चिलिका झील

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साँचा:infobox चिलिका झील (Chilika Lake), जिसे चिल्का झील (Chilka Lake) भी कहा जाता है, भारत के ओड़िशा राज्य के पुरी, खोर्धा और गंजाम ज़िलों में स्थित एक अर्ध-खारे जल की अनूपझील (लगून) है। इसमें कई धाराओं से जल आता है और पूर्व में बंगाल की खाड़ी में बहता है। इसका क्षेत्रफल 1,100 वर्ग किमी से अधिक है और यह भारत की सबसे बड़ी तटीय अनूपझील और विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्धखारी अनूपझील है।[३][४][५]

चिल्का भारत की सबसे बड़ी तटीय झील है जो उड़ीसा में स्थित है यहां खारे पानी की एक लैगून झील है! चिल्का झील स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। की लंबाई 65KM चौड़ाई 9 से 20KM.और गहराई लगभग 2 मी.है! इसे दया और भार्गवी नदी से जल प्राप्त होता है यहां पर नौसेना का प्रशिक्षण केंद्र अवस्थित है

विवरण

चिलिका झील 70 किलोमीटर लम्बी तथा 30 किलोमीटर चौड़ी है। यह समुद्र का ही एक भाग है जो महानदी द्वारा लायी गई मिट्टी के जमा हो जाने से समुद्र से अलग होकर एक छीछली झील के रूप में हो गया है। दिसम्बर से जून तक इस झील का जल खारा रहता है किन्तु वर्षा ऋतु में इसका जल मीठा हो जाता है। इसकी औसत गहराई 3 मीटर है। इस झील के पारिस्थितिक तंत्र में बेहद जैव विविधताएँ हैं। यह एक विशाल मछली पकड़ने की जगह है। यह झील 132 गाँवों में रह रहे 150,000 मछुआरों को आजीविका का साधन उपलब्ध कराती है।[६]

इस खाड़ी में लगभग 160 प्रजातियों के पछी पाए जाते हैं। कैस्पियन सागर, बैकाल झील, अरल सागर और रूस, मंगोलिया, लद्दाख, मध्य एशिया आदि विभिन्न दूर दराज़ के क्षेत्रों से यहाँ पछी उड़ कर आते हैं। ये पछी विशाल दूरियाँ तय करते हैं। प्रवासी पछी तो लगभग १२००० किमी से भी ज्यादा की दूरियाँ तय करके चिल्का झील पंहुचते हैं।

1981 में, चिल्का झील को रामसर घोषणापत्र के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि के रूप में चुना गया। यह इस मह्त्व वाली पहली पहली भारतीय झील थी।[७][८]

एक सर्वेक्षण के मुताबिक यहाँ 45% पछी भूमि, 32% जलपक्षी और 23% बगुले हैं। यह झील 14 प्रकार के रैपटरों का भी निवास स्थान है। लगभग 155 संकटग्रस्त व रेयर इरावती डॉल्फ़िनों का भी ये घर है। इसके साथ ही यह झील 37 प्रकार के सरीसृपों और उभयचरों का भी निवास स्थान है। [९]

उच्च उत्पादकता वाली मत्स्य प्रणाली वाली चिल्का झील की पारिस्थिकी आसपास के लोगों व मछुआरों के लिये आजीविका उपलब्ध कराती है। मॉनसून व गर्मियों में झील में पानी का क्षेत्र क्रमश: 1165 से 906 किमी2 तक हो जाता है। एक 32 किमी लंबी, संकरी, बाहरी नहर इसे बंगाल की खाड़ी से जोड़ती है। सीडीए द्वारा हाल ही में एक नई नहर भी बनाई गयी है जिससे झील को एक और जीवनदान मिला है। लघु शैवाल, समुद्री घास, समुद्री बीज, मछलियाँ, झींगे, केकणे आदि चिल्का झील के खारे जल में फलते फूलते हैं।

इतिहास

भूवैज्ञानिक साक्ष्य इंगित करता है कि चिल्का झील अत्यंतनूतन युग (18 लाख साल से पूर्व 10,000 साल तक) के बाद के चरणों के दौरान बंगाल की खाड़ी का हिस्सा था। चिल्का झील के ठीक उत्तर में खुर्दा जिले के गोग्लाबाई सासन गांव (लुआ त्रुटि: callParserFunction: function "#coordinates" was not found।) में खुदाई भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा आयोजित की गई।[१०] गोलाबाई गांव तीन चरणों में चिल्का क्षेत्र संस्कृति के एक दृश्य का सबूत प्रदान करता है: नवपाषाण युग (नियोलिथिक) (c. 1600 ईसा पूर्व), ताम्रपाषाण युग (c. 1400 ईसा पूर्व से c. 900 ईसा पूर्व) और लौह युग (c. 900 ईसा पूर्व से c. 800 ईसा पूर्व।[११]

भूविज्ञान

यह झील बदलते माहौल वाले वातावरण में एक ज्वारनदमुखी डेल्टा प्रकार की अल्पकालिक झील है। भूवैज्ञानिक अध्धयनों के अनुसार की झील की पश्चिमी तटरेखा का विस्तार अत्यंतनूतन युग (Pleistocene Era) में हुआ था जब इसके उत्तरपूर्वी क्षेत्र समुद्र के अंदर ही थे। इसकी तटरेखा कालांतर में पूर्व की तरफ़ सरकने के प्रमाण इस बात से मिल जाते हैं कि कोर्णाक सूर्य मंदिर जिसका निर्माण कुछ साल पहले समुद्र तट पर हुआ था अब तट से लगभग साँचा:convert दूर आ गया है।

चिल्का झील का जल निकासी कुण्ड पत्थर, चट्टान, बालू और कीचण के मिश्रण के आधार से निर्मित है। इसमें व्हिन्न प्रकार के अवसादी कण जैसे चिकनी मिट्टी, कीचड़, बालू, बजरी और शैलों के किनारे है लेकिन बड़ा हिस्सा कीचण का ही है। हर वर्ष लगभग १६ लाख मीट्रिक टन अवसाद चिल्का झील के किनारों पर दया नदी और अन्य धाराओं द्वारा जमा की जाती हैं।

एक निराधार कल्पना के अनुसार पिछले 6,000–8,000 वर्षों के दौरान विश्वव्यापी समुद्री स्तर में बढोत्तरी हुई। 7,000 साल पहले इस प्रक्रिया में आई कमी की वजह से झील के दक्षिणी क्षेत्रों में पर रेतीले तटों का निर्माण हुआ। समुद्र स्तर में बढोत्तरी के साथ साथ तट का विस्तार होता रहा और इसने पूर्वोतर में समुद्र की तरफ बढते हुए चिल्का की समुद्री भूमि का निर्माण किया। (spit of Chilika) इस समुद्री भूमि के दक्षिण-पश्चिमी छोर पर मिले एक जीवाश्म बताता है कि झील का निर्माण 3,500–4,000 वर्ष पूर्व हुआ होगा। झील के उत्तर में तट की दिशा में तीखे बदलाव, तट पर बालू को बहाती तेज हवाएँ, लंबा त्टीय मोड़ (समुद्रतटवर्ती बहाव), विभिन्न उपक्षेत्रों में मजबूत ज्वार व नदी तरंगों की उपस्थिति और अनुपस्थिति इस समुद्री भूमि (spit) के विकास का कारण हैं।

दक्षिणी क्षेत्र में वर्तमान समुद्री स्तर से साँचा:convert की उंचाई पर स्थित कोरल की सफ़ेद पट्टीयाँ यह दर्शाती हैं कि यह क्षेत्र कभी समुद्र के अंदर था और वर्तमान गहराई से कहीं ज्यादा गहरा था। बाहरी घेरेदार रेतीली भूमि पट्टी के क्रमविकास का घटनाक्रम यहाँ पाए जाने वाले खनिज पदार्थों के अध्धयन से पता किया गया है। यह अध्धयन झील की सतह के १६ नमूनों पर किया गया। नमूनों की मात्रा उपरी सतह के 40 और निचली सतह के 300 वर्ष तक पुराने होने के क्रम में 153 ± 3 mग्रे और 2.23 ± 0.07 ग्रे के बीच थी।

भूगोल और स्थलाकृति

चिल्का झील का मनचित्र जिसमें नालाबण द्वीप, चिल्का पछी अभयारण्य, डॉल्फ़िन अभयारण्य, पुरी नगर और मलुद प्रायद्वीप दिख रहे हैं।

चिल्का झील विशाल क्षेत्रों वाली कीचड़दार भूमि व छिछले पानी की खाड़ी है। पश्चिमी व दक्षिणी छोर पूर्वी घाट की पहाड़ियों के आंचल में स्थित हैं।

तमाम नदियाँ जो झील में मिट्टी व कीचड़ ले आती है झील के उत्तरी छोर को नियंत्रित करती हैं। बंगाल की खाड़ी में उठने वाली उत्तरी तरंगो से एक साँचा:convert लंबा घेरेदार बालू-तट जिसे रेजहंस,[१२] कहा जाता है, बना और इसके परिणाम स्वरूप इस छिछली झील और इसके पूर्वी हिस्से का निर्माण हुआ। एक अल्पकालिक झील की वजह से इसका जलीय क्षेत्र गर्मियों में साँचा:convert से लेकर बारिश के मौसम में साँचा:convert तक बदलता रहता है।

चिल्का झील मध्य व पश्चिम
1958 स्थलाकृतिक मानचित्र, 1:250,000
चिल्का झील का उत्तरी छोर

इस झील में बहुत सारे द्वीप हैं। संकरी नहरों से अलग हुए बड़े द्वीप मुख्य झील और रेतीली घेरेदार भूमि के मध्य स्थित हैं। कुल साँचा:convert क्षेत्रफल वाली नहरें झील को बंगाल की खाड़ी से जोड़ती हैं। इसमें छ: विशाल द्वीप हैं परीकुड़, फुलबाड़ी, बेराहपुरा, नुआपारा, नलबाणा, और तम्पारा। ये द्वीप मलुद के प्रायद्वीप के साथ मिलकर पुरी जिला के कृष्णाप्रसाद राजस्व क्षेत्र का हिस्सा हैं। [१३]

झील का उत्तरी तट खोर्धा जिला का हिस्सा है व पश्चिमी तट गंजाम जिला का हिस्सा है। तलछटीकरण के कारण रेतीले तटबंध की चौड़ाई बदलती रहती है और समुद्र की तरफ़ मुख कुछ समय के लिये बंद हो जाता है। झील के समुद्री-मुख की स्थिति भी तेजी से उत्तर-पूर्व की तरफ खिसकती रहती है। नदी मुख जो 1780 में साँचा:convert चौड़ा था चालीस साल बद सिर्फ़ साँचा:convert जितना रह गया। क्षेत्रीय मछुआरों को अपना रोजगार क्षेत्र बचाने व समुद्र में जाने के लिये झील के मुख को खोद कर चौड़ा करते रहना पड़ता है।

पानी की गहराई सूखे मौसम में साँचा:convert से साँचा:convert और वर्षा ऋतु में साँचा:convert से साँचा:convert तक बदलती रहती है। समुद्र को जाने वाली पुरानी नहर की चौड़ाई जिसे मगरमुख के नाम से जाना जाता है अब साँचा:convert है। झील मुख्यत: चार क्षेत्रों में बंटी हुई है, उत्तरी, दक्षिणी, मध्य व बाहरी नहर का इलाका। एक साँचा:convert लंबी बाहरी नहर झील को बंगाल की खाड़ी से अराखुड़ा गाँव में जोड़ती है। झील का आकर किसी नाशपाती की तरह है और इसकी अधिकतम लंबाई साँचा:convert और औसत चौड़ाई साँचा:convert बनी रहती है।[१३][१४]

जल व अवसाद की गुणवत्ता

चिल्का विकास प्राधिकरण (सीडीए) पानी की गुणवत्ता माप का एक संगठित प्रणाली की स्थापना की और लिमनोलॉजी (अंतर्देशीय जल का अध्ययन करने वाले) की तहकीकात, झील के पानी की निम्नलिखित भौतिक-रासायनिक विशेषताओं को बतलाते है।

  • झील का पानी क्षारीय है;– pH की मात्रा 7.1 से 9.6 के बीच है जिससे कुल क्षारीयता लवणता या खारेपन के समान हो जाती है। झील के दक्षिणी भाग में रम्भा के पास सबसे अधिक क्षारीयता मापी गई है।
  • क्रोड़मण्डलीय (Bathymetry) सर्वेक्षण उत्तरी भाग में छिछली गहराई दर्शाता है। यहाँ एक बड़े भाग में गहराई साँचा:convert से भी कम है जबकि दक्षिणी भाग में गहराई सबसे ज्यादा साँचा:convert तक मापी गई है।
  • उपरी पानी के अवसाद व कीचण में मिले रहने के कारण यहाँ उच्च गंदलापन (turbidity) है। स्पष्टता नाप में दृष्यता साँचा:convert के बीच पायी गयी है।
  • झील में क्षारीय स्तरों में बड़े अस्थायी व स्थानिक बदलाव ताजे पानी के निकलते रहने, वाष्पीकरण, वायु दिशाएँ व समुद्री पानी के ज्वार के साथ अंदर आने से आते रहते है। इस झील की क्षारीयता दया नदी के मुहाने पर ० हिस्से/हज़ार (Parts/Thousand) से बाहर जाने वाली नहरों में ४२ हिस्से/हज़ार तक की अत्यधिक नमकीन मात्रा तक पाई गयी है।
  • पानी में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा 3.3–18.9 mg/l तक पायी गई है।
  • फॉस्फेट फॉस्फोरस (0–0.4 ppm), नाइट्रेट नाइट्रोजन (10–60 ppm) और सिलिकेट्स (1–8 ppm) उत्तर और उत्तरपूर्व में ज्यादा है क्योंकि यहाँ विभिन्न नदियाँ सिल्ट डालती हैं।
  • झील को क्षारीय मात्रा के अनुसार मुख्य रूप से ४ भागों में विभाजित किया गया है। जिन्हें मुख्यत: दक्षिणी, मध्य, उत्तरी व बाहरी नहरें के नाम से जाना जाता है। मॉनसून के दौरान ज्वार की वजह से आने वाले समुद्री पानी की भारी मात्रा से उतपन्न क्षारीयता को उत्तरी व मध्य क्षेत्रों में भारी बारिश से आये ताजे पानी की भारी मात्रा बराबर कर देती है। दक्षिणी भाग में ताजे पानी के ज्यादा ना पंहुचने की वजह से मॉनसून के दौरान भी क्षारीयता बनी रहती है। हालांकि मॉनसून के बाद के मौसम में उत्तरी हवाओं के चलने से दक्षिणी भाग में क्षारीयता कुछ कम हो जाती है। यह हवाएँ पानी को झील के अन्य भागों से मिलाने का काम करदेती हैं। गर्मियों में झील का पानी का स्तर नीचे होइता है, इसकि वजह से समुद्री पानी बाहरी नहरों से ज्यादा आता है और गर्मियों में क्षारीयता बढ जाती है।
अवसादन

तटपर तटीय खिसकाव की वजह से आने वाले प्रतिकूल ज्वारीय लेनदेन की वजह से पानी के बहाव में कमी और झील के मुहाने की अवस्थिति में हर वर्ष लगातार बदलाव आ रहा है। इसकी वजह से तलछटी में जमा होने वाली गाद की अनुमानित मात्रा 100,000 मीट्रिक टन है। इन प्रतिकूल प्रभावों की वजह से व्यापक सुधारक कार्वाइयों की आवश्यकता है।[१४]

झील के विभिन्न भागों में अवसाद की विभिन्न मात्राएँ पायी गयीं। उत्तरी भाग में साँचा:convert/वर्ष, मध्य भाग में साँचा:convert/वर्ष और दक्षिणी भाग में साँचा:convert/वर्ष के माप मिले। अवसाद के जमा होने की मात्रा दक्षिणी भाग की तुलना में उत्तरी व मध्य भाग में ज्यादा पाई गयी। [१५]

संरक्षण; खतरे व प्रबंधन

चिल्का झील

इसकी समृद्ध जैव विविधता की वजह से, 1981 में चिल्का झील को रामसर घोषणापत्र के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय महत्व की आद्र भूमि के रूप में चुना गया, जैसा कि तथ्यों के रूप में दिखाया है कि:

  • यहां सर्दियों में एक लाख प्रवासी जलपक्षी और तटपक्षी प्रवासी है।
  • 400 से अधिक रीढ़धारी प्रजातियाँ रिकॉर्ड किए गए हैं।
  • एक मुहाने लैगून के रूप में, यह मरीन का एक अनूठा संयोजन और खारे और मीठे पानी प्रजातियों का समर्थन करता है।
  • कई दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियाँ इस क्षेत्र में पाए जाते हैं।
  • झील मछली पालन, जोकि वहां के समुदाय की जीवन रेखा हैं, का समर्थन करता है।
  • झील का आनुवंशिक विविधता के संरक्षण में बहुत अधिक महत्व है।
  • यहाँ पर खरपतवार और जलीय कृषि गतिविधियों में वृद्धि हुई है।[७][८]
खतरे

इन वर्षों में, झील के पारिस्थितिकी तंत्र को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा और इनमे से कुछ खतरे निम्नलिखित है:

  • अंतर्देशीय नदी प्रणालियों से तटीय बहाव और अवसादों के कारण गाद
  • पानी की सतह क्षेत्र की सिकुड़न
  • प्रवेश नाले के जाम होने के साथ ही साथ समुद्र को जोड़ने का मार्ग भी खिसक रहा है
  • लवणता और मत्स्य संसाधनों में कमी
  • मीठे पानी आक्रामक प्रजातियों के प्रसार और
  • जैव विविधता का उत्पादकता में गिरावट के साथ ही समस्त रूप से नुकसान प्रतिकूल रूप से इसपर निर्भर जीविका के समुदाय को प्रभावित कर रहा है
  • मछुआरों और गैर मछुआरों समुदायों मछली पकड़ने के अधिकार के बारे में झील में और फलस्वरूप अदालत के मामलों के बीच झगड़े

सारांश में, नदी के ऊपर से गाद के नेतृत्व में वन्य जीवन और मत्स्य संसाधनों के निवास स्थान पर एक गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ा जो सभी के लिए पानी की सतह क्षेत्र की सिकुड़न, लवणता और आक्रामक ताजा पानी जलीय खरपतवार की विपुल विकास की कमी।

चित्र दीर्घा

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

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सन्दर्भ

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  2. साँचा:cite journal
  3. "Orissa reference: glimpses of Orissa," Sambit Prakash Dash, TechnoCAD Systems, 2001
  4. "The Orissa Gazette," Orissa (India), 1964
  5. "Lonely Planet India," Abigail Blasi et al, Lonely Planet, 2017, ISBN 9781787011991
  6. साँचा:cite web
  7. साँचा:cite web
  8. साँचा:cite web
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