ज़ांस्करी
ज़ांस्करी उत्तर भारत के लद्दाख में पाया जाने वाला घोड़ा प्रजाति का जीव है। इसका नाम कारगिल ज़िला के ज़ांस्कर घाटी के आधार पर रखा गया है। यह हिमाचल प्रदेश के स्पीति घोड़े की नस्ल की तरह ही है। यह उच्च स्थानों पर काम करने के लिए बहुत ही अनुकूल जीव है। स्पीति की तरह, यह पड़ोसी तिब्बत के तिब्बती नस्लों के घोड़ों के समान है। इस नस्ल को आज संकटग्रस्त माना जाता है, क्योंकि आज यह केवल कुछ सौ की संख्या में ही जीवित हैं। इसके सरंक्षण के लिए भारत में एक कार्यक्रम शुरू किया गया है।[१]
इतिहास
वर्ष 1977 में ज़ांस्करी घोड़ों की संख्या 15,000-20,000 अनुमानित की गई थी। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन ने वर्ष 2007 में इसे उन जीवों में सूचीबद्ध किया था जो खतरे से बाहर होते हैं हालांकि वर्तमान में इसे अन्य घोड़ों के साथ अंधाधुंध क्रॉस-ब्रीडिंग कराने के कारण इनकी मूल नस्ल पर संकट आया है और यह माना जाता है कि अब केवल कुछ सौ जीव ही शुद्ध नस्ल के हैं। मशीनीकरण और अपने मूल क्षेत्र में सड़कों की संख्या में वृद्धि के कारण भी इनकी जनसंख्या में तेजी से गिरावट आई है। हालांकि, 2006-2007 तक में इनकी जनसंख्या में किसी भी प्रकार के आनुवंशिक अड़चन के संकेत नहीं दिखाई देते थें।[२]
विशेषताएँ
ज़ांस्करी एक मजबूत और गठीला जीव है। यह लद्दाख के कठिन वातावरण में काम करने के लिए विशेष रूप से अनुकूलित है। इसकी ऊंचाई आमतौर पर 120 और 140 सेंटीमीटर (11.3 और 13.3 हाथ) के बीच होती है, वक्ष परिधि 140-150 सेमी (55-60 इंच) और शरीर की लंबाई लगभग 95-115 सेमी (38-45 इंच) होती है। इसका सामान्य रंग भूरा, सफेद और काला है।[३]
उपयोग
ज़ांस्करी को विशेष रूप से लद्दाख जैसे क्षेत्र के उच्च ऊंचाई और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में काम करने के लिए व्यवहार में लाया जाता है। यह इलाका समुद्र तल से 3000 और 5000 मीटर के बीच स्थित है और जहां तापमान -40 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है। यह मजबूत और गठीला जीव है और अच्छी सहनशक्ति रखता है। लद्दाख में कई सामान ढोने में इसका उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग सवारी के लिए और पोलो के लिए भी किया जाता है।[४]