दया प्रकाश सिन्हा
दया प्रकाश सिन्हा | |
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colspan="2" style="text-align:center;" साँचा:image class | दया प्रकाश सिन्हा (19 दिसम्बर 2011 को ग्रेटर नोएडा के एक आयोजन में सम्मानित किये जाने पर हाथ जोड़ कर सभी का अभिवादन करते हुए) | |
जन्म | 2 May 1935 कासगंज (जिला एटा), संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध, (ब्रिटिश भारत) |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
शिक्षा | बी०एससी० एम०ए० (प्राच्य इतिहास, पुरातत्व एवं संस्कृति) |
लेखन काल | 1957 से आजतक |
शैली | गद्य |
विषय | नाटक |
उल्लेखनीय कार्य | अपने-अपने दाँव, कथा एक कंस की, इतिहास और रक्त-अभिषेक |
उल्लेखनीय सम्मान | संगीत नाटक अकादमी सम्मान, साहित्यकार सम्मान, राममनोहर लोहिया सम्मान, |
जीवनसाथी | प्रतिभा भारतीय (दिवंगत) |
संतान | प्राची (दिवंगत) एवं प्रतीची (पुत्री) |
दया प्रकाश सिन्हा (जन्म: २ मई १९३५, कासगंज[१], जिला एटा, उत्तर प्रदेश) एक अवकाशप्राप्त आई०ए०एस० अधिकारी होने के साथ-साथ हिन्दी भाषा के प्रतिष्ठित लेखक, नाटककार, नाट्यकर्मी, निर्देशक व चर्चित इतिहासकार हैं। प्राच्य इतिहास, पुरातत्व व संस्कृति में एम० ए० की डिग्री तथा लोक प्रशासन में मास्टर्स डिप्लोमा प्राप्त सिन्हा जी विभिन्न राज्यों की प्रशासनिक सेवाओं में रहे। साहित्य कला परिषद, दिल्ली प्रशासन के सचिव, भारतीय उच्चायुक्त, फिजी के प्रथम सांस्कृतिक सचिव, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी व ललित कला अकादमी के अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ के निदेशक जैसे अनेकानेक उच्च पदों[२] पर रहने के पश्चात सन् १९९३ में भारत भवन, भोपाल के निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए। नाट्य-लेखन के साथ-साथ रंगमंच पर अभिनय एवं नाट्य-निर्देशन के क्षेत्र में लगभग ५० वर्षों तक सक्रिय रहे सिन्हा जी की नाट्य कृतियाँ निरन्तर प्रकाशित, प्रसारित व मंचित होती रही हैं। अनेक देशों में भारत के सांस्कृतिक प्रतिनिधि के रूप में भ्रमण कर चुके श्री सिन्हा को कई पुरस्कार व सम्मान भी मिल चुके हैं।
जीवनी
दया प्रकाश सिन्हा का जन्म ब्रिटिश भारत के तत्कालीन संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध (वर्तमान पश्चिमी उत्तर प्रदेश) में एटा जिले के कासगंज कस्बे में २ मई १९३५ को अयोध्यानाथ सिन्हा व स्नेहलता के घर हुआ था। पिता सरकारी नौकरी में थे अत: इधर-उधर स्थानान्तरण होने के कारण बालक दया प्रकाश को घर पर रहकर ही पढ़ना पड़ा। चौथी कक्षा में मैनपुरी के एक विद्यालय में स्थायी रूप से प्रवेश मिल सका।
फैजाबाद से हाई स्कूल्, तथा इलाहाबाद से इण्टरमीडिएट व बी०एससी० करने के बाद उनका मन हिन्दी साहित्य में एम०ए० करने का था किन्तु पिता की इच्छा को देखते हुए उन्होंने स्नातकोत्तर परीक्षा के लिए प्राच्य इतिहास, पुरातत्व व संस्कृति जैसा गम्भीर विषय चुना जिसमें उनकी विशेष रुचि थी। सन् १९५६ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम०ए० करने के पश्चात दो वर्ष तक आई०ए०एस० परीक्षा की तैयारी में जुटे रहे किन्तु गम्भीर अध्ययन के बावजूद अन्तिम पर्चा देते समय उनके नाक से खून बहने लगा जिससे वे अपने प्रयास में सफल न हो सके।
अन्तत: उन्होंने इलाहाबाद के सी०एम०पी० डिग्री कालेज में इतिहास विभाग के प्रवक्ता पद पर नियुक्ति पा ली और इलाहाबाद में रहकर अध्यापन कार्य के साथ-साथ अपने पिता की इच्छा पूर्ण करने हेतु पी०सी०एस० की तैयारी भी करते रहे। प्रथम प्रयास में ही उन्होंने उत्तर प्रदेश संघ लोक सेवा आयोग की पी०सी०एस० परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। उनकी पहली पोस्टिंग बहराइच में हुई।
सन् १९६२ में कलकत्ता की रंगमंच अभिनेत्री प्रतिभा भारतीय से उनका विवाह हुआ। इस प्रकार उन्हें रंगमंच पर अभिनय करने के लिए मनचाहा साथी मिल गया। १९६५ में पहली पुत्री प्राची पैदा हुई तो दो वर्ष बाद उसका साथ देने घर में एक और नन्हीं कली आ गयी प्रतीची; इस प्रकार सिन्हा जी का परिवार भी पूर्ण हो गया। दोनों बेटियाँ भी माता-पिता के नक्शे-कदम पर चलने लगीं और अभिनय के क्षेत्र में उनका हाथ बँटाने लगीं।
विभिन्न प्रशासनिक पदों पर रहते हुए दया प्रकाश जी ने रंगमंच से रिश्ता कायम रक्खा और एक के बाद एक सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते चले गये। इस पर ब्रेक तब जाकर लगा जब सन् १९७८ में सोलह वर्षों तक साथ निभाकर उनकी जीवनसंगिनी उन्हें धोखा दे गयी। फीजी में मई १९७८ को उनकी कलाकार पत्नी प्रतिभा का अचानक दिल का दौरा पड़ने से देहान्त हो गया। सिन्हा अपनी दो-दो नाबालिग बेटियों को साथ लेकर भारत आ गये और नई दिल्ली में अपने छोटे भाई सीतेश आलोक के परिवार के साथ रहने लगे ताकि बच्चियों को माँ का न सही चाची का ही प्यार मिलता रहे।
सन् १९८४ में उन्हें आई०ए०एस० कैडर में पदोन्नत किया गया। यह पदोन्नति उनके पिछले कार्यानुभव को देखते हुए १९७६ से दी गयी थी। ३३ वर्षों तक विभिन्न पदों पर रहकर वे सन् १९९३ में सेवानिवृत्त हुए नोएडा के सेक्टर २६ में मकान बनाया जिसे उन्होंने नाम दिया "अयोध्या" और अपनी बड़ी बेटी प्राची व दामाद सोमेश रंजन के साथ रहने लगे। लेकिन दुर्भाग्य ने उनका यहाँ भी पीछा न छोड़ा; प्राची केवल ३२ वर्ष की अल्पायु में एक बेटे को अपने नाना के हाथों सौंप कर परलोक सिधार गयी।
दामाद ने अपने स्वसुर दयाप्रकाश की अनुमति लेकर दूसरा विवाह कर लिया और वे अब सिन्हा जी के पुत्र-धर्म का निर्वाह करते हुए उन्हीं के साथ नोएडा में रह रहे हैं। उनका नाती अपनी मौसी अर्थात् सिन्हा जी की छोटी बेटी प्रतीची के पास अमरीका में रहकर शिक्षा प्राप्त कर रहा है।
प्रशासनिक दायित्व
- १९६४-१९६५ नगरपालिका निगम बहराइच के प्रशासनिक प्रभारी
- १९६५-१९६७ फूलपुर एवं इलाहाबाद में प्रशासनिक अधिकारी
- १९६८-१९७१ दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर रहे
- १९७१-१९७६ साहित्य कला परिषद, नई दिल्ली के सचिव
- १९७६-१९७९ निदेशक, भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र फिजी
- १९७९-१९८४ साहित्य कला परिषद, नई दिल्ली के सचिव
- १९८४-१९८६ आई०ए०एस० यू०पी० कैडर अयोध्या, वाराणसी आदि में सांस्कृतिक पुनर्जागरण
- १९८६-१९८८ अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी[३], लखनऊ
- १९८९-१९९१ निदेशक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ
- १९९१-१९९३ निदेशक, भारत भवन, भोपाल
- १९९७-२००३ अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी, लखनऊ
- २००६ में भारत भवन ट्र्स्ट भोपाल के अध्यक्ष रहे
नाट्यकृतियाँ
अपने जीवन-काल में सिन्हाजी ने एक दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखीं जिनमें से अधिकांश नाटक विधा पर ही थीं। उनकी अद्यतन प्रकाशित नाट्यकृतियाँ इस प्रकार हैं:
- साँझ-सवेरा (रचनाकाल:१९५८)[४]
- मन के भँवर (रचनाकाल:१९६०)[५]
- अपने-अपने दाँव (रचनाकाल:१९६३)[६]
- दुश्मन (रचनाकाल:१९६५)[७]
- मेरे भाई मेरे दोस्त (रचनाकाल:१९७१)[८]
- इतिहास चक्र (रचनाकाल:१९७२)[९]
- ओह अमेरिका (रचनाकाल:१९७३)[१०]
- कथा एक कंस की (रचनाकाल:१९७४)[११]
- सादर आपका (रचनाकाल:१९७६)[१२]
- सीढ़ियाँ (रचनाकाल:१९९०)[१३]
- इतिहास (रचनाकाल:१९९८)[१४]
- रक्त-अभिषेक (रचनाकाल:२००५)[१५]
अभिनेता के रूप में
सिन्हा जी ने केवल नाटक लिखे ही नहीं अपितु उन्हें मंचित भी करवाया। यही नहीं अपने कुछ नाटकों में उन्होंने प्रमुख पात्र की भूमिका भी निभायी और सशक्त अभिनय से दर्शकों को प्रभावित किया। अभिनेता के रूप में उनकी कुछ भूमिकायें इस प्रकार हैं:
- "साँझ-सवेरा" नाटक में निखिल की भूमिका १९५९ आइफेक्स, नई दिल्ली में
- "कथा एक कंस की" नाटक में कंस की भूमिका १९७५ रवीन्द्रालय, लखनऊ में
बतौर निर्देशक
सिन्हा जी ने नाटक लिखे, उन्हें मंचित करवाया और कुछ नाटकों में प्रमुख पात्र की भूमिका भी निभायी। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपने लिखे हुए कुछ नाटकों का कुशल निर्देशन भी किया। बतौर निर्देशक उनकी भूमिका का विवरण इस प्रकार हैं:
- "मन के भँवर" १९६१ इलाहाबाद
- "मेरे भाई मेरे दोस्त" १९८१ से १९८३ आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से कुल आठ वार प्रसारित
- "इतिहास-चक्र" १९७२ नई दिल्ली
- "सीढ़ियाँ" १९६९ लखनऊ
- "रक्त-अभिषेक" २१ नवम्बर २००६ श्रीराम प्रेक्षागृह नई दिल्ली
पुरस्कार व सम्मान
- "अकादमी अवार्ड" संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली
- "लोहिया सम्मान" उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ
- "साहित्यकार सम्मान" हिन्दी अकादमी, दिल्ली
सन्दर्भ
- ↑ हिन्दी साहित्यकार सन्दर्भ कोश (दूसरा भाग) पृष्ठ १५३
- ↑ सूर्या (स्मारिका -६) सम्पादक: डॉ॰ रामशरण गौड़ पृष्ठ १९
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ समीक्षायन पृष्ठ १३
- ↑ समीक्षायन पृष्ठ ४५
- ↑ समीक्षायन पृष्ठ ५३
- ↑ समीक्षायन पृष्ठ ५९
- ↑ समीक्षायन पृष्ठ ६५
- ↑ समीक्षायन पृष्ठ ७३
- ↑ समीक्षायन पृष्ठ ७४
- ↑ समीक्षायन पृष्ठ १०१
- ↑ समीक्षायन पृष्ठ १६३
- ↑ समीक्षायन पृष्ठ १७३
- ↑ समीक्षायन पृष्ठ २१७
- ↑ समीक्षायन पृष्ठ २४७
- डॉ॰ गिरिराज शरण अग्रवाल एवं डॉ॰ मीना अग्रवाल हिन्दी साहित्यकार सन्दर्भ कोश (दूसरा भाग) २००६ हिन्दी साहित्य निकेतन, बिजनौर (उ०प्र०) ISBN 81-85139-29-6
- सूर्या(स्मारिका -६) सम्पादक: डॉ॰ रामशरण गौड़, श्याम विमल, डॉ॰ मदनलाल वर्मा 'क्रान्त एवं विजय विजन प्रकाशक: सूर्या संस्थान, जेड १३५-१३८, सेक्टर १२, नोएडा २०१३०१ भारत
- अदिति टण्डन का लेख:Understanding theatre as democratic art ट्रिब्यून (चण्डीगढ) १९ सितम्बर २००३
- नाटककार दयाप्रकाश सिन्हा समीक्षायन सम्पादक: रवीन्द्रनाथ बहोरे प्रकाशक: संजय प्रकाशन अंसारी रोड दरियागंज नई दिल्ली ११०००२ ISBN 978-81-7453-368-5
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