शनि के छल्ले
शनि के छल्ले हमारे सौर मण्डल के सबसे शानदार उपग्रही छल्लों का गुट हैं। यह छोटे-छोटे कणों से लेकर कई मीटर बड़े अनगिनत टुकड़ों से बने हुए हैं जो सारे इन छल्लों का हिस्सा बने शनि की परिक्रमा कर रहें हैं। यह सारे टुकड़े अधिकतर पानी की बर्फ़ के बने हुए हैं जिनमें कुछ-कुछ धुल भी मिश्रित है। यह सारे छल्ले एक चपटे चक्र में एक के अन्दर एक हैं। इस चक्र में छल्लों के बीच कुछ ख़ाली छल्ले-रुपी अंतराल या दरारे भी हैं। इन में से कुछ दरारे तो इस चक्र में परिक्रमा करते हुए उपग्रहों ने बना लीं हैं: जहाँ इनकी परिक्रमा की कक्षाएँ हैं वहाँ इन्होने छल्लों में से मलबा हटा दिया है। लेकिन कुछ दरारों के कारण अभी वैज्ञानिकों को ज्ञात नहीं हैं।
छल्लों की परिस्थिति
यह छल्ले शनि की भूमध्य रेखा से ७,००० किमी की ऊंचाई पर शुरू होते हैं और ८०,००० किमी की दूरी तक रहते हैं। इनमे ९९.९% पानी की बर्फ़ है जिसमें थोड़ी सी अन्य पदार्थों की मिलावट भी है। मुख्य छल्लों में १ सेंटीमीटर से लेकर १० मीटर तक के टुकड़े हैं।
उत्पत्ति का इतिहास
शनि के छल्ले कैसे बने, इस विषय को लेकर वैज्ञानिकों में बहस जारी है। कुछ कहते हैं के शनि का एक बड़ा उपग्रह था जो भटककर उसकी रोश सीमा के अन्दर आ गया और शनि के गुरुत्वाकर्षण से उसपर ऐसा ज़बरदस्त ज्वारभाटा बल पड़ा के उसके बाहरी (बर्फ़ीला) हिस्से टुकड़े-टुकड़े हो गए और छल्लों में बिखर गए और उसका अंदरी (पत्थरीला) हिस्सा शनि में गिरकर विलय हो गया। इस काल्पनिक उपग्रह का नाम उन्होंने वॅरिटैस डाला है, जो प्राचीन रोमन धर्म में एक देवी थी जो किसी परिस्थिति में भाग के एक कुँए में छुप गयी थी। दुसरे वैज्ञानिक कहतें हैं के ऐसा कुछ नहीं हुआ। इनका कहना है के जब सौर मण्डल का आदिग्रह चक्र हमारे सूरज और ग्रहों को जन्म दे रहा था, तो कुछ मलबा शनि के इर्द-गिर्द बच गया जो आगे चलकर उसके छल्लों के रूप में स्थाई हो गया। पहले मत के वैज्ञानिक कहते हैं के यह असलियत के छल्लों में ९९ प्रतिशत से भी अधिक बर्फ़ है उनके हक़ में एक निर्णायक बात है। विवाद जारी है।
छल्लों के भाग
शनि के छल्लों में कई छल्ले और दरारें सम्मिलित हैं। इन सब के नाम अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ ने निर्धारित किये हैं। इन्हें अन्दर से बाहर देखा जाए तो -
नाम | शनि के केंद्र से दूरी (किमी में) | चौड़ाई (किमी में) | टिपण्णी |
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डी छल्ला | 66,900 – 74,510 | 7,500 | |
सी छल्ला | 74,658 – 92,000 | 17,500 | |
बी छल्ला | 92,000 – 117,580 | 25,500 | इसे एक मुख्य छल्ला समझा जाता है; यह छल्ला काफ़ी घना है - ए और बी छल्ले सब से घने छल्ले हैं |
कैसीनी दरार | 117,580 – 122,170 | 4,700 | ए और बी छल्लों के बीच की यह दरार पृथ्वी से दूरबीन से देखी जा सकती है |
ए छल्ला | 122,170 – 136,775 | 14,600 | इसे एक मुख्य छल्ला समझा जाता है; यह छल्ला काफ़ी घना है - ए और बी छल्ले सब से घने छल्ले हैं |
रोश दरार | 136,775 – 139,380 | 2,600 | |
ऍफ़ छल्ला | 140,180 | 30 – 500 | |
जैनस/ऍपिमीथयस छल्ला | 149,000 – 154,000 | 5,000 | यह एक धुल से भरा हुआ छल्ला है और इसी छल्ले के अन्दर जैनस और ऍपिमीथयस नाम के दो उपग्रह शनि की परिक्रमा करते हैं |
जी छल्ला | 166,000 – 175,000 | 9,000 | |
मिथोनी छल्ला खंड | 194,230 | ? | इसमें मिथोनी नाम का उपग्रह परिक्रमा कर रहा है; यह एक धूलग्रस्त छल्ला है और अनुमान है के यह धुल मिथोनी से उड़ती है जब उसपर अंतरिक्ष से पत्थर गिरते हैं |
ऐन्थी छल्ला खंड | 197,665 | ? | इसमें ऐन्थी नाम का उपग्रह परिक्रमा कर रहा है; यह एक धूलग्रस्त छल्ला है और अनुमान है के यह धुल मिथोनी से उड़ती है जब उसपर अंतरिक्ष से पत्थर गिरते हैं |
पलीनी छल्ला | 211,000 – 213,500 | 2,500 | इसमें पलीनी नाम का उपग्रह परिक्रमा कर रहा है; यह एक धूलग्रस्त छल्ला है और अनुमान है के यह धुल मिथोनी से उड़ती है जब उसपर अंतरिक्ष से पत्थर गिरते हैं |
ई छल्ला | 180,000 – 480,000 | 300,000 | यह सबसे बाहरी छल्ला माना जाता था और बहुत ही चौड़ा है |
फ़ीबी छल्ला | ~4,000,000 – >13,000,000 | यह छल्ला पहली दफ़ा २००९ में देखा गया; इसमें फ़ीबी नाम का उपग्रह परिक्रमा कर रहा है; यह एक बहुत ही कमज़ोर छल्ला है जिसमें बिलकुल हलकी-हलकी धुल मौजूद है |
सी छल्ले, कैसीनी दरार और ए छल्ले के अन्दर और भी विभाग हैं - यानि उनको नज़दीकी से देखा जाए तो उनमें भी उप-छल्ले और उप-दरारें नज़र आती हैं।