पठान
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पश्तून, पख़्तून (पश्तो: پښتانه, पश्ताना) या पठान (उर्दू:پٹھان) दक्षिण एशिया में बसने वाली एक लोक-जाति है। वे मुख्य रूप में अफ़्ग़ानिस्तान में हिन्दु कुश पर्वतों और पाकिस्तान में सिन्धु नदी के दरमियानी क्षेत्र में रहते हैं हालांकि पश्तून समुदाय अफ़्ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के अन्य क्षेत्रों में भी रहते हैं। पश्तूनों की पहचान में पश्तो भाषा, पश्तूनवाली मर्यादा का पालन और किसी ज्ञात पश्तून क़बीले की सदस्यता शामिल हैं।[१][२]
पठान जाति की जड़े कहाँ थी इस बात का इतिहासकारों को ज्ञान नहीं लेकिन संस्कृत और यूनानी स्रोतों के अनुसार उनके वर्तमान इलाक़ों में कभी पक्ता नामक जाति रहा करती थी जो संभवतः पठानों के पूर्वज रहें हों। सन् १९७९ के बाद अफ़्ग़ानिस्तान में असुरक्षा के कारण जनगणना नहीं हो पाई है लेकिन ऍथनोलॉग के अनुसार पश्तून की जनसँख्या ५ करोड़ के आसपास अनुमानित की गई है। पश्तून क़बीलों और ख़ानदानों का भी शुमार करने की कोशिश की गई है और अनुमान लगाया जाता है कि विश्व में लगभग ३५० से ४०० पठान क़बीले और उपक़बीले हैं। पश्तून जाति अफ़्ग़ानिस्तान का सबसे बड़ा समुदाय है।भारत मे कुछ पठान हिन्दू धर्म का पालन भी करते हैं, जो काकोरी क़बीले से तालुक रखते हैं,ये लोग पहले अफ़ग़ानिस्तान से पाकिस्तान में बसे,1947 में बंटवारे के वक़्त इनको भारत का रुख़ करना पड़ा
विवरण
पश्तून इतिहास 5 हज़ार या 6 हज़ार साल से भी पुराना है और यह अलिखित तरिके से पीढ़ी-दर-पीढ़ी चला आ रहा है। पख़्तून लोक-मान्यता के अनुसार यह जाती 'बनी इस्राएल' यानी यहूदी वंश की है। इस कथा के अनुसार पश्चिमी एशिया में असीरियन साम्राज्य के समय पर लगभग २,८०० साल पहले बनी इस्राएल के दस कबीलों को देश निकाला दे दिया गया था और यही कबीले पख़्तून हैं।
बनी इस्राएल होने के बारे में लिखाईयाँ
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। पख़्तूनों के बनी इस्राएल (अर्थ - इस्रायल की संतान) होने की बात सत्रहवीं सदी ईसवी में जहांगीर के काल में लिखी गयी किताब “मगज़ाने अफ़ग़ानी” में भी मिलती है। अंग्रेज़ लेखक और यात्री अलेक्ज़ेंडर बर्न्स ने अपनी बुख़ारा की यात्राओं के बारे में सन् १८३५ में भी पख़्तूनों द्वारा ख़ुद को बनी इस्राएल मानने के बारे में लिखा है। हालांकि पख़्तून ख़ुद को बनी इस्राएल तो कहते हैं लेकिन धार्मिक रूप से वह मुसलमान हैं, यहूदी नहीं। अलेक्ज़ेंडर बर्न ने ही पुनः १८३७ में लिखा कि जब उसने उस समय के अफ़ग़ान राजा दोस्त मोहम्मद से इसके बारे में पूछा तो उसका जवाब था कि उसकी प्रजा बनी इस्राएल है इसमें संदेह नहीं लेकिन इसमें भी संदेह नहीं कि वे लोग मुसलमान हैं एवं आधुनिक यहूदियों का समर्थन नहीं करेंगे। विलियम मूरक्राफ़्ट ने भी १८१९ व १८२५ के बीच भारत, पंजाब और अफ़्ग़ानिस्तान समेत कई देशों के यात्रा-वर्णन में लिखा कि पख़्तूनों का रंग, नाक-नक़्श, शरीर आदि सभी यहूदियों जैसा है। जे बी फ्रेज़र ने अपनी १८३४ की 'फ़ारस और अफ़्ग़ानिस्तान का ऐतिहासिक और वर्णनकारी वृत्तान्त' नामक किताब में कहा कि पख़्तून ख़ुद को बनी इस्राएल मानते हैं और इस्लाम अपनाने से पहले भी उन्होंने अपनी धार्मिक शुद्धता को बरकरार रखा था।[३] जोसेफ़ फ़िएरे फ़ेरिएर ने १८५८ में अपनी अफ़ग़ान इतिहास के बारे में लिखी किताब में कहा कि वह पख़्तूनों को बेनी इस्राएल मानने पर उस समय मजबूर हो गया जब उसे यह जानकारी मिली कि नादिरशाह भारत-विजय से पहले जब पेशावर से गुज़रा तो यूसुफ़ज़ई कबीले के प्रधान ने उसे इब्रानी भाषा (हीब्रू) में लिखी हुई बाइबिल व प्राचीन उपासना में उपयोग किये जाने वाले कई लेख साथ भेंट किये। इन्हें उसके ख़ेमे में मौजूद यहूदियों ने तुरंत पहचान लिया।
पश्तून क़बीले
पश्तून लोक-मान्यताओं के अनुसार सारे पश्तून चार गुटों में विभाजित हैं: सरबानी (سربانی, Sarbani), बैतानी (بتانی, Baitani), ग़रग़श्ती (غرغوشتی, Gharghashti) और करलानी (کرلانی, Karlani)। मौखिक परंपरा के अनुसार यह क़ैस अब्दुल रशीद जो समस्त पख्तूनो के मूल पिता माने जाते हैं उनके चार बेटों के नाम से यह चार क़बीले बने थे। इन गुटों में बहुत से क़बीले और उपक़बीले आते हैं और माना जाता है कि कुल मिलाकर पश्तूनों के ३५० से ४०० क़बीले हैं।[४][५] पख्तून क़बीले कई स्तरो पर विभाजित रहते हैं। त्ताहर (क़बीला) कई ख़ेल अरज़ोई या ज़ाई से मिल कर बना होता है। ख़ेल कई प्लारीनाओं से मिल कर बना होता है। प्लारीना कई परिवारों से मिल कर बना होता है, जिन्हें कहोल कहा जाता है। एक बड़े क़बीले में अक्सर कई दर्जन उप क़बीले होते हैं वे ख़ुद को एक दूसरे से जुड़ा हुआ मानते हैं। अपने परिवार के वंश व्रक्ष में उनसे संबन्ध बताते हैं यह इस उपक़बीले से सहयोग, प्रतिस्पर्धा, अथवा टकराव पर निर्भर करता है। पख्तू क़बीलाई व्यवस्था में काहोल सबसे छोटी इकाई होती है। इसमें १- ज़मन (बेटे) २- ईमासी (पोते) ३- ख़्वासी (पर पोते) ४- ख़्वादी (पर-पर पोते) होते हैं।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ The Pathan Borderland स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, James William Spain, Mouton, ... The most familiar name in the west is Pathan, a Hindi term adopted by the British, which is usally applied only to the people living east of the Durand ...
- ↑ Afghanistan: Glossary स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, British Library, ... Comes to mean 'Pathans' residing in Pakistan and Afghanistan. Divided into two main groups, the Abdalis (qv) and the Ghilzais (qv) ...
- ↑ An historical and descriptive account of Persia ... including a description of Afghanistan and Beloochistan स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, James Baillie Fraser, Oliver a. Boyd, 1834, ... According to their own traditions they believe themselves descended from the Jews ...
- ↑ A Historical Atlas of Afghanistan स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, Amy Romano, The Rosen Publishing Group, 2003, ISBN 978-0-8239-3863-6
- ↑ Profiles of Pakistan's Seven Tribal Agencies स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, Syed Saleem Shahzad