लाचुंग
साँचा:if empty Lachung | |
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लाचुंग का एक दृश्य | |
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निर्देशांक: साँचा:coord | |
देश | साँचा:flag/core |
प्रान्त | सिक्किम |
ज़िला | उत्तर सिक्किम ज़िला |
ऊँचाई | साँचा:infobox settlement/lengthdisp |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | २,४९५ |
• घनत्व | साँचा:infobox settlement/densdisp |
भाषा | |
• प्रचलित | नेपाली, लेपचा, लिम्बू , सिक्किमी, नेपालभाषा, |
लाचुंग (Lachung) भारत के सिक्किम राज्य के उत्तर सिक्किम ज़िले में स्थित एक गाँव है। यह लाचुंग नदी और लाचेन नदी के संगमस्थल पर बसा हुआ है, जो तीस्ता नदी की उपनदियाँ हैं।[१][२]
विवरण
लाचुंग ९,६०० फुट की ऊंचाई पर लाचेन व लाचुंग नदियों के संगम पर स्थित है। ये नदियां ही आगे जाकर तीस्ता नदी में मिल जाती हैं। यह राज्य कि राजधानी गंगटोक से १२५ किमी कि दूरी पर स्थित है। इसे सिक्किम के सबसे सुन्दर ग्राम के रूप में ख्याति प्राप्त है। इसे यह दर्जा ब्रिटिश घुमक्कड़ जोसेफ डॉल्टन हुकर ने १८५५ में प्रकाशित हुए द हिमालयन जर्नल में दिया था। लेकिन जोसेफ डाल्टन के उस तमगे के बिना भी यह ग्राम मनोहारी है।
पर्यटन
लाचुंग लगभग ३,२०० मीटर कि ऊंचाई पर स्थित है। इतनी ऊंचाई पर ठण्ड तो बारहमासी होती है। लेकिन बर्फ गिरी हो तो यहां की सुन्दरता को नया ही आयाम मिल जाता है, जिसकी फोटो उतारकर आप अपने ड्राइंगरूम में सजा सकते हैं। इसीलिए लोग यहां सर्दी के मौसम में भी खूब आते हैं। प्राकृतिक सुन्दरता के अतिरिक्त सिक्किम की विशेष बात यह भी है कि बर्फ गिरने पर भी उत्तर का यह क्षेत्र सुगम रहता है। बर्फ़ से ढकी चोटियां, झरने और चांदी सी झिलमिलाती नदियां यहां आने वाले पर्यटकों को स्तब्ध कर देती हैं। आम तौर पर लाचुंग को युमथांग घाटी के लिए बेस के रूप में प्रयुक्त होता है। युमथांग घाटी को पूर्व का स्विट्ज़रलैण्ड भी कहा जाता है।
क्या करें
युमथांग जाने के अलावा भी लाचुंग में बहुत कुछ किया जा सकता है। एक अलग पहाडी़ की चोटी पर लाचुंग मठ है। अद्भुत घाटी में यहां ध्यान लगाने बैठें तो मानो स्वयं को ही भूल जाएं। लगभग १२ हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित न्यिंगमापा बौद्धों के इस मठ की स्थापना १८०६ में हुई थी। इसके अलावा लाचुंग में हथकरघा केंद्र है जहां स्थानीय हस्तशिल्प का लिया जा सकता है। पास ही शिंगबा रोडोडेंड्रन (बुरांश) अभयारण्य है। सात-आठ हजार फुट से ऊपर की ऊंचाई वाले हिमालयी पेडों को रंग देने वाले बुरांश के पेडों को यहाँ बहुत निकट से महसूस किया जा सकता है। यहां रोडोडेंड्रन की लगभग २५ तरह की किस्में हैं। नेपाली, लेपचा और भूटिया यहां के मूल निवासी हैं। उनकी संस्कृति से मेल मिलाप का भी सुनहरा अवसर यहां मिलता है। कंचनजंघा राष्ट्रीय उद्यान भी इसी क्षेत्र में है। युमथांग से आगे युमे-सेमदोंग तक जाया जा सकता है। वह सडक का आखिरी सिरा है। वहां जीरो प्वाइंट १५,७०० फुट से ऊपर है। उस ऊंचाई पर खडे होकर, जहां हवा भी थोडी झीनी हो जाती है, आगे का नजारा देखना एक दुर्लभ अवसर है।
कब-कैसे-कहां
लाचुंग जाने का सर्वश्रेष्ठ समय अक्टूबर से मई तक है। अप्रैल-मई में यह घाटी फूलों से लकदक दिखाई देगी तो जनवरी-फरवरी में बर्फ से आच्छादित। हर समय की अलग सुंदरता है।
लाचुंग सिक्किम की राजधानी गंगटोक से ११७ किलोमीटर दूर है। गंगटोक से यह रास्ता जीप में पांच घंटे में तय किया जा सकता है। लाचुंग से युमथांग घाटी २४ किलोमीटर आगे है। युमथांग तक जीपें जाती हैं। रास्ता फोदोंग, मंगन, सिंघिक व चुंगथांग होते हुए जाता है। जीपें गंगटोक से मिल जाती हैं। ध्यान रहे कि सिक्किम में बाहर से आने वाले जीप-कार आगे का सफर तय नहीं कर सकते। इसलिए वाहन का जुगाड स्थानीय स्तर पर ही करना होगा।
भारत-चीन के बीच सीमा व्यापार शुरू होने के बाद से इस क्षेत्र में पर्यटकों की आवाजाही भी बढ़ी है। इससे पहले १९५० में तिब्बत पर चीन के अधिकार से पहले भी लाचुंग सिक्किम व तिब्बत के बीच व्यापारिक चौकी का काम करता था। बाद में यह क्षेत्र लंबे समय तक आम लोगों के लिए बंद रहा। अब सीमा पर स्थिति सामान्य होने के साथ ही पर्यटक यहां फिर से जाने लगे हैं। परिणामस्वरुप यहां कई होटल भी बने हैं। सस्ते व महंगे, दोनों प्रकार के होटल मिल जाएंगे। होटलों की बुकिंग गंगटोक से ही करा लेना सही रहता है।
सर्दियों में सिक्किम
सिक्किम बाकी हिमालयी राज्यों की तुलना में अधिक शांत है। प्रति वर्ष गंगटोक में दिसंबर में फूड एंड कल्चर उत्सव होता है। जनवरी में मकर संक्रांति को यहां माघे संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। तीस्ता व रिंगित नदियों के संगम पर यहां बड़ा मेला लगता है जिसमें बडी संख्या में स्थानीय लोग व पर्यटक सम्मिलित होते हैं। इसके अतिरिक्त अलग-अलग बौद्ध मठों के भी अपने-अपने आकर्षक धार्मिक आयोजन होते हैं।
चित्र दीर्घा
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ "Sikkim Development Report," Planning Commission, Government of India, Academic Foundation, 2008, ISBN 9788171886685