ल मार्श द ल'एम्परर
ल मार्श द ल'एम्परर (फ़्रांसिसी: La Marche de l'empereur) लूक जेकट कृत अकादमी पुरुस्कार से सम्मानित वृत्तचित्र है, जिसमे एंपरर पैंग्विंस की दुर्गम यात्रा का वृत्तांत सुनाया है। नेशनल ज्याग्राफ़िक सोसाईटी और वार्नर इन्डिपेंडेन्ट पिक्चर्स इसके सह निर्माता हैं।
यह फ़िल्म एम्परर पेंग्विंस की सालाना अन्टार्कटिक यात्रा का चित्रण है। पतझड में पांच या अधिक वर्ष की आयू के सभी वयस्क पेंग्विंन्स अपने पैतृक प्रजनन स्थल की ओर पैदल चल पडने के लिए, अपने सामान्य निवासस्थल समुद्र से निकल सतह पर आ जाते हैं।
फ़्रांस के वैज्ञानिक अड्डे के आस-पास किए गए इस फ़िल्म के चित्रण में एक वर्ष का समय लगा।
फ़िल्म के अंग्रेजी भाषा के संस्करण में कथा अमरीकी अभिनेता मॉर्गन फ़्रीमन ने कही थी। अमिताभ बच्चन इस कथा के हिंदी संस्करण में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरेंगे। वृत्तचित्र के तमिल और तेलुगु संस्करण भी बन रहे हैं। लूक जेकट की यह कृति व्यावसायिक रूप से सर्वाधिक सफ़ल वृत्तचित्रों में से एक है और इसने दर्शकों को बहुत प्रभावित किया है। भारत में हिंदी संस्करण के अधिकार सुनील दोषी की हेंड्मेड फ़िल्म्स के पास होंगे। अमरीकी बाक्स आफ़िस पर फ़िल्म नें $७७,४१३,०१७ का व्यवसाय किया है।
कथा
एम्परर पेंग्विन के प्रजनन स्थल के फ़ायदे हैं। ये कठोर बर्फ़ पर है, इसलिए बर्फ़ के इतना नर्म होने का खतरा नहीं की झुंड को सहारा ना दे सके या चूजे जलरोधी आवरण विकसित करने से पहले ही पानी में गिर जाएं। यह ३०० किमी प्रति घंटे तक की तेज की गति से बहने वाली बर्फ़ीली हवाओं से बचे हुए संरक्षित क्षेत्र में है।
अंटार्कटिक ग्रीष्म के प्रारंभ में प्रजनन स्थल पानी से मात्र कुछ मीटर की दूरी पर होता है, जहां पेंग्विंन्स खा पी सकते हैं। लेकिन ग्रीष्म के अंत तक प्रजनन स्थल पानी और लेपर्ड सील जैसे शिकारीयों से से १०० किमी दूर हो जाता है। फ़िर भी, संतानोत्पत्ती की प्रक्रिया में हिस्सा ले सकने वाले सारे पेंग्विंन अधिकतर चलते हुए और कभी कभी फ़िलसते हुए अपने प्रजनन स्थल पर पहुंचने का प्रयास करते हैं।
पेंग्विंन्स गंभीर किस्म के एक पत्निक जीव हैं मतलब एक साल के दौरान एक पत्निक. यह व्यव्हारिक है - मादा एकमात्र अंडा देती है और चूजे के बचने के लिए दोनो अभिभावकों का सहयोग जरूरी होता है। अंडा देने के बाद मादा को उसे जमीन से छुआए बिना नर को देना होता है। यदी अंडा कुछ पल भी खुले में रह जाए तो भीषण ठंड उसको नष्ट कर देगी। नर को अंडे की देखभाल करना होती है ताकी मादा वापस समुद्र (जो और दूर हो चुका है) में जा कर खा पी सके और वापस लौटते अपने चूजे के लिए अतिरिक्त भोजन भी ला सके। मादा ने दो माह से कुछ खाया नहीं होता और जब तक वो संतती स्थल छोडती है अपने भार का एक तिहाई गंवा चुकी होती है।
और दो महीनों के लिए, नर अपने अमूल्य अंडे पैरों पर उठाए एक साथ गोलबंद हो रहते हैं; उसे एक बार भी गिरने नहीं देते। इस समय ये -६२ डिग्री सेल्सियस (-८० डिग्री फ़े.) के तापमान का सामना करते हैं और उनके जल का एक मात्र साधन संतती स्थल पर गिरने वाला पाला होता है। जब चूजे निकलते हैं तब नर के पास उन्हें खिलाने के लिए बहुत थोडा सा भोजन होता है और यदी मादा शीघ्र ना लौटें तो उन्हें अपने चूजे को छोड़ कर स्वयं कुछ खाने समुद्र तक जाना होता है। मादाओं के लौटने तक नर अपने वजन के आधे रह जाते हैं और चार माह से उन्होंने कुछ नहीं खाया होता।
किसी चूजे की मौत बहुत दुखान्तक घटना होती है लेकिन फ़िर उसके अभिभावक भोजन की खोज में बचे हुए प्रजनन के मौसम में वापस समुद्र की ओर चल पडते हैं। कभी कभी एक अभिभावक बच्चे को छोड़ कर जा चुकता है और अब बच्चा पूरी तरह से समुद्र से दूसरे अभिभावक के लौटने पर निर्भर हो जाता है, जो उसे उसकी अनूठी आवाज़ से पहचान लेता है। बहुत से अभिभावक अपनी यात्रा के दौरान शिकारी पशुओं के हाथ मारे जाते हैं और संतती स्थल पर उनका चूजा संकट में आ जाता है।
अभिभावकों को अपने चूजे की चार माह तक देखभाल करनी होती है, लगातार समुद्र से आते जाते ताकी वे अपने नन्हे को भोजन ला कर देते रह सकें। जैसे जैसे बसंत आता है यात्रा सुगम होती जाती है तब अंतत: अभिभावक चूजे को उसके अपने भोजन का प्रबंध स्वयं करने के लिए छोड़ देते हैं।
इन्हें भी देखें
- en:Farce of the Penguins अँगरेज़ी विकीपिडिया पे फ़ार्स आफ़ द पेंग्विंस