प्रजनन तंत्र
प्रजनन तंत्र (Reproductive System) का कार्य संतानोत्पत्ति है। प्राणिवर्ग मात्र में प्रकृति ने संतानोत्पत्ति की अभिलाषा और शक्ति भर दी है। जीवन का यह प्रधान लक्षण है। प्राणियों की निम्नतम श्रेणी, जैसे अमीबा नामक एककोशी जीव, जीवाणु तथा वाइरस में प्रजनन या संतानोत्पत्ति ही जीवन का लक्षण है। निम्नतम श्रेणी के जीवाणु अमीबा आदि में संतानोत्पत्ति केवल विभाजन (direct division) द्वारा होती है। एक जीव बीच में से संकुचित होकर दो भागों में विभक्त हो जाता है। कुछ समय पश्चात् यह नवीन जीव भी विभाजन प्रारंभ कर देता है।
ऊँची श्रेणियों के जीवों में प्रकृति ने नर और मादा शरीर ही पृथक् कर दिए हैं और उनमें ऐसे अंग उत्पन्न कर दिए हैं जो उन तत्वों या अणुओं को उत्पन्न करते हैं, जिनके संयोग से माता-पिता के समान नवीन जीव उत्पन्न होता है, प्रथम अवस्था में यह डिंब (ovum) कहलाता है और फिर आगे चलकर गर्भ या भ्रूण (foetus) कहा जाता है। इसको धारण करने के लिए भी मादा शरीर में एक पृथक् अंग बनाया गया है, जिसको गर्भाशय (Uterine) कहते हैं।
प्रजनन अंग
समस्त स्तनपायी (mammalia) श्रेणी में, जिनमें मनुष्य भी एक है, नर में अंडग्रंथि, शुक्राशय और शिश्न गर्भ को उत्पन्न करनेवाले अंग हैं। स्त्री शरीर में इन्हीं के समान अंग डिंबग्रंथि, डिंबवाही नलिका और गर्भाशय हैं। योनि भी प्रजनन अंगों में ही गिनी जाती है, यद्यपि वह केवल एक मार्ग है। Female reproductive tract ke aander lagya jata hai
गर्भधारण (Conception)
गर्भस्थापना करनेवाले तत्वों को उत्पन्न करनेवाले अंग नर में अंडग्रंथि में डिंब। शुक्राणुओं को नर मादा की योनि में मैथुन क्रिया द्वारा पहुँचाता है। वहाँ से वे गर्भाशय में चले जाते हैं। इसके ऊपरी दोनों किनारों पर डिंबवाही नलिकाएँ होती हैं, जिनमें शुक्राणु प्रवेश करके उसके दूसरे सिरे की ओर यात्रा करते हैं। उधर स्त्री की डिंबग्रंथि में