धौला वाली माता, जोदि-दी-माता, आशापूर्णी मंदिर आदि के लिए जाना जाता है वहीं दूसरी ओर यह बर्फ से ढ़के पर्वतों, प्राकृतिक सुंदरता और घाटियों के लिए भी प्रसिद्ध है। यह नगर जम्मू कश्मीर का 'प्रवेश द्वार' तथा औद्योगिक नगर भी है।
मुख्य आकर्षण
धौला वाली माता
समुद्र तल से 6000 फीट की ऊंचाई पर स्थित धौला वाली माता मंदिर एक धार्मिक केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध है। विशेषकर नवरात्र के दौरान काफी संख्या में भक्तगण यहां आते हैं। ऐसा माना जाता है कि एक बार किसी शेफर्ड (पानी के जहाज की देखभाल करने वाला) को स्वप्न आया कि माता उसे मांधी धर में बुला रही है। शेफर्ड मांधी धर मे जाता है तो देवी उसे कन्या के रूप में दर्शन देती है। उस के पश्चात् से शेफर्ड नियमित रूप से देवी की उपासना करने लगता है। कहा जाता है कि शेफर्ड जहां रहता था एक बार उस जगह बहुत अधिकं बर्फबारी हुई। शेफर्ड की परेशानियों को देख माता ने उससे कहा कि वह उस स्थान पर जा रही है जहां अभी धौली वाली माता स्थित है। शेफर्ड ने उस स्थान पर धौली वाली माता के मंदिर का निर्माण करवाया।
जोदि-दी-माता
प्रत्येक वर्ष नवरात्रा के दौरान हजारों की संख्या में भक्तगण जोदि-दि-माता के दर्शन के लिए आते हैं। कठुआ जिले के बंजल से चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 7,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह एक खूबसूरत स्थान है जो कि अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण पर्यटकों को अधिक आकर्षित करता है।
दुग्गन
यह स्थान समुद्र तल से 7,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह बहुत ही खूबसूरत घाटी है जिसकी चौड़ाई एक किलोमीटर और लंबाई पांच किलोमीटर है। चीड़, देवदार के पेड़ से घिरे इस घाटी के दोनों तरफ से नदियां प्रवाहित होती है। सर्दियों में अधिक ठंड और गर्मियों में खुशनुमा मौसम होने के कारण यह स्थान पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। इसके अलावा यहां एक पुराना नाग मंदिर भी है। जहां से प्रत्येक वर्ष होने वाली यात्रा कैलाश कुंड जाती है।
सरथाल
यह एक खूबसूरत घास का मैदान है जो समुद्र तल से 7000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। छ: महीने तक प्राय: बर्फ से ढकी होने के कारण इस जगह की खूबसूरती एकाएक पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींचती है। सरथाल बानी से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
बानी
बानी एक छोटी गैलेशियर घाटी है। जो कि समुद्र तल से 4200 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मिनी कश्मीर के नाम से भी प्रसिद्ध है। भद्रवाह, चम्बा आदि से आने वाले ट्रैकर्स के लिए यहां एक आधार शिविर की भी व्यवस्था की गई है। इसके अलावा झरने, नदियां, जंगल और विशाल घास के मैदान भी पर्यटकों को अपनी ओर आर्कषित करते है।
धार महानपुर
हिमालय के मध्य में स्थित धार महानपुर खूबसूरत पर्यटन स्थल है। यह जगह कठुआ जिले के बसौहली से 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सघन चीड़ और देवदार के जंगलों से घिरी यह जगह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण अधिक प्रसिद्ध है। यहां का मौसम सर्दियों के दौरान ठंडा और गर्मियों में सुहावना रहता है। इसके अलावा राज्य सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा यहां पर्यटकों के लिए अनेक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।
माता सुंदरीकोट मंदिर
कठुआ जिले के शिवालिक पर्वत पर स्थित माता सुंदरीकोट समुद्र तल से 1000 मीटर की ऊंचाई पर है। यह जगह भिलवाड़ से लगभग सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऊंचे पर्वत पर स्थित माता सुंदरीकोट मंदिर के समीप ही बेर का पौधा है। माना जाता है देवी की प्रतिमा स्थित इस जगह पर पाई गई थी। माता सुंदरीकोट मंदिर कठुआ से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
आशा पूर्णी मंदिर
आशा पूर्णी मंदिर कठुआ जिले के प्रमुख मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को भगत छज्जू राम ने 1949 ई. में बनवाया था। जोकि समुद्र तल से तीस फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है। पौराणिक कथा के अनुसार, यह वहीं स्थान है जहां भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र द्वारा देवी की राख बिखेरी गई थी। जिसके पश्चात़ से इस जगह का नाम आशा पूर्णी मंदिर रखा गया था।
माता बालाजी सुंदरी मंदिर
कठुआ जिले के शिवालिक पर्वत पर स्थित माता बालाजी सुंदरी मंदिर पुराने मंदिरों में से है। माना जाता है कि यह मंदिर लगभग दो सौ वर्ष पुराना है। यह मंदिर समुद्र तल से 5000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार एक बाह़मण घास काट रहा था। घास काटते समय उसकी दराती पत्थर पर लग जाती है और उस पत्थर में से खून आने लगता है। वह पत्थर को एक बरगद के वृक्ष के नीचे रख देता है और उसकी पूजा करने लगता है। इसी मूर्ति को मंदिर में मूर्ति में रूप में रखा गया है। हरेक साल नवरात्रा के दौरान मंदिर में मेले का आयोजन किया जाता है।
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
सन्दर्भ
- ↑ "Jammu, Kashmir, Ladakh: Ringside Views," Onkar Kachru and Shyam Kaul, Atlantic Publishers, 1998, ISBN 9788185495514
- ↑ "District Census Handbook, Jammu & Kashmir स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।," M. H. Kamili, Superintendent of Census Operations, Jammu and Kashmir, Government of India
- ↑ "Restoration of Panchayats in Jammu and Kashmir," Joya Roy (Editor), Institute of Social Sciences, New Delhi, India, 1999
- ↑ "Land Reforms in India: Computerisation of Land Records," Wajahat Habibullah and Manoj Ahuja (Editors), SAGE Publications, India, 2005, ISBN 9788132103493