लोकार्ड का विनिमय सिद्धांत
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लोकार्ड एक्सचेंज प्रिन्सिपल
लोकार्ड एक्सचेंज प्रिन्सिपल की संकल्पना डॉ एड्मोंद लोकार्ड(१८७७-19६६) ने की थी। लोकार्ड का अनुमान था की हर बार जब आप किस अन्य व्यक्ति, स्थान, या किसी भी अन्य चीज़ के संपर्क में आते हैं, परिणाम स्वरुप आप छोटे छोटे सबूतों का आदान प्रदान करते हैं। डॉ एड्मोंद यह मानते थे की, एक अपराधी जहाँ भी कदम रखे, वह जो कुछ भी छूता है, इस प्रक्रिया में वह बहुत कुछ छोड़ देता है, चाहे अनजाने में ही। यह सबूत उनके खिलाफ एक मूक गवाह के रूप में काम करता है। इतना ही नहीं उसकी उंगलियों के निशान या उसके पैरों के निशान के साथ साथ उनके बाल, उसके कपड़े से फाइबर, टुटा हुआ गिलास का टुकड़ा, उपकरण मार्क वह छोड़ देता है , रंग वह खरोंच , खून या वीर्य वह जमा या एकत्र करता है। इन सभी से अधिक का, उसके खिलाफ मूक गवाह हैं। मनुष्य तो गवाह के तौर पे गलतियाँ क्र भी सकते हैं, परन्तु ये मूक गवाह कभी गलत अंदेशा नहीं दे सकता क्यूंकि यह क्षण के उत्साह से भ्रमित नहीं होता। भौतिक साक्ष्य गलत नहीं हो सकता , यह अपने आप झूठ बोला नहीं करते हैं , यह पूरी तरह से अनुपस्थित नहीं हो सकता है। केवल मानव विफलता इसे खोजने के लिए , अध्ययन और यह समझते हैं, अपने मूल्य कम कर सकते हैं।