ब्रह्माण्ड (जैन धर्म)
साँचा:sidebar with collapsible lists स्क्रिप्ट त्रुटि: "about" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। जैन धर्म सृष्टि को अनादिनिधन बताता है यानी जो कभी नष्ट नहीं होगी। जैन दर्शन के अनुसार ब्रह्मांड हमेशा से अस्तित्व में है और हमेशा रहेगा। यह ब्रह्मांड प्राकृतिक कानूनों द्वारा नियंत्रित है और अपनी ही ऊर्जा प्रक्रियाओं द्वारा रखा जा रहा है। जैन दर्शन के अनुसार ब्रह्मांड शाश्वत है और ईश्वर या किसी अन्य शक्ति ने इसे नहीं बनाया। आधुनिक विज्ञान के अनुसार ब्रह्माण्ड हमेशा से अस्तित्व में नहीं था, इसकी उत्पत्ति बिग बैंग से हुई थी।[१][२][३]
द्रव्य
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। जैन दर्शन के अनुसार ब्रह्मांड में यह छह द्रव्यो में से कभी कुछ नष्ट या बनाया नहीं जाता है, वे बस एक रूप से दूसरे में बदल जाते हैं। जैन दर्शन के अनुसार लोक ६ द्रव्यों से बना है:
- जीव (आत्मा अर्थात चेतन)
- अजीव (अचेतन पदार्थ)
- पुदग़लास्तिकाय (मैटर)
- धर्मास्तिकाय द्रव्य
- अधर्मास्तिकाय द्रव्य
- आकाशास्तिकाय
- काल
लोक
जैन ग्रंथो में ब्रह्मांड के लिए "लोक" शब्द का प्रयोग किया गया है।
जैन दर्शन के अनुसार 'लोक' तीन भाग में विभाजित हैसाँचा:sfn:
- ऊर्ध्व लोक- देवों का निवास स्थान
- मध्य लोक - मनुष्य, तिर्यंच और वनस्पति
- अधो लोक- सात नर्क और निगोद
मध्य लोक
जंबूद्वीप में ६ विशाल पर्वत है जो इसे ७ क्षेत्रों में विभाजित करते है। इन क्षेत्रों के नाम हैसाँचा:sfn:
- भरत क्षेत्र
- हैमवत क्षेत्र
- हरिवर्ष क्षेत्र
- विदेह क्षेत्र
- रम्यक क्षेत्र
- हैरण्यवत क्षेत्र
- ऐरावत क्षेत्र
काल
अनंत समय का चक्र दो भागो में विभाजित है। पहली छमाही है आरोही क्रम, उत्सर्पणि (प्रगतिशील चक्र)। अन्य आधा है अवसर्पणी (प्रतिगामी चक्र) या अवरोही क्रम।
अवसर्पणी के छह आरा (युग) है :-
- सुखम-सुखम (बहुत अच्छा)
- सुखम (अच्छा)
- सुखम-दुखम (अच्छा बुरा)
- दुखम-सुखम (बुरा अच्छा) - २४ तीर्थंकर का युग
- दुखम (बुरा) - आज का युग
- दुखम-दुखम (बहुत खराब)