सारणिक

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सारणिक सम्पादन

सारणिक (Determinant) एक विशिष्ट प्रकार का बीजीय व्यंजक है (वस्तुत: बहुपद) जिसमें प्रयुक्त की गई राशियों अथवा अवयवों की संख्या (पूर्ण) वर्ग रहती है। इन राशियों को प्राय: एक वर्गाकार विन्यास में लिखकर उसे अगल-बगल दो ऊर्ध्वाधर सीधी रेखाएँ खींच दी जाती है, n अवयवों वाले सारणिक को nवें क्रम (nth order) का सारणिक कहते हैं।

मैट्रिक्स A के सारणिक को det(A), det A, या |A| से निरूपित करते हैं। जहाँ मैट्रिक्स के अवयव पूर्णतः लिखे हों, तो संगत सारणिक को दिखने के लिए बड़ा कोष्टक या पैरेन्थेसेस के स्थान पर दो ऊर्ध्व रेखाओं से घेर दिया जाता है। उदाहरण के लिए, मैट्रिक्स

<math> \begin{bmatrix}a&b&c\\d&e&f\\g&h&i\end{bmatrix}</math> का सारणिक इस प्रकार लिखा जाता है: <math>\begin{vmatrix} a & b & c\\d & e & f\\g & h & i \end{vmatrix}</math>

और इसका मान <math>aei+bfg+cdh-ceg-bdi-afh\,</math> है।

सारणिक व्यूह सिद्धांत की आत्मा है; इसके प्रयोग से समीकरण समूहों का वर्गीकरण किया जा सकता है कि अमुक समूह का हल संभव होगा या नहीं और हल यदि संभव है तो कितने हल हो सकते हैं। उच्च बीजगणित का एक प्रमुख और मौलिक महत्ता का अंग सारणिक है; और प्राय: गणित की प्रत्येक शाखा में इसका प्रत्येक होता है। कैल्कुलस में एक से अधिक चरों के प्रतिस्थान (substitution rule) से सम्बन्धित नियम लिखने में सारणिक का प्रयोग होता है।

सारणिक के रूपांतरण

विस्तार करके अथवा थोड़े से विचार से निम्न नियमों की सत्यता प्रमाणित की जा सकती है:

(1) स्तंभ-पंक्ति-परिवर्तन-सभी स्तंभों को पंक्तियों में इस प्रकार परिवर्तित करने से कि मवाँ स्तंभ बदलकर मवीं पंक्ति बन जाए, सारणिक का मान नहीं बदलता। विलोमत: पंक्तियों को स्तंभों में पूर्वोक्त नियम के अनुसार बदलने से भी सारणिक के मान में कोई परिवर्तन नहीं होता। इस नियम से स्पष्ट है कि जो नियम पंक्तियों के लिए लागू है वैसा ही नियम स्तंभों के लिए भी लागू होगा, इसलिए आगे के नियम केवल पंक्तियों के लिए ही दिए जाएँगे।

(2) सारणिक का किसी राशि से गुणा करना - सारणिक के किसी एक स्तंभ के सभी अवयवों को राशि क से गुणा करने का परिणाम सारणिक के मान को क से गुणा करना है।

(3) किसी स्तंभ का दो स्तंभों में खंडन-शब्दों की अपेक्षा इस नियम को तीसरे क्रम के सारणिक से उद्धृत करना अधिक सुगम है:


(4) दो स्तंभों का (परस्पर) विनियम - सारणिक के किन्हीं दो स्तंभों को आपस में बदलने से सारणिक का मान पूर्व मान का -1 गुना हो जाता है।

(5) 'सारणिक का शून्यमान' - यदि किसी सारणिक के एक स्तंभ के अवयव किसी अन्य स्तंभ के अवयवों से क्रमानुसार एक ही अनुपात में हों तो सारणिक का मान शून्य होता है।

दो सारणिकों का गुणनफल

एक ही क्रम के दो सारणिकों का गुणनफल उसी क्रम का सारणिक होता है।

अगर हम R1 को लेते है तो

R1 की सभी पंकतियो को छोड़ देगे और बचे पंक्तियों और कॉलम से गुणा करेगे |

ऐतिहासिक

सारणिकों का आविष्कारक जी. डब्ल्यू. लाइवनिज को माना जाता है; उसने 1693 में जापानी गणितज्ञ सेकी कोवा ने लगभग ऐसा ही नियम खोज लिया था। लाइबनिज़ की इस खोज का अधिक प्रभाव नहीं हुआ; जी. क्रेमर ने 1750 में सारणिकों की पुन: खोज की और अपनी गवेषणा को प्रकाशित भी किया। सारणिकों की वर्तमान संकेतन पद्धति का आविष्कार ए. केली ने 1841 ई. में किया था। अनंत क्रम के सारणिकों का प्रयोग जी. डब्ल्यू. हिल ने किया है।

इन्हें भी देखें

व्यूह या मैट्रिक्स

बाहरी कड़ियाँ