जयपुर के दर्शनीय स्थल
राजस्थान की राजधानी जयपुर को गुलाबी नगरी नाम से भी जाना जाता है। इस नगर में सुंदर नगरों, हवेलियों और किलों की भरमार है। जयपुर का अर्थ है - जीत का नगर। इसे कुशवाह राजपूत राजा सवाई जय सिंह, द्वितीय ने 1727 में बसाया था। उस समय का यह प्रथम नगर था जो योजनाबद्ध ढ़ंग से बसाया गया था। इसका ख़ाका तैयार किया था वास्तु शिल्पी विद्याधर भट्टाचार्य ने।
मुगलों ने जो भवन बनवाए उनमें लाल पत्थर का उपयोग किया जबकि राजा जय सिंह ने पूरे नगर को गुलाबी रंग से पुतवाया। जिसके कारण जयपुर को गुलाबी नगर कहा जाता है l
जयपुर को यदि पास से देखना हो तो पूरे नगर को पैरों से नापना एक अच्छा विकल्प हो सकता है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से यह नगर २६२ किमी की दूरी पर स्थित है और बस, रेल और हवाई यातायात से अच्छे से जुड़ा है। यहाँ की प्रमुख भाषाएँ हिन्दी और राजस्थानी है।
जयपुर में आने के बाद पता चलता है, कि आप किसी रजवाडे में प्रवेश कर गये है हैं, शाही साफ़ा बांधे जयपुर के बना और लंहगा-चुन्नी से सजी जयपुर की नारियां, गपशप मारते जयपुर के वृद्ध लोग, राजस्थानी भाषा में कितनी प्यारी बोलियां,पधारो म्हारे देश जैसा स्वागत और बैठो सा, जीमो सा, जैसी बातें, कितनी सुहावनी लगती है।
यहाँ के विभिन्न दर्शनीय स्थल इस प्रकार हैं।
सिटी पैलेस
सिटी पैलेस जयपुर का एक प्रमुख लैंडमार्क है। राजस्थानी व मुगल शैलियों की मिश्रित रचना एक पूर्व शाही निवास जो पुराने शहर के बीचों बीच खड़ा है। भूरे संगमरमर के स्तंभों पर टिके नक्काशीदार मेहराब, सोने व रंगीन पत्थरों की फूलों वाली आकृतियों ले अलंकृत है। संगमरमर के दो नक्काशीदार हाथी प्रवेश द्वार पर प्रहरी की तरह खड़े है। जिन परिवारों ने पीढ़ी दर पीढ़ी राजाओं की सेवा की है वे लोग गाइड के रूप में कार्य करते है। पैलेस में एक संग्राहलय है जिसमें राजस्थानी पोशाकों व मुगलों तथा राजपूतों के हथियार का बढ़िया संग्रह हैं। इसमें विभिन्न रंगों व आकारों वाली तराशी हुई मूंठ वाकी तलवारें भी हैं, जिनमें से कई मीनाकारी के जड़ऊ काम व जवाहरातों से अलंकृत है तथा शानदार जड़ी हुई म्यानों से युक्त हैं। महल में एक कलादीर्घा भी हैं जिसमें लघुचित्रों, कालीनों, शाही साजों सामान और अरबी, फारसी, लेटिन व संस्कृत में दुर्लभ खगोल विज्ञान की रचनाओं का उत्कृष्ट संग्रह है जो सवाई जयसिंह द्वितीय ने विस्तृत रूप से खगोल विज्ञान का अध्ययन करने के लिए प्राप्त की थी।
जंतर मंतर
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सिटी पैलेस से कुछ दूरी पर स्थित है, जयपुर का जंतर मंतर। यह एक पत्थर की वेगशाला है। यह जयसिंह की पाँच वेगशालाओं में से सबसे विशाल है। इसके जटिल यंत्र, इसका विन्यास व आकार वैज्ञानिक ढंग से तैयार किया गया है। यह मध्ययुगीन भारत के खगोल विज्ञान के उच्च सूत्रों का प्रतिनिधित्व करतें है। इनमें सबसे प्रभावशाली रामयंत्र है जिसका उपयोग ऊंचाई नापने के लिए किया जाता है। जंतर मंतर परिसर में सवाई जय सिंह द्वारा तारों की गणना करने में उपयोग करने वाले कई उपकरण रखें हैं।
हवा महल
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ईसवी सन् १७९९ में निर्मित हवा महल राजपूतो का मुख्य प्रमाण चिन्ह है। यह जयपुर की पहचान भी है। पुरानी नगरी की मुख्य गलियों के साथ यह पाँच तलीय भवन गुलाबी रंग में अर्धअष्टभुजाकार और परिष्कृत छतेदार बलुए पत्थर की खिड़कीयों से सुसज्जित है। शाही घरानों की स्त्रियां नगर का दैनिक जीवन व नगर के जुलूस देख सके इसी उद्देश्य से इस भवन की रचना की गई थी। यहाँ से नगर का अच्छ दृश्य दिखता है। इस महल को इस प्रकार बनाया गया है, की अंदर से बाहर तो देखा जा सकता है, लेकिन बाहर से अंदर नहीं।
गोविंद देवजी का मंदिर
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। भगवान कृष्ण का जयपुर का सबसे प्रसिद्ध बिना शिखर का मंदिर। यह चन्द्र महल के पूर्व में बने जन निवास बगीचे के मध्य अहाते में स्थित है। संरक्षक देवता गोविंदजी की मुर्ति पहले वृंदावन के मंदिर में स्थापित थी जिसको सवाई जय सिंह द्वितीय ने अपने परिवार के देवता के रूप में यहाँ पुनः स्थापित किया था।
सरगासूली
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। (ईसर लाट) - त्रिपोलिया बाजार के पशिचमी किनारे पर क्षितिज को छूती उच्चतम इमारत जिसका निर्माण ईसवी सन् 1749 में सवाई ईश्वरी सिंह मे महान विजय को मनाने के लिए किया था।
राम निवास बाग
एक चिड़ियाघर, दरबा, पौधाघर, वनस्पति संग्राहलय से युक्त एक हरा भरा विस्तृत बाग, खेल का प्रसिद्ध मैदान भी है। बाढ राहत परियोजना के अंतर्गत ईसवी सन् १८६५ में सवाई राम सिंह द्वितीय ने इसे बनवाया था। सर सवीटन जैकब द्वारा रूपांकित, अल्बर्ट हाल जो भारतीय वास्तुकला शैली का परिष्कृत नमूना है, जिसे बाद में उत्कृष्ट मूर्तियों, चित्रों, सज्जित बर्तनों, प्राकृतिक विज्ञान के नमूनों, इजिप्ट की एक ममी और प्रख्यात फारस के कालीनों से सुसज्जित कर खोला गया। हाल ही में, सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए एक प्रेक्षागृह के साथ रवीन्द्र मंच, एक आधुनिक कलादीर्घा व एक खुला थियेटर इसमें बनाया गया हैं।
गुड़िया घर
(समयः १२ बजे से सात बजे तक) - पुलिस स्मारक के पास गूंगे बहरों के विद्यालय के अहाते में विभिन्न देशों की प्यारी गुड़ियाँ यहाँ प्रदर्शित हैं।
बी एम बिड़ला तारामण्डल
(समयः १२ बजे से सात बजे तक)- अपने आधुनिक कम्पयूटर युक्त प्रक्षेपण व्यवस्था के साथ इस ताराघर में श्रव्य व दृश्य शिक्षा व मनोरंजनों के साधनों की अनेखी सुविधा उपलब्घ है। विद्यालयों के दलों के लिये रियायत उपलब्ध है। प्रत्येक महीने के आखिरी बुघवार को यह बंद रहता है।
गलताजी
एक प्राचीन तार्थस्थल, निचली पहाड़ियों के बीच बगीचों से परे स्थित। मंदिर, मंडप और पवित्र कुंडो के साथ हरियाली युक्त प्राकृतिक दृश्य इसे आन्नददायक स्थल बना देते हैं। दीवान कृपाराम द्वारा निर्मित उच्चतम चोटी के शिखर पर बना सूर्य देवता का छोटा मंदिर शहर के सारे स्थानों से दिखाई पड़ता है।
जैन मंदिर
आगरा मार्ग पर बने इस उत्कृष्ट जैन मंदिर की दीवारों पर जयपुर शैली में उन्नीसवीं सदी के अत्यधिक सुंदर चित्र बने हैं।Galta Ji Lake
मोती डूंगरी और लक्ष्मी नारायण मंदिर
मोती डूंगरी एक निजी पहाड़ी ऊचाँई पर बना किला है जो स्कॉटलैण्ड के महल की तरह निर्मित है। कुछ वर्षों पहले, पहाड़ी पादगिरी पर बना गणेश मंदिर और अद्भुत लक्ष्मी नारायण मंदिर भी उल्लेखनीय है।
स्टैच्यू सर्किल
चक्कर के मध्य सवाई जयसिंह का स्टैच्यू बहुत ही उत्कृष्ट ढंग से बना हुआ है। इसे जयपुर के संस्थापक को श्रद्धांजलि देने के लिए नई क्षेत्रीय योजना के अंतर्गत बनाया गया है।
अन्य स्थल
आमेर मार्ग पर रामगढ़ मार्ग के चौराहे के पास रानियों की याद में बनी आकर्षक महारानी की छतरी है। मानसागर झील के मध्य, सवाई माधोसिंह प्रथम द्वारा निर्मित जल महल, एक वशीभूत करने वाला स्थल है। परिष्कृत मंदिरों व बगीचों वाले कनक वृंदावन भवन की पुरातन पूर्णता को अभी हाल ही में पुनर्निर्मित किया गया है। इस सड़क के पश्चिम में गैटोर में शाही शमशान घाट है जिसमें जयपुर के सवाई ईश्वरी सिंह के सिवाय समस्त शासकों के भव्य स्मारक हैं। बारीक नक्काशी व लालित्यपूर्ण आकार से युक्त सवाई जयसिंह द्वितीय की बहुत ही प्रभावशाली छतरी है। प्राकृतिक पृष्ठभूमि से युक्त बगीचे आगरा मार्ग पर दीवारों से घिरे शहर के दक्षिण पूर्वी कोने पर घाटी में फैले हुए हैं।
गैटोर
सिसोदिया रानी के बाग में फव्वारों, पानी की नहरों, व चित्रित मंडपों के साथ पंक्तिबद्ध बहुस्तरीय बगीचे हैं व बैठकों के कमरे हैं। अन्य बगीचों में, विद्याधर का बाग बहुत ही अच्छे ढ़ग से संरक्षित बाग है, इसमें घने वृक्ष, बहता पानी व खुले मंडप हैं। इसे शहर के नियोजक विद्याधर ने निर्मित किया था।
आमेर
साँचा:main यह कभी सात शताव्दियों तक ढूंडार के पुराने राज्य के कच्छवाहा शासकों की राजधानी थी। आरंभिक ढ़ाचा अब थोड़ा ही बचा है।
आमेर और शीला माता मंदिर
लगभग दो शताब्दी पूर्व राजा मान सिंह, मिर्जा राजा जय सिंह और सवाई जय सिंह द्वारा निर्मित महलों, मंडपों, बगीचों और मंदिरों का एक आकर्षक भवन है। मावठा झील के शान्त पानी से यह महल सीधा उभरता है और वहाँ कठिन रास्ते द्वारा ही पहुंचा जा सकता है। सिंह पोल और जलेब चौक तक अकसर पर्यटक हाथी पर सवार होकर जाते हैं। चौक के सिरे से सीढ़ियों की पंक्तियाँ उठती हैं, एक शिला माता के मंदिर की ओर जाती है और दूसरी महल के भवन की ओर। यहां स्थापित करने के लिए राजा मान सिंह द्वारा संरक्षक देवी की मूर्ति, जिसकी पूजा हजारों श्रद्धालु करते है, पूर्वी बंगाल (जो अब बंगला देश है) के जेसोर से यहां लाई गई थी। एक दर्शनीय खंभो वाला हॉल दीवान-ए-आम और एक दोमंजिला चित्रित प्रवेशद्वार, गणेश पोल आगे के पंरागण में है। गलियारे के पीछे चारबाग की तरह का एक रमणीय छोटा बगीचा है जिसकी दाई तरफ सुख निवास है और बाई तरफ जसमंदिर। इसमें मुगल व राजपूत वास्तुकला का मिश्रित है, बारीक ढंग से नक्काशी की हुई जाली की चिलमन, बारीक शीशों और गचकारी का कार्य और चित्रित व नक्काशीदार निचली दिवारें। मावठा झील के मध्य में सही अनुपातित मोहन बाड़ी या केसर क्यारी और उसके पूर्वी किनारे पर दिलराम बाग ऊपर बने महलों का मनोहर दृश्य दिखाते है।
पुराना शहर
कभी राजाओं, हस्तशिल्पों व आम जनता का आवास आमेर शहर अब खंडहर बन गया है। आकर्षक ढंग से नक्काशी किया व सुनियोजित जगत शिरोमणि मंदिर, मीराबाई से जुड़ा एक कृष्ण मंदिर, नरसिंहजी का पुराना मंदिर व अच्छे ढ़ग से बना सीढ़ियों वाला कुआँ, पन्ना मियां का कुण्ड समृद्ध अतीत के अवशेष है।
जयगढ़ किला
साँचा:main मध्ययुगीन भारत के कुछ सैनिक इमारतों में से एक। महलों, बगीचों, टांकियों, अन्य भन्डार, शस्त्रागार, एक सुनोयोजित तोप ढलाई-घर, अनेक मंदिर, एक लंबा बुर्ज और एक विशालकाय चढी हुई तोप - जय बाण जो देश की सबसे बड़ी तोपों में से एक है, इसमें अपना प्राचीन वैभव सुरक्षित करके रखा हुआ है। जयगढ़ के फैले हुए परकोटे, बुर्ज और प्रवेश द्वार पश्चिमी द्वार क्षितिज को छूते है। नाहरगढः जयगढ की पहाड़ियों के पीछे स्थित गुलाबी शहर का पहरेदार है - नाहरगढ़ किला। यद्यपि इसका बहुत कुछ हिस्सा ध्वस्त हो गया है, फिर भी सवाई मान सिंह द्वितीय व सवाई माधव सिंह द्वितीय द्वारा बनाई मनोहर इमारतें किले की रौनक बढ़ती है।
सांगानेर
(१२ किलोमीटर) - यह टोंक मार्ग पर स्थित है। इसके ध्वस्त महलों के अतिरिक्त, सांगानेर के उत्कृष्ट नक्काशीदार जैन मंदिर है। दो त्रिपोलिया (तीन मुख्य द्वार) के अवशेषो द्वारा नगर में प्रवेश किया जाता है। शिल्प उद्योग के लिए शहर महत्वपूर्ण केन्द्र है और ठप्पे व जालीदार छपाई की इकाइयों द्वारा हाथ से बने बढिया कपड़े यहां बनते है। यह कपड़ा देश व विदेश में प्रसिद्ध है।
बगरू
(३४ किलोमीटर) - अजमेर मार्ग पर, भूमि के छूता किला, अभी भी अच्छी अवस्था में है। यह अपने हाथ की छपाई के हथकरघा उद्योग के लिए उल्लेखनीय है, जहां सरल तकनीको का प्रयोग होता है। इस हथकरघाओं के डिजाइन कम जटिल व मटियाले रंगो के होते है।
रामगढ़ झील
(३२ किलोमीटर उत्तर-पूर्व) - पेड़ो से आच्छादित पहाड़ियो के बीच एक ऊंचा बांध बांधकर एक विशाल कृत्रिम झील की निर्माण किया गया है। यद्यपि जमवा माता का मंदिर व पुराने किले के खंडहर इसके पुरावशेष है। विशेषकर बारिश के मौसम में इसके आकर्षक प्राकृतिक दृश्य इसको एक बेहतर पिकनिक स्थल बना देते है।
सामोद
(४० किलोमीटर उत्तर-पूर्व) - सुन्दर सामोद महल का पुनर्निमाण किया गया तथा यह राजपूत हवेली वास्तुकला का बेहतर नमुना है व घूमने के लिए उत्तम स्थल।
बैराठ
(शाहपुरा - अलवर मार्ग ८६ किलोमीटर दूर) - खुदाई करने पर निकले एक वृताकार बौध मंदिर के अवशेषों से युक्त एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान है जो राजस्थान का असाधारण व भारत का आरंभिक प्रसिद्ध मंदिर है। बैराठ के मौर्य, मुगल व राजपूत समय के स्मृतिचिन्ह भी है। अकबर द्वारा निर्मित एक खान, एक रमणीय मुगल बगीचा औक जहांगीर द्वारा निर्मित चित्रित छतरियों व दीवारों से युक्त असाधारण इमारत अन्य आकर्षण है।
सांभर
साँचा:main (पश्चिम से १४ किलोमीटर) - विशाल टापू वाली भारत की नमक की झील, पवित्र देवयानी कुंड, महल और पास ही स्थित नालियासार के प्रसिद्ध है।
जयसिंहपुरा खोर
(अजमेर मार्ग से १२ किलोमीटर) - मीणा कबीले के इस आवास में एक दुर्जय किला, एक जैन मंदिर और हरे भरे वातावरण के बीच एक बावड़ी है।
माधोगढ़
तुंगा (बस्सी लालसोट आगरा मार्ग से ४० किलोमीटर) - जयपुर व मराठा सेना के बीच हुए एतिहासिक युग का तुंगा गवाह है। सुंदर आम के बागो के बीच यह किला बसा है। जयपुर में बस्सी भी एक खास है यह एक छोटे जयपुर की तरह है। यहाँ पर कई आधिकारिक विभागों के अधिकारी और कर्मी जनता की समस्याओं को कैम्प अदालत के रूप में सुनकर उसका समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं। [१]
सन्दर्भ
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