अंत्याधार
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पुल के छोरों पर ईंट, सीमेंट आदि की बनी उन भारी संरचनाओं को अंत्याधार (abutment) कहते हैं जो पुलों की दाब या प्रतिक्रिया सहन करती हैं। बहुधा चारों ओर दीवारें बनाकर बीच में मिट्टी भर दी जाती है। ऊर्ध्वाधर भार सहने के अतिरिक्त अंत्याधार पुल को आगे पीछे खिसकने से और एक बगल बोझ पड़ने पर पुल की ऐंठने की प्रवृत्ति को भी रोकते हैं। ईटें चुनकर, या सादे कंक्रीट से, या इस्पात की छड़ों से सुदृढ़ किए (रिइन्फोर्स्ड) कंक्रीट से ये बनते हैं। अंत्याधार कई प्रकार के होते हैं, जैसे सीधे अंत्याधार, सुदृढ़ की गई कंक्रीट की दीवारें, सदृढ़ किए गए सीमेंट के पुश्ते (काउंटरफोर्ट रिटेनिंग वाल्स) और सुदृढ़ किए गए सीमेंट के कोष्ठमय खोखले अंत्याधार (सेलुलर हॉली अबटमेंट)। बगली दीवारें (विंग वाल्स) और जवाबी दीवारें (रिटर्न वाल्स) खभी अलग बना दी जाती हैं, कभी अंत्याधार में जुड़ी हुई बनाई जाती हैं। संरचना को इतना भारी और दृढ़ होना चाहिए कि पुल की दाब से वह उलट न जाए और ऐसा न हो कि वह अपनी नींव पर या बीच के किसी रद्दे पर खिसक जाए। ध्यान रखना चाहिए कि संरचना अथवा नींव के किसी भी स्थान पर महत्तम स्वीकृत बल से अधिक बल न पड़े। दाब आदि की गणना करते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि पुल पर आती-जाती गाड़ियों के कारण बल कितना अधिक बढ़ जाएगा। जहाँ अगल बगल पक्की दीवारें बनाकर बीच में मिट्टी भरी जाती है, वहाँ ऐसा विश्वास किया जाता है कि लगभग 10 फुट लंबी सुदृढ़ किए कंक्रीट की पाटन (स्लैब) डाल देने से मिट्टी के खिसकने का डर नहीं रहता। अगल बगल की दीवारों पर मुक्के (छेद) छोड़ देने चाहिए जिसमें मिट्टी में घुसे पानी को बहने का मार्ग मिल जाए और इस प्रकार मिट्टी की दाब के साथ पानी की अतिरिक्त दाब दीवारों पर न पड़े। साधारणत समझा जाता है कि दीवार के किसी बिंदु पर तनाव नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि वे केवल संपीडनजनित बल ही सँभाल सकती हैं, परंतु यदि सुदृढ़ीकृत कंक्रीट से तनाव सह सकने वाली ऐसी दीवार बनाई जाए जिसमें संपीडनजनित बल को केवल कंक्रीट (न कि उसमें पड़ा इस्पात) अपनी पूरी सीमा तक सहन करता है, तो खर्च कम पड़ता है।
अंत्याधार की दीवारों की परिकल्पना (डिज़ाइन) में यह तो यह माना जाता है कि ऊपर उन को पुल का पाट सँभाले हुए हैं और नीचे नींव, या यह माना जाता है कि वे तोड़ा (कैटिलीवर) हैं। बड़े पुलों के भारी अंत्याधारों की परिकल्पना स्थिर करने के पहले वहाँ की मिट्टी की जाँच सावधानी से करनी चाहिए। यदि आवश्यकता प्रतीत हो तो खूँटे (पाइल) या कूप (खोखले खंभे) गाड़कर उन पर नींव रखनी चाहिए।
पुल बनाने में अंत्याधारों पर भी बहुत खर्च हो जाता है। इस खर्च को कम करने के लिए निम्नलिखित उपायों का उपयोग किया जा सकता है
(क) पुल पर आने वाली सड़क की मिट्टी पुल के इतने पास तक डाली जाए कि पुल का अंतिम पाया मिट्टी में डूब जाए और फिर वहाँ से भराव ढालू होता हुआ नदी तल तक पहुँचे। ढालू भराव या मिट्टी का हो, या कम से कम ढोंके और मिट्टी की तह से सुरक्षित हो और भूमि के पास नाटी दीवार (टो वाल) बनाई जाए।
(ख) पुल के अंतिम बयाँग (स्पैन) बहुत छोटे हों, जिसमें उनको सँभालने के लिए छिछले अंत्याधारों की आवश्यकता पड़े।
यहाँ उन अंत्याधारों का उल्लेख कर देना पर्याप्त होगा जो पुलों के तोड़ेदार छोरों (कैंटिलीवर एंड्स) को स्थिर करने के लिए प्रयुक्त होते हैं, या झूला पुलों को दृढ़ करने वाले गर्डरों के सिरों को स्थिर करने के लिए प्रयुक्त होते हैं।
पुलों के पायों में से बीच में पड़ने वाले उन पायों को अंत्याधार पाया कहते हैं जो आसपास के बयाँगों के भारों को सँभाल सकने के अतिरिक्त केवल एक ओर के बयाँग के कुल अचल बोझ को पूर्णतया सँभाल सकते हैं। मेहराबों से बने पुलों में साधारणत प्रत्येक चौथा या पाँचवाँ पाया अंत्याधार पाया मानकर अधिक दृढ़ बनाया जाता है, जिसका उद्देश्य यह होता है कि एक बयाँग के टूटने पर सारा पुल ही न टूट जाए।