दुग्धपायन

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बिल्ली के बच्चों का स्तनपान

दुग्धपान या दुग्धस्रवन या लैक्टेशन, स्तन ग्रंथि से दूध निकलने, उस दूध को बच्चे को पिलाने की प्रक्रिया तथा एक माँ द्वारा अपने बच्चे को दूध पिलाने में लगने वाले समय को वर्णित करता है। यह प्रक्रिया सभी मादा स्तनपायी प्राणियों में होती है और मनुष्यों में इसे आम तौर पर स्तनपान या नर्सिंग कहा जाता है। अधिकांश प्रजातियों में माँ के निपल्स से दूध निकलता है; हालाँकि, प्लैटिपस (एक गैर-गर्भनालीय स्तनपायी प्राणी) के पेट की नलिकाओं से दूध निकलता है। स्तनपायी प्राणियों की केवल एक प्रजाति दयाक फ्रूट चमगादड़ में दूध उत्पन्न करना नर का एक सामान्य कार्य है। कुछ अन्य स्तनपायी प्राणियों में हार्मोन के असंतुलन की वजह से नर दूध उत्पन्न कर सकते हैं। इस घटना को नवजात शिशुओं में भी देखा जा सकता है (उदाहरण के लिए डायन का दूध (विचेज मिल्क))।

गैलक्टोपोइएसिस दूध उत्पादन को बनाये रखने को कहते हैं। इस चरण में प्रोलैक्टिन (पीआरएल) और ऑक्सीटोसिन की जरूरत पड़ती है।

प्रयोजन

लैक्टेशन का मुख्य कार्य जन्म के बाद बच्चों को पोषण और प्रतिरक्षा संरक्षण देना है। लगभग सभी स्तनधारियों में, लैक्टेशन बाँझपन की एक अवधि को जन्म देता है जो संतान के जीवित रहने के लिए इष्टतम जन्म अंतराल प्रदान करने का काम करता है।[१]

मानवी दुग्धपान

चित्र:Breastfeeding(milkfinal).png
जब बच्चा अपनी माँ के स्तनों को चूसता है, ऑक्सीटोसिन नामक एक हार्मोन दुग्ध को डक्ट्स (दुग्ध नलिकाएं) के माध्यम से एल्वियोली के रास्ते एरिओला के पीछे स्थित सैक्स (दुग्ध संग्रहण स्थान) में भेजता है, जहां से यह बच्चे के मुंह में जाता है।

हार्मोन संबंधी प्रभाव

गर्भावस्था के चौथे महीने (दूसरी और तीसरी तिमाही) से मादा या महिला का शारीर हार्मोन उत्पन्न करने लगता है जो स्तनों में दुग्ध नलिका तंत्र के विकास को उत्तेजित कर देता है:

  • प्रोजेस्टेरोन — यह वायुद्वार और पालि के आकार में होने वाली वृद्धि को प्रभावित करता है। जन्म के बाद प्रोजेस्टेरोन का स्तर गिरने लगता है। यह प्रचुर परिमाण में दूध उत्पादन की शुरुआत में तेजी लाता है।[२]
  • ओएस्ट्रोजेन — यह दूध नलिका तंत्र को बढ़ने और विशिष्ट रूप धारण करने में मदद करती है। प्रसव के समय ओएस्ट्रोजेन का स्तर भी गिर जाता है और स्तनपान के पहले कई महीनों तक इसका स्तर नीचे ही रहता है।[२] ऐसा सुझाव दिया जाता है कि स्तनपान कराने वाली माताओं को ओएस्ट्रोजेन आधारित जन्म नियंत्रण विधियों से बचना चाहिए क्योंकि एस्ट्रोजेन के स्तर में क्षणिक परिवर्तन से भी माता की दूध आपूर्ति में गिरावट आ सकती है।
  • फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हार्मोन अर्थात् कूप प्रेरक हार्मोन (एफएसएच)
  • ल्यूटीनाइजिंग हार्मोन (एलएच)
  • प्रोलैक्टिन — यह गर्भावस्था के दौरान वायुद्वारों की वृद्धि में योगदान करता है।
  • ऑक्सीटोसिन — यह जन्म के दौरान और उसके बाद और सम्भोग सुख के दौरान गर्भाशय की कोमल मांसपेशियों को सिकोड़ देता है। जन्म के बाद ऑक्सीटोसिन नलिका तंत्र में नवनिर्मित दूध को निचोड़ने के लिए वायुद्वार के चारों तरफ बैंड जैसी कोशिकाओं की कोमल मांसपेशियों की परत को सिकोड़ देता है। ऑक्सीटोसिन दूध निष्कासन प्रतिक्रिया या त्याग के लिए जरूरी है।
  • मानव गर्भनालीय लैक्टोजेन (एचपीएल) — गर्भावस्था के दूसरे महीने से गर्भनाल से काफी मात्रा में एचपीएल निकलने लगता है। यह हार्मोन जन्म से पहले स्तन, निपल और एरिओला अर्थात् चूसनी या निपल के आसपास गोल घेरे के विकास में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

गर्भावस्था के पांचवें या छठवें महीने तक स्तन दूध उत्पन्न करने के लिए तैयार हो जाते हैं। गर्भावस्था के बिना भी लैक्टेशन को प्रेरित किया जा सकता है।

लैक्टोजेनेसिस प्रथम चरण

गर्भावस्था के उत्तरार्ध में महिला या मादा के स्तन लैक्टोजेनेसिस के प्रथम चरण में प्रवेश करते हैं। ऐसा तब होता है जब स्तन में कोलोस्ट्रम (नीचे देखें) बनता है जो कि एक गाढ़ा और कभी-कभी पीले रंग का तरल पदार्थ है। इस चरण में प्रोजेस्टेरोन की अत्यधिक मात्रा की वजह से दूध उत्पादन में काफी रूकावट आती है। यह किसी चिकित्सीय चिंता का विषय नहीं है अगर अपने बच्चे को जन्म देने से पहले ही किसी गर्भवती महिला के स्तन से कोलोस्ट्रम निकलने लगे और यह भावी दूध उत्पादन का कोई संकेत भी नहीं है।

लैक्टोजेनेसिस द्वितीय चरण

जन्म के समय प्रोलैक्टिन का स्तर ऊंचा रहता है जबकि गर्भनाल के प्रसव के परिणामस्वरूप प्रोजेस्टेरोन, एस्ट्रोजेन और एचपीएल के स्तरों में अचानक गिरावट आ जाती है। उच्च प्रोलैक्टिन स्तर की मौजूदगी में प्रोजेस्टेरोन में अचानक गिरावट आने से लैक्टोजेनेसिस के द्वितीय चरण में काफी प्रचुर परिमाण में दूध उत्पन्न होने लगता है।

स्तन के उत्तेजित होने पर रक्त में मौजूद प्रोलैक्टिन का स्तर बढ़ने लगता है और लगभग 45 मिनट में काफी ऊपर चला जाता है और लगभग तीन घंटे बाद दूध पिलाने की अवस्था में आने से पहले इसका स्तर वापस नीचे गिर जाता है। प्रोलैक्टिन के निकलने से वायुद्वार की कोशिकाएं उत्तेजित हो जाती हैं जिससे दूध का निर्माण होने लगता है। प्रोलैक्टिन स्तन के दूध में भी चला जाता है। कुछ शोधों से पता चला है कि बहुत ज्यादा दूध उत्पादन के समय दूध में प्रोलैक्टिन का परिमाण बहुत अधिक होता है और जब स्तन दूध से भरा रहता है तब इसका परिमाण कम होता है और दो बजे से छः बजे सुबह तक इसके काफी ऊंचे स्तर में होने की सम्भावना रहती है।[३]

मुख्य रूप से इंसुलिन, थायरोक्सिन और कोर्टिसोल जैसे अन्य हार्मोन शामिल होते हैं लेकिन अभी तक उनकी भूमिकाओं के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिली है। हालाँकि जैव रासायनिक मार्करों से यह संकेत मिलता है कि लैक्टोजेनेसिस के द्वितीय चरण की शुरुआत बच्चे को जन्म देने के लगभग 30 से 40 घंटे के बाद होती है लेकिन माताओं को आम तौर पर अपने बच्चे को जन्म देने के 50 से 73 घंटे (2 से 3 दिन) तक स्तन के दूध से पूरी तरह भरे होने का एहसास ("स्तन में दूध आने की अनुभूति") नहीं होता है।

अपनी माँ के स्तन से दूध पीने वाले बच्चे को सबसे पहले दूध के रूप में कोलोस्ट्रम प्राप्त होता है। इसमें परिपक्व दूध की तुलना में काफी परिमाण में सफ़ेद रक्त कोशिकाएं और एंटीबॉडी होते हैं और विशेष रूप से इसमें इम्यूनोग्लोबुलिन ए (IgA) का स्तर ऊंचा रहता है जो बच्चे के अपरिपक्व आँतों की परत को ढंकने का काम करता है और बच्चे के तंत्र पर हमला करने से रोगाणुओं को रोकने में मदद करता है। स्रावी IgA से खाद्य एलर्जी को रोकने में भी मदद मिलती है।[४] जन्म के बाद पहले दो सप्ताह तक कोलोस्ट्रम के उत्पादन से धीरे-धीरे स्तन के दूध को परिपक्व होने का अवसर मिलता है।[२]

लैक्टोजेनेसिस तृतीय चरण

हार्मोनल एंडोक्राइन नियंत्रण तंत्र, गर्भावस्था और जन्म देने के बाद पहले कुछ दिनों के दौरान दूध उत्पादन को प्रेरित करती है। जब दूध की आपूर्ति अधिक मजबूत स्थिति में पहुँच जाती है तो ऑटोक्राइन (या स्थानीय) नियंत्रण तंत्र का कार्य शुरू होता है। इस चरण को लैक्टोजेनेसिस का तृतीय चरण कहते हैं।

इस चरण के दौरान स्तनों से जितना ज्यादा दूध निकलता है उन स्तनों में उतना ज्यादा दूध उत्पन्न होता है।[५][६] शोध से यह भी पता चला है कि पूरी तरह से स्तनों से जितना ज्यादा दूध निकलता है, दूध उत्पन्न होने की दर उतनी ही अधिक हो जाती है।[७] इस प्रकार दूध आपूर्ति पर इस बात का बहुत ज्यादा असर पड़ता है कि बच्चा कितनी बार दूध पीता है और स्तन से कितनी अच्छी तरह से दूध निकल पाता है। कम आपूर्ति की पहचान अक्सर निम्न बातों से की जा सकती है:

  • अगर पर्याप्त रूप से दूध पिलाया या निकाला नहीं गया हो
  • अगर शिशु प्रभावी ढंग से दूध नहीं पी सकता हो जिसके निम्न कारण हो सकते हैं:
    • जबड़े या मुँह के ढांचे में कोई कमी
    • दूध पिलाने का अनुचित तरीका
  • दुर्लभ मातृ एंडोक्राइन विकार
  • हाइपोप्लास्टिक स्तन ऊतक
  • शिशु में चयापचय या पाचन संबंधी अक्षमता जिससे वह पीए गए दूध को पचाने में असमर्थ हो
  • अपर्याप्त कैलोरी सेवन या मां का कुपोषण

दूध निष्कासन प्रतिक्रिया

ऑक्सीटोसिन हार्मोन के निकलने की वजह से दूध निष्कासन या त्याग प्रतिक्रिया का परिणाम देखने को मिलता है। ऑक्सीटोसिन स्तन के आसपास की मांसपेशियों को उत्तेजित कर देता है जिससे स्तन से दूध निकलने लगता है। दूध पिलाने वाली माताओं ने दूध पिलाते समय होने वाली अनुभूति का अलग-अलग वर्णन किया है। कुछ माताओं को मामूली झुनझुनी का एहसास होता है जबकि अन्य माताओं को खूब ज्यादा दबाव या हल्का दर्द/बेचैनी का एहसास होता है और ऐसी भी कुछ माताएं हैं जिन्हें कुछ अलग महसूस ही नहीं होता।

त्याग प्रतिक्रिया हमेशा खास तौर पर शुरू में संगत नहीं होती है। दूध पिलाने का विचार आने पर या किसी बच्चे की आवाज़ सुनाई देने पर यह रिफ्लेक्स अर्थात् प्रतिक्रिया उत्तेजित हो सकती है जिसकी वजह से न चाहते हुए भी दूध का रिसाव होने लगता है या उस वक्त भी दोनों स्तनों से दूध निकल सकता है जब शिशु किसी एक स्तन से दूध पी रहा होता है। हालाँकि, इस तरह की और अन्य प्रकार की समस्याएं अक्सर दूध पिलाना शुरू करने के दो सप्ताह के बाद दूर हो जाती हैं।साँचा:category handler[<span title="स्क्रिप्ट त्रुटि: "string" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।">citation needed] तनाव या चिंता की वजह से दूध पिलाने में कठिनाई हो सकती है।

खराब दूध निष्कासन प्रतिक्रिया के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे - घाव या दरारयुक्त निपल्स, शिशु से जुदाई, स्तन शल्य चिकित्सा का इतिहास, या पूर्व स्तन आघात से ऊतक क्षति. अगर किसी माता को दूध पिलाने में परेशानी होती हो तो उन्हें दूध निष्कासन प्रतिक्रिया में सहायक साबित होने वाले कई विभिन्न तरीकों से मदद मिल सकती है। इन तरीकों में शामिल हैं: किसी परिचित या आरामदायक स्थान में दूध पिलाना, स्तन या पीठ की मालिश, या किसी कपड़े या स्नान आदि के माध्यम से स्तन को गर्म करना।

आफ्टरपेन्स (बाद का कष्ट)

ऑक्सीटोसिन की वृद्धि से संभावित रूप से दूध निष्कासन प्रतिक्रिया के उत्तेजित होने के अलावा इसकी वजह से गर्भाशय में संकुचन भी हो सकता है। दूध पिलाते समय माताओं को इस तरह के संकुचन का एहसास हो सकता है जिसे आफ्टरपेन्स कहते हैं। इसमें ऐंठन जैसी छोटी-मोटी तकलीफ से लेकर संकुचन जैसी बहुत ज्यादा तकलीफ का भी एहसास हो सकता है और दूसरे एवं परवर्ती बच्चों के साथ हालत और गंभीर हो सकती है। कुछ महिलाओं के स्तन सूख और चटक जाते हैं और उनमें खुली दरारें भी पड़ जाती हैं और दूध पिलाने के दौरान उनसे खून भी निकल सकता है। निपल्स (चूचुक) और एरिओला (चूचुक के इर्दगिर्द गोल घेरा) पर लानोलिन मलने से इन समस्याओं से राहत मिल सकती है।[८]

गर्भावस्था के बिना दूध का निकलना, उत्तेजित करके दूध निकालना, फिर से दूध का निकलना

जो महिला गर्भवती नहीं है उस महिला में "कृत्रिम रूप से" और जानबूझकर दूध उत्पन्न किया जा सकता है। इसके लिए जरूरी नहीं है कि महिला गर्भवती हो और वह रजोनिवृत्ति के बाद की अवधि में भी यह काम अच्छी तरह कर सकती है। जो महिला कभी गर्भवती नहीं हुई है वह भी कभी-कभी दूध पिलाने लायक काफी परिमाण में दूध उत्पन्न करने में सक्षम होती है। इसे "प्रेरित लैक्टेशन" अर्थात् "उत्तेजित होने पर दूध का निकलना" कहते हैं। जिन महिलाओं ने पहले भी स्तनपान कराया है उनमें फिर से दूध का निकलना शुरू हो सकता है। इसे "रिलैक्टेशन" अर्थात् "फिर से दूध का निकलना" कहते हैं। इसी तरह से आम तौर पर एक पूरक नर्सिंग सिस्टम या कुछ अन्य प्रकार की पूरकता से शुरू करने वाली कुछ दत्तकग्राही माताएं स्तनपान करा सकती हैं। ऐसा माना जाता है कि दूध की संरचना में बहुत कम या कोई अंतर नहीं होता है चाहे दूध का निकलना कृत्रिम रूप से प्रेरित होने पर या गर्भावस्था के परिणामस्वरूप होता हो। [९][१०]

शारीरिक उत्तेजना और दवाओं द्वारा भी दूध निकल सकता है। सिद्धांततः, काफी धैर्य और दृढ़ता के साथ केवल निपल्स को चूस कर भी दूध निकाला जा सकता है। इसके लिए निपल्स को लगातार उत्तेजित करना पड़ सकता है और इन्हें उत्तेजित करने के लिए स्तन को दबाना या वास्तव में चूसने (एक दिन में कई बार) की जरूरत पड़ती है और दूध के बहाव को बढ़ाने के लिए स्तनों की मालिश करनी पड़ती है और उन्हें निचोड़ना ("दूहना") पड़ता है। साँचा:category handler[<span title="स्क्रिप्ट त्रुटि: "string" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।">citation needed] गैलेक्टागोग (दूध-प्रेरण) दवाओं का अस्थायी उपयोग भी प्रभावकारी होता है; गैलेक्टागोग जड़ी-बूटियाँ भी उपयोगी साबित हो सकती हैं। एक बार स्थापित हो जाने पर जरूरत के मुताबिक़ दूध निकलना शुरू हो जाता है।

इसके अलावा, कुछ जोड़े लैंगिक प्रयोजनों के लिए भी लैक्टेशन का इस्तेमाल कर सकते हैं।

चिकित्सीय साहित्य में नर लैक्टेशन (गैलेक्टोरिया से अलग) का शायद ही कोई विवरण मिलता है।

इन्हें भी देखें

  • लैक्टेशन कमरा
  • गैलेक्टोगोग
  • दूध रेखा (मिल्क लाइन)
  • थन (अडर)

सन्दर्भ

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बाहरी कड़ियाँ

  • हाउ मैमल्स लॉस्ट देयर एग योक - स्तनधारियों द्वारा पोषणपूर्ण दुग्ध का विकास, जर्दीदार अंडे को छोड़ने से पहले हुआ था कि बाद में? (न्यू साइंटिस्ट, 18 मार्च 2008)

साँचा:Reproductive physiology

  1. मैकनीली, ए.एस. 1997. लैक्टेशन (दूध निकालना) और प्रजनन. जर्नल ऑफ मैमरी ग्लैंड बायोलोजी एंड नियोप्लासिया 2:291-298 पीएमआईडी 10882312
  2. साँचा:cite book
  3. साँचा:cite journal
  4. साँचा:cite book
  5. साँचा:cite journal
  6. साँचा:cite journal
  7. साँचा:cite journal
  8. साँचा:cite book
  9. विल्सन-क्ले, बारबरा (1996). "इंड्यूस्ड लैक्टेशन" स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।. दी अमेरिकन सरोगेसी सेंटर . स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  10. ड्यून, नाओमी बी. " स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।एफएक्यूएस" स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। दी एडोप्टिव ब्रेस्टफीडिंग रिसॉर्स वेबसाइट स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।.