टर्बोप्रॉप
एक टर्बोप्रॉप इंजन एक प्रकार का टर्बाइन इंजन होता है जो एक विमान प्रोपेलर (नोदक) को चलाता है।[१][२] यह अंग्रेजी के शब्दों "टर्बाइन" और "प्रॉपेलर" का मिश्रित रूप है। आमतौर पर इस प्रकार के इंजन मध्यम गति सबसोनिक विमानों में उपयोग किये जाते हैं, लेकिन इनका उपयोग अन्य जगहों पर भी किया जाता है।
कार्यप्रणाली
अपने सरलतम रूप में एक टर्बोप्रॉप में एक अंतर्ग्रहक, संपीडक, कम्बस्टर (अंतर्दहक), टर्बाइन और एक प्रॉपेलिंग नोजल (नोदक चंचु) होता है।[१] हवा अंतर्ग्रहक में खींची जाती है और संपीडक द्वारा संपीड़ित होती है। अंतर्ग्रहण के बाद संपीड़ित वायु में ईंधन डाला जाता है, जहाँ ईंधन-वायु का मिश्रण और दहन होता है, जिससे गर्म गैसें उत्पन्न होतीं हैं।[३] टर्बाइन के रास्ते से गर्म गैसों का विस्तार होता है, जिससे टर्बाइन घूमने लगती है। टर्बाइन द्वारा उत्पन्न कुछ शक्ति का उपयोग संपीडक को चलाने में किया जाता है। बाकी की शक्ति को प्रॉपेलर में रिडक्शन गियरिंग के माध्यम से प्रेषित किया जाता है।[४] गैसों का आगे का विस्तार और निकास प्रॉपेलिंग नोजल में होता है, जहां गैसें लगभग वायुमंडलीय दबाव से बाहर निकलती हैं। प्रोपेलिंग नोजल एक टर्बोप्रॉप द्वारा उत्पन्न ज़ोर का अपेक्षाकृत छोटा अनुपात प्रदान करता है।
टर्बोजेट के विपरीत, इंजन के निकास गैसों में महत्वपूर्ण ज़ोर बनाने के लिए आमतौर पर पर्याप्त ऊर्जा नहीं होती है, क्योंकि प्रॉपेलर को चलाने के लिए इंजन की लगभग सभी शक्ति का उपयोग किया जाता है। इस वजह से टर्बोप्रॉप इंजन हवा के बहाव से उल्टे भी लगाए जाते हैं, ताकि उन्हें छोटा बनाया जा सके।[३]
दक्षता
टर्बोप्रॉप इंजन ४०० नॉट और इससे धीमी गति में सबसे कुशल होते हैं। हालांकि ये प्रत्यागामी (पिस्टन) इंजनों से अधिक ईंधन खपत करते हैं, मगर ये उनसे अधिक ऊँचाई पर काम कर सकते हैं। इससे वायु घर्षण कम होता है और विमान अपेक्षाकृत कम बल पर अधिक गति प्राप्त कर पाते हैं।