स्टैच्यू ऑफ यूनिटी

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स्टैच्यू ऑफ यूनिटी

एकता की मूर्ति
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स्थिति साधू बेट, सरदार सरोवर बांध के निकट, गरुड़ेश्वर बांध, नर्मदा जिला, गुजरात, भारत
अभिकल्पना राम सुतार
प्रकार मूर्ति
सामग्री इस्पात साँचे, प्रबलित कंक्रीट, कांस्य का लेप[१]
लम्बाई dhunfty
चौड़ाई fyggy
ऊँचाई साँचा:plainlist[१]
निर्माण आरंभ साँचा:start date and age
निर्माण पूर्ण juuhn
उद्घाटन तिथि bhokgff
समर्पित वल्लभभाई पटेल

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी भारत के प्रथम उप प्रधानमन्त्री तथा प्रथम गृहमन्त्री वल्लभभाई पटेल को समर्पित एक स्मारक है,[२][३][४] जो भारतीय राज्य गुजरात में स्थित है।[५] गुजरात के तत्कालीन मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने 31 अक्टूबर 2013 को सरदार पटेल के जन्मदिवस के मौके पर इस विशालकाय मूर्ति के निर्माण का शिलान्यास किया था। यह स्मारक सरदार सरोवर बांध से 3.2 किमी की दूरी पर साधू बेट नामक स्थान पर है जो कि नर्मदा नदी पर एक टापू है। यह स्थान भारतीय राज्य गुजरात के भरुच के निकट नर्मदा जिले में स्थित है।[६]

यह विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति है, जिसकी लम्बाई साँचा:convert है।[७] इसके बाद विश्व की दूसरी सबसे ऊँची मूर्ति चीन में स्प्रिंग टैम्पल बुद्ध है, जिसकी आधार के साथ कुल ऊंचाई स्क्रिप्ट त्रुटि: "convert" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। हैं।[८]

प्रारम्भ में इस परियोजना की कुल लागत भारत सरकार द्वारा लगभग ३,००० करोड़ (US$३९३.७ मिलियन) रखी गयी थी,[९] बाद लार्सन एंड टूब्रो ने अक्टूबर 2014 में सबसे कम २,९८९ करोड़ (US$३९२.२६ मिलियन) की बोली लगाई; जिसमें आकृति, निर्माण तथा रखरखाव शामिल था। निर्माण कार्य का प्रारम्भ 31 अक्टूबर 2013 को प्रारम्भ हुआ।[१०][११] मूर्ति का निर्माण कार्य मध्य अक्टूबर 2018 में समाप्त हो गया।[१२] इसका उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 31 अक्टूबर 2018 को सरदार पटेल के जन्मदिवस के मौके पर किया गया।[१३]

अभियान

लौह पुरुष सरदार पटेल, जिनकी स्मृति में यह विशाल स्मारक लोहे से ही बनाया गया है।

गुजरात सरकार द्वारा 7 अक्टूबर 2010 को इस परियोजना की घोषणा की गयी थी।[१४] इस मूर्ति को बनाने के लिये लोहा पूरे भारत के गाँव में रहने वाले किसानों से खेती के काम में आने वाले पुराने और बेकार हो चुके औजारों का संग्रह करके जुटाया गया।[१५] सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता ट्रस्ट ने इस कार्य हेतु पूरे भारतवर्ष में 36 कार्यालय खोले,[१५] जिससे लगभग 5 लाख किसानों से लोहा जुटाने का लक्ष्य रखा गया।[१६] इस अभियान का नाम "स्टैच्यू ऑफ यूनिटी अभियान" दिया गया।[१७][१८] 3 माह लम्बे इस अभियान में लगभग 6 लाख ग्रामीणों ने मूर्ति स्थापना हेतु लोहा दान किया।[१८] इस दौरान लगभग 5,000 मीट्रिक टन लोहे का संग्रह किया गया।[१९] हालाँकि शुरुआत में यह घोषणा की गयी थी कि संग्रहित किया गया लोहे का उपयोग मुख्य प्रतिमा में किया जायेगा, मगर बाद में यह लोहा प्रतिमा में उपयोग नहीं हो सका; और इसे परियोजना से जुड़े अन्य निर्माणों में प्रयोग किया गया।[२०]

मूर्ति निर्माण के अभियान से "सुराज" प्रार्थना-पत्र बना जिसमे जनता बेहतर शासन पर अपनी राय लिख सकती थी। सुराज प्रार्थना पत्र पर 2 करोड़ लोगों ने अपने हस्ताक्षर किये, जो कि विश्व का सबसे बड़ा प्रार्थना-पत्र बन गया जिसपर हस्ताक्षर हुए हों।[१७] इसके अतरिक्त 15 दिसम्बर 2013 को एक "रन फॉर यूनिटी" नामक मैराथन का भी पूरे भारतवर्ष में आयोजन हुआ।[२१] इस मैराथन में भी बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया।[१७][२२][२३][२४]

परियोजना

जनवरी 2018 में निर्माणाधीन स्टैच्यू ऑफ यूनिटी

भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को समर्पित यह स्मारक नर्मदा बांध की दिशा में, उससे 3.2 किमी दूर साधू बेट नामक नदी द्वीप पर बनाया गया है। आधार सहित इस मूर्ति की कुल ऊँचाई 240 मीटर है जिसमे 58 मीटर का आधार तथा 182 मीटर की मूर्ति है। यह मूर्ति इस्पात साँचे, प्रबलित कंक्रीट तथा कांस्य लेपन से युक्त है।[१] इस स्मारक की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  • मूर्ति पर कांस्य लेपन
  • स्मारक तक पहुँचने के लिये लिफ्ट
  • मूर्ति का त्रि-स्तरीय आधार, जिसमे प्रदर्शनी फ्लोर, छज्जा और छत शामिल हैं। छत पर स्मारक उपवन, विशाल संग्रहालय तथा प्रदर्शनी हॉल है जिसमे सरदार पटेल की जीवन तथा योगदानों को दर्शाया गया है।
  • एक नदी से 500 फिट ऊँचा आब्जर्वर डेक का भी निर्माण किया गया है जिसमे एक ही समय में दो सौ लोग मूर्ति का निरिक्षण कर सकते हैं।
  • नाव के द्वारा केवल 5 मिनट में मूर्ति तक पहुँचा जा सकेगा।
  • एक आधुनिक पब्लिक प्लाज़ा भी बनाया गया है, जिससे नर्मदा नदी व मूर्ति देखी जा सकती है। इसमें खान-पान स्टॉल, उपहार की दुकानें, रिटेल और अन्य सुविधाएँ शामिल हैं, जिससे पर्यटकों को अच्छा अनुभव होगा।[७]
  • प्रत्येक सोमवार को रखरखाव के लिए स्टैच्यू ऑफ यूनिटी स्मारक बंद रहता है।[२५]

वित्तीय सहायता

स्मारक सार्वजनिक-निजी साझेदारी के माध्यम से बना है, जिसमे अधिकांश भाग गुजरात सरकार का है। गुजरात सरकार ने 2012-13 बजट में इस हेतु ₹100 करोड़ तथा 2014-15 में ₹500 करोड़ आवंटित किये थे।[२६] 2014-15 भारतीय संघ के बजट में इस मूर्ति के निर्माण हेतु ₹2 अरब आवंटित किये गये।[२७][२८][२९]

निर्माण

इस मूर्ति के निर्माण हेतु टर्नर कंस्ट्रक्शन (बुर्ज खलीफा[३०] का परियोजना प्रबंधक) की सहायता ली जा रही है। इसे पूर्ण होने में लगभग 5 वर्ष का समय लगा। परियोजना की कुल लागत २,०६३ करोड़ (US$२७०.७४ मिलियन) है।[३१] प्रथम चरण के लिये अक्टूबर 2013 को बोली के लिये आमंत्रित किया गया और नवम्बर 2018 तक चला।[३२]

तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी (अब भारत के प्रधानमंत्री) ने 31 अक्टूबर 2013 को सरदार वल्लभभाई पटेल के 138वें जन्मदिवस के अवसर पर इस स्मारक का शिलान्यास किया।[१४][३३] इसके पश्चात मोदी ने लालकृष्ण आडवाणी के साथ यह घोषणा की कि यह मूर्ति निर्माण के बाद दुनिया की सबसे लम्बी मूर्ति होगी।[१४][३४][३५]

भारतीय विनिर्माण कंपनी लार्सन एंड टूब्रो ने 27 अक्टूबर 2014 को सबसे कम २,९८९ करोड़ (US$३९२.२६ मिलियन) की बोली लगाकर आकृति, निर्माण तथा रखरखाव की जिम्मेदारी ली।[१०][११] मूर्ति का निर्माण मध्य-अक्टूबर 2018 तक समाप्त हो गया।[३६] प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 31 अक्टूबर 2018 को इस मूर्ति का उद्घाटन किया।[१३]

सम्बद्ध मुद्दे

स्थानीय लोगों ने इस मूर्ति हेतु पर्यटन विनिर्माण विकास हेतु भूमि अधिग्रहण का विरोध किया। उन्होंने यह दावा किया कि साधु बेट का वास्तविक नाम वरट बावा टेकरी है और यह धार्मिक महत्व का स्थान है, जो एक स्थानीय देवी के नाम पर पड़ा है।[३३]

पर्यावरणविदों ने केन्द्र सरकार को लिखे पत्र में कहा कि इस परियोजना का प्रारम्भ बिना पर्यावरण मंत्रालय की स्वीकृति के प्रारम्भ हो गया है।[३७]

केवाडिया, कोठी, वघाडिया, लिम्बडी, नवगाम तथा गोरा ग्राम के ग्रामीणों ने मूर्ति निर्माण का विरोध किया। उनकी माँग थी कि इससे पूर्व बाँध एवं गरुड़ेश्वर तालुका के गठन के लिये अधिग्रहीत की गयी 927 एकड़ भूमि के स्वामित्व का अधिकार उन्हें वापस दिलाया जाय। उन्होंने केवाडिया क्षेत्र विकास प्राधिकरण (साँचा:lang-en, काडा) के गठन के अलावा गरुड़ेश्वर मेड़ व पक्की सड़क परियोजना के निर्माण का भी विरोध किया है। गुजरात सरकार ने उनकी मांगों को स्वीकार कर लिया।[३८]

जब 2014-15 के केन्द्रीय बजट में इस मूर्ति हेतु 2 अरब रुपये आवंटित किये गये तो कुछ लोगों तथा विपक्षी राजनैतिक दलों ने इतने अधिक खर्चे की निन्दा की तथा महिला सुरक्षा, शिक्षा, कृषि योजनाओं पर अधिक धन खर्च करने की सलाह दी।[३९][४०][४१][४२] एलएंडटी ने मूर्ति पर कांस्य लेपन हेतु टीक्यू आर्ट फाउंडरी के साथ करार किया, जो कि मूल रूप से नानचांग, चीन स्थित जियांगशी टॉनिक कंपनी की सहायक है। इस कदम का गुजरात विधानसभा का मुख्य विपक्षी दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने विरोध किया।[४३]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite news
  2. साँचा:cite web
  3. साँचा:cite web
  4. साँचा:cite web
  5. साँचा:cite web
  6. साँचा:cite news (अंग्रेजी में)
  7. साँचा:cite news
  8. साँचा:cite news
  9. साँचा:cite web
  10. साँचा:cite web
  11. साँचा:cite news
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  13. साँचा:cite news
  14. साँचा:cite news (अंग्रेजी में)
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  16. साँचा:cite news
  17. साँचा:cite web
  18. साँचा:cite web
  19. साँचा:cite news
  20. साँचा:cite web
  21. साँचा:cite news
  22. साँचा:cite news
  23. साँचा:cite news
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  25. साँचा:cite web
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  27. साँचा:cite news
  28. साँचा:cite news
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  36. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  37. साँचा:cite news
  38. साँचा:cite news
  39. साँचा:cite news
  40. साँचा:cite web
  41. साँचा:cite news
  42. साँचा:cite news
  43. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।


बाहरी कड़ियाँ