बारूथ स्पिनोज़ा
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बरूच स्पिनोज़ा | |
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जन्म |
24 November 1632 ऐम्स्टर्डैम, डच गणतंत्र |
मृत्यु |
21 February 1677साँचा:age) हेग, डच गणतंत्र | (उम्र
आवास | नीदरलैण्ड |
राष्ट्रीयता | डच |
बारूथ डी स्पिनोज़ा (Baruch De Spinoza ; २४ नवम्बर १६३२ - २१ फ़रवरी १६७७) यहूदी मूल के डच दार्शनिक थे। उनका परिवर्तित नाम 'बेनेडिक्ट डी स्पिनोजा' (Benedict de Spinoza) था। उन्होने उल्लेखनीय वैज्ञानिक अभिक्षमता (aptitude) का परिचय दिया किन्तु उनके कार्यों का महत्व उनके मृत्यु के उपरान्त ही समझा जा सका।
परिचय
स्पिनोजा का जन्म हालैंड (एम्स्टर्डम) में, यहूदी परिवार में, सन् १६३२ में हुआ था। वे स्वभाव से एकांतप्रिय, निर्भीक तथा निर्लोभ थे। अपने विश्वासों को त्यागने के लिए उनको लोभ दिखाया गया, उनकी हत्या का षड्यंत्र रचा गया, उन्हें यहूदी संप्रदाय से बहिष्कृत किया गया, फिर भी वे अडिग रहे। सांसारिक जीवन उनको एक असह्य रोग के समान जान पड़ता था। अतः उससे मुक्ति पाने तथा ईश्वरप्राप्ति के लिए वे बेचैन रहते थे।
स्पिनोज़ा का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ उनका 'एथिक्स' (नीतिशास्त्र) है। किंतु इसके अतिरिक्त भी उन्होंने सात या आठ ग्रंथों का प्रणयन किया है। प्रिंसिपल्स ऑफ फिलासफी तथा मेटाफिजिकल कोजिटेशंस का प्रकाशन १६६३ में और ट्रैक्टेटस थियोलोजिको पोलिटिकस (Tractatus Theologico Politicus) का प्रकाशन १६७० में, बिना उनके नाम के हुआ। उनके तीन अधूरे ग्रंथ ट्रैक्टेटस पोलिटिकस, ट्रैक्टेटस डी इंटेलेक्टस इमेनडेटिओन, ग्रैमैटिसेस लिंगुए हेब्रेसई (Tractatus Politicus de Intellectus Emendatione, Compendium Grammatices Linguae Hebraeae) हैं - जो उनके मुख्य ग्रंथ एथिक्स के साथ, उनकी मृत्यु के उपरांत उसी साल १६७७ में प्रकाशित हुए। बहुत दिनों बाद उनके एक और ग्रंथ ट्रैक्टेटस ब्रेविस डी डिओ (Tractatus Brevis de Deo) का पता चला, जिसका प्रकाशन १८५८ में हुआ। स्पिनोजा के जीवन तथा दर्शन के विषय में अनेक ग्रंथ लिखे गए हैं जिनकी सूची स्पिनोज़ा इन द लाइट ऑफ वेदांत (Spinoza in the light of Vedanta) में दी गई है।
इस कल्पना का कि द्रव्य की सृष्टि हो सकती है अत: विचारतत्व और विस्तारतत्व द्रव्य हैं, स्पिनोज़ा ने घोर विरोध किया। द्रव्य, स्वयंप्रकाश और स्वतंत्र है, उसकी सृष्टि नहीं हो सकती। अत: विचारतत्व और विस्तारतत्व, जो सृष्ट हैं, द्रव्य नहीं बल्कि उपाधि हैं। स्पिनोज़ा अनीश्वरवादी इस अर्थ में कहे जा सकते हैं कि उन्होंने यहूदी धर्म तथा ईसाई धर्म में प्रचलित ईश्वर की कल्पना का विरोध किया। स्पिनोज़ा का द्रव्य या ईश्वर निर्गुण, निराकार तथा व्यक्तित्वहीन सर्वव्यापी है। किसी भी प्रकार ईश्वर को विशिष्ट रूप देना उसको सीमित करना है। इस अर्थ में स्पिनोज़ा का ईश्वर अद्वैत वेदांत के ब्रह्म के समान है। जिस प्रकार ब्रह्म की दो उपाधियाँ, नाम और रूप हैं, उसी प्रकार स्पिनोज़ा के द्रव्य की दो उपाधियाँ विचार और विस्तार हैं। ये द्रव्य के गुण नहीं है। ब्रह्म के स्वरूपलक्षण के समान द्रव्य के भी गुण हैं जो उसके स्वरूप से ही सिद्ध हो जाते हैं, जैसे उसकी अद्वितीयता, स्वतंत्रता, पूर्णता आदि। विचार तथा विस्तार को गुण न कहकर उपाधि कहना अधिक उपर्युक्त है, क्योंकि स्पिनोज़ा के अनुसार वे द्रव्य के स्वरूप को समझने के लिए बुद्धि द्वारा आरोपित हैं। इस प्रकार की अनंत उपाधियाँ स्पिनोज़ा को मान्य हैं। ईश्वर की ये उपाधियाँ भी असीम हैं परंतु ईश्वर की निस्सीमता निरपेक्ष है वहाँ इन उपाधियों की असीमता सापेक्ष है।
ईश्वर जगत् का स्रष्टा है, परंतु इस रूप में नहीं कि वह अपनी इच्छाशक्ति से संपूर्ण विश्व की रचना करता है। वास्तव में ईश्वर में इच्छाशक्ति आरोपित करना उसको सीमित करना है। परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि ईश्वर स्वतंत्र नहीं है; उसकी स्वतंत्रता उसकी सर्वनिरपेक्षता है न कि स्वंतत्र इच्छा इसी से स्पिनोज़ा सृष्टि को सप्रयोजन नहीं मानता। ईश्वर जगत् का कारण उसी अर्थ में है जिसमें स्वर्णपिंड आभूषण का या आकाश त्रिभुज का। परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि ईश्वर परिवर्तनशील है। जगत् कल्पित है किंतु उसका आधार ईश्वर सत्य है। ईश्वर और जगत् विभिन्न हैं, परंतु विभक्त नहीं।
जिस प्रकार ईश्वर में इच्छाशक्ति नहीं है वैसे ही मनुष्य में भी स्वतंत्र इच्छाशक्ति नाम की कोई वस्तु नहीं है। वास्तविकता यह है कि प्रत्येक विचार का कारण एक अन्य विचार हुआ करता है अत: कोई भी विचार स्वतंत्र नहीं है। साथ ही स्पिनोज़ा की विचारजगत् पर भौतिक जगत् का प्रभाव नहीं पड़ता। कार्य-कारण-शृंखला अलग हैं परंतु दोनों एक ही द्रव्य, है अत: वे संबंधित मालूम पड़ते हैं।
व्यवहारजगत् में स्पिनोज़ा नियतिवादी जान पड़ते हैं। उनका कहना है कि इच्छाशक्ति के अस्वीकार करने से हमारे व्यवहार तथा आचार पर प्रभाव नहीं पड़ता अत: उससे सर्शक होना अनावश्यक है। वास्तविकता तो यह है कि यदि हमको यह दृढ़ निश्चय हो जाए कि संसार की कार्य-कारण-शृंखला इच्छानिरपेक्ष है तो हमको बड़ी शांति मिले। मनुष्य तभी तक अशांत रहता है जब तक उसकोश् कार्य कारण-शृंखला में परिवर्तन की आशा रहती है। इच्छास्वातंत्रय में विश्वास ही हमारा बंधन है। इच्छास्वातंत्रय का उपयोग इच्छास्वातंत्रय के निराकरण के लिए करना चाहिए। इच्छास्वातंत्रय के शमन से राजसिक वृत्ति तथा मानसिक विकारों का शमन होता है और मन ईश्वरचिंतन के योग्य होता है।
जीवन का परम लक्ष्य ईश्वर की प्राप्ति है क्योकि तभी नित्यशुभ की प्राप्ति हो सकती है। ईश्वर की प्राप्ति ईश्वर से प्रेम करने से होती है परंतु प्रेम का अर्थ भावुकता नहीं बल्कि तन्मयता है। इसी से स्पिनोज़ा ने इस प्रेम को बौद्धिक प्रेम कहा है। ईश्वरतन्मयता का एक अर्थ यह भी है कि हम सदाचार सदाचार के लिए करें, क्योंकि सदाचार के उपलक्ष्य में प्रतिफल की इच्छा रखना एक बंधन की सृष्टि करना है। जब हमारा मन ईश्वरमय तथा हमारा दृष्टिकोण नित्य का दृष्टिकोण हो जाता है तब हम ईश्वर के साथ तादात्म्य का अनुभव करते हैं तथा परम शांति प्राप्त करते हैं। स्पिनोज़ा के विचार में ईश्वर के सगुण साकार रूप का भी महत्व है। जिनका बौद्धिक स्तर नीचा है तथा जिनके मन में सगुण, साकार ईश्वर की कल्पना से धर्मभावना जाग्रत होती है उनके लिए यह कल्पना अत्यंत उपयोगी है। ईश्वर को न मानने की अपेक्षा सगुण साकार ईश्वर को मानना श्रेयस्कर है। स्पिनोज़ा का विचार सर्वधर्मनिरपेक्ष था, इसी से आज के युग में लोगों की दृष्टि स्पिनोज़ा की ओर बार बार जा रही है।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
Wikiquote has quotations related to बारूथ स्पिनोज़ा. |
Baruch de Spinoza से संबंधित मीडिया विकिमीडिया कॉमंस पर उपलब्ध है। |
- Stanford Encyclopedia of Philosophy:
- "Spinoza" by Steven Nadler.
- "Spinoza's Psychological Theory" by Michael LeBuffe.
- "Spinoza's Physical Theory" by Richard Manning.
- "Spinoza's Political Philosophy" by Justin Steinberg.
- Susan James on Spinoza on the Passions, Philosophy Bites podcast
- Spinoza and Spinozism - BDSweb
- Reading Spinoza
- Spinoza, the Moral Heretic by Matthew J. Kisner
- Immortality in Spinoza
- BBC Radio 4 In Our Time programme on Spinoza
- Spinoza: Mind of the Modern - audio from Radio Opensource
- Infography about Baruch Spinoza
- Spinoza Csack's Website (with pdf files of Spinoza's works)
- Spinoza's grave in The Hague
- The Escamoth stating Spinoza's excommunication
- Gilles Deleuze's lectures about Spinoza (1978-1981)
- कृतियाँ
- Refutation of Spinoza by Leibniz In full at Google Books
- More easily readable versions of Ethics Demonstrated in Geometrical Order and Treatise on Theology and Politics
- EthicaDB Hypertextual and multilingual publication of Ethics
- A Theologico-Political Treatise - English Translation
- Theological-Political Treatise - English Translation
- A letter from Spinoza to Albert Burgh
- Ethica Ordine Geometrico Demonstrata et in quinque partes distincta, in quibus agetur
- Opera posthuma Amsterdam 1677. Complete photographic reproduction, ed. by F. Mignini (Quodlibet publishing house website)