जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय

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जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय

स्थापित1969
प्रकार:केन्द्रीय विश्वविद्यालय
कुलाधिपति:कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन
कुलपति:ममिडाला जगदीश कुमार
शिक्षक:करीब 600
विद्यार्थी संख्या:8,500
अवस्थिति:नई दिल्ली, भारत
परिसर:नगरीय
उपनाम:जेएनयू
सम्बन्धन:यूजीसी
जालपृष्ठ:www.jnu.ac.in
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जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, (साँचा:lang-en) संक्षेप में जे॰एन॰यू॰, नई दिल्ली के दक्षिणी भाग में स्थित केन्द्रीय विश्‍वविद्यालय है। यह मानविकी, समाज विज्ञान, विज्ञान, अंतरराष्ट्रीय अध्ययन आदि विषयों में उच्च स्तर की शिक्षा और शोध कार्य में संलग्न भारत के अग्रणी संस्थानों में से है। जेएनयू को राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (NACC) ने जुलाई 2012 में किये गए सर्वे में भारत का सबसे अच्छा विश्वविद्यालय माना है। NACC ने विश्वविद्यालय को 4 में से 3.9 ग्रेड दिया है, जो कि देश में किसी भी शैक्षिक संस्थान को प्रदत उच्चतम ग्रेड है[१]

इतिहास

जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय की स्थापना सन् 1969 में हुई थी। जेएनयू अधिनियम 1966 (1966 का 53) को भारतीय संसद द्वारा 22 दिसम्बर 1966 में पास किया गया था। विश्‍वविद्यालय का नामकरण भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के आधार पर किया गया। प्रोफेसर जी. पार्थसारथी को विश्‍वविद्यालय का पहला कुलपति नियुक्‍त किया गया। |

विश्‍वविद्यालय के कुलपति

उद्देश्‍य

अध्ययन, अनुसंधान और अपने संगठित जीवन के उदाहरण और प्रभाव द्वारा ज्ञान का प्रसार तथा अभिवृद्धि करना। उन सिद्धान्तों के विकास के लिए प्रयास करना, जिनके लिए जवाहरलाल नेहरू ने जीवन-पर्यंत काम किया। जैसे - राष्‍ट्रीय एकता, सामाजिक न्याय, धर्म निरपेक्षता, जीवन की लोकतांत्रिक पद्धति, अन्तरराष्‍ट्रीय समझ और सामाजिक समस्याओं के प्रति वैज्ञानिक दॄष्‍टिकोण।[२]

विश्वविद्यालय के संस्‍थान (स्‍कूल) और विशिष्‍ट अध्‍ययन केन्‍द्र (स्‍पेशल सेंटर)

  • भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अध्ययन संस्थान
  • अन्तर्राष्‍ट्रीय अध्ययन संस्थान
  • समाज विज्ञान अध्ययन संस्थान
  • भौतिक विज्ञान संस्थान
  • जीवन विज्ञान संस्थान
  • कला एवं सौन्दर्यशास्त्र संस्थान
  • सूचना प्रोद्यौगिकी संस्थान
  • कम्प्यूटर और सिस्टम विज्ञान संस्थान
  • कम्प्यूटेशनल और एकीकृत विज्ञान संस्‍थान
  • जैव प्रोद्यौगिकी संस्थान
  • अभियांत्रिकी संस्‍थान
  • अटल बिहारी वाजपेयी प्रबंधन व उद्यमिता संस्‍थान
  • पर्यावरण विज्ञान संस्थान
  • संस्‍कृत व भारत-विद्या संस्‍थान
  • मोलेकूलर मेडिसिन विशिष्ट अध्ययन केन्द्र
  • ला एण्ड गवर्नेंस विशिष्ट अध्ययन केन्द्र
  • आपदा अनुसंधान विशिष्‍ट अध्‍ययन केन्‍द्र
  • ई-लर्निंग विशिष्‍ट अध्‍ययन केन्‍द्र
  • नेनो-साइंस विशिष्‍ट अध्‍ययन केन्‍द्र
  • राष्‍ट्रीय सुरक्षा विशिष्‍ट अध्‍ययन केन्‍द्र
  • पूर्वोत्‍तर भारत विशिष्‍ट अध्‍ययन केन्‍द्र

विश्‍वविद्यालय में स्थापित पीठ (चेयर)

  • डॉ॰ अम्बेडकर चेयर
  • ग्रीक चेयर
  • हिब्रू चेयर
  • नेल्सन मंडेला चेयर
  • एस॰बी॰आई॰ चेयर
  • अप्पादोराई चेयर
  • राजीव गाँधी चेयर
  • आर॰बी॰आई॰ चेयर
  • एन्वायरनमेंटल ला चेयर
  • सुखमय चक्रवर्ती चेयर

विश्‍वविद्यालय के मानद प्रोफेसर (इमिरेटस प्रोफेसर)

संस्कृत केंद्र प्रो.आर.एन. झा
  1. एम.एस. राजन
  2. आर.पी. आनन्द
  1. नामवर सिंह
  2. मोहम्मद हसन
  3. सुस्निग्ध दे
  4. एच.एस. गिल
  5. केदारनाथ सिंह
  1. पी.एन. श्रीवास्तव
  2. आशीष दत्ता
  1. रोमिला थापर
  2. बिपन चन्द्रा
  3. जी.एस. भल्ला
  4. तापस मजूमदार
  5. योगेन्द्र सिंह
  6. डी. बनर्जी
  7. अमित भादुरी
  8. टी.के. ऊमन
  9. गोपाल कृष्ण चड्ढा
  1. आर. राजारमन

जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय छात्र संघ

जेएनयू की प्रगतिशील परंपरा और शैक्षिक माहौल के लिए यहां के छात्र संघ का बड़ा महत्‍व माना जाता है। यहां के कई छात्र संघ सदस्‍यों ने बाद के दिनों में भारतीय राजनीति और सामाजिक आंदोलनों में अहम भूमिका निभाई है, इनमें कन्हैया कुमार, प्रकाश करात, सीताराम येचुरी, डी. पी. त्रिपाठी, आनंद कुमार, चंद्रशेखर प्रसाद आदि प्रमुख हैं। जेएनयू छात्र राजनीति पर शुरू से ही वामपंथी छात्र संगठनों ऑल इंडिया स्‍टडेंट्स एसोसिएशन(आइसा), स्‍टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एस.एफ.आई.) आदि का वर्चस्व रहा है। वर्तमान में केन्‍द्रीय पैनल के चारों सदस्‍य उग्र वामपंथी छात्र संगठन ऑल इंडिया स्‍टडेंट्स एसोसिएशन से संबंधित हैं।

जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय शिक्षक संघ

जेएनयू छात्र संघ के साथ जेएनयू शिक्षक संघ भी शुरू से बदलाव की राजनीति के साथ रहा है। वर्तमान में इसके अध्‍यक्ष प्रो. मिलाप शर्मा व महासचिव प्रो. मौसमी बसु हैं।

विवाद

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में विवाद कोई नई बात नहीं है।[३][किसके अनुसार?] समय-समय पर लोगसाँचा:fix इसे 'घातक राजनीति का अड्डा'[४], 'देशद्रोही गतिविधियों का केन्द्र'[५], 'दरार का गढ़'[६] आदि कहते रहे हैं। इसके छात्रों और अध्यापकों पर भारत में नक्सवादी हिंसा का समर्थन करने और भारतविरोधी कार्यों में संलिप्त रहने के आरोप भी लगतेसाँचा:fix रहे हैं।

२०१६ विवाद

कार्यक्रम और प्रतिक्रियाएँ

छात्रों के एक समूह ने 9 फरबरी 2016 को 2001 भारतीय संसद हमले के दोषी अफज़ल गुरु की फांसी की तीसरी बरसी के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया। इस कार्यक्रम का नाम कश्मीरी कवि आगा शाहिद अली के काव्य संग्रह "बिना डाक-घर वाला देश" (जो जम्मू कश्मीर के एक हिंसक समय के बारे में है) पर रखा गया था।[७]

इस कार्यक्रम के छात्र आयोजकों ने सारी परिसर में पोस्टर लगाए थे जिनमें लिखा था कि सभी (हिन्दी अनुवाद) "9 फरबरी, मंगलवार को साबरमती ढाबे" में "ब्राह्मणवादी विचारधारा के विरुद्ध", "अफज़ल गुरु और मकबूल भट्ट की न्यायिक हत्या (उनके अनुसार) के विरुद्ध", "कश्मीरी लोगों के आत्मनिर्णय के लोकतांत्रिक अधिकार के लिए संघर्ष के समर्थन में" "कवियों, कलाकारों, गायकों, लेखकों, विद्यार्थियों, बुद्धिजीवियों और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं के साथ सांस्कृतिक संध्या, और कला और फ़ोटो प्रदर्शनी" पर आमंत्रित हैं।[८]

जे॰एन॰यू॰ छात्र संघ के संयुक्त सचिव सौरभ कुमार शर्मा (जो एबीवीपी से है[९]) ने इसकी शिकायत करते हुए विश्वविद्यालय के उप-कुलाधिपति जगदीश कुमार को एक पत्र लिखा। इस पत्र में उसने लिखा कि "ये गतिविधियाँ परिसर की शांति और सामंजस्य को खत्म कर देगी", और कार्यक्रम के आयोजक छात्रों को निस्सारित करने का अनुरोध किया।[८]

विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने "कार्यक्रम के प्रकार की गलतबयानी" का हवाला देते हुए इसे अनुमति नहीं दी। विश्वविद्यालय के उप-कुलाधिपति प्रोफेसर जगदीश कुमार ने कहा: "हिन्दी अनुवाद: हम ने सुना था कि कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम है पर हमें बाद में पता चला कि ये एक विरोध मार्च है। हमें यह पोस्टरों से पता चला, पर इसके बारे में हम से कोई अनुमति नहीं ली गई थी। इसलिए विश्वविद्यालय में शांति का माहौल बनाए रखने के लिए हम ने इसे रद्द कर दिया।"[१०]

इसके बावजूद आयोजकों ने कार्यक्रम जारी रखने का फैसला किया और विरोध मार्च की जगह सांस्कृतिक कार्यक्रम, और मुद्दे पर कला और फ़ोटो प्रदर्शनी आयोजित करने का फैसला किया।[११]

विवादास्पद नारेबाजी

कथित तौर पर कार्यक्रम के दौरान कुछ छात्रों ने भारत विरोधी नारे (जैसे: भारत की बर्बादी तक, जंग लड़ेंगे, जंग लड़ेगे / 'कितने अफजल मारोगे, हर घर से अफजल निकलेगा' / 'पाकिस्तान जिंदाबाद') लगाए।[१२][१३] इस बात से गुस्सा होकर एबीवीपी के सदस्य उप-कुलाधिपति के कार्यालय के बहार इकट्ठा हो गए और राष्ट्र विरोधी गतिविधि करने वाले छात्रों के निष्कासन की मांग में नारे लगाने लगे।

इस राष्ट्र विरोधी नारेबाजी की आम जनता ने बहुत निंदा की क्योंकि जे॰एन॰यू॰ के छात्रों को पढाई में करदाता के पैसे से भरी सब्सिडी मिलती है। इस कार्यक्रम और उसमें लगे नारों पर भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि राष्ट्रविरोधी नारे लगाने वालों को किसी भी कीमत पर माफ नहीं किया जाएगा, जबकि मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने भी कहा कि भारत माता का अपमान किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। कुमार विश्वास ने कहा कि देशद्रोहियों पर केन्द्र कड़ी कार्यवाही करे। [१४] हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के एक पूर्व सहायक मंत्री ट्वीट कर वेश्याओं को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की छात्राओं से बेहतर बताया और कहा कि वेश्यायें केवल देह बेचतीं हैं जबकि इन छात्राओं ने तो देश ही बेच दिया।[१५][१६]

विश्वविद्यालय के अधिकारियों की प्रतिक्रिया

11 फरबरी 2016 को जे॰एन॰यू॰ छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने अपनी फेसबुक टाइमलाइन पर ये लिखा: "हिन्दी अनुवाद: हम लोकतंत्र के लिए, अपने संविधान के लिए और सभी को समान राष्ट्र के लिए लड़ेंगे। अफज़ल गुरु के नाम पर एबीवीपी सभी मुद्दों से ध्यान हटा कर केंद्र सरकार की नाकामयाबी को छुपाने की कोशिश कर रही है।"[१७]

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने ट्विटर पर लिखा (हिन्दी अनुवाद) "अगर कोई भारत में रहते हुए भारत विरोधी नारे लगता है और भारत की संप्रभुता और अखंडता को चुनौती देता है, तो उसे सहन नहीं किया जाएगा।"[१८]

राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के सैनिकों की प्रतिक्रिया

इस विवाद के कारण राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के ५४वें बैच के अधिकारियों ने अपनी डिग्रियां वापस देने को कहा है। कुछ समाचार पत्रों के अनुसार इन अधिकारियों का कहना है कि इन्हें यह सब सुनने पर काफी खराब लग रहा है इस वज़ह से डिग्रियां वापस देने का एलान किया है।[१९]

छात्र नेताओं की गिरफ़्तारी

भाजपा सांसद महेश गिरी की शिकायत पर 12 फरबरी 2016 को छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उस पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 124A के तहत राजद्रोह का आरोप लगाया गया। इस धारा में व्यक्ति को अधिकतम आजीवन कारावास की सजा मिल सकती है।[२०]

अपनी गिरफ़्तारी के कुछ घंटे पूर्व बनी वीडियो में कन्हैया कुमार कहता है: "हमको देश भक्ति का सर्टिफिकेट आर॰एस॰एस॰ से नहीं चाहिए।" वो आगे कहता है: "हम हैं इस देश के, और इस मिट्टी से प्यार करते हैं। इस देश के अन्दर जो 80 प्रतिशत गरीब अवाम है, हम उसके लिए लड़ते हैं। हमारे लिए यही देशभक्ति है। हमें पूरा भरोसा है अपने देश के संविधान पर। और हम इस बात को पूरी मजबूती से कहना चाहते हैं कि इस देश के संविधान पे अगर कोई ऊँगली उठाएगा, चाहे वो ऊँगली संघियों का हो, चाहे वो ऊँगली किसी का भी हो, उस ऊँगली को हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।"[२१]

एमनेस्टी इण्टरनेशनल ने छात्रों की गिरफ़्तारी को अनुचित कहकर उसकी आलोचना की। अपनी फेसबुक टाइमलाइन पर एमनेस्टी इण्टरनेशनल ने लिखा "हिन्दी अनुवाद: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार अपमान या परेशान करने वाले भाषण पर भी लागु होता है। भारत का विद्रोह कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतरराष्ट्रीय मानकों के उलट है, और इसे निरस्त किया जाना चाहिए"।[२२]

अगले दिन पुलिस ने 7 छात्रों को हिरासत में ले लिया।

इन गिरफ्तारियों की विपक्ष की पार्टियों ने बहुत आलोचना की। इसके कई नेता जे॰एन॰यू॰ पहुंचे और उन्होंने पुलिस कारवाई का विरोध कर रहे छात्रों का समर्थन किया। इसी दौरान केंद्र गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने दोहराया कि हालांकि छात्रों को परेशान नहीं किया जाएगा पर "दोषियों को बख्शा भी नहीं जाएगा"। गृह राज्‍यमंत्री किरेन रिजीजू ने कहा कि जे॰एन॰यू॰ को देशद्रोही गतिविधियों का केंद्र नहीं बनने दिया जाएगा।[२३]

विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने गिरफ्तारियों को "अत्यधिक पुलिस कार्रवाई" कह कर उनकी आलोचना की।[२४] ए॰आई॰एस॰एफ॰ के नेता रामकृष्ण ने कहा "जे॰एन॰यू॰ का भगवाकरण करने का निरंतर प्रयास हो रहा है, और कन्हैया वामपंथियों और दूसरों की लड़ाई में प्यादा बन गया है"। ऑल इंडिया यूथ फेडरेशन के नेता प्रह्लाद सिंह ने कहा "राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को नाथूराम विनायक गोडसे के समर्थकों में कुछ देशद्रोही नहीं दिखाई दिया, पर कन्हैया को कुछ न कहने के बावजूद गिरफ्तार कर लिया गया"।[२५]

इन्हें भी देखें

बाहरी कडियाँ

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