विन्ध्याचल पर्वत शृंखला
विन्ध्य पर्वतमाला | |
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Vindhyachal, Vindhyas विन्ध्याचल | |
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उच्चतम बिंदु | |
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नामकरण | |
शब्दउत्पत्ति | "बाधक" या "शिकारी" (संस्कृत) |
भूगोल | |
देश | साँचा:enum |
राज्य | साँचा:enum |
क्षेत्र | साँचा:enum |
जिला | साँचा:enum |
बस्ती | साँचा:enum |
निर्देशांक परास | साँचा:if empty |
सीमा निर्माण | साँचा:enum |
उपविभाग | साँचा:enum |
टोपोग्राफिक नक्शा | साँचा:if empty |
चट्टान पुरातनता | साँचा:if empty |
चट्टान प्रकार | साँचा:enum |
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विन्ध्याचल (Vindhyachal) भारत के पश्चिम-मध्य भाग में स्थ्ति प्राचीन गोलाकार पर्वतों की एक पर्वतमाला है। यह कई पेचदार खंडों में बंटी हुई है। ऐतिहासिक रूप से इसे उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच का विभाजक माना जाता है।[१][२]
भूवैज्ञानिक दृष्टि से विन्ध्याचल एक पर्वतमाला नहीं, बल्कि मध्य भारत की अनेक पर्वतमालाओं का ऐतिहासिक सामूहिक नाम है, जिनमें सतपुड़ा पर्वतमाला भी गिनी जाती है। आधुनिक काल में इसे अक्सर मुख्य रूप से उन्हीं ऊँचाईयों की कागार को माना जाता है जो मध्य प्रदेश राज्य में नर्मदा नदी से उत्तर में उस के समांतर चलती है, हालांकि उस से जुड़ी हुई कुछ अन्य पहाड़िया भी इसमें गिनी जाती हैं। इस परिभाषा में यह पर्वतमाला पश्चिम में गुजरात, उत्तर में उत्तर प्रदेश व बिहार, मध्य में मध्य प्रदेश और पूर्व में छत्तीसगढ़ तक विस्तारित है।[३][४]
नाम
अमरकोश में प्राप्त एक व्याख्या के अनुसार "विन्ध्य" शब्द संस्कृत के "वैन्ध" शब्द से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ "बाधा डालना" या रोकना है। एक कथा के अनुसार विन्ध्य कभी सूर्य का मार्ग रोकते थे, जिस से उनका नाम पड़ा।[५] रामायण में वाल्मीकि ने कहा कि विन्ध्य बिना रूके ऊँचाई पकड़ते जा रहे थे, जिस से सूर्य का मार्ग रूक सकता था, और फिर महर्षि अगस्त्य के आदेश पर उनका बढ़ना बंद हुआ।[६] एक अन्य कथा के अनुसार "विन्ध्य" का अर्थ "शिकारी" है और यह उन शिकारी-फ़रमर जनजातियों पर आधारित है जो कभी इस क्षेत्र में बसा करती थीं।[१]
पहचान
इस शृंखला का पश्चिमी अंत गुजरात में पूर्व में वर्तमान राजस्थान व मध्य प्रदेश की सीमाओं के नजदीक है। यह शृंखला भारत के मध्य से होते हुए पूर्व व उत्तर से होते हुए मिर्ज़ापुर में गंगा नदी तक जाती है। इस शृंखला के उत्तर व पश्चिम का इलाका रहने लायक नहीं है जो विन्ध्य व अरावली शृंखला के बिच में स्थित है जो दक्षिण से आती हुई हवाओं को रोकती है। विंध्या में सबसे प्रसिद्ध हैं यहाँ के सफ़ेद शेर।यह परतदार चट्टानों का बना हुआ है। यह पर्वतमाला उत्तर भारत को दक्षिण भारत से अलग करता है।
यह गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार ,झारखण्ड मे फैली हुई है मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में फेले इसके भू-भाग को भारनेर की पहाड़ीया कहा जाता है विंध्यांचल का पूर्वी हिस्सा जो सतपुड़ा पहाड़ों से आकर मिलता है उस पर्वत को मैकाल की पहाड़ी कहते हैं। अमरकंटक विध्यांचल पर्वत श्रृंखला की सबसे ऊॅची जगह है, इस चोटी की ऊॅचाई समुद्र तल से 3438 फीट है। झारखण्ड में भी पारसनाथ की पहाड़ीयो को इसी का हिस्सा माना जाता है। केमुर श्रैणी भी इसी का हिस्सा मानी जाती है। पूर्व में इसकी सीमा छोटा नागपुर पठार से लगती है।
नदियाँ
विन्ध्याचल के पर्वतों से कई महत्वपूर्ण नदियाँ उत्पन्न होती हैं, जैसे कि:
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ अ आ साँचा:cite book
- ↑ साँचा:cite book
- ↑ साँचा:cite book
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite book
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- Infobox mountain using Wikidata value for highest
- Infobox mountain using Wikidata value for elevation system
- Infobox mountain using Wikidata value for prominence
- Infobox mountain using Wikidata value for isolation
- Infobox mountain using Wikidata value for isolation parent
- भारत की पर्वतमालाएँ
- प्राचीन भारत के पर्वत
- मध्य प्रदेश के पर्वत
- छत्तीसगढ़ के पर्वत
- गुजरात के पर्वत
- उत्तर प्रदेश का भूगोल
- बिहार के पर्वत