थॉमस ऐल्वा एडीसन

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थ़ॉमस ऍडिसन
Thomas Edison2.jpg
1922 में ऍडिसन
जन्म थ़ॉमस अल्वा ऍडिसन
11 February 1847
मिलान, ओहायो, संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A)
मृत्यु October 18, 1931(1931-10-18) (उम्र साँचा:age)
वेस्ट ऑरेंज न्यू जर्सी, संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A)
राष्ट्रीयता अमेरिकी
शिक्षा स्कूल छोड़ दि थी ।
व्यवसाय आविष्कारक, व्यापारी
धार्मिक मान्यता देववादी
जीवनसाथी साँचा:marriage
साँचा:marriage
बच्चे मैरियन एस्टेल एडीसन (1873–1965)
थॉमस अल्वा एडीसन जूनियर (1876–1935)
विलियम लेस्ली एडीसन (1878–1937)
मेडेलीन एडीसन (1888–1979)
चार्ल्स एडीसन (1890–1969)
थिओडर मिलर एडीसन (1898–1992)
माता-पिता सामुएल ओगडेन एडीसन जूनियर. (1804–1896)
नैन्सी मैथ्यू इलियट (1810–1871)
संबंधी लुईस मिलर (ससुर)
हस्ताक्षर
Thomas Alva Edison Signature.svg

थ़ॉमस अल्वा ऍडिसन (११ फ़रवरी १८४७ - १८ अक्टूबर १९३१) हान अमरीकी आविष्कारक एवं वीध्वांत व्यक्ति थे।फोनोग्राफ एवं विद्युत बल्ब सहित अनेकों युक्तियाँ विकसित कीं जिनसे संसार भर में लोगों के जीवन में भारी बदलाव आये। "मेन्लो पार्क के जादूगर" के नाम से प्रख्यात, भारी मात्रा में उत्पादन के सिद्धान्त एवं विशाल टीम को लगाकर अन्वेषण-कार्य को आजमाने वाले वे पहले अनुसंधानकर्ता थे। इसलिये एडिसन को ही प्रथम औद्योगिक प्रयोगशाला स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है। अमेरिका में अकेले १०९३ पेटेन्ट कराने वाले एडिसन विश्व के सबसे महान आविष्कारकों में गिने जाते हैं। एडीसन बचपन से ही जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे

आरम्भिक जीवन

महान् आविष्कारक थॉमस ऐल्वा एडिसन का जन्म ओहायो राज्य के मिलैन नगर में 11 फ़रवरी 1847 ई. को हुआ। बचपन से ही एडिसन ने कुशाग्रता, जिज्ञासु वृत्ति और अध्यवसाय का परिचय दिया। छह वर्ष तक माता ने घर पर ही पढ़ाया, सार्वजनिक विद्यालय में इनकी शिक्षा केवल तीन मास हुई। तो भी एडिसन ने ह्यूम, सीअर, बर्टन, तथा गिबन के महान ग्रंथों एवं डिक्शनरी ऑव साइंसेज़ का अध्ययन 10वें जन्मदिन तक पूर्ण कर लिया था।

एडिसन 12 वर्ष की आयु में फलों और समाचारपत्रों के विक्रय का धंधा करके परिवार को प्रति दिन एक डालर की सहायता देने लगे। वे रेल में पत्र छापते और वैज्ञानिक प्रयोग करते। तार प्रेषण में निपुणता प्राप्त कर 20 वर्ष की आयु तक, एडिसन ने तार कर्मचारी के रूप में नौकरी की। जीविकोपार्जन से बचे समय को एडिसन प्रयोग और परीक्षण में लगाते थे।

अनुसंधानओं का आरम्भ

1869 ई. में एडिसन ने अपने सर्वप्रथम आविष्कार "विद्युत मतदानगणक" को पेटेंट कराया। नौकरी छोड़कर प्रयोगशाला में आविष्कार करने का निश्चय कर निर्धन एडिसन ने अदम्य आत्मविश्वास का परिचय दिया। 1870-76 ई. के बीच एडिसन ने अनेक आविष्कार किए। एक ही तार पर चार, छह, संदेश अलग अलग भेजने की विधि खोजी, स्टॉक एक्सचेंज के लिए तार छापने की स्वचालित मशीन को सुधारा, तथा बेल टेलीफोन यंत्र का विकास किया। उन्होंने 1875 ई. में "सायंटिफ़िक अमेरिकन" में "ईथरीय बल" पर खोजपूर्ण लेख प्रकाशित किया; 1878 ई. में फोनोग्राफ मशीन पेटेंट कराई जिसकी 2010 ई. में अनेक सुधारों के बाद वर्तमान रूप मिला।

21 अक्टूबर 1879 ई. को एडिसन ने 40 घंटे से अधिक समय तक बिजली से जलनेवाला निर्वात बल्ब विश्व को भेंट किया। 1883 ई. में "एडिसन प्रभाव" की खोज की, जो कालांतर में वर्तमान रेडियो वाल्व का जन्मदाता सिद्ध हुआ। अगले दस वर्षो में एडिसन ने प्रकाश, उष्मा और शक्ति के लिए विद्युत के उत्पादन और त्रितारी वितरण प्रणाली के साधनों और विधियों पर प्रयोग किए; भूमि के नीचे केबुल के लिए विद्युत के तार को रबड़ और कपड़े में लपेटने की पद्धति ढूँढी; डायनेमो और मोटर में सुधार किए; यात्रियों और माल ढोने के लिए विद्युत रेलगाड़ी तथा चलते जहाज से संदेश भेजने और प्राप्त करने की विधि का आविष्कार किया। एडिसन ने क्षार संचायक बैटरी भी तैयार की; लौह अयस्क को चुंबकीय विधि से गहन करने का प्रयोग किए, 1891 ई. में चलचित्र कैमरा पेटेंट कराया एवं इन चित्रों को प्रदर्शित करने के लिए किनैटोस्कोप का आविष्कार किया।

प्रथम विश्वयुद्ध में एडिसन ने जलसेना सलाहकार बोर्ड का अध्यक्ष बनकर 40 युद्धोपयोगी आविष्कार किए। पनामा पैसिफ़िक प्रदर्शनी ने 21 अक्टूबर 1915 ई. को एडिसन दिवस का आयोजन करके विश्वकल्याण के लिए सबसे अधिक अविष्कारों के इस उपजाता को संमानित किया। 1927 ई. में एडिसन नैशनल ऐकैडमी ऑव साइंसेज़ के सदस्य निर्वाचित हुए। 21 अक्टूबर 1929 को राष्ट्रपति दूसरे ने अपने विशिष्ट अतिथि के रूप में एडिसन का अभिवादन किया।

अन्तिम समय

मेनलोपार्क और वेस्ट ऑरेंज के कारखानों में एडिसन ने 50 वर्ष के अथक परिश्रम से 1,093 आविष्कारों को पेटेंट कराया। अनवरत कर्णशूल से पीड़ित रहने पर भी अल्प मनोरंजन, निरंतर परिश्रम, असीम धैर्य, आश्चर्यजनक स्मरण शक्ति और अनुपम कल्पना शक्ति द्वारा एडिसन ने इतनी सफलता पाई। मृत्यु को भी उन्होंने गुरुतर प्रयोगों के लिए दूसरी प्रयोगशाला में पदार्पण समझा। ""मैंने अपना जीवनकार्य पूर्ण किया। अब मैं दूसरे प्रयोग के लिए तैयार हूँ"", इस भावना के साथ विश्व की इस महान उपकारक विभूति ने 18 अक्टूबर 1931 को संसार से विदा ली।

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ