प्रेरणी मोटर
प्रेरणी मोटर (इण्डक्शन मोटर) प्रत्यावर्ती धारा से चलने वाली मोटर है जिसके रोटर की कोणीय चाल स्टेटर वाइण्डिंग द्वारा पैदा किये गये घूर्णी चुम्बकीय क्षेत्र की कोणीय चाल से कम होती है। इसी कारण इस मोटर को 'अतुल्यकालिक मोटर' (asynchronous motor) कहा जाता है (तुल्यकालिक मोटर, देखें)। इसे 'प्रेरण मोटर' इस कारण कहा जाता है क्योंकि इसके रोटर में प्रेरण के द्वारा धारा उत्पन्न होती है क्योंकि रोटर तथा घूर्णी चुम्बकीय क्षेत्र की चाल अलग-अलग होती है।
यह मोटर सबसे अधिक उपयोग में आता है जिसके कारण इसे उद्योगों का वर्कहॉर्स कहते हैं। इसमें घिसने वाला कोई अवयव नहीं है जिससे यह बिना मरम्मत के बहुत दिनो तक चल सकता है। यह कई प्रकार का होता है-
- तीन फेजी प्रेरण मोटर
- स्क्वैरेल केज
- स्लिप-रिंग
- एक फेजी प्रेरण मोटर
- स्प्लिट-फेज प्रेरण मोटर (या Permanent-split capacitor motor))
- कैपेसिटर-स्टार्ट प्रेरण मोटर,
- कैपेसिटर-स्टार्ट कैपेसिटर रन प्रेरण मोटर,
- रेसिस्टैंस स्प्लिट-फेज प्रेरण मोटर,
- शेडेड पोल प्रेरण मोटर (Shaded pole induction motor)
घरों में सामान्य कार्यों एवं कम शक्ति के लिये प्रयुक्त अधिकांश मोटरें एक-फेजी प्रेरण मोटर ही होतीं हैं इन्हें फ्रैक्शनल हॉर्शपॉवर मोटर भी कहते हैं। उदाहरण के लिये पंखों, धुलाई की मशीनों के मोटर आदि।
परिचय
प्रत्यावर्ती धारा मोटरों में भी दिष्ट धारा मोटरों की भाँति ही क्षेत्रकुंडलियाँ तथा आर्मेचर होते हैं, परंतु कुछ विभिन्न रूप में। इनमें दो मुख्य भाग होते हैं : एक तो स्टेटर (stator), जो स्थिर रहता है और दूसरा रोटर जो घूमता है। प्रत्यावर्ती धारा मोटरें भी विभिन्न प्ररूपों के होते हैं।
सबसे-सामान्य प्रत्यावर्ती धारा मोटर प्रेरण मोटर (induction motor) है, जो प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है। प्रेरण मोटरों में स्टेटर कुंडलन त्रिकला संभरण से संबद्ध होता है, जिसके कारण एक घूर्णी चुंबकीय क्षेत्र (rotating magnetic field) उत्पन्न होता है। रोटर के चालक आपस में त्रिकलीय कुंडलन के रूप में भी हो सकते हैं, जो दोनों सिरों पर ताँबे के वलय द्वारा लघु परिपथित (short circuited) हों। ऐसी रचना वस्तुत:, गिलहरी के पिंजरे की भाँति होती है। अत: ऐसे मोटरों को सामान्यत: 'गिलहरी पंजर प्रेरण मोटर', अथवा केवल 'पंजर मोटर' ही कहते हैं। ये मोटर बनावट में बहुत सुदृढ़ होते हैं तथा साथ ही साथ सरल तथा सस्ते भी होते हैं। इनकी दक्षता भी उसी आकार के दूसरे मोटरों की अपेक्षा ऊँची होती है। अतएव इन मोटरों का प्रयोग प्राय: सार्वत्रिक है। परंतु इन मोटरों का प्रचालन, एक प्रकार से, रोटर की बनावट से अनुसार निश्चित होता है और उसमें आवश्यकता के अनुसार परिवर्तन नहीं किया जा सकता। इनका आरंभिक बलआघूर्ण (starting torque) बहुत कम होता है, जिसे सुधारने के लिए रोटर परिपथ में कुछ प्रतिरोध निविष्ट (insert) करना आवश्यक होता है, परंतु स्थिर प्ररूप की रचना के कारण ऐसा संभव नहीं हो पाता। साथ ही स्थायी तौर पर रोटर चालकों का प्रतिरोध भी अधिक नहीं किया जा सकता, क्योंकि ऐसा करने पर हानि अधिक बढ़ जाएगी और मोटर की दक्षता घट जाएगी। अधिक आरंभिक, बलाघूर्ण प्राप्त करने के लिए द्विपंजर (double cage) मोटर प्रयुक्त किए जाते हैं, जिनमें एक के स्थान पर दो पंजर होते हैं। रोटर के खाँचों के प्ररूप तथा उनकी स्थिति के अनुसार प्रचालन लक्षणों में कुछ विभिन्नता प्राप्त की जा सकती है और उन्हें विविध प्रयोजनों के योग्य बनाया जा सकता है।
तुल्यकालिक चाल
किसी एसी मोटर (प्रेरण मोटर, तुल्यकालिक मोटर आदि) की तुल्यकालिक चाल <math>n_s</math> से आशय उसके स्टेटर के घूर्णी चुम्बकीय क्षेत्र की चाल से है। इसका मान निम्नलिखित सूत्र से निकाला जा सकता है-
- <math>n_s={120\times{f}\over{p}}</math> (RPM / चक्कर प्रति मिनट),
जहाँ <math>f</math> मोटर की सप्लाई की आवृत्ति (हर्ट्स में) तथा <math>p</math> चुम्बकीय ध्रुवों की संख्या है[१][२] उदाहरण के लिये, ५० हर्ट्ज की सप्लाई तथा, ६ पोल वाले तीन-फेजी मोटर के लिये <math>p</math> = 6 तथा <math>n_s</math> = 1,000 RPM
स्लिप
स्लिप <math>s</math> को प्रायः निम्नलिखित प्रकार से पारिभाषित किया जाता है-
- <math>s = \frac{n_s-n_r}{n_s}\,</math>
जहाँ <math>n_s</math> सिन्क्रोनस स्पीड, <math>n_r</math> रोटर की चाल[३][४] यदि रोटर सिन्क्रोनस चाल से घूम रही हो तो स्लिप का मान शून्य होगा, यदि रोटर बिल्कुल न चल रही हो तो स्लिप का मान १ होगा। मोटर द्वारा उत्पन्न बलाघूर्ण का मान उसके रोटर की स्लिप पर निर्भर करता है। जिसको 'स्लिप-टॉर्क वैशिष्ट्य' कहा जाता है। स्पष्ट है कि प्रेरण मोटर 'लगभग' स्थिर चाल पर चलते हैं। भार के साथ उनका चाल विचरण बहुत कम होता है। अत:, जिन भारों के लिए स्थिर चाल की आवश्यकता होती है, वहाँ वे बहुत उपयोगी होते हैं। परंतु जहाँ विचरणशील चाल की आवश्यकता हो, वहाँ पंजर मोटर सामान्यत: प्रयुक्त नहीं किए जाते। इनकी चाल तुल्यकालिक चाल से कुछ ही कम होती है, जो ध्रुव संख्या तथा आवृत्ति पर निर्भर करती है। अत: चाल विचरण करने के लिए या तो ध्रुव संख्या में परिवर्तन करना आवश्यक है, अथवा आवृत्ति का ही विचरण करना आवश्यक है।
आवृत्ति विचरण करने का तात्पर्य है कि अलग ऐसे संभरण की व्यवस्था करना जिसकी आवृत्ति बदली जा सके। इसके लिये आजकल चर आवृत्ति ड्राइव आ रहे हैं। ध्रुव संख्या को एक विशिष्ट अनुपात में, कुंडलन के संबंधन में परिवर्तन करके बदला जा सकता है, जैसे एक 4 ध्रुवी मोटर को 8 ध्रुवी अथवा 6 ध्रुवी मोटर में परिवर्तित करना संभव है। इस प्रकार इन ध्रुव संख्याओं के तत्संबंधी वेग भी प्राप्त किए जा सकते हैं। 50 चक्रीय आवृत्ति पर 4 ध्रुवी मोटर की तुल्यकालिक चाल 1,500 RPM और 6 ध्रुवी तथा 8 ध्रुवी का क्रमश: 1,000 तथा 750 RPM है। इस तरह ऐसी मोटर की ध्रुव संख्या में परिवर्तन कर, इनकी तत्संबंधी चाल प्राप्त की जा सकती है। पर ये केवल दो या तीन क्रमों में ही हो सकते हैं। इस विधि से विस्तृत परास में चाल विचरण प्राप्त करना संभव नहीं है। कुछ निश्चित क्रमों में चाल विचरण की एक दूसरी विधि "सोपानीपत नियंत्रण" (Cascade Control) कहलाती है। यह विधि बेलन मिलों (rolling mills) में अधिकतर प्रयुक्त की जाती है। विभिन्न प्रकार के मशीन औजारों (machine tools) में भी विचरणशील चाल की आवश्यकता होती है, परंतु उनमें सामान्यत:, चाल विचरण गीयर क्रमों को बदलकर किया जाता है।
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- A drawing of an induction motor
- साँचा:it Rotating magnetic fields: interactive
- Construct your squirrelcage electromotor स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। using povray