बनी-ठनी

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साँचा:asboxकिशनगढ़ शैली 

किशनगढ़ शैली की सबसे प्रमुख विशेषता है नारी सौंदर्य, स्त्रियों के चेहरे पतले और कोमल बनाए गए हैं और नेत्र कमल् खंजन के बनाए गए हैं और नेत्रों की काली रेखा एकांकी और बढ़ती बनाई गई है अधर कमल के समान लाल है और अधरों के किनारे ऊपर की और चढ़े हुए बनाए गए हैं जो इस शैली की अपनी विशेषता है निष्कर्ष किशनगढ़ शैली की नारी में स्थानीय नारी की छवि है|

बानी थानी पेंटिंग
किशनगढ़ चित्र शैली को उत्कृष्ट स्वरूप प्रदान करने का श्रेय तीन व्यक्तियों को है प्रथम कवि चित्रकार भक्त और कला प्रेमी राजा सावंत सिंह जिनके आश्रय में यह कला उत्कर्ष को प्राप्त हुई  दूसरी सावंत सिंह की प्रिया बनी ठनी एवं तीसरे इसके चित्रकार मोरध्वज निहालचंद इस प्रकार सन 1735 ईस्वी से 1770 ईस्वी तक लगभग 3 दशक की अल्प अवधि में ही किशनगढ़ की कलात्मक गतिविधियां इस तरह खिल उठी की असाधारण सौंदर्य वाली कृतियों का निर्माण हुआ| नागरी दास उपनाम से प्रसिद्ध द्वितीय महाराजा सावंत सिंह की प्रिया बनी ठनी अपने अद्वितीय रूप सौंदर्य के कारण रूप चित्रण का आदर्श बन गई|  स्वयं कवियत्री एवं कला प्रेमिका होने के साथ-साथ सावंत सिंह की प्रिया होने में अपने आराध्य राधा देवी को प्राप्त कर लिया नागरीदास की कविताओं को आधार बनाकर बनी ठनी के रूप सौंदर्य को चित्रित करने का श्रेय चित्रकार मोरध्वज निहालचंद को है|
आज किशनगढ़ कि यह बणी-ठणी चित्रकला शैली पुरे विश्व में प्रसिद्ध है। इसको भारत (राजस्थान) की मोनालिसा भी कहा जाता है। 
दूसरी सावंत सिंह की प्रिया बनी ठनी एवं इसके चित्रकार मोरध्वज निहालचंद तीसरे निहालचंद द्वारा चित्रित नागरी दास का काव्य चित्रण 1735 से 1757 ईस्वी के बीच का है
बनी-ठनी

बनी-ठनी या (बणी-ठणी) एक भारतीय चित्रकला है जो किशनगढ़ चित्रकला से सम्बन्धित है इनकी रचना निहाल चन्द ने की थी। इसको भारत (राजस्थान) की मोनालिसा भी कहा जाता है। बनी-ठणी तो राजस्थानी शब्द है , इसका हिन्दी में मतलब सजी-धजी होता है।यह स्वयं रसीक बिहारी के नाम से कविता करती थी। [१] इन्हें आगे लवलीज,उत्सव,प्रिया व नागर रमणी भी नाम मिले।

सन्दर्भ

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भारतीय चित्रकला का इतिहास -डॉ अविनाश बहादुर वर्मा

भारतीय चित्रकला एवं मूर्तिकला का इतिहास -डॉ रीता प्रतापसाँचा:cat main