रोहतांग दर्रा
साँचा:infobox रोहतांग दर्रा (Rohtang Pass) भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य में कुल्लू घाटी और लाहौल और स्पीति घाटियों के बीच 3,980 मीटर (13,058 फुट) की ऊँचाई पर स्थित एक हिमालय का दर्रा है। यह हिमालय की पीर पंजाल श्रेणी के पूर्वी भाग में मनाली से 51 किमी दूर है। यह पूरे वर्ष हिमग्रस्त रहता है। हिमाचल को लद्दाख़ से जोड़ने वाला मनाली लेह राजमार्ग इस दर्रे से गुज़रता है।[१][२]
विवरण
यह दर्रा मौसम में अचानक अत्यधिक बदलावों के कारण भी जाना जाता है। इसे लाहोल और स्पीति जिलों का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। पूरा वर्ष यहां बर्फ की चादर बिछी रहती है। राज्य पर्यटन विभाग के अनुसार वर्ष 2008 में करीब 100,000 विदेशी पर्यटक यहां आए थे।साँचा:citation needed यहाँ से हिमालय श्रृंखला के पर्वतों का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है। बादल इन पर्वतों से नीचे दिखाई देते हैं। यहाँ ऐसा नजारा दिखता है, जो पृथ्वी पर बिरले ही स्थानों पर देखने को मिले. रोहतांग दर्रे में स्कीइंग और ट्रेकिंग करने की अपार संभावनाएँ हैं। हर साल यहाँ हजारों की संख्या में पर्यटक इन आकर्षक नजारों का लुत्फ लेने और साहसिक खेल खेलने आते हैं। रोहतांग-दर्रा जाते हुए ब्यास नदी के बाएं किनारे पर एक छोटा सा दर्शनीय गांव है, वशिष्ठ.रोहतांग-दर्रा जाते हुए, मनाली से 12 कि॰मी॰ दूर कोठी एक सुंदर दृश्यावली वाला स्थान है। हर साल यहाँ हजारों की संख्या में पर्यटक इन आकर्षक नजारों का लुत्फ लेने और साहसिक खेल खेलने आते हैं।
पर्यटन हेतु अनुकूल समय जून से अक्टूबर है। वेद ब्यास ऋषि मंदिर समीप है। इसी दर्रे से ब्यास नदी का उदगम हुआ है। ब्यास कुंड ब्यास नदी के उदगम का स्थान है। वहां के कुंड के पानी का स्वाद का वर्णन शब्दों में संभव ही नहीं है। शायद अमृत का स्वाद ऐसा ही होता होगा?यह कुंड वेद ब्यास ऋषि के मंदिर में स्थित है। 'ब्यास नदी' कुल्लू - मनाली ही नहीं, वरन फिरोजपुर में 'हरी का पटन[?]' की नदी में मिलकर पंजाब और सतलुज नदी में मिल कर पाकिस्तान की ज़मीन को भी हरा भरा करती है फिर अरब सागर में मिल जाती है। इस नदी की कुल लम्बाई ४६० किलोमीटर है। कहते हैं कि लाहोल -स्पीती और कुल्लू खेत्र आपस में अलग थे तब इन्हें जोड़ने के लिए स्थानीय लोगों ने यहाँ एक मार्ग बनाने के लिए अपने इष्ट देव भगवान शिव की आराधना की .तब भगवान शिव ने भृगु तुंग पर्वत को अपने त्रिशूल से काट कर यह भृगु -तुंग मार्ग यानि रोहतांग पास बनाया। इस दर्रे के दक्षिण में व्यास नदी का उदगम कुंड बना हुआ है। यहीं पर हिन्दू ग्रंथ महाभारत लिखने वाले महारिषी वेद व्यास जी ने तपस्या की थी। इसी लिए इस स्थान पर व्यास मंदिर बना हुआ है। सभी धाराएँ मनाली से १० किलोमीटर दूर पलाचन गाँव में मिल जाती हैं और ब्यास नदी बनाती हैं। पहले इस नदी को'अर्जीकी' कहा जाता था। महाभारत के बाद इस नदी का नाम ब्यास नदी पड़ा।
प्रदूषण की समस्या
पर्यटकों की बढ़ती संख्या के कारण इस क्षेत्र में गाड़ियों की आवाजाही भी बढ़ रही है। यह भी प्रदूषण बढ़ाने में एक कारक सिद्ध हो रही हैं यहाँ के स्थानीय वैज्ञानिक जेसी कुनियाल के मुताबिक पूरे सीजन में 10000 गाड़ियाँ यहाँ से गुजर चुकी होती हैं व्यस्त समय में यहाँ से प्रतिदिन 2000 किलो कचरा निकलता है तो यहाँ के वातावरण को खराब कर रहा है। पर्यावरणविदों के अनुसार अगर स्थिति नहीं बदली तो इस क्षेत्र को गंभीर नुकसान हो सकता है।
मौसम की समस्या
जब भी बर्फ के कारण इस मार्ग को बंद कर दिया जाता है।[अक्सर नवम्बर से अप्रैल तक].तब इस जिले में रहने वाले लगभग ३० हज़ार निवासी दुनिया से कट जाते हैं। रोहतांग दर्रा बंद होने का सबसे ज्यादा असर स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ता है। हेलीकॉप्टर से ही आवागमन संभव हो पाता है और जब मौसम खराब हो तब यह भी संभव नहीं हो पता। अक्सर ५-६ महीने के लिए ऐसी स्थिति हो जाती है, सोचिये वहां जीवन कितनी कठिनाई में गुजरता होगा.उन सभी दिनों राज्य सरकार सब्सिडी पर राशन देती है।
चित्रदीर्घा
रोहतांग से लेह-मनाली राजमार्ग का दृश्य
सर्दियों में लेह-मनाली राजमार्ग
मई 2009 में लेह-मनाली राजमार्ग के किनारे ढाबे
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ "Himachal Pradesh, Development Report, State Development Report Series, Planning Commission of India, Academic Foundation, 2005, ISBN 9788171884452
- ↑ "Himachal Pradesh District Factbook," RK Thukral, Datanet India Pvt Ltd, 2017, ISBN 9789380590448