सैयद वंश
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सैयद वंश | |||||
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सैयद वंश के तृतीय बादशाह मुहम्मद शाह का मकबरा।
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राजधानी | दिल्ली | ||||
भाषाएँ | फ़ारसी (आधिकारिक)[१] | ||||
धार्मिक समूह | इस्लाम | ||||
शासन | सल्तनतसाँचा:ns0 | ||||
सुल्तान | |||||
- | १४१४–१४२१ | ख़िज़्र खाँ | |||
- | १४४५–१४५१ | आलम-शाह | |||
इतिहास | |||||
- | स्थापित | २८ मई १४१४ | |||
- | अंत | १९ अप्रैल १४५१ |
सैयद वंश अथवा सय्यद वंश दिल्ली सल्तनत का चतुर्थ वंश था जिसका कार्यकाल १४१४ से १४५१ तक रहा। उन्होंने तुग़लक़ वंश के बाद राज्य की स्थापना.
यह परिवार सैयद अथवा मुहम्मद के वंशज माने जाता है। तैमूर के लगातार आक्रमणों के कारण दिल्ली सल्तनत का कन्द्रीय नेतृत्व पूरी तरह से हतास हो चुका था और उसे १३९८ तक लूट लिया गया था। इसके बाद उथल-पुथल भरे समय में, जब कोई केन्द्रीय सत्ता नहीं थी, सैयदों ने दिल्ली में अपनी शक्ति का विस्तार किया। इस वंश के विभिन्न चार शासकों ने ३७-वर्षों तक दिल्ली सल्तनत का नेतृत्व किया।
इस वंश की स्थापना ख़िज्र खाँ ने की जिन्हें तैमूर ने मुल्तान (पंजाब क्षेत्र) का राज्यपाल नियुक्त किया था। खिज़्र खान ने २८ मई १४१४ को दिल्ली की सत्ता दौलत खान लोदी से छीनकर सैयद वंश की स्थापना की। लेकिन वो सुल्तान की पदवी प्राप्त करने में सक्षम नहीं हो पाये और पहले तैम्मूर के तथा उनकी मृत्यु के पश्चात उनके उत्तराधिकारी शाहरुख मीर्ज़ा (तैमूर के नाती) के अधीन तैमूरी राजवंश के रयत-ई-अला (जागीरदार) ही रहे।[२] ख़िज्र खान की मृत्यु के बाद २० मई १४२१ को उनके पुत्र मुबारक खान ने सत्ता अपने हाथ में ली और अपने आप को अपने सिक्कों में मुइज़्ज़ुद्दीन मुबारक शाह के रूप में लिखवाया। उनके क्षेत्र का अधिक विवरण याहिया बिन अहमद सरहिन्दी द्वारा रचित तारीख-ए-मुबारकशाही में मिलता है।[३] मुबारक खान की मृत्यु के बाद उनका दतक पुत्र मुहम्मद खान सत्तारूढ़ हुआ और अपने आपको सुल्तान मुहम्मद शाह के रूप में रखा। अपनी मृत्यु से पूर्व ही उन्होंने बदायूं से अपने पुत्र अलाउद्दीन शाह को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।[४]
इस वंश के अन्तिम शासक अलाउद्दीन आलम शाह ने स्वेच्छा से दिल्ली सल्तनत को १९ अप्रैल १४५१ को बहलूल खान लोदी के लिए छोड़ दिया और बदायूं चले गये। वो १४७८ में अपनी मृत्यु के समय तक वहाँ ही रहे।[५]
शासक
- ख़िज़्र खाँ (१४१४-१४२१)
- मुबारक़ शाह (१४२१-१४३४)
- मुहम्मद शाह (१४३४-१४४५)
- आलमशाह शाह (१४४५-१४५७)
कालक्रम
- ख़िज्र खाँ
खिज्र खाँ, सैयद वंश के संस्थापक थे।[६] वो फिरोजशाह तुगलक के अमीर मलिक मर्दान दौलत के दतक पुत्र सुलेमान का पुत्र थे। तैमूर ने वापस लौटते समय उन्हें रैयत-ए-आला की उपाधि के साथ मुल्तान, लाहौर और दीपालपुर का शासक नियुक्त किया था।[७] उन्होंने तैमूर वंश की सहायता से दिल्ली की सत्ता सन् १४१४ में प्राप्त की और जीवन भर रैयत-ए-आला की उपाधि के साथ सन्तुष्ट रहे।[८] उन्हें तैमूर ने भारत में अपने प्रतिनिधि के रूप में मुल्तान में नियुक्त कर रखा था। सन् १४१० में मुल्तान से सेना लेकर उन्होंने तुगलक वंश पर हमला किया और छः माह में रोहतक पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया। इस समय दिल्ली सल्तनत पर मोहम्मद शाह तुगलक का शासन था। सन् १४१३ में मोहम्मद शाह का निधन हो गया। मोहम्मद शाह के कोई पुत्र नहीं था और न ही पहले से कोई तुगलक उत्तराधिकारी घोषित था अतः दिल्ली में अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो गई। इस समय के लिए दौलत खान लोदी को दिल्ली की सता सौंपी गयी। मार्च १४१४ में खिज्र खाँ ने दिल्ली पर हमला कर दिया और चार माह में जीत दर्ज करते हुये दिल्ली पर अपना शासन आरम्भ कर दिया।[९]
- मुबारक शाह
खिज्र खाँ की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी के रूप में उनका पुत्र मुबारक शाह ने दिल्ली की सत्ता अपने हाथ में ली। अपने पिता के विपरीत उन्होंने अपने आप को सुल्तान के रूप में घोषित किया।[१०]
- मुहम्मद शाह
मुबारक शाह की मृत्यु के बाद मुहम्मद शाह ने दिल्ली सल्तनत पर शासन किया। उनका शासनकाल १४३४ से १४४५ तक रहा।[११]
टिप्पणी
सन्दर्भ
- साँचा:cite web
- वी॰डी॰ महाजन (१९९१, पुनःप्रकाशित २००७), History of Medieval India [मध्यकालीन भारत का इतिहास] (अंग्रेज़ी में), भाग I, नई दिल्ली: एस॰ चाँद, ISBN 81-219-0364-5
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