hiwiki:श्रेणीकरण

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

विकिपीडिया के लेख कई श्रेणियों में विभाजित हैं। कुछ श्रेणियाँ मिलकर एक ऊपरी श्रेणी के अन्तर्गत आ सकती हैं। और इस तरह श्रेणियों का एक वृक्ष बन जाता है। श्रेणी के संबंध में निम्नलिखित बातें महत्त्वपूर्ण हैं:

  • पृष्ठों पर सीधे-सीधे हरेक संभव श्रेणी टाँक देना ठीक नहीं है। उन्हें किसी शाखा की सबसे सँकरी किन्तु उचित श्रेणी में ही डालना चाहिये। अर्थात यदि कोई लेख श्रेणी "क" की किसी उपश्रेणी के लिए (या उपश्रेणी की उपश्रेणी के लिए) जँचता है तो उसे सीधे-सीधे "क" में न डालकर उस उपश्रेणी में डाला जाना चाहिये और "क" में नहीं डालना चाहिये।
  • किसी भी लेख में कोई गैर-मौजूद श्रेणी टाँककर नहीं छोड़ देनी चाहिये (यानी श्रेणी की लाल कड़ी कभी नहीं आनी चाहिये)। या तो ऐसी श्रेणी को बना दिया जाना चाहिये या फिर उस लिंक को हटा देना चाहिये, या सुधारकर किसी मौजूद श्रेणी के लिंक में बदल देना चाहिये।
  • एक पृष्ठ पर श्रेणियाँ किस क्रम में आयें इसपर कोई अकेला नियम नहीं है (उदाहरण के लिए, इसे वर्णमाला क्रम में होना जरूरी नहीं है, हालाँकि जहाँ कोई क्रम न हो पा रहा हो, तो वर्णमाला क्रम बेहतर है)। सामान्यतः सबसे ज़रूरी और सार्थक श्रेणियाँ सबसे पहले आती हैं। यदि किसी लेख में उसी नाम की या मिलते-जुलते नाम की श्रेणी हो, तो वह श्रेणी सबसे पहले आनी चाहिये। जैसे अंग्रेज़ी विकिपीडिया पर George Orwell लेख में Category:George Orwell अन्य सारी श्रेणियों से पहले आयी है।
  • मूल पृष्ठ की तरह किसी पुनर्निर्देश पृष्ठ को भी श्रेणीबद्ध (categorize) किया जा सकता है, बशर्ते उसके मूल पृष्ठ का नाम उस श्रेणी में आना ज्यादा न जँचता हो। जैसे- यदि ब्रिटिश कालीन भारतीय नगर श्रेणी में कोलकाता लिखना ठीक नहीं होगा, क्योंकि उस समय इस शहर का नाम यह नहीं था। अतः कलकत्ता ही लिखा जायेगा, जो कोलकाता को पुनर्निर्देशित होगा। जबकि भारत के महानगर श्रेणी में यही लेख अपने कोलकाता नाम के साथ आ सकता है।
  • श्रेणियाँ इसलिए बनायी जाती हैं कि पाठक जुड़े हुए लेखों को ढूँढने व उनमें भ्रमण करने में सुविधा पायें। किसी भी लेख को उन्हीं श्रेणियों में रखना चाहिये, जिनके लिए यह सबसे ज्यादा संभव हो कि उस लेख का नाम सही-सही याद न होने पर कोई पाठक खंगालने के लिए उस श्रेणी में जायेगा। किसी लेख की श्रेणियाँ उसके विषय के मौलिक लक्षणों पर तथा उसके परिभाषी लक्षणों (defining features) पर आधारित होनी चाहिये; जैसे राष्ट्रीयता या उल्लेखनीय पेशा (लोगों के मामले में), स्थिति या क्षेत्र का प्रकार (स्थानों के मामले में) इत्यादि।
  • कभी भी संयोगवश दिखने वाले लक्षणों या ऐसे लक्षणों जो दृष्टिकोण पर आधारित हों, पर श्रेणियाँ नहीं बाँटनी चाहिये।
  • नयी श्रेणी बनाने से पहले यह पक्का कर लें कि वैसी कोई श्रेणी किसी और नाम से पहले से तो मौजूद नहीं है। यह कार्य इन तरीकों से किया जा सकता है:
    • पहले से मौजूद कुछ प्रतिनिधि पृष्ठ (यानी श्रेणी के अंग बनने लायक पृष्ठ) देखकर,
    • संभावित ऊपरी श्रेणियों में ढूँढकर, या
    • सर्चबॉक्स में श्रेणी: शब्द के साथ संभावित नाम के पहले कुछ अक्षर टाइप करके।
  • श्रेणी को हटाया, नामान्तरित अथवा विलय भी किया जा सकता है। परन्तु यह कार्य पर्याप्त सोचविचार के बाद या चर्चा करके ही किया जाना चाहिये।
    • श्रेणी पृष्ठों को सीधे स्थानांतरित करने से उनमें श्रेणीबद्ध पृष्ठ नई श्रेणी में अपने-आप नहीं जुड़ते। उन्हें एक-एक करके पुरानी श्रेणी से हटाकर नई श्रेणी में डालना पड़ता है। ऐसा करने में बॉट सहायक होते हैं।
    • श्रेणियों को हटाने पर जो भी पृष्ठ हटाई गई श्रेणी में थे, उन सब पे उस श्रेणी की लाल कड़ी दिखने लगती है। अतः श्रेणी हटाने से पहले उसमें श्रेणीबद्ध सभी पृष्ठों को उसमें से हटाया जाना चाहिये।
    • श्रेणियाँ विलय करने के लिये एक श्रेणी को दूसरी श्रेणी पर पुनर्निर्देशित करना पड़ता है और उसमें विद्यमान सभी पृष्ठों को दूसरी श्रेणी में डालना पड़ता है। वे अपने-आप एक श्रेणी से दूसरी श्रेणी में नहीं जाते।
  • जब एक श्रेणी को दूसरी की उपश्रेणी बनाना हो तो पहले सुनिश्चित कर लें कि पहली श्रेणी के अवयव लेखों को दूसरी श्रेणी में होने की सहज ही आशा की जाती हो (थोड़े बहुत अपवाद हों तो चलेगा)। इस तरह श्रेणी-उपश्रेणी की जंजीर में चक्र नहीं बनना चाहिये। अगर दो श्रेणियाँ बहुत घनिष्ठ संबंध रखती हों लेकिन उनमें उपसमुच्चय का संबंध न हो (यानी एक में दूसरी ठीक से शामिल न होती हो) तो उपश्रेणी बनाने के बजाय ऊपरी श्रेणी पृष्ठ के पाठ में ही निछली श्रेणी की कड़ी देना काफ़ी है।

श्रेणी का उपशाखन (या उपश्रेणियों में बाँटना)

  • हालाँकि श्रेणी के आकार के बारे में कोई सीमा निश्चित नहीं है, फिर भी बड़ी श्रेणियों को तोड़कर प्रायः छोटी और स्पष्टतर श्रेणियों में उपशाखित किया जाता है। जैसे- यूरोप की नदियाँ श्रेणी को उपश्रेणियों जैसे- अल्बानिया की नदियाँ, जर्मनी की नदियाँ आदि में बाँटा जा सकता है।
  • एक श्रेणी को एक साथ कई सारी उपशाखन परिपाटियों द्वारा बाँटा जा सकता है। ऐसी स्थिति में परिपाटी क और परिपाटी ख से प्राप्त उपश्रेणियों को सीधे उस श्रेणी में न रखकर पहले प्रत्येक परिपाटी के लिए एक धारक श्रेणी बना लेते हैं, और उन धारक श्रेणियों को ऊपरी श्रेणी में रख देते हैं। जैसे- भारत के शहर श्रेणी में शहरों का विभाजन जनसंख्या के आधार पर भी किया जा सकता है, उनके प्रकार्य (मुख्य पेशे) के आधार पर भी। ऐसे में भारत के शहर श्रेणी में जनसंख्या के आधार पर भारतीय शहर और प्रकार्य के आधार पर भारतीय शहर नाम की उपश्रेणियाँ होंगी और फिर - जनसंख्या के आधार... में 1 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले शहर, 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहर आदि उपश्रेणियाँ होंगी।
इसी प्रकार प्रकार्य के आधार... में प्रशासनिक शहर, धार्मिक महत्त्व के शहर, औद्योगिक शहर आदि उपश्रेणियाँ होंगी।
  • किसी श्रेणी को किन आधारों पर उपश्रेणियों में बाँटा गया है, यह बात उसके श्रेणी पृष्ठ पर लिखी जा सकती है।
  • किसी श्रेणी का आंशिक उपशाखन भी किया जा सकता है- यानी कुछ अवयव लेख उसकी उपश्रेणियों में हों, और कुछ मुख्य श्रेणी में ही हों।

साँचे द्वारा श्रेणीकरण

  • कई साँचों में भी उनके ट्रांस्क्ल्यूडेबल पाठ में श्रेणीबद्ध करने का कोड पाया जाता है, जिसका मतलब है कि जिन पृष्ठों पर भी वे साँचे होंगे वे सभी उस श्रेणीविशेष में शामिल हो जायेंगे। इस तकनीक का उपयोग कुछ प्रशासनिक साँचों में किया जाता है- जैसे आधार श्रेणी या रखरखाव श्रेणियों में।
  • यह सलाह दी जाती है कि साँचों द्वारा श्रेणीबद्ध करने की इस तकनीक का प्रयोग साधारण सामग्री श्रेणियों में नहीं किया जाना चाहिये। इसके बहुतेरे कारण हैं - संपादक विकिटेक्स्ट में श्रेणी नहीं देख पायेंगे; श्रेणी को हटाना या उसकी पुनर्रचना कठिनतर हो जायेगा (अंशतया ऐसा इसलिए कि स्वचालित प्रक्रम काम नहीं करेंगे); एक श्रेणी से असंगत लेख या गैर-लेख पृष्ठ जुड़ने का खतरा बना रहता है; उस पृष्ठ पर श्रेणियों का क्रम से रखना कम नियंत्रित रह जाता है: और "incategory" खोजशब्द द्वारा ऐसे पृष्ठ नहीं मिलेंगे।
  • जब प्रशासनिक श्रेणियाँ जोड़ने के लिए साँचों का प्रयोग किया जाता है तब ध्यान रखें कि उस कोड से अर्थहीन अथवा अविद्यमान श्रेणी न बन जाये, खासकर तब जबकि श्रेणी का नाम किसी प्राचल (पैरामीटर) से निर्धारित होता हो। साथ ही कुछ पृष्ठों पर साँचा-जनित श्रेणीबंधन से बचने के लिए कैटेगरी सप्प्रेशन (category suppression) का प्रयोग भी किया जा सकता है।