अज्जामद बोपय्या देवय्या

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सक्वाड्रन लीडर
अज्जामद बोपय्या देवय्या
A. B. Devaiah

महावीर चक्र
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सेवा/शाखा भारतीय वायु सेना
उपाधि सक्वाड्रन लीडर
युद्ध/झड़पें १९६५ का भारत-पाक युद्ध

अज्जामद बोपय्या देवय्या (अंग्रेज़ी: Ajjamada Boppayya Devayya) भारतीय वायुसेना के इकलौते ऐसे अधिकारी हैं जिन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र (MVC) से सम्मानित किया गया हो। महावीर चक्र परमवीर चक्र के बाद दूसरा सर्वोच्च युद्ध वीरता पुरस्कार है। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, सक्वाड्रन लीडर AB Devayya (जिसे 'विंग्स ऑफ फायर' नाम से भी पुकारा जाता है) पाकिस्तानी एयरबेस सरगोधा (जो उस समय सोवियत संघ के बाहर एशिया का सबसे सुरक्षित एयरबेस माना जाता था)[१] पर एक स्ट्राइक मिशन का हिस्सा थे, जब उनपर दुश्मन के विमान ने हमला किया था। उन्होंने उनका पीछा करने वाले दुश्मन विमान को मार गिराया लेकिन इस प्रक्रिया में उसका विमान क्षतिग्रस्त हो गया और वे लापता हो गए। संभवतः पाकिस्तानी क्षेत्र में उनकी मृत्यु हो गई। 23 साल बाद, 1988 में, उन्हें 1965 के संघर्ष में इस उपलब्धि के लिए मरणोपरांत MVC पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[२][३]

2019 बालाकोट हवाई हमले के बाद एयर चीफ़ मार्शल बी एस धनोआ ने उनकी वीरता का उल्लेख करते हुए अभिनंदन वर्तमान की उनसे तुलना की थी। धनोआ ने कहा, '1965 में एक भारी-भरकम, कम स्पीड वाले भारतीय वायुसेना के मिस्टीर विमान ने पाकिस्ताना का एफ-104 स्टारफाइटर मार गिराया था। इसी तरह का कुछ हमने 5 दिन पहले भी देखा है।'[४]

भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर (रिटायर्ड) प्रफुल्ल बख्शी ने कहा, 'इस तरह के शानदार पायलट होने के लिए एक खास तरह के रवैये की जरूरत होती है, जो कॉकपिट में बैठकर अपने जेट के क्रैश होने तक लड़ते हैं। स्क्वॉड्रन लीडर देवय्या और विंग कमांडर अभिनंदन दोनों के पास यह गुण था।'[४]

युद्ध

नेपथ्य

6 सितम्बर 1965 को पाकिस्तान वायुसेना (PAF) ने भारत पर हमला किया था।[१] उन्हें पता था कि 6 सितंबर को पूर्व-खाली हमलों के साथ, उन्होंने मधुमक्खी का छत्ता छेड़ दिया था, और भारतीय वायुसेना इस सबसे रणनीतिक आधार पर प्रतिशोध लेगी। हालांकि, एक उन्नत प्रारंभिक चेतावनी (early warning) और बहुपक्षीय रक्षात्मक क्षमता (multilayered defensive capability) होने के साथ, वे आश्वस्त थे कि IAF केवल सबसे घातक स्ट्राइक करके ही सरगोधा पर सफलतापूर्वक हमला कर सकेगी। और ऐसा करने की कोशिश पर उनके चिथड़े उड़ा दिए जाएंगे।[१]

लड़ाई

भारत और पाकिस्तान के बीच एक लड़ाई हुई थी, जो 22 दिन तक चली थी। जिसे हम ‘1965 की जंग’ के नाम से याद करते हैं। उस जंग में अज्जमदा देवय्या पुराना ‘मिस्टीर’ (लड़ाकू विमान) उड़ा रहे थे। और उनका सामना था मॉडर्न पाकिस्तानी ‘स्टारफाइटर’ से। जो मिस्टीर से दुगना तेज, ताकतवार और साइडविडर मिसाइलों से लैस था।[५]

भारतीय वायुसेना के ‘मिस्टीर’ लडाकू विमानों ने जैसे ही सरगोधा हवाई अड्डा पार किया, गश्त पर निकला पाकिस्तानी ‘स्टारफाइटर’ टोही विमान इनके पीछे लग गया। क्षमता में ‘मिस्टीर’ ‘स्टारफाइटर’ से कम था और उसका ईंधन भी खत्म होनेवाला था। पाकिस्तानी लडाकू विमान ने इसका फायदा उठाते हुए ‘मिस्टीर’ पर उस लड़ाई का सबसे मारक मिसाइल साइडविडर दाग दिया।[५]

लेकिन ‘मिस्टीर’ ने तेजी से बचाव करके चौंका दिया और मिसाइल जमीन पर जा गिरा। तिलमिलाए पाकिस्तानी जहाज ने एकदम करीब से आकर ‘मिस्टीर’ पर 6 नलियों वाली ‘वल्कान’ तोप से हमला किया। और दूसरे शिकार के लिए ऊंची उड़ान भरी, इस यकीन के साथ कि ‘मिस्टीर’ तो खत्म हो गया होगा। जवाबी हमले में देवय्या ने चोट खाये जहाज को संभालते हुए ‘स्टारफाइटर’ पर पीछे से तोप से हमला कर दिया। नतीजा विपक्षी जहाज के कॉकपिट में धुआं भर गया और फ्लाइट लेंफ्टिनेंट अमजद हुसैन ने छतरी के सहारे कूदकर जान बचाई।[५]

दूसरी तरफ देवय्या जहाज से कूदने के लिए पुरानी सीट खुलने का इंतजार करते रहे और उनका जहाज पाकिस्तानी जमीन पर धराशायी हो गया।[५]

पाकिस्तान के हमले का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारतीय वायुसेना ने सरगोधा पर हमले का फैसला किया था। और इसका जिम्मा दिया गया जालंधर के नजदीक आदमपुर स्थित पहले स्क्वाड्रन ‘टाइगर्स’ को। कमांडिंग अफसर थे ओपी तनेजा (तब के विंग कमांडर)। 4 लड़ाकू विमानों के पहले जत्थे का नेतृत्व कर रहे थे। 100-100 गज का दूरी पर 2 जत्थे और थे। गोपनीयता बनाये रखने के लिए पायलटों को रेडियो संपर्क से मना किया गया था। जिसके कारण एक जत्थे रास्ता भटक गया, दो और जहाजों को इंजन में गड़बड़ी के कारण लौटना पड़ा। तब बुलाया गया अज्जमदा बोपय्या देवय्या को। स्क्वाड्रन में कोई जहाज न होने पर देवय्या 32 स्क्वाड्रन से जहाज उधार ले निकल पड़े लड़ाई के लिए।[५]

रहस्यमयी मृत्यु

इसमें उन्होंने लिखा था, '7 सितंबर 1965 को मिस्टीर पायलट स्क्वॉड्रन लीडर एबी देवय्या ने लड़ाई में रहकर सराहनीय साहस दिखाया था और गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद उन्होंने आखिर में स्टारफाइटर पर कई हमले कर उसे मार गिराया था। यह पहला और एकमात्र स्टारफाइटर लड़ाकू विमान था जो 1965 के युद्ध में दुश्मन की कार्रवाई में नष्ट हो गया था।'[४]

स्क्वॉड्रन लीडर देवय्या उस समय सरगोधा में पाकिस्तान वायुसेना बेस पर एक एयरस्ट्राइक मिशन पर थे। उनका लक्ष्य पाकिस्तान के एयर एसेट्स को नुकसान पहुंचाना था। नाम न जाहिर करने की शर्त पर एक वरिष्ठ वायुसेना अधिकारी ने बताया, 'देवय्या ने स्टारफाइटर के साथ हवा में लड़ाई की थी जिसे पाकिस्तानी फ्लाइट लेफ्टिनेंट अमजद हुसैन उड़ा रहे थे। पाकिस्तान का लड़ाकू विमान तेज गति वाला और अत्याधुनिक था लेकिन हुसैन ने देवय्या को आउट-टर्न करने के चलते इसकी गति कम कर दी जो उनके लिए यह बड़ी गलती साबित हुई।'[४]

हुसैन इस लड़ाई में असफल हो गए जब उनके विमान पर एक साथ कई हमले हुए। वह विमान से बाहर आने को मजबूर हो गए। अधिकारी ने बताया, 'मिस्टीर की लिमिटेड रेंज थी और भारत वापस आने के लिए उसमें पर्याप्त ईंधन भी नहीं बचा था, देवय्या के साथ क्या हुआ, यह रहस्य है। ऐसा माना जाता है कि वह विमान से सुरक्षित बाहर निकलने में कामयाब नहीं हो सके। बाद में पाकिस्तानी वायुसेना ने इसकी पुष्टि की थी।[४]

मान्यता

1979 में जब पाकिस्तानी वायुसेना ने अपना इतिहास एक अंग्रेज लेखक जॉन फ्रीकर को लिखने के लिए दिया, तब देवय्या की बहादुरी के किस्से समाने आए। उस किताब के मुताबिक- पाकिस्तानी वायुसेना ने बड़ी आसानी से कामयाबी हासिल कर ली थी, जबकि भारतीय वायुसेना को सिर्फ एक कामयाबी हासिल हुई थी। वो यह कि मामूली किस्म के जहाज ‘मिस्टीर’ ने 7 सितंबर को सरगोधा के ऊपर पाकिस्तानी ‘स्टारफाइटर’ को मार गिराया था।[५]

तनेजा बताते हैं कि जब उन्हें फ्रीकर की किताब का पता चला, इन्होनें तुरंत बड़ें अफसरों से संपर्क किया। पहले तो किसी ने ध्यान नहीं दिया। लेकिन जब 1965 लड़ाई की आधिकारिक इतिहास लिखा जा रहा था तो सुरक्षा मंत्रालय के युद्ध शोध विभाग के हाथ किताब लगी। शोधकर्ता में शामिल एयर कमांडर प्रीतम सिंह, जिसने 65 की जंग एक नौजवान ‘नैट’ पायलट के रुप में पूरी कार्रवाई देखी थी। वो ‘मिस्टीर’ के सभी पायलटों को जानते थे। प्रीतम सिंह ने पूरी खोजबीन की, अभियान में शामिल सभी लोगों से पूछताछ शुरु की। पाकिस्तानी रेडियो से प्रसारित एक एफ-104 विमान के नष्ट होने की सूचना पर गौर किया। प्रीतम सिंह ने सारे सबूत इकट्ठा कर वायुसेना के आलाकमान के सामने पेश किया। तब जाकर वायुसेना ने अपने हीरो को सम्मानित करने का फैसला किया।[५]

23 साल बाद राष्ट्रपति रामस्वामी वेंकटरमण ने देवय्या को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।[५]

ये भी देखें

संदर्भ

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बाहरी कड़ियाँ