यज्ञोपवीत

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यज्ञोपवीत


यज्ञोपवीत (संस्कृत संधि विच्छेद= यज्ञ+उपवीत) शब्द के दो अर्थ हैं-
उपनयन संस्कार जिसमें जनेऊ पहना जाता है और विद्यारंभ होता है। मुंडन और पवित्र जल में स्नान भी इस संस्कार के अंग होते हैं। सूत से बना वह पवित्र धागा जिसे यज्ञोपवीतधारी व्यक्ति बाएँ कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है।
यज्ञोपवीत एक विशिष्ट सूत्र को विशेष विधि से ग्रन्थित करके बनाया जाता है। इसमें सात ग्रन्थियां लगायी जाती हैं। ब्राह्मणों के यज्ञोपवीत में ब्रह्मग्रंथि होती है। तीन सूत्रों वाले इस यज्ञोपवीत को गुरु दीक्षा के बाद हमेशा धारण किया जाता है। तीन सूत्र हिंदू त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। अपवित्र होने पर यज्ञोपवीत बदल लिया जाता है। बिना यज्ञोपवीत धारण किये अन्न जल गृहण नहीं किया जाता।

यज्ञोपवीत धारण करने का मन्त्र:

बाजसनेयीनाम् ;


यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्रं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ।।

(पारस्कर गृह्यसूत्र, ऋग्वेद, २/२/११)

छन्दोगानाम्:

ॐ यज्ञो पवीतमसि यज्ञस्य त्वोपवीतेनोपनह्यामि।।


यज्ञोपवीत उतारने का मंत्र:


एतावद्दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया।
जीर्णत्वात्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम्।।

जनेऊ:

जनेऊ का नाम सुनते ही सबसे पहले जो चीज़ मन में आती है, वो है धागा, दूसरी चीज है ब्राह्मण। जनेऊ का संबंध क्या सिर्फ ब्राह्मण से है, ये जनेऊ पहनते क्यों हैं, क्या इसका कोई लाभ है, जनेऊ क्या, क्यों, कैसे आज आपका परिचय इससे ही करवाते हैं।

जनेऊ को उपवीत, यज्ञसूत्र, व्रतबन्ध, बलबन्ध, मोनीबन्ध और ब्रह्मसूत्र के नाम से भी जाना जाता है।

हिन्दू धर्म के 24 संस्कारों (आप सभी को 16 संस्कार पता होंगे लेकिन वो प्रधान संस्कार हैं, 8 उप संस्कार हैं, जिनके विषय मे आगे आपको जानकारी दूँगा) में से एक ‘उपनयन संस्कार’ के अंतर्गत ही जनेऊ पहनी जाती है, जिसे ‘यज्ञोपवीत धारण करने वाले व्यक्ति को सभी नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है। उपनयन का शाब्दिक अर्थ है, "सन्निकट ले जाना" और उपनयन संस्कार का अर्थ है- "ब्रह्म (ईश्वर) और ज्ञान के पास ले जाना"

हिन्दू धर्म में प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना। हर हिन्दू जनेऊ पहन सकता है बशर्ते कि वह उसके नियमों का पालन करे। ब्राह्मण ही नहीं समाज का हर वर्ग जनेऊ धारण कर सकता है। जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। द्विज का अर्थ होता है दूसरा जन्म। मतलब सीधा है जनेऊ संस्कार के बाद ही शिक्षा का अधिकार मिलता था और जो शिक्षा नही ग्रहण करता था उसे शूद्र की श्रेणी में रखा जाता था (वर्ण व्यवस्था)।

जिस लड़की को आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करना हो, वह जनेऊ धारण कर सकती है। ब्रह्मचारी तीन और विवाहित छह धागों की जनेऊ पहनता है। यज्ञोपवीत के छह धागों में से तीन धागे स्वयं के और तीन धागे पत्नी के बतलाए गए हैं।

जनेऊ का आध्यात्मिक महत्व:

जनेऊ में तीन-सूत्र: त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक – देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक – सत्व, रज और तम के प्रतीक होते है। साथ ही ये तीन सूत्र गायत्री मंत्र के तीन चरणों के प्रतीक है तो तीन आश्रमों के प्रतीक भी। जनेऊ के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। अत: कुल तारों की संख्‍या नौ होती है। इनमे एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर कुल नौ होते हैं। इनका मतलब है – हम मुख से अच्छा बोले और खाएं, आंखों से अच्छा देंखे और कानों से अच्छा सुने। जनेऊ में पांच गांठ लगाई जाती है, इसे प्रवर कहते हैैं जो ब्रह्म, धर्म, अर्ध, काम और मोक्ष का प्रतीक है। ये पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों के भी प्रतीक है। प्रवर की संख्या १, ३ और ५ होती है।



लंबाई: जनेऊ की लंबाई 96 अंगुल होती है क्यूंकि जनेऊ धारण करने वाले को 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने का प्रयास करना चाहिए। 32 विद्याएं चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्रग्रंथ, नौ अरण्यक मिलाकर होती है। 64 कलाओं में वास्तु निर्माण, व्यंजन कला, चित्रकारी, साहित्य कला, दस्तकारी, भाषा, यंत्र निर्माण, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, दस्तकारी, आभूषण निर्माण, कृषि ज्ञान आदि आती हैं।

जनेऊ के लाभ:

प्रत्यक्ष लाभ, जो आज के लोग समझते हैं -

जनेऊ में नियम है कि जनेऊ बाएं कंधे से दाये कमर पर पहनना चाहिए। मल-मूत्र विसर्जन के दौरान जनेऊ को दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए। इसका मूल भाव यह है कि जनेऊ कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न हो। यह बेहद जरूरी होता है।

मतलब साफ है कि जनेऊ पहनने वाला व्यक्ति ये ध्यान रखता है कि मलमूत्र करने के बाद खुद को साफ करना है इससे उसको इंफेक्शन का खतरा कम से कम हो जाता है।

अप्रत्यक्ष लाभ, जिसे कम लोग जानते हैं -

शरीर में कुल 365 एनर्जी पॉइंट होते हैं। अलग-अलग बीमारी में अलग-अलग पॉइंट असर करते हैं। कुछ पॉइंट कॉमन भी होते हैं। एक्युप्रेशर में हर पॉइंट को दो-तीन मिनट दबाना होता है। और जनेऊ से हम यही काम करते है उस पॉइंट को हम एक्युप्रेश करते हैं।

कैसे? आइये समझते हैं -

कान के नीचे वाले हिस्से (इयर लोब) की रोजाना पांच मिनट मसाज करने से याददाश्त बेहतर होती है। यह टिप पढ़नेवाले बच्चों के लिए बहुत उपयोगी है। अगर भूख कम करनी है तो खाने से आधा घंटा पहले कान के बाहर छोटेवाले हिस्से (ट्राइगस) को दो मिनट उंगली से दबाएं। भूख कम लगेगी। यहीं पर प्यास का भी पॉइंट होता है। निर्जला व्रत में लोग इसे दबाएं, तो प्यास कम लगेगी।

एक्युप्रेशर की शब्दावली में इसे पॉइंट जीवी 20 या डीयू 20 कहते हैं।
इसका लाभ आप देखें -

जीवी 20 -
स्थान : कान के पीछे के झुकाव में।
उपयोग: डिप्रेशन, सिरदर्द, चक्कर और सेंस ऑर्गन यानी नाक, कान और आंख से जुड़ी बीमारियों में राहत। दिमागी असंतुलन, लकवा और यूटरस की बीमारियों में असरदार।(दिए गए चित्र में समझें)

इसके अलावा इसके कुछ अन्य लाभ, जो क्लीनिकली प्रमाणित हैं -

1. बार-बार बुरे स्वप्न आने की स्थिति में जनेऊ धारण करने से ऐसे स्वप्न नहीं आते।
2. जनेऊ के हृदय के पास से गुजरने से यह हृदय रोग की संभावना को कम करता है, क्योंकि इससे रक्त संचार सुचारू रूप से संचालित होने लगता है।
3. जनेऊ पहनने वाला व्यक्ति सफाई नियमों में बंधा होता है। यह सफाई उसे दांत, मुंह, पेट, कृमि, जीवाणुओं के रोगों से बचाती है।
4. जनेऊ को दायें कान पर धारण करने से कान की वह नस दबती है, जिससे मस्तिष्क की कोई सोई हुई तंद्रा कार्य करती है।
5. दाएं कान की नस अंडकोष और गुप्तेन्द्रियों से जुड़ी होती है। मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से शुक्राणुओं की रक्षा होती है।
6. कान में जनेऊ लपेटने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जाग्रण होता है।
7. कान पर जनेऊ लपेटने से पेट संबंधी रोग एवं रक्तचाप की समस्या से भी बचाव होता है।

जनेऊ संस्कार का महत्व:
यह अति आवश्यक है कि हर परिवार धार्मिक संस्कारों को महत्व देवें, घर में बड़े बुजर्गों का आदर व आज्ञा का पालन हो, अभिभावक  बच्चों  के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह समय पर करते रहे। धर्मानुसार आचरण करने से सदाचार, सद्‌बुद्धि, नीति-मर्यादा, सही – गलत का ज्ञान प्राप्त होता है और घर में सुख शांति कायम रहती है। यह नियम ऊँची जातियों में होता हैं।

1. जनेऊ यानि दूसरा जन्म (पहले माता के गर्भ से दूसरा धर्म में प्रवेश से) माना गया है।
2. उपनयन यानी ज्ञान के नेत्रों का प्राप्त होना, यज्ञोपवीत याने यज्ञ – हवन करने का अधिकार प्राप्त होना।
3. जनेऊ धारण करने से पूर्व जन्मों  के बुरे कर्म नष्ट हो जाते हैं।
4. जनेऊ धारण करने से आयु, बल, और बुद्धि में वृद्धि होती है।
5. जनेऊ धारण करने से शुद्ध चरित्र और जप, तप, व्रत की प्रेरणा मिलती है।
6. जनेऊ से नैतिकता एवं मानवता के पुण्य कर्तव्यों को पूर्ण करने का आत्म बल मिलता है।
7. जनेऊ के तीन धागे माता-पिता की सेवा और गुरु भक्ति का कर्तव्य बोध कराते हैं।
8. यज्ञोपवीत संस्कार बिना विद्या प्राप्ति, पाठ, पूजा अथवा व्यापार करना सभी निर्थरक है।
9. जनेऊ के तीन धागों  में 9 लड़ होती है, फलस्वरूप जनेऊ पहनने से 9 ग्रह प्रसन्न रहते हैं।
10. शास्त्रों के अनुसार ब्राह्मण बालक 09 वर्ष, क्षत्रिय 11 वर्ष और वैश्य के बालक का 13 वर्ष के पूर्व संस्कार होना चाहिये और किसी भी परिस्थिति में विवाह योग्य आयु के पूर्व अवश्य हो जाना चाहिये।

सन्दर्भ


बाहरी कड़ियाँ