इलाहाबाद

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(अलाहाबाद से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
साँचा:if empty
शहर
प्रयागराज
ऊपर से दक्षिणावर्त: आल सेंट्स कैथेड्रल, खुसरौ बाग, प्रयागराज उच्च न्यायालय, नया यमुना सेतु, सिविल लाइन्स क्षेत्र का दृश्य, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, अल्फ्रेड पार्क में स्थित थॉर्नहिल मेन मेमोरियल तथा आनंद भवन
ऊपर से दक्षिणावर्त: आल सेंट्स कैथेड्रल, खुसरौ बाग, प्रयागराज उच्च न्यायालय, नया यमुना सेतु, सिविल लाइन्स क्षेत्र का दृश्य, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, अल्फ्रेड पार्क में स्थित थॉर्नहिल मेन मेमोरियल तथा आनंद भवन
साँचा:location map
निर्देशांक: साँचा:coord
देशभारत
राज्यउत्तर प्रदेश
ज़िलाप्रयागराज
शासन
 • सांसदरीता बहुगुणा जोशी
 • महापौरअभिलाषा गुप्ता नंदी
ऊँचाईसाँचा:infobox settlement/lengthdisp
जनसंख्या (2008)
 • कुल१२,१५,३४८ [१]
 • घनत्वसाँचा:infobox settlement/densdisp
पिनकोड211xxx
दूरभाष91-532
गाड़ियांUP-70

साँचा:template other

प्रयागराज भारत के उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित एक नगर, प्रयागराज जिला का प्रशासनिक मुख्यालय तथा हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। इसका प्राचीन नाम 'प्रयाग' है। हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है, अतः ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है। यहाँ हर छह वर्षों में अर्द्धकुम्भ और हर बारह वर्षों पर कुम्भ मेले का आयोजन होता है जिसमें विश्व के विभिन्न कोनों से करोड़ों श्रद्धालु पतितपावनी गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी संगम में आस्था की डुबकी लगाने आते हैं। अतः इस नगर को संगमनगरी, कुंभनगरी, तंबूनगरी आदि नामों से भी जाना जाता है। सन् 1500 की शताब्दी में मुस्लिम राजा द्वारा इस शहर का नाम प्रयागराज से बदलकर इलाहाबाद किया था जिसे सन् अक्टूबर 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वापस बदलकर प्रयागराज कर दिया।[२] हिन्दू मान्यता अनुसार, यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के 'प्र' और 'याग' अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और उस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा जहाँ भगवान श्री ब्रम्हा जी ने सृष्टि का सबसे पहला यज्ञ सम्पन्न किया था। इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहाँ वेणीमाधव रूप में विराजमान हैं। भगवान के यहाँ बारह स्वरूप विद्यमान हैं जिन्हें 'द्वादश माधव' कहा जाता है। सबसे बड़े हिन्दू सम्मेलन महाकुंभ की चार स्थलियों में से एक है, शेष तीन हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक हैं।

प्रयागराज में कई महत्त्वपूर्ण राज्य सरकार के कार्यालय स्थित हैं, जैसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय, प्रधान (एजी ऑफ़िस), उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग (पी.एस.सी), राज्य पुलिस मुख्यालय, उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय एवं उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद कार्यालय। भारत सरकार द्वारा प्रयागराज को जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण योजना के लिये मिशन शहर के रूप में चुना गया है। जवाहरलाल शहरी नवीयन मिशन पर मिशन शहरों की सूची व ब्यौरे और यहां पर उपस्थित आनन्द भवन एक दर्शनीय स्थलों में से एक है।

नामकरण

शहर का प्राचीन नाम 'प्रयाग 'या 'प्रयागराज' है। हिन्दू मान्यता है कि, सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद सबसे प्रथम यज्ञ यहां किया था।[३] इसी प्रथम यज्ञ के 'प्र' और 'याग' अर्थात यज्ञ की सन्धि द्वारा प्रयाग नाम बना। ऋग्वेद और कुछ पुराणों में भी इस स्थान का उल्लेख 'प्रयाग' के रूप में किया गया है।[४] हिन्दी भाषा में प्रयाग का शाब्दिक अर्थ "नदियों का संगम" भी है - यहीं पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम होता है। अक्सर "पांच प्रयागों का राजा" कहलाने के कारण इस नगर को प्रयागराज भी कहा जाता रहा है।[५]

मुगल काल में, यह कहा जाता है कि मुगल सम्राट अकबर जब १५७५ में इस क्षेत्र का दौरा कर रहे थे, तो इस स्थल की सामरिक स्थिति से वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने यहाँ एक किले का निर्माण करने का आदेश दे दिया, और १५८४ के बाद से इसका नाम बदलकर 'इलाहबास' या "ईश्वर का निवास" कर दिया, जो बाद में बदलकर 'इलाहाबाद' हो गया। इस नाम के बारे में, हालांकि, कई अन्य विचार भी मौजूद हैं। आसपास के लोगों द्वारा इसे 'अलाहबास' कहने के कारण, कुछ लोगों ने इस विचार पर जोर दिया है कि इसका नाम आल्ह-खण्ड की कहानी के नायक आल्हा के नाम पर पड़ा था।[६] १८०० के शुरुआती दिनों में ब्रिटिश कलाकार तथा लेखक जेम्स फोर्ब्स ने दावा किया था कि अक्षय वट के पेड़ को नष्ट करने में विफल रहने के बाद जहांगीर द्वारा इसका नाम बदलकर 'इलाहाबाद' या "भगवान का निवास" कर दिया गया था। हालाँकि, यह नाम उससे पहले का है, क्योंकि इलाहबास और इलाहाबाद - दोनों ही नामों का उल्लेख अकबर के शासनकाल से ही शहर में अंकित सिक्कों पर होता रहा है, जिनमें से बाद वाला नाम सम्राट की मृत्यु के बाद प्रमुख हो गया। यह भी माना जाता है कि इलाहाबाद नाम अल्लाह के नाम पर नहीं, बल्कि इल्हा (देवताओं) के नाम पर रखा गया है। शालिग्राम श्रीवास्तव ने प्रयाग प्रदीप में दावा किया कि नाम अकबर द्वारा जानबूझकर हिंदू ("इलाहा") और मुस्लिम ("अल्लाह") शब्दों के एकसमान होने के कारण दिया गया था।[७]

१९४७ में भारत की स्वतन्त्रता के बाद कई बार उत्तर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली सरकारों द्वारा इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज करने के प्रयास किए गए। १९९२ में इसका नाम बदलने की योजना तब विफल हो गयी, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को बाबरी मस्जिद विध्वंस प्रकरण के बाद अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। २००१ में तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह की सरकार के नेतृत्व में एक और बार नाम बदलने का प्रयास हुआ, जो अधूरा रह गया।[८] २०१८ में नगर का नाम बदलने का प्रयास आखिरकार सफल हो गया, जब १६ अक्टूबर २०१८ योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार ने आधिकारिक तौर पर इसका नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया।[९][१०]

इतिहास

कांग्रेस कार्यकारिणी समिति की आनन्द भवन, प्रयागराज में बैठक में महात्मा गांधी, उनके बायीं ओर वल्लभभाई पटेल एवं विजयलक्ष्मी पंडित उनके दायीं ओर, जनवरी, 1940

प्राचीन काल में शहर को प्रयाग (बहु-यज्ञ स्थल) के नाम से जाना जाता था। ऐसा इसलिये क्योंकि सृष्टि कार्य पूर्ण होने पर सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने प्रथम यज्ञ यहीं किया था, वह उसके बाद यहां अनगिनत यज्ञ हुए। भारतवासियों के लिये प्रयाग एवं वर्तमान कौशाम्बी जिले के कुछ भाग यहां के महत्वपूर्ण क्षेत्र रहे हैं। यह क्षेत्र पूर्व से मौर्य एवं गुप्त साम्राज्य के अंश एवं पश्चिम से कुशान साम्राज्य का अंश रहा है। बाद में ये कन्नौज साम्राज्य में आया। 1526 में मुगल साम्राज्य के भारत पर पुनराक्रमण के बाद से इलाहाबाद मुगलों के अधीन आया। अकबर ने यहां संगम के घाट पर एक वृहत दुर्ग निर्माण करवाया था। शहर में मराठों के आक्रमण भी होते रहे थे। इसके बाद अंग्रेजों के अधिकार में आ गया। 1775 में इलाहाबाद के किले में थल-सेना के गैरीसन दुर्ग की स्थापना की थी। 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में प्रयागराज भी सक्रिय रहा। 1904 से 1949 तक इलाहाबाद संयुक्त प्रांतों (अब, उत्तर प्रदेश) की राजधानी था।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन यहां दरभंगा किले के विशाल मैदान में 1888 एवं पुनः 1892 में हुआ था।[११][१२]

1931 में प्रयागराज के अल्फ्रेड पार्क में क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने ब्रिटिश पुलिस से घिर जाने पर स्वयं को गोली मार कर अपनी न पकड़े जाने की प्रतिज्ञा को सत्य किया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में नेहरु परिवार के पारिवारिक आवास आनन्द भवन एवं स्वराज भवन यहां भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की राजनीतिक गतिविधियों के केन्द्र रहे थे। यहां से हजारों सत्याग्रहियों को जेल भेजा गया था। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु प्रयागराज के ही निवासी थे।

स्वतंत्रता आन्दोलन में भूमिका

भारत के स्वतत्रता आन्दोलन में भी प्रयागराज की एक अहम् भूमिका रही। राष्ट्रीय नवजागरण का उदय प्रयागराज की भूमि पर हुआ तो गाँधी युग में यह नगर प्रेरणा केन्द्र बना। 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के संगठन और उन्नयन में भी इस नगर का योगदान रहा है। सन 1857 के विद्रोह का नेतृत्व यहाँ पर लियाक़त अली ख़ाँ ने किया था। कांग्रेस पार्टी के तीन अधिवेशन यहाँ पर 1888, 1892 और 1910 में क्रमशः जार्ज यूल, व्योमेश चन्द्र बनर्जी और सर विलियम बेडरबर्न की अध्यक्षता में हुए। महारानी विक्टोरिया का 1 नवम्बर 1858 का प्रसिद्ध घोषणा पत्र यहीं अवस्थित 'मिण्टो पार्क'[5] में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड केनिंग द्वारा पढ़ा गया था। नेहरू परिवार का पैतृक आवास ' स्वराज भवन' और 'आनन्द भवन' यहीं पर है। नेहरू-गाँधी परिवार से जुडे़ होने के कारण प्रयागराज ने देश को प्रथम प्रधानमंत्री भी दिया। क्रांतिकारियों की शरणस्थली उदारवादी व समाजवादी नेताओं के साथ-साथ प्रयागराज क्रांतिकारियों की भी शरणस्थली रहा है। चंद्रशेखर आज़ाद ने यहीं पर अल्फ्रेड पार्क में 27 फ़रवरी 1931 को अंग्रेज़ों से लोहा लेते हुए ब्रिटिश पुलिस अध्यक्ष नॉट बाबर और पुलिस अधिकारी विशेश्वर सिंह को घायल कर कई पुलिसजनों को मार गिराया औरं अंततः ख़ुद को गोली मारकर आजीवन आज़ाद रहने की कसम पूरी की। 1919 के रौलेट एक्ट को सरकार द्वारा वापस न लेने पर जून, 1920 में प्रयागराज में एक सर्वदलीय सम्मेलन हुआ, जिसमें स्कूल, कॉलेजों और अदालतों के बहिष्कार के कार्यक्रम की घोषणा हुई, इस प्रकार प्रथम असहयोग आंदोलन और ख़िलाफ़त आंदोलन की नींव भी प्रयागराज में ही रखी गयी थी।

भूगोल

प्रयागराज के निकटवर्ती क्षेत्र

प्रयागराज की भौगोलिक स्थिति लुआ त्रुटि: callParserFunction: function "#coordinates" was not found। उत्तर प्रदेश के दक्षिणी भाग में 98 मीटर (322 फ़ीट) पर गंगा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित है। यह क्षेत्र प्राचीन वत्स देश कहलाता था। इसके दक्षिण-पूर्व में बुंदेलखंड क्षेत्र है, उत्तर एवं उत्तर-पूर्व में अवध क्षेत्र एवं इसके पश्चिम में निचला दोआब क्षेत्र। प्रयागराज भौगोलिक एवं संस्कृतिक दृष्टि, दोनों से ही महत्त्वपूर्ण रहा है। गंगा-जमुनी दोआब क्षेत्र के खास भाग में स्थित ये यमुना नदी का अंतिम पड़ाव है। दोनों नदियों के बीच की दोआब भूमि शेष दोआब क्षेत्र की भांति ही उपजाउ किंतु कम नमी वाली है, जो गेहूं की खेती के लिये उपयुक्त होती है। जिले के गैर-दोआबी क्षेत्र, जो दक्षिणी एवं पूर्वी ओर स्थित हैं, निकटवर्ती बुंदेलखंड एवं बघेलखंड के समान शुष्क एवं पथरीले हैं। भारत की नाभि जबलपुर से निकलने वाली भारतीय अक्षांश रेखा जबलपुर से साँचा:convert उत्तर में प्रयागराज से निकलती है।

प्रयागराज मंडल का पुनर्संगठन

प्रयागराज मंडल एवं जिले में वर्ष 2000 में बड़े बदलाव हुए। प्रयागराज मंडल के इटावा एवं फर्रुखाबाद जिले आगरा मंडल के अधीन कर दिये गए, जबकि कानपुर देहात को कानपुर जिले में से काटकर एक नया कानपुर मंडल सजित कर दिया गया। पश्चिमी इलाहाबाद के भागों को काटकर नया कौशांबी जिला बनाया गया। वर्तमान में प्रयागराज मंडल के अंतर्गत प्रयागराज, कौशांबी, प्रतापगढ़ एवं फतेहपुर जिले आते हैं। नवंबर २०१८ में योगी आदित्यनाथ ने इलाहाबाद मंडल का नाम प्रयागराज मंडल करवा दिया।

जनसांख्यिकी

2011 की जनगणना के अनुसार इलाहाबाद (प्रयाग-राज) शहर की वर्तमान जनसंख्या 1,342,229 है। ये भारत में जनसंख्या के अनुसार 32वें स्थान पर आता है। इलाहाबाद (प्रयाग-राज) जिला 2013 की जनगणना के अनुसार 6010249 जो उत्तर प्रदेश का सबसे जनसँख्या वाला जिला हैं। [१३] इलाहाबाद (प्रयाग-राज) का क्षेत्रफल लगभग साँचा:convert[१४] है और ये [[समुद्र की सतह से ऊंचाई|सागर सतह से साँचा:convert ऊंचाई पर स्थित है।

हिन्दी-भाषी इलाहाबाद (प्रयाग-राज) की बोली अवधी है, जिसे इलाहाबादी बोली भी कहते हैं। हालांकि अधिकांश शहरी क्षेत्र में खड़ी बोली ही बोली जाती है। जिले के पूर्वी गैर-दोआबी क्षेत्र में प्रायः बघेली बोली का चलन है।

इलाहाबाद(प्रयाग-राज) में सभी प्रधान धर्म के लोग निवास करते हैं। यहां हिन्दू कुल जनसंख्या का 85% और मुस्लिम 11% हैं। इनके अलावा सिख, ईसाई एवं बौद्ध लोगों की भी छोटी संख्या है।

जलवायु

प्रयागराज में तीन प्रमुख ऋतुएं आती हैं: ग्रीष्म ऋतु, शीत ऋतु एवं वर्षा ऋतु। ग्रीष्मकाल अप्रैल से जून तक चलता है, जिसमें अधिकतम तापमान 40°से. (104° फै.) से 45°से. (113°फै.) तक जाता है। मानसून काल आरंभिक जुलाई से सितंबर के अंत तक चलती है। इसके बाद शीतकाल दिसंबर से फरवरी तक रहता है। तापमान यदाकदा ही शून्य तक पहुंचता है। अधिकतम तापमान लगभग 22 °से. (72 ° फा.) एवं न्यूनतम तापमान 10° से. (50° फा.) तक पहुंचता है। प्रयागराज में जनवरी माह में घना कोहरा रहता है, जिसके कारण यातायात एवं यात्राओं में अत्यधिक विलंब भी हो जाते हैं। किंतु यहां हिमपात कभी नहीं होता है।

न्यूनतम अंकित तापमान, -2° से. (28.4° फै.) एवं अधिकतम 45° से. (118° फै.) 48 °से.[१५] तक पहुंचा है।

नगर प्रशासन

प्रयागराज
जलवायु सारणी (व्याख्या)
माजूजुसिदि
 
 
19
 
24
9
 
 
16
 
27
11
 
 
9
 
34
17
 
 
6
 
39
23
 
 
10
 
42
27
 
 
85
 
40
29
 
 
300
 
34
26
 
 
308
 
33
26
 
 
190
 
33
25
 
 
40
 
33
21
 
 
12
 
30
14
 
 
3
 
25
9
औसत अधिकतम एवं न्यूनतम तापमान (°से.)
कुल वर्षा (मि.मी)
स्रोत: IMD

प्रयागराज नगर निगम, राज्य के प्राचीनतम नगर निगमों में से एक है। निगम 1864 में अस्तित्त्व में आया था[१४], जब तत्कालीन भारत सरकार द्वारा लखनऊ म्युनिसिपल अधिनियम पास किया गया था। नगर के म्युनिसिपल क्षेत्र को कुल 80 वार्डों में विभाजित किया गया है व प्रत्येक वार्ड से एक सदस्य (कार्पोरेटर) चुनकर नगर परिषद का गठन किया जाता है।[१६]. पहले ये कॉर्पोरेटर शहर के महापौर को चुनते थे, लेकिन बाद में इस व्यवस्था को बदल दिया गया। अब नगर निगम क्षेत्र की जनता पार्षद के साथ-साथ अपना महापौर भी चुनती हैं। राज्य सरकार द्वारा चुने गए मुख्य कार्यपालक को प्रयागराज का आयुक्त (कमिश्नर) नियुक्त किया जाता है।

शहर

प्रयागराज गंगा-यमुना नदियों के संगम पर स्थित है। ये एक भू-स्थित प्रायद्वीप रूप में देखा जा सकता है जिसे तीन ओर से नदियों ने घेर रखा है एवं मात्र एक ओर ही मुख्य भूमि से जुड़ा है। इस कारण ही शहर के भीतर व बाहर बढ़ते यातायात परिवहन हेतु अनेक सेतुओं द्वारा गंगा व यमुना नदियों के पार जाते हैं।

प्रयागराज का शहरी क्षेत्र तीन भागों एं वर्गीकृत किया जा सकता है: चौक, कटरा पुराना शहर जो शहर का आर्थिक केन्द्र रहा है। यह शहर का सबसे घना क्षेत्र है, जहां भीड़-भाड़ वाली सड़कें यातायात व बाजारों का कां देती हैं। नया शहर जो सिविल लाइंस क्षेत्र के निकट स्थित है; ब्रिटिश काल में स्थापित किया गया था। यह भली-भांति सुनियोजित क्षेत्र ग्रिड-आयरन रोड पैटर्न पर बना है, जिसमें अतिरिक्त कर्णरेखीय सड़कें इसे दक्ष बनाती हैं। यह अपेक्षाकृत कम घनत्व वाला क्षेत्र हैजिसके मार्गों पर वृक्षों की कतारें हैं। यहां प्रधान शैक्षिक संस्थान, उच्च न्यायालय, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग कार्यालय, अन्य कार्यालय, उद्यान एवं छावनी क्षेत्र हैं। यहां आधुनिक शॉपिंग मॉल एवं मल्टीप्लेक्स बने हैं, जिनमें निम्नलिखित मुख्य हैं-पीवीआर, बिग बाजार, कोलकाता मॉल, यूनिक बाजार ,जालौन,विशाल मेगामार्ट इत्यादि

अन्य पाँच माँल पर काम चल रहा हैं। बाहरी क्षेत्र में शहर से गुजरने वाले मुख्य राजमार्गों पर स्थापित सैटेलाइट टाउन हैं। इनमें गंगा-पार (ट्रांस-गैन्जेस) एवं यमुना पार (ट्रांस-यमुना) क्षेत्र आते हैं। विभिन्न रियल-एस्टेट बिल्डर प्रयागराज में निवेश कर रहे हैं, जिनमें ओमेक्स लि. प्रमुख हैं। नैनी सैटेलाइट टाउन में १५३५ एकड़ की हाई-टेक सिटी बन रही है।

तहसीलें

प्रयागराज जिले में आठ तहसीले हैं, जो निम्नवत है।

शहरी क्षेत्र का सभी कार्य सदर द्वारा होता है।यह जिला कचहरी से जुड़ा हुआ है।

प्रयागराज से मिर्ज़ापुर मार्ग स्थित मेजारोड (लगभग दूरी ४०किलोमीटर) चौराहे से तथा मेजारोड रेलवे स्टेशन से १०किलोमीटर दक्षिण स्थित है। मेजा तहसील में तीन ब्लॉक क्रमश: मेजा,उरुवा और मांडा है। भारत के पूर्व-प्रधानमंत्री श्री विश्वप्रताप सिंह मांडा के राजा थे।

ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल

साँचा:main

यहाँ कई क्रीड़ा परिसर हैं, जिनका उपयोग व्यावसायिक एवं अव्यवसायी खिलाड़ी करते रहे हैं। इनमें मदन मोहन मालवीय क्रिकेट स्टेडियम, मेयो हॉल स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स एवं बॉयज़ हाई स्कूल एवं कॉलिज जिम्नेज़ियम हैं। जॉर्जटाउन में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का तरणताल परिसर भी है। झलवा (प्रयागराज पश्चिम) में नेशनल स्पोर्ट्स एकैडमी है, जहां विश्व स्तर के जिमनास्ट अभ्यासरत रहते हैं। अकादमी को आगामी राष्ट्रमंडल खेलों के लिये भारतीय जिमनास्ट हेतु आधिकारिक ध्वजधारक चुना गया है।

संगम
प्रयागराज किला

मध्यकालीन इतिहासकार बदायूनी के अनुसार 1575 में सम्राट अकबर ने प्रयाग की यात्रा की और एक शाही शहर प्रयागराज की स्थापना की 1583 में अकबर ने प्रयागराज में गंगा और यमुना के संगम पर एक किले का निर्माण प्रारम्म करवाया। यह किला चार भागो में बनवाया गया। पहले हिस्से में 12 भवन एवं कुछ बगीचे बनवाये गयें। दूसरे हिस्से में बेगमोँ और शहजादियों के लिऐ महलो का निर्माण करवाया गया। तीसरा हिस्सा शाही परिवार के दूर के रिश्तेदारों और नैकरों के लिऐ बनवाया गया और चौथा हिस्सा सैनिको के लिये बनवाया गया। इस किले में 93 महर, 3 झरोखा,25 दरवाजें, 277 इमारतें, 176 कोठियाँ 77 तहखानें व 20 अस्तबल और 5 कुएं हैं।

उल्टा किला यह किला झूसी में स्थित है।

स्वराज भवन

स्वराज भवन प्रयागराज में स्थित एक ऐतिहासिक भवन एवं संग्रहालय है। इसका मूल नाम 'आनन्द भवन' था। इस ऐतिहासिक भवन का निर्माण मोतीलाल नेहरू ने करवाया था। 1930 में उन्होंने इसे राष्ट्र को समर्पित कर दिया था। इसके बाद यहां कांग्रेस कमेटी का मुख्यालय बनाया गया। भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का जन्म यहीं पर हुआ था। आज इसे संग्रहालय का रूप दे दिया गया है। परिचय 1899 में मोतीलाल नेहरु ने चर्च लेन नामक मोहल्ले में एक अव्यवस्थित इमारत खरीदी। जब इस बंगले में नेहरु परिवार रहने के लिये आया तब इसका नाम आनन्द भवन रखा गया। पुरानी इमारत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को सौँप दी गयी। 1931 में पं मोतीलाल नेहरु की गूजरने के बाद उनके पुत्र जवाहर लाल नेहरु ने एक ट्रस्ट बना कर स्वाराज भवन भारतीय जनता के ज्ञान के विकास स्वास्थ्य एंव सामाजिक आर्थिक उत्थान के लिये समर्पित कर दिया। इस इमारत के एक हिस्से में अस्पताल जो की आज कमाला नेहरु के नाम से जाना जाता हैं। और शेष अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के उपयोग के लिये था। 1948 से 1974 तक इस ईमारत का उपयोग बच्चोँ की शैक्षणिक गतिविधियोँ विकाय के लिये किया जता रहा और इसमें एक बाल भवन कि स्थापना कि गयी। बाल भवन में शैक्षिक यथा संगित विग्यान खेल आदि के विषय में बच्चोँ को सिखाया जता था। 1974 में स्वंगीय प्रधानमत्री इंदिरा गाँधी ने जवाहर लाल मेमोरियल फण्ड बना कर यह इमारत 20 वर्ष के लियें उसे पट्टे पर दे दिया। और उस इमारत में बाल भवन चलता रहा। किन्तु अब बाल भवन को स्वाराज भवन के ठीक बगल में स्थित एक अन्य मकान स्थापित कर दिया गया। और स्वाराज भवन को एक सग्रहालय के रूप में विकसित कर दिया गया। स्वाराज भवन एक बड़ा भवन हैं। और भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दिनोँ का एक जीता जागता धरोहर हैं। यही वह स्थान हैं जहा पं जवाहरलाल नेहरु ने अपना बचपन बिताया। यहीँ से वो राजनिति कि प्रारम्भिक शिक्षा लेने के बाद में भारतीय स्वाधिनता संग्राम में शामिल हुये। जवाहरलाल नेहरु ने 1916 में अपने वैवाहिक जीवन का शुभ आरम्भ इसी भवन से किया। इसके अतिरिक्त यह राजनिति गतविधियोँ का एक मंच भी रहा। 1917 में उत्तर प्रदेश होम रुम लीन के अध्यक्ष मोतीलाल नेहरु एवं महामंत्री जवाहरलाल नेहरु थे। 19 नवम्बर 1919 को इंदिरा गाँधी का जन्म भी इसी भवन में हुआ। 1920 में आल इंडिया खिलाफत इसी भवन में बनायी गयी। भारत का संविधान लिखने के लिये चुनी गयी आल पार्टी का सम्मेलन भी इसी स्वाराज भवन में हुआ था।

आनन्द भवन, प्रयागराज

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।

मोतीलाल नेहरु ने इसकी नींव 1926 रखी। वास्तुकला की द्ष्टि से यह भवन अपने आप में अनोखा है। यह दो मंजिली इमारत है आनन्द भवन भारतीय स्वाधीनता संघर्ष की एक ऐतिहासिक यादगार हैं और ब्रिटिश शासन के विरोध में किये गये अनेक विरोधों, कांग्रेस के अधिवेशनों एवं राष्टीय नेताओँ के अनेक सम्मेलनों से इसका सम्बन्ध रहा है।

प्रयागराज उच्च न्यायालय प्रयागराज

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।

यह मूल रूप से भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम 1861 के सद्र दीवानी अदालत जगह से आगरा में 17 मार्च 1866 को उत्तरी-पश्चिमी प्रांतों के लिए न्यायाधिकरण के उच्च न्यायालय के रूप में स्थापित किया गया था। सर वाल्टर मॉर्गन, बैरिस्टर पर कानून उत्तर - पश्चिमी प्रदेशों के उच्च न्यायालय के प्रथम मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया।

स्थान 1869 में प्रयागराज में स्थानांतरित किया गया और नाम तदनुसार 11 से मार्च 1919 महकमा के उच्च न्यायालय प्रयागराज में बदल गया था। 2 नवम्बर 1925 को, अवध न्यायिक आयुक्त के न्यायालय लखनऊ में अवध चीफ कोर्ट ने अवध सिविल न्यायालय अधिनियम 1925 की गवर्नर जनरल की मंजूरी के साथ संयुक्त प्रांत विधानमंडल द्वारा अधिनियमित द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था।

25 फ़रवरी 1948 को, उत्तर प्रदेश विधान सभा में राज्यपाल का अनुरोध गवर्नर जनरल के लिए विधानसभा के प्रभाव है कि उच्च न्यायालय प्रयागराज में महकमा और अवध बुज्मुख्य न्यायालय के समामेलित हो अनुरोध सबमिट संकल्प पारित कर दिया। नतीजतन, अवध के मुख्य न्यायालय प्रयागराज उच्च न्यायालय के साथ समामेलित किया गया था। जब उत्तरांचल के राज्य उत्तर प्रदेश के बाहर 2000 में बना था, इस उच्च न्यायालय उत्तरांचल में पड़ने वाले जिलों पर अधिकार क्षेत्र रह गए हैं। प्रयागराज उच्च न्यायालय लोहा मुंडी, आगरा, भारत के खान साहब निजामुद्दीन द्वारा बनाया गया था। उन्होंने यह भी उच्च न्यायालय के लिए पानी के फव्वारे का दान दिया। पातालपुरी मन्दिर किले के अन्दर यह मंदिर भूगर्भ में स्थित हैं। और अछयवट इस मन्दिर के अन्दर ही हैं। यह मंदिर अत्यन्त ही प्राचिन हैं। ऐसा विश्वास किया जाता हैं। कि भगवान राम ने इस मन्दिर कि यात्रा की थी।

रानी महल

अकबर की राजपूत पत्नी जोधाबाई का महल जो रानी महल के नाम से जाना जाता हैं। यह महल किले में स्थित हैं।

आल सेण्ट्स कैथैड्रिल

शहर के सिविल लाइन में स्थित यह चर्च पत्थर गिरजाघर के नाम से प्रसिद्द है। इस चर्च को देखने से प्रतित होता हैं। कि मानोँ हम किसी रोमन साम्राज्य का राजगृह देख रहे हैं। 1879 में बन कर तैयार हुये इस चर्च का नक्शा सुप्रसिद्ध अंग्रेज वास्तुविद विलियन इमरसन ने बनवाया था। यह चर्च चौराहे के बीचो-बीच स्थित हैं।हम लोग यहाँ घूम भी सकते हैं

दर्शनीय धार्मिक स्थल

संगम

प्रयागराज गंगा यमुना और सरस्वती के संगम पर स्थित हैं। चूकि यहाँ तीन नदियाँ आकर मिलती हैं। अत: इस स्थान को त्रिवेणी के नाम से भी संबोधित किया जाता हैं। संगम का द्रश्य अत्यन्त मनोरम हैं। स्वेत गंगा और हरित यमुना अपने मिलने के स्थान पर स्पष्ट भेद बनाए रखती हैं अर्थात मात्र द्रिष्टिपात करने से ही यह बताया जा सकता हैं। कि यह गंगा नदी हैं और यह यमुना। हिमालय की गोद से निकल कर प्रयाग तक आते आते गंगा गुम्फिद नदी में बदल जाती हैं परन्तु यमुना के मिलने के उपरान्त इनमे पुन: अथाह जल हो जाता हैं।

हनुमान मंदिर

संगम के निकट स्थित यह एक अद्भुत एवं अपने प्रकार का अनोखा मन्दिर हैं इस मन्दिर में हनुमान जी की लेटी हुई प्रतिमा हैं। और उनके दर्शनार्थ लोगोँ को सीढियोँ से उतर कर नीचे जाना पड़ता हैं। यह प्रतिमा अत्यन्त विशाल एवं भव्य हैं। ऐसा विश्वास किया जाता हैं कि अंग्रेजी शासन ने इस मंदिर को यहाँ से हटवाने के आदेश दिये किन्तु जैसे जैसे मूर्ति को हटाने के लिये खुदाई की जाने लगी वैसे वैसे मुर्ति बाहर आने के बजाय अन्दर धसती गयी। यही कारण हैं कि यह मंदिर गड्ढे में हैं।

शंकर विमान मण्डपम्

गंगा के तट पर स्थित यह एक आधुनिक मन्दिर हैं। यह मन्दिर चार मंजिलोँ का हैं। इस मन्दिर की कुल ऊँचाई लगभग 40 मीटर अर्थात 130 फुट हैं। इसकी प्रत्येक मंजिल पर अलग अलग देवताओँ का वास स्थान हैं।

हनुमत् निकेतन

यह मन्दिर सिविल लाइन में स्थित हैं यह एक आधुनिक मन्दिर हैं। जो मुख्य रूप से हनुमान जी को समर्पित हैं।

सरस्वती कूप

किले के भीतर स्थित इस पवित्र कूप के विषय में विश्वास किया जाता हैं। कि यही अद्रश्य सरस्वती नदी का स्रोत हैं।

समुद्र कूप

गंगा पार स्थित झूँसी में समुद्र कूप स्थित है। यह कूप उल्टा किला के अन्दर स्थित है। यह बहूत उचे टिले पर है। माना जाता है कि इस कूप में समुद्र का स्रोत है। इस कूप का पानी खारा हैं।

मनकामेश्वर मन्दिर

यमुना के तट पर स्थित इस मन्दिर का धार्मिक महत्व अत्यधिक हैं। इस मन्दिर से चबूतरे से यमुना का नजारा अत्यन्त ही मनोहर हैं। इस मन्दिर की विशेषता यहाँ प्रतिदिन लोने वाला श्र्रगांर एवं भगवान शिव की दिव्य आरती हैं।

शिवकुटी

गंगा नदी के किनार स्थित शिवकुटी भगवान शिव को समर्पित है।

भारद्वाज आश्रम, प्रयागराज

आनन्द भवन के सामने स्थित एक मन्दिर हैं। यही भगवान राम के वन गमन काल में महर्षि भारद्वाज का आश्रम हुआ करता था। यह आश्रम संत भारद्वाज से संबंधित है। और जब इसी संगम से आगे बडकर गंगा शिवजी की नगरी काशी में पहुँचती हैं तो यह जल से लभालब भरी रहती हैं। यमुना यमुनोत्री की निर्मल धारा लेकर मथुरा में क्रिष्ण की लीलाओँ को रूप देकर और आगरे में ताजमहल को नहला कर प्रयाग में गंगा में विलिन हो जाती हैं। प्रत्येक वर्ष के जनवरी फरवरी में इसकी महत्ता कई गुना बड जाती हैं। इस मेले में करोडोँ लोग संगम के पावन जल में डुबकी लगा कर पुण्य के भागीदार बनते हैं। कल्पवासी संगम के तट पर टेन्ट के बने घरोँ में निवास करते हैं। भारद्वाज आश्रम कर्नलगंज इलाके में स्थित है । यहाँ ऋषि भारद्वाज ने भार्द्वाजेश्वर महादेव का शिवलिंग स्थापित किया था और इसके अलावा यहाँ सैकड़ों मूर्तियांहैं उनमें से महत्वपूर्ण हैं: राम लक्ष्मण, महिषासुर मर्दिनी, सूर्य, शेषनाग, नर वराह। महर्षि भारद्वाज आयुर्वेद के पहले संरक्षक थे। भगवान राम ऋषि भारद्वाज के आश्रम में उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आये थे। आश्रम कहाँ था यह अनुसंधान का एक मामला है, लेकिन वर्तमान में यह आनंद भवन के पास है। यहाँ भी भारद्वाज, याज्ञवल्क्य और अन्य संतों, देवी - देवताओं की प्रतिमा और शिव मंदिर है। भारद्वाज वाल्मीकि के एक शिष्य थे। यहाँ पहले एक विशाल मंदिर भी था और पहाड़ के ऊपर एक भरतकुंड था। नाग वासुकी मंदिर यह मंदिर संगम के उत्तर में गंगा तट पर दारागंज के उत्तरी कोने में स्थित है। यहाँ नाग राज, गणेश, पार्वती और भीष्म पितामाह की एक मूर्ति हैं। परिसर में एक शिव मंदिर है। नाग- पंचमी के दिन एक बड़ा मेला आयोजित किया जाता है। मनकामेश्वर मंदिर यह मिंटो पार्क के पास यमुना नदी के किनारे किले के पश्चिम में स्थित है। यहाँ एक काले पत्थर की शिवलिंग और गणेश और नंदी की प्रतिमाएं हैं। हनुमान की भव्य प्रतिमा और मंदिर के पास एक प्राचीन पीपल का पेड़ है। यह प्राचीन शिव मंदिर प्रयागराज के बर्रा तहसील से 40 किमी दक्षिण पश्चिम में स्थित है। शिवलिंग सुरम्य वातावरण के बीच एक ८० फुट ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थापित है। कहा जाता है कि शिवलिंग ३.५ फुट भूमिगत है और यह भगवान राम द्वारा स्थापित किया गया था। यहाँ कई विशाल बरगद के पेड़ और मूर्तियाँ हैं

गोस्वामी तुलसीदास जी रामकथा का आरंभ त्रिवेणी संगम के समीप स्थित प्रयागराज में भरद्वाज मुनि के आश्रम पर परमविवेकी मुनि याज्ञवल्क्य के पावन संवाद से करते हैं ।यहाँ ‘राम पद’, ‘माधव पद जलजाता’का उल्लेख दो चौपाइयों में हुआ है, जो इस भाष्य से संबद्ध है – 1-भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा। तिन्हहि राम पद अति अनुराग।।1/44/1 2-पूजहिं माधव पद जलजाता । परसि अखय बटु हरषहिं गाता।। 1/44/5 अर्थात् भरद्वाज मुनि प्रयाग में बसते हैं,उनका श्रीराम जी के चरणों में अत्यंत प्रेम है । तीर्थराज प्रयाग में आने वाले श्री वेणीमाधवजी के चरण कमलों को पूजते हैं और अक्षयवट का स्पर्श कर उनके शरीर पुलकित होते हैं ।

अन्य दर्शनीय स्थल

जवाहर प्लेनेटेरियम, प्रयागराज

आनंद भवन के बगल में स्थित इस प्लेनेटेरियम में खगोलीय और वैज्ञानिक जानकारी हासिल करने के लिए जाया जा सकता है। और यह प्लेनेटेरियम 3 डी है।

प्रयागराज संग्रहालय

कम्पनी बाग के अन्दर सन् 1931 में एक सग्रहालय का निर्माण करवाया गया था। इस सग्रहालय में भारत के प्राचीन इतिहास से सम्बन्धित अनेक वस्तुएँ रखीँ हुयीं हैं। इन वस्तुओँ में कौशाम्बी के अनेक अवशेष संग्रहीत है। कौशाम्बी में प्राप्त बुद्ध की मुर्तियाँ भी इसमें संरक्षित हैं। इस संग्रहालय में प्राचीन सिक्के का एक अनमोल खजाना हैं। पंचमार्क सिक्के ताबे के सिक्के कुषाणोँ तथा गुप्त शासकोँ द्रारा प्राप्त सिक्कोँ के अतिरिक्त यहाँ कुछ मुगलकालीन सिक्के भी हैं। यहाँ मुगलकाल अनेक पेंटिँग देखने को हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ पर एक रुसी चित्रकार द्रारा निर्मित अत्यन्त सुन्दर पेंटिँग भी रखी हुयी हैं। प्रयागराज से सम्बन्धित कुछ लेखकोँ यथा महादेवी वर्मा, रामकुमार वर्मा आदि के कुछ हस्तलिखित अभिलेख भी इस संग्रहालय में हैं। इस सबसे बडकर यहाँ पर महान स्वाधिनता संग्राम सेनानी चन्द्रशेखर आजाद की वह पिस्तौल भी रखी हैं। जिससे उन्होने अंग्रेज़ सिपाहियोँ का मुकाबला किया था।

पब्लिक लाइब्रेरी, प्रयागराज

कम्पनी बाग के अन्दर एक पब्लिक लाइब्रेरी स्थिय है। इसकी इमारत अंग्रजी शासन के समय की है। एवं बडी शानदार है। यह लाइब्रेरी उत्तर प्रदेश की सबसे बडी और सबसे प्राचीन लाइब्रेरी हैं। इसकी इमारत बडी शानदार हैं। प्रवेश द्रार के ठीक सामने के कोरीडोरा में बढे खम्भोँ पर बहुत ही सुन्दर रोमन नक्कासी हैं।

चौक घंटाघर, प्रयागराज

चौक घंटाघर उत्तर प्रदेश में स्थित एक घड़ी का टॉवर है। यह चौक, प्रयागराज में स्थित है, जो भारत के सबसे पुराने बाजारों में से एक है और मुगलों की कलात्मक और संरचनात्मक कौशल का एक उदाहरण है। यह 1913 में बनाया गया था और लखनऊ के घंटाघर बाद यह उत्तर प्रदेश का दूसरा सबसे पुराना घड़ी का टावर है। इसके खम्भोँ पर बहुत ही सुन्दर रोमन नक्कासी हैं।

मेयो मेमोरियल हाल
पत्थर गिरजाघर
त्रिवेणी पुष्प

अरैल यमुना के तट स्थित यह एक भव्य स्थल हैं। यह सबसे सुन्दर स्थान हैं। यहाँ पर कई एतिहासिक चीजे आपको देखने को मिलेगा। जैसे रामजन्मभूमि, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गौतम बुद्ध, बहुत सी मन्दिर हैं। यहाँ पर एक बहुत बड़ा गुम्बज (मिनार) देखने को मिलेगा।

अरैल

10 किमी यमुना पार अरैल एक प्रमुख धार्मिक केन्द्र हैं। जिसका प्राचिन नाम अलकापुरी था।

देखने योग्य स्थल बहुत हैं। जैसे-

  • त्रिवेणी पुष्प
  • पुष्प विहार
  • सोमेश्वर नाथ मन्दिर
  • श्री बाला त्रिपुर सुन्दरी मन्दिर
  • चक्रमाधव मन्दिर
  • आदिवेणी माधव मन्दिर
  • नृसिंह मन्दिर
  • महर्षि महेश योगी आश्रम मन्दिर
  • वल्लभाचार्य जी की बैठक
  • फलाहारी बाबा आश्रम मन्दिर
  • सच्चा बाबा आश्रम

आदि देखने योग्य स्थान है। यहाँ सड़क मार्ग या नाव द्वारा जाया जा सकता है।

घाट

प्रयागराज में पक्के घाट हैं। जो क्रमश: हैं।

  • सरस्वती घाट

यमुना के तट स्थित यह एक नवनिर्मित रमणीय स्थल हैं। तीन ओर से सीढियाँ यमुना के हरे जल तक उतर कर जाती हैं। और ऊपर एक पार्क हैं जो सदैव हरी घास से ढका रहता हैं। यहाँ पर बोँटिग करने की भी सुविधा हैं। यहाँ से नाव द्रारा संगम पहुचने का भी मार्ग हैं।

  • अरैल घाट
  • अरैल यमुना घाट

यह प्रयागराज का सबसे बड़ा घाट है और यह सबसे आधुनिक घाट हैं। यह एक भव्य स्थान हैं और टहलने का सबसे अच्छा स्थान हैं। यह एक दशर्नीय स्थल हैं। यहाँ पर बोँटिग करने की भी सुविधा हैं यहाँ पर स्नानार्थियों के लिये सिटिंग प्लाजा भी हैं।

  • संगम घाट
  • बलुआ घाट
  • बरगद घाट
  • बोट क्लब घाट
  • रसूलाबाद घाट
  • छतनाग घाट
  • शंकर घाट
  • दशाश्वमेघ घाट
  • गऊ घाट
  • किला घाट
  • नेहरु घाट

इनके अतिरिक्त सौ से अधिक कच्चे घाट हैं।

प्रयागराज कुंभ मेला

साँचा:main प्रयागराज में लगने वाला कुंभ मेला शहर के आकर्षण का सबसे बड़ा केन्द्र है। अनगिनत श्रद्धालु इस मेले में आते हैं। यहाँ मेला एक वर्ष माघ मेला तीन वर्ष छः वर्ष अर्द्धकुम्भ और बारह वर्ष महाकुंभ लगता है। भारत में यह धार्मिक मेला चार जगहों पर लगता है। यह जगह नाशिक, प्रयाग, उज्जैन और हरिद्वार में हैं। प्रयागराज में लगने वाला कुंभ का मेला सबसे बड़ा धार्मिक मेला है। इस मेले में हर बार विशाल संख्या में भक्त आते हैं। यहाँ पर जनवरी फरवरी में विश्व का सबसे बड़ा शहर कहा जाता हैं। यहाँ कि जनसख्या करीब दस करोड में होती हैं।

इस मेले में आए लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान करते हैं। अर्थात गंगा यमुना सरस्वती नदी हैं। यह माना जाता है कि इस पवित्र नदी में स्नान करने से आत्मा की शुद्धि और पापों से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा प्रत्येक वर्ष आने वाले शिवरात्रि के त्योहार को भी यहां बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। हजारों की संख्या में आए तीर्थयात्री इस पर्व को भी पूरे उमंग और उत्साह के साथ मनाते हैं। इस त्योहार में आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए राज्य सरकार कुछ विशेष प्रकार का प्रबंध करती है। यहां दर्शन करने आए तीर्थयात्रियों के रहने के लिए बहुत से होटल गेस्ट हाउस और धर्मशाला की सुविधा मुहैया कराई जाती है। यहां स्थित घाट बहुत ही साफ और सुंदर है। त्योहारों के समय यहां सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जाते हैं।

पार्क

  • कम्पनी बाग: अंग्रेजों द्वारा शहर के बीचोँ बीच बसाया गया यह एक अनोखा बाग हैं। शायद हा किसी शहर के बीचों बीच इतना बड़ा पार्क मिले। इसकी विशालता का अनुमान लगाया जा सकता हैं कि इस बाग के अन्दर एक स्टेडियम, एक म्यूजियम, एक पुस्तकालय, तीन नसरियाँ, एक विश्वविघालय और प्रयाग संगीत समिति भी स्थित हैं
  • विक्टोरिया मेमोरियल: कम्पनी बाग के बीचो बीच सफेद संगमरमर का बना एक स्मारक हैं। इस मेमोरियल के आस पास के नितान्त सुन्दर पार्क है जो सदैव हरी घास से ढका रहता है।
  • मिन्टो पार्क, प्रयागराज: सफेद पत्थर के इस मैमोरियल पार्क में सरस्वती घाट के निकट सबसे ऊंचे शिखर पर चार सिंहों के निशान हैं।
  • नेहरु पार्क: यह एक आधुनिक पार्क हैं। यह पार्क मैक्फरसन झील के आस पास के स्थान का सौँदर्यीकरण करके बनाया गया हैं। यहाँ पर बोँटिक करने की सुविधा हैं।
  • भारद्वाज पार्क: यह पार्क भी एक भ्रमण करने योग्य स्थान हैं। इसे बड़े ही सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाया गया हैं।
  • हाथी पार्क: चन्द्रशेखर पार्क के पास स्थित हैं। इसमे पत्थर का एक बड़ा हाथी बच्चोँ के मुख्य आकर्षण का केन्द्र हैं। यह स्थान बच्चोँ के घुमने के लिये हैं।
  • पीडी टण्डन पार्क: सिविल लाइंस इलाके में एक तिकोने आकार का पार्क। इसके एक कोने पर हनुमान मंदिर चौक है।
  • खुसरो बाग: प्रयागराज शहर के पश्चिम छोर प्रयागराज जंक्शन(प्रयागराज) रेलवे स्टेशन के पास स्थित खुसरो बाग मुगलकालीन इतिहास की एक अमिट धरोहर हैं। यह 17 बीधे के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ हैं। यह चारोँ मोटे मोटे दिवारो से घीरा हैं। इसके चारोँ ओर एक एक दरवाजे हैं। जहागीर ने इसे अपना आरामगाह बनाया था। जहागीर के पुत्र खुसरो के नाम पर ही इसका नाम खुसरो बाग पडा। इस बाग में तीन मकबरे हैं। पहला मकबरा शहजादा खुसरो का हैं। इसका मकबरा खुसरो की राजपूत माक शाँह बेगम के लिये बनाया गया था। खुसरो बाग के अन्दर जाने का मुख्य द्रार अति विशाल हैं। इसमें अनेकोँ घोडोँ की नाली लागी हुयी हैं। ऐसी मान्यता हैं कि अपने मालिक की और अपने मालिक कि जान बचायी थी तभी से लोग बाग के अन्दर बने मकबरे में मन्नत मानते हैं। और कार्य के पूरा होने पर इसी दरवाजे में धोडे के नाल लगवा देते हैं। खुसरो बाग में अमरुद के कई बगीचे हैं। यहाँ के अमरुदोँ को विदेश में निर्यात किया जाता हैं। साथ ही वर्तमान में यहाँ पौधशाला हैं। जिससें हजारोँ पौधोँ की बिक्री की जाती हैं।

चित्रदीर्घा

शिक्षा

प्रयागराज प्राचीन काल से ही शैक्षणिक नगर के रूप में प्रसिद्ध है। प्रयागराज केवल गंगा और यमुना जैसी दो पवित्र नदियों का ही संगम नही, अपितु आध्यात्म के साथ शिक्षा का भी संगम है, जैहा भारत के सभी राज्यो से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते है। प्रयागराज विश्वविद्यालय इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है, जँहा से अनेकानेक विद्वान ने शिक्षा ग्रहण कर देश व समाज के अनेक भागो में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। प्रयागराज विश्वविद्यालय को पूर्व का आक्सफोर्ड ("Oxford of the East") भी कहा जाता है। प्रयागराज में कई विश्वविद्यालय, शिक्षा परिषद, इंजीनियरी महाविद्यालय, मेडिकल कालेज तथा मुक्त विश्वविद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय भूमिका निभा रहे है।

प्रयागराज में स्थापित विश्वविद्यालय के नाम निम्नलिखित हैं-

  1. प्रयागराज विश्वविद्यालय
  2. उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय
  3. इलाहाबाद एग्रीकल्चर संस्थान (मानित विश्वविद्यालय)-(AAI-DU)
  4. नेहरू ग्राम भारती विश्वविद्यालय, जमुनीपुर कोटवा।
  5. इलाहाबाद राज्य विश्वविद्यालय, सिविल लाइंस, प्रयागराज
  6. यूइंग क्रिश्चियन कॉलेज

प्रयागराज में स्थापित इंजीनिरिंग कालेज के नाम निम्नलिखित है-

  1. मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान प्रयागराज (MNNIT)
  2. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फारमेशन टेक्नालाजी, प्रयागराज (IIIT-A)
  3. हरीशचंद्र अनुसंधान संस्थान (HRI)
  4. बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालाजी (BIT-Mesra)-(विस्तार पटल)
  5. उपर्यक्त के अतिरिक्त अन्य इंजीनिरिंग कालेज

उद्योग

प्रयागराज में शीशा और तार कारखाने काफी हैं। यहां के मुख्य औद्योगिक क्षेत्र हैं नैनी और फूलपुर, जहां कई सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियों की इकाइयां, कार्यालय और निर्माणियां स्थापित हैं। इनमें अरेवा टी एण्ड डी इण्डिया (बहुराष्ट्रीय अरेवा समूह का एक प्रभाग), भारत पंप्स एण्ड कंप्रेसर्स लि. यानी बीपीसीएल) जिसे जल्दी ही मिनिरत्न घोषित किया जाने वाला है, इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज (आई.टी.आई), रिलायंस इंडस्ट्रीज़-प्रयागराज निर्माण प्रखंड, हिन्दुस्तान केबल्स, त्रिवेणी स्ट्रक्चरल्स लि. (टी.एस.एल. भारत यंत्र निगम की एक गौण इकाई), शीशा कारखाना, इत्यादि। बैद्यनाथ की नैनी में एक निर्माणी स्थापित है, जिनमें कई कुटीर उद्योग जैसे रसायन, पॉलीयेस्टर, ऊनी वस्त्र, नल, पाईप्स, टॉर्च, कागज, घी, माचिस, साबुन, चीनी, साइकिल एवं पर्फ़्यूम आदि निर्माण होते हैं। इंडीयन फार्मर्स फर्टिलाइजर्स को-ऑपरेटिव इफको फूलपुर क्षेत्र में स्थापित है। यहाम इफको की दो इकाइयां हैं, जिनमें विश्व का सबसे बड़ा नैफ्था आधारित खाद निर्माण परिसर स्थापित है। प्रयागराज में पॉल्ट्री और कांच उद्योग भी बढ़ता हुआ है। राहत इंडस्ट्रीज़ का नूरानी तेल, काफी अच्छा और पुराना दर्दनिवारक तैल है, जिसकी निर्माणी नैनी में स्थापित है। तीन विद्युत परियोजनाएं मेजा, बारा और करछना तहसीलों में जेपी समूह एवं नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन द्वारा तैयार की जा रही हैं।

क्रीडा

प्रयागराज का भारतीय जिम्नास्टिक्स में प्रमुख स्थान है। यहां की टीम सार्क और एशियाई देशों में अग्रणी रही है। झालवा में खेलगांव पब्लिक स्कूल जिम्नास्टिक्स का प्रशिक्षण उपलब्ध कराता है। यहां के जिम्नास्ट्स को ३३वें ट्यूलिट पीटर स्मारक कप-२००७, हंगरी में २ स्वर्ण पदक मिले हैं। हॉकी के प्रसिद्ध खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद का जन्म भी प्रयागराज में ही २९ अगस्त १९०६ को हुआ था। उन्होंने तीन लगातार ऑलंपिक खेलों में एम्स्टर्डैम (१९२८), लॉस एंजिलिस (१९३२) और बर्लिन (१९३६) में तीन स्वर्ण पदक प्राप्त किये थे। मोहम्मद कैफ, भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी यहीं के हैं। अभिन्न श्याम गुप्ता भी एक उभरते हुए बैडमिंटन खिलाड़ी हैं, जिन्होंने २००२ में राष्ट्रीय पदक प्राप्त किया था।

परिवहन

रज्जु-आधारित चार-लेन का सेतु प्रयागराज में यमुना नदी पर भारत के सबसे बड़े निर्माणों में से एक हैं।

वायुमार्ग

प्रयागराज में वायु सेवा का विकास प्रगतिशील हैं। अभी प्रयागराज विमानक्षेत्र से दिल्ली, कोलकाता, जयपुर, अहमदाबाद, चेन्नई, बैंगलुरू, हैदराबाद के लिए सीधी या वाया उडानें हैं। अभी यहां का हवाई अड्डा एयरफोर्स स्टेशन बमरौली में ही है। उड़ान योजना के तहत लखनऊ और पटना भी प्रयागराज से जुड़ गए हैं। जनवरी 2019 में होने वाले कुम्भ से पहले एक नया टर्मिनल बनाने की सरकार की योजना है। निकटवर्ती बड़े विमानक्षेत्रों में वाराणसी विमानक्षेत्र साँचा:convert) एवं लखनऊ (अमौसी अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र साँचा:convert हैं।

जलमार्ग

प्रयागराज में जलमार्ग का विकास अभी अपनी प्रारम्भिक अवस्था में हैं 22 अक्टूबर 1986 ई, राष्ट्रिय जलमार्ग एक, जो कि प्रयागराज से हल्दिया (पं बंगाल) 1620 KM तक हैं।

सड़क

प्रयागराज दिल्ली-कोलकाता मार्ग के बीच स्थित है। स्वर्ण चतुर्भुज के मार्गों में से एक, राष्ट्रीय राजमार्ग २ दिल्ली और कोलकाता के लिये उपयुक्त है।

विश्व बैंक द्वारा वित्त-पोषित ८४.७ कि॰मी॰ लंबा बायपास मार्ग प्रयागराज एक्सप्रेसवे हाइवे है। [१७] इसके द्वारा न केवल राजमार्गों का यातायात ही सुलभ होगा, बल्कि शहर के हृदय से गुजरने वाला यातायात भी हल्का होगा। अन्य कई राज्य-राजमार्ग शहर को देश के अन्य भागों से जोड़ते हैं।

प्रयागराज से कुछ महत्वपूर्ण स्थलो की दूरी इस प्रकार हैं -

बस अड्डे

प्रयागराज में राज्य परिवन निगम के तीन डिपो (बस-अड्डे) हैं:

  1. लीडर रोड (बस अड्डा): यहाँ से कानपुर, आगरा व दिल्ली हेतु बसे उपलब्ध हैं।
  2. सिविल लाईन्स (बस अड्डा): यहाँ से लखनऊ फैजाबाद ,जौनपुर,गोरखपुर आदि के लिये बसे उपलब्ध हैं।
  3. जीरो रोड (बस अड्डा): यहाँ से रीवा सतना खजुराहो आदि के लिये बसे उपलब्ध हैं।

और झूँसी डिपो, नैनी डिपो फाफामऊ डिपो बस स्टैंड सिविल लाइंस और जीरो रोड पर जो विभिन्न मार्गों पर बस-सेवा सुलभ कराते हैं। दोनों नदियों पर बड़ी संख्या में बने सेतु शहर को अपने उपनगरों जैसे नैनी, झूँसी फाफामऊ आदि से जोड़ते हैं। नया आठ-लेन नियंत्रित एक्स्प्रेसवे- गंगा एक्स्प्रेसवे प्रयागराज से गुजरना प्रस्तावित है।[१८] प्रयागराज जिले में एक नयी ८-लेन मुद्रिका मार्ग सड़क भी प्रतावित है। स्थानीय यातायात हेतु नगर बस सेवा, ऑटोरिक्शा, रिक्शा एवं टेम्पो उपलब्ध हैं। इनमें से सबसे सुविधाजनक साधन साइकिल रिक्शा है।

रेलसेवा

भारतीय रेल द्वारा जुड़ा हुआ, प्रयागराज जंक्शन उत्तर मध्य रेलवे का मुख्यालय है। ये अन्य प्रधान शहरों जैसे कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद, इंदौर, लखनऊ, छपरा, पटना, भोपाल, ग्वालियर,जौनपुर, जबलपुर, बंगलुरु जयपुर एवं कानपुर से भली भांति जुड़ा हुआ है। कुछ अन्य शहरों जैसे बांदा,फतेहपुर आदि से जुड़ा हुआ है।

Allahabad Junction

शहर में 11 रेलवे-स्टेशन हैं:

प्रयागराज(प्रयाग-राज) के उल्लेखनीय व्यक्ति

भारत के १४ प्रधानमंत्रियों में से ७ का प्रयागराज से घनिष्ट संबंध रहा है:

जवाहर लाल नेहरु,

लालबहादुर शास्त्री,

इंदिरा गांधी,

राजीव गांधी,

गुलजारी लाल नंदा,

विश्वनाथ प्रताप सिंह एवं

चंद्रशेखर;

ये या तो यहां जन्में हैं, या प्रयागराज विश्वविद्यालय से पढ़े हैं या प्रयागराज निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए हैं।[१९]

सन्दर्भ

साँचा:reflist 13. " माँ गंगा " - Allahabad (संगम नगरी - प्रयाग)

बाहरी कड़ियाँ


साँचा:authority control

  1. [१] Official census data of Indian cities as of 2001
  2. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  3. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  4. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  5. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  6. साँचा:cite book
  7. साँचा:cite book
  8. साँचा:cite book
  9. साँचा:cite news
  10. साँचा:cite news
  11. The Congress – First Twenty Years; Page 38 and 39
  12. How India Wrought for Freedom: The story of the National Congress Told from the Official records (1915) by Anne Besant.
  13. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  14. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  15. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  16. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  17. contentMDK:20133102~menuPK:64282137~pagePK:41367~piPK:279616~theSitePK:40941,00.html इण्डिया- प्रयागराज बायपास परियोजना
  18. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  19. उत्तर प्रदेश पर्यटन के जालस्थल पर स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।- प्रयागराज