रोग
amrutam अमृतमपत्रिका, ग्वालियर
क्या पाप के कारण रोग होते हैं।
किस कुकर्म या पाप की वजह से कौनसा रोग होता है?
रोग शांति के धार्मिक उपाय क्या हैं?.
दान-पुण्य करने से बीमारी दूर होती है क्या?...
स्वस्थ्य रहने के उपाय क्या हैं..
क्या गौतम स्मृति ग्रन्थ में रोगों की वजह लिखी है?..
मधुमेह या प्रमेह रोग–यह रोग पूर्व जन्म में तपस्विनी के साथ गमन/सम्भोग या सेक्स करने से होता है। इसकी शान्ति एक मास तक किसी शिवलिंग पर जल द्वारा ‘रुद्राष्टाध्यायीपाठ' तथा चने की दाल के दान से होती है।
समस्त प्राणियोंमें मानव श्रेष्ठ है; क्योंकि इसने शारीरिक उन्नतिके साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नतिके शास्त्र रचे तथा ईश्वरीय प्रेरणा एवं साधनासे गहन अध्ययन किया और शास्त्रोंके सारको ग्रहणकर सुखी रहनेके उपाय ढूँढे। आरोग्य की महत्ता समझी और जहाँ ये उपाय रुक गये तथा रोग-मुक्तिके उपाय न दिखे तो रोग क्यों होता है, इसकी खोज की और जितना हो सका आयुर्वेदसे लाभ लिया, शेष धर्मशास्त्रों से भी लाभ लिया है। यहाँ आयुर्वेदकी अपेक्षा विभिन्न धर्मशास्त्रों (स्मृतियों)-में रोग उत्पन्न होनेके जो लक्षण दिये गये हैं और जन्मान्तरीय किस निन्दित कर्मसे वर्तमानमें कौन-सा रोग हुआ है, इसका संक्षेपमें विचार किया गया है। - पूर्वजन्ममें किये पापोंसे रोग होते हैं और फिर रोगजनित चिह्न भी प्रकट होते हैं, पर जप आदि दैवव्यपाश्रय से उनकी शान्ति भी हो जाती है अर्थात् रोग ठीक हो जाते हैं। पूर्वजन्मकृतं पापं नरकस्य परिक्षये।
बाधते व्याधिरूपेण तस्य जप्यादिभिः शमः!!
(शाता० स्मृति १।५)
धर्मशास्त्रों में निर्दिष्ट कर्म-विपाक का संक्षेप में यहाँ वर्णन किया जा रहा है!
क्षयरोग, तपेदिक, टीबी होने की वजह क्या है… क्षयरोग-इसके सम्बन्धमें कहा गया है कि यह रोग तेल, घी तथा चिकनी वस्तु चुराने के कारण होता है। त्वचा में पड़नेवाले चकत्ते भी इसी दुष्कर्म से होते हैं। इतना ही नहीं, इस निन्दित कर्म से कर्ता को पतित योनियोंका भोग भी भोगना पड़ता है।-गौतमस्मृति २०१) मृगी-'प्रतिहन्ता गुरोरपस्मारी (गौतमस्मृति) अर्थात- गुरु की ताड़ना करने पर उसे मारने वाला शिष्य दूसरे जन्म में मृगी का रोगी होता है तथा गोदानसे उसकी शान्ति होती है। जन्मान्ध यानि जन्म से अंधा होने का कारण- गोनो जात्यन्धः (गौतमस्मृति २०।१)।अर्थ- गोवध करनेवाला जन्मसे अन्धा होता है। मांस का गोला-नक्षत्र से जीविका चलानेवाला मांसपिण्डका रोगी होता है। यह पिण्ड उदर में हो या कन्धे पर। गण्डरोगी-निन्दित मार्गमें चलनेवाला गण्ड- भर रोग से ग्रस्त होता है। गंजापन की वजह खल्वाट-सिरपर बाल न होवे, उसे खल्वाट कहते हैं। दुराचार करने वाले को यह रोग होता है। मधुमेह-अंग्रेजीमें इसे 'डाइबिटीज' कहते हैं। धर्मशास्त्रकी दृष्टिसे अनियमित और स्वच्छन्द यौनाचार से यह रोग होता है। नन्दी एवं गधे को भुस, चने खिलाने तथा प्रायश्चित्त करने से शान्ति मिलती है। हाथीपाँव-रोग-'सगोत्रसमयस्त्र्यभिगामी श्लीपदी।' अर्थात- यह रोग अपने गोत्र की स्त्री से गमन यानि सेक्स करने पर होता है! अजीर्णरोग-भोजनमें विघ्न करनेवालेको अजीर्ण हो जाता है। इसकी शान्ति गायत्री मन्त्र द्वारा एक लाख आहुति देने से हो जाती है। कृमिलोदर रोग-रजस्वला या अन्त्यज रोग अर्थात सभी तरह के स्त्रीरोग, सोमरोग या पीसीओडी की समस्या आदि विकार महिलाओं को-दृष्टिदोष से दूषित अन्न के भक्षण से पेटमें कीड़े होते हैं। इसकी शुद्धि गोमूत्र पानसे होती है। श्वास-कास–पीठ-पीछे निन्दा करनेवालेको नरक भोगने के बाद श्वासरोग होता है। शूलरोग-दूसरोंको दुःख देनेवाला शूलरोगी होता है। उसे अन्नदान और रुद्रजप करना चाहिये। शूली परोपतापेन जायते तत्प्रमोचने। सोऽन्नदानं प्रकुर्वीत तथा रुद्रं जपेन्नरः॥ (शाता०स्मृति ३ रक्तातिसाररोग-यह रोग वनमें आग द लगाने वाले को होता है। उसे चाहिये कि वह पानी का प्याऊ लगाये। दावाग्निदायकश्चैव रक्तातिसारवान् भवेत्। (शाता० स्मृति ३। १३) भगन्दर, बवासीर-ये दारुण रोग देवमन्दिरमें या पुण्य-जल में एक बार भी मूत्र-विष्ठा त्यागने से होता है। सुरालये जले वापि शकृण्मूत्रं करोति यः। गुदरोगो भवेत् तस्य पापरूपः सुदारुणः॥ जलोदर-प्लीहा-स्त्रीके गर्भ गिरानेवालेको 'यकृत् प्लीहा' से सम्बद्ध और जलरोग होते हैं। लकवा -सभा में पक्षपात करने वाले को पक्षाघात होता है। उसे चाहिये कि वह सात्त्विक भाव से बेजुबान पशुओं को एक माह अन्न दान करे। सभायां पक्षपाती च जायते पक्षघातवान्। निष्कत्रयमितं हेम स दद्यात् सत्यवर्तिनाम्॥ नेत्ररोग–यह रोग राँगा चुराने वाले को होता है। वह एक दिन उपवास करके बुजुर्ग जानवरों को गुड़, गेहूं दान करें। मीठा या शक्कर, गुड़ चुरानेवाले को भी नेत्ररोग होता है। गाय की सेवा करें। खुजली-यह रोग तेल चुराने से होता है। तैलचौरस्तु पुरुषो भवेत् कण्ड्वादिपीडितः। इसकी शान्ति एक दिन उपवास करने तथा जानवरों को तेल युक्त भोजन कराने से बतायी गयी है। संग्रहणी-यह रोग नाना प्रकारके द्रव्य चुराने से होता है। प्रायः अन्न, जल पशुओं को दान करने से लाभ होता है। नानाविधद्रव्यचौरो जायते ग्रहिणीयुतः। पथरी-यह रोग पराई स्त्री से गमन करनेसे होता है। मातुः सपलिगमने जायते चाश्मरीगदः। वृक्ष लगाने से पथरी नष्ट होने लगती है। पुनः नहीं बनती। कुबड़ापन या कमर के झुकना….-पापी व्यक्ति अगम्यागमनसे दूसरे जन्ममें कुबड़ा होता है। वह काले मृगचर्मका दान करे।
रोग अर्थात अस्वस्थ होना। यह चिकित्साविज्ञान का मूलभूत संकल्पना है। प्रायः शरीर के पूर्णरूपेण कार्य करने में में किसी प्रकार की कमी होना 'रोग' कहलाता है। जिस व्यक्ति को रोग होता है उसे 'रोगी' कहते हैं। हिन्दी में 'रोग' को 'बीमारी' , 'रुग्णता', 'व्याधि' और 'विकार' भी कहते हैं।
रोग का उपचार करने या उसके लक्षणों को कम करने के लिए औषध और औषधशास्त्र (फार्मेकोलॉजी) के विज्ञान का उपयोग किया जाता है। मानसिक और शारीरिक विकृतियों के कारण होने वाली गंभीर आजीवन विकलांगता को वर्णित करने के लिए 'विकासात्मक विकलांगता' शब्द का उपयोग किया जाता है।
परिभाषा
शरीर के किसी अंग/उपांग की संरचना का बदल जाना या उसके कार्य करने की क्षमता में कमी आना 'रोग' कहलाता है। किन्तु रोग की परिभाषा करना उतना ही कठिन है जितना 'स्वास्थ्य' को परिभाषित करना। सन् १९७४ तक विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दी गयी 'स्वास्थ्य' की परिभाषा यह थी-
- शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक तौर पर पूर्णतः ठीक होना ही स्वास्थ्य है; केवल रोगों की अनुपस्थिति को स्वास्थ्य नहीं कहते। [१] इनमें से किसी भी एक अवस्था का शिकार होने पर, व्यक्ति को अस्वस्थ या बीमार माना जा सकता है।
'रोग' की नवीनतम परिभाषा है-
रोग सम्बन्धी शब्दावली
शारीरिक रोग
शरीर या चित्त की वह स्थिति जिसके कारण संतप्त व्यक्ति को दर्द, दुष्क्रिया, तनाव की अनुभूति होती है, या जिनके संपर्क में आने पर व्यक्ति बीमारी का शिकार हो सकता है। कभी कभी व्यापक रूप से इस शब्द का प्रयोग चोट, विकलांगता, सिंड्रोम, संक्रमण, लक्षण, विचलक व्यवहार और संरचना एवं कार्य की विशिष्ट विविधताओं के लिए भी किया जाता है, जबकि अन्य संदर्भों में इन्हें विशेषणीय श्रेणियों में रखा जा सकता है। एक रोगजन या संक्रामक एजेंट एक जैविक एजेंट है, जिसके कारण इसके परपोषी को रोग या बीमारी होने की संभावना होती है। यात्री वायरस एक ऐसा वायरस होता है, जो किसी व्यक्ति के अंदर आसानी से फ़ैल जाती है या बीमारी या रोग को कोई लक्षण दिखाए बिना शरीर को संक्रमित कर देती है। भोजन से होने वाली बीमारी या भोजन विषाक्तता एक प्रकार की बीमारी है जो रोगजनक जीवाणु, जीव-विष, विषाणु, प्राइऑन या परजीवी से संदूषित भोजन के उपभोग के कारण होता है।
अनुकूलनीय प्रतिक्रिया
विकासपरक चिकित्साशास्त्र के अनुसार, बहुत सी बीमारियां सीधे संक्रमण या शरीर की दुष्क्रिया के कारण नहीं होती है, लेकिन यह भी शरीर द्वारा प्रदत्त एक प्रतिक्रिया है। उदाहरण के लिए, बुखार जीवाणु या विषाणु से सीधे नहीं होता है, बल्कि शरीर (प्रतिरक्षा के रूप में उनकी उपस्थिति पहचाने जाने के बाद) अपने आप को ठीक करने की कोशिश करता है और शरीर का तापमान बढ़ जाता है। विकासपरक दवा प्रतिक्रियाओं के के सेट की पहचान करता है, जो रोग व्यवहार की दशा में बुखार की फैलने में मदद करते हैं।[२][३][४] इनमें स्वास्थ्य को परिभाषित करने वाली बीमारियां जैसे आलस, हताशा, भूख का अभाव, उनींदापन, अत्यधिक पीड़ा और ध्यान केंद्रित करने में अक्षमता शामिल हैं। बुखार सहित ये सभी मस्तिष्क की उपज हैं, जो कि शीर्ष पर रह कर संपूर्ण शरीर को नियंत्रित करता है। अतः, यह आवश्यक नहीं है कि हमेशा ये संक्रमण (जैसे कि कुपोषण या गर्भावस्था में देरी के दौरान कम बुखार) का साथ नहीं देते, खासकर तब, जब इनकी कीमत होती है जो इनके लाभ को महत्वपूर्ण साबित करती है। इंसानों में, एक महत्वपूर्ण कारक विश्वास है, जो लागत और लाभ निर्धारित करने वाले मस्तिष्क के स्वास्थ्य प्रबंधन प्रणाली को प्रभावित करता है। स्वास्थ्य प्रबंधन प्रणाली, जब इसे कोई गलत जानकारी मिलती है, तो प्लेसीबो की बीमारी में कमी को वास्तविक कारण के रूप में सुझाया जाता है।[५]
मानसिक रोग
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। मानसिक बीमारी (या भावनात्मक विकलांगता, संज्ञानात्मक शिथिलता) बीमारियों की श्रेणी का सामान्य व्यापक स्तर है, जिसमें भावात्मक या भावनात्मक अस्थिरता, व्यावहारिक असंतुलन और/या संज्ञानात्मक शिथिलता या क्षति शामिल हो सकती है। विशिष्ट बीमारी के नाम से ज्ञात मानसिक बीमारियों में अत्यधिक हताशा, सामान्यीकृत दुष्चिन्ता विकार, खंडित मनस्कता और ध्यान अभाव अतिसक्रियता विकार जैसे कुछ नाम शामिल हैं। मानसिक बीमारी जैविक (जैसे संरचनात्मक, रासायनिक, या आनुवंशिक) या मनोवैज्ञानिक (जैसे मूल आघात या संघर्ष) हो सकता है। यह किसी व्यक्ति के कार्य करने या विद्यालय जाने की क्षमता को प्रभावित करता है और रिश्तों में समस्याएं उत्पन्न करता है। मानसिक बीमारी के अन्य अनुवांशिक नामों में "मानसिक विकार", "मनोरोग विकार", "मनोवैज्ञानिक विकार", "मनोविकृति", "भावनात्मक विकलांगता", "भावनात्मक समस्याएं", या "व्यवहारिक समस्या" शामिल हैं। पागलपन शब्द का तकनीकी रूप से कानूनी शब्द के रूप में उपयोग किया जाता है। मस्तिष्क क्षति से मानसिक कार्य में क्षति हो सकती है।
स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारक
स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारक लोगों के स्वास्थ्य का निर्धारण करने वाली सामाजिक स्थितियां हैं। बीमारियां आम तौर पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और पर्यावरणीय परिस्थितियों से संबंधित होती हैं। स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों की पहचान कई स्वास्थ्य संगठनों जैसे पब्लिक हेल्थ एजेंसी ऑफ कनाडा और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्वस्थता के सामूहिक और व्यक्तिगत को प्रभावित करने के लिए की गई थी।
रोगों के कारक
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। रोग उत्पन्न करने वाले कारकों को रोगजनक (पैथोजन) कहते हैं जैसे- जीवाणु, विषाणु (वायरस), प्रोटोजोआ , कवक, इत्यादि। कुछ रोग आनुवंशिक कारणों से भी उत्पन्न होते हैं।
रोगकारक निम्नलिखित हैं-
(१) जैविक कारक :- विषाणु, जीवाणु, कवक, माइकोप्लाज्म, प्रोटोजोआ, हैल्मिन्थीज तथा अन्य जीव।
(२) पौष्टिक तत्वों की कमी :- प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, खनिज लवण एवं विटामिनों की कमी।
(३) भौतक कारक :- सर्दी, गर्मी, आर्द्रता, दबाव, विद्युत आघात, विकिरण, ध्वनि आदि।
(४) यान्त्रिक कारक :- निरन्तर अधिक समय घर्षण, चोट लगना, अस्थि टूटना, मोच आना आदि।
(५) रासायनिक कारक :- यूरिया तथा यूरिक अम्ल, रासायनिक प्रदूषक जैसे पारा, सीसा (लैड), ओजोन, कैडमियम, निकिल, कोबाल्ट, आर्सैनिक आदि।
(६) पदार्थों की अधिकता :- अधिक भोजन खाने से, हार्मोनों के अधिक स्रावण से, प्रदूषकों की अधिकता से रोग उत्पन्न होते हैं।
रोगों का वर्गीकरण
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। कारकों के अधार पर रोग 2 प्रकार के होते हैं - जैविक (biotic / जीवाणुओं से होने वाले रोग) तथा अजैविक (abiotic / निर्जीव वस्तुओं से होने वाले रोग)
जैविक रोगकारक - कवक (फंगी), जीवाणु (बैक्टीरिया), विषाणु (वाइरस), माइकोप्लाज्मा
अजैविक कारक - ताप, आर्द्रता, नमी
उपचार
स्वास्थ्य सेवा चिकित्सीय नर्सिंग और स्वास्थ्य संबद्ध पेशेवरों द्वारा प्रस्तावित सेवाओं के माध्यम से रोकथाम, उपचार और बीमारी का प्रबंधन, तथा मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ संरक्षण है। ऐसी सेवाओं के व्यवस्थित प्रावधान स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का गठन कर सकते हैं। "स्वास्थ्य सेवा" शब्द के लोकप्रिय होने से पहले, अंग्रेज़ी-वक्ता इसे चिकित्सा या स्वास्थ्य से संदर्भित करते थे और बीमारी और रोग के उपचार एवं रोकथाम की बात करते थे। रोगी कोई भी व्यक्ति हो सकता है, जिसे चिकित्सीय ध्यान, देखभाल या उपचार की आवश्यकता हो। व्यक्ति अधिकांशत बीमार या चोटग्रसित होता है और चिकित्सक या अन्य चिकित्सा पेशेवर द्वारा उसका उपचार किया जा रहा होता है, या उसे उपचार की आवश्यकता होती है। स्वास्थ्य उपभोक्ता या स्वास्थ्य सेवा उपभोक्ता रोगी का एक अन्य नाम है, जिसका उपयोग सामान्यतः कुछ सरकारी एजेंसियों, बीमा कंपनियों और/या रोगी समूहों में किया जाता है।
चिकित्सीय आपातकाल चोटें या बीमारियां होती हैं, जिससे किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य और जीवन पर तत्काल खतरा हो मंडरा सकता है, जिसके लिए उसे किसी डॉक्टर के पास या अस्पताल जाने की आवश्यकता होती है। आपातकालीन चिकित्सा के चिकित्सक की विशेषज्ञता में चिकित्सा आपातस्थितियों के प्रभावी निपटान और रोगियों को पुनः होश में लाने के लिए तकनीक शामिल हैं। आपातकालीन विभाग बीमारियों और चोटों के व्यापक प्रतिबिम्ब के सथ रोगियों को आरंभिक उपचार मुहैया कराते हैं, इनमें से कुछ जीवन के लिए खतरा बन सकते हैं और इन्हें तत्काल ध्यान की आवश्यकता होती है।
दवा भोजन या सजीवों के कार्य को प्रभावित करने वाले उपकरणों से अलग एक रासायनिक पदार्थ होता है। दवाओं का उपयोग बीमारी का इलाज करने में किया जा सकता है, या इनका उपयोग व्यवहार और धारणा में पुनर्संरचनात्मक रूप से कमी लाने के लिए किया जा सकता है। दवाओं का उत्पादन विशेष रूप से औषधीय कंपनियों द्वारा किया जाता है और अक्सर इनका पेटेंट कराया जाता है। वे दवा जिनका पेटेंट नहीं कराया गया होता है, उन्हें सामान्य दवा कहते हैं। कुछ दवाओं का दुरुपयोग किए जाने पर वह जीवित जीव की समस्थिति पर बुरा प्रभाव डाल सकता है, जिससे गंभीर बीमारी या मृत्यु हो सकती है। मूलतः यह जहर का एक रूप है। जीव विज्ञान के संदर्भ में, जहर वे पदार्थ होते हैं, जिसके सेवन से बीमारी हो सकती है।
चिकित्सा उपचार के रूप में संपूर्ण आराम दिन-रात बिस्तर पर रहने का संदर्भ देता है। हालांकि अस्पतालों में अधिकांश रोगियों को अस्पताल के बिस्तर पर रखा जाता है, फिर भी संपूर्ण आराम घर में विस्तृत अवधि के लिए किए गए आराम को ही माना जाता है।
मानवीय वृद्धि प्रौद्योगिकियों (HET) ऐसी तकनीक है, जिसका उपयोग केवल बीमारी और विकलांगता का इलाज करने के लिए ही नहीं किया जाता है, बल्कि मानवीय क्षमताओं और विशेषताओं का विकास करने के लिए भी किया जाता है। औषध बीमारी या चिकित्सीय स्थितियों के लक्षणों का उपचार या कम करने के लिए ली जाने वाली लाइसेंसीकृत द्वा को कहते हैं। व्हीलचेयर एक चलयमान उपकरण है, जो कि पहियों वाली एक कुर्सी होती है, जिसका उपयोग उन लोगों द्वारा किया जाता है, जिन्हें चलने में तकलीफ हो या जिनके लिए बीमारी या विकलांगता के कारण चल पाना मुश्किल है।
आघात चिकित्सा मनोरोग उपचार के उद्देश्य से किसी व्यक्ति को शरीरवृत्तिक अवस्था में आघात दिए जाने के सुविचारित और नियंत्रित प्रेरण को कहा जाता है। विद्युत चिकित्सा स्वास्थ्य हानि के उपचार और असामान्य अजैवी स्थितियों में विद्युत ऊर्जा का उपयोग करके किया जाता है।
रोगों का अध्ययन
जानपदिक रोग विज्ञान व्यक्तियों और आबादियों के स्वास्थ्य और बीमारी को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन है और सारवजनिक स्वास्थ्य और निवारक दवाओं से संबंधित हस्तक्षेप के आधार और तर्क के रूप में सेवा देता है।
स्वभावजन्य चिकित्सा साइकोसोशल व्यवहारवाद के विकास और एकीकरण तथा स्वास्थ्य और बीमारी के प्रासंगिक जैव चिकित्सा ज्ञान से संबद्ध चिकित्सा का एक अंतर्विषयक क्षेत्र है। नैदानिक वैश्विक छाप पैमाना द्वारा मानसिक विकृतियों वाले रोगियों में उपचार की प्रतिक्रिया का आंकलन किया जाता है। इसके "सुधार पैमाने" को आधारभूत अवस्था में किसी रोगी की बीमारी में आए सुधार या मर्ज के बढ़ने की दर निर्धारित करने के लिए चिकित्सक की आवश्यकता होती है। मानसिक भ्रम और सतर्कता में कमी पुरानी बीमारी के और बढ़ जाने का संकेत दे सकता है।
धर्म और बीमारी
यहूदी और इस्लामी कानून अस्वस्थ लोगों को अनुदान देते हैं। उदाहरण के लिए, योम किपुर पर या रमजान के दौरान उपवास रखना (और इसमें भाग लेने की वजह से) कभी कभी जीवन के लिए खतरनाक हो सकता है।
यीशु केनई टैस्टमैंट में इसे रोगमुक्त होकर चमत्कार करने के रूप में वर्णित किया गया है।
बीमारी उन चार दृश्यों में से एक था, जिसे गौतम बुद्ध द्वारा सामना किए गए चार दृष्टियों से संदर्भित किया जाता है।
कोरियाई शमानिज़्म में "आत्मीय रोग" शामिल है।
पारंपरिक चिकित्सा सामूहिक रूप से बीमारी और चोट के इलाज़, प्रसव प्रक्रिया में सहायता और स्वस्थता का अनुरक्षण करने की परम्परागत क्रियाविधि है। यह "वैज्ञानिक चिकित्सा" से अलग भिन्न ज्ञान है और समान संस्कृति में संस्कृति में रह सकता है।
सामान्य और बीमारी के बीच की सीमा व्यक्तिपरक हो सकती है। उदाहरण के लिए, कुछ धर्मों में, समलैंगिकता को एक बीमारी माना जाता है। साँचा:fix
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- मानव रोग
- मानव शरीर में जीवाणुओं (बैक्टीरिया) द्वारा होने वाले प्रमुख रोग
- भिन्न प्रकार के रोग एवं उनके लक्षण
- व्याधि विज्ञान, भाग-२ (गूगल पुस्तक; लेखक - आशानन्द पंचरत्न)
- सात खतरनाक बीमारियाँ और उनसे बचने के उपाय (तरकश)
- रोगों के हिन्दी और अंग्रेजी नाम
- सामान्य बीमारियाँ
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ हार्ट, बी. एल (1988) "बीमार पशुओं के व्यवहार का जैविक आधार". नयूरोस्की बायोविहेव रेव. 12: 123-137. PubMed
- ↑ जॉनसन, आर. (2002) "रोग आचरण की अवधारणा: चार प्रमुख खोजों का एक संक्षिप्त कालानुक्रमिक विवरण". पशुचिकित्सा प्रतिरक्षा विज्ञान और प्रतिरक्षा विकृतिविज्ञान. 87: 443-450 PubMed
- ↑ केली, के. डब्ल्यू. ब्लूथ, आर. एम., डैंट्ज़र, आर., ज़ोहॉ, जे. एच., शेन, डब्ल्यू. एच., जॉनसन, आर. डबल्यू. ब्रोसार्ड, एस. आर.(2003) "साइटोकाइन - प्रवृत्त रोग आचरण". मस्तिष्क व्यवहार रोगक्षम. 17 Suppl 1: S112-118 PubMed
- ↑ हम्फ्रे, निकोलस. (2002) "अत्यधिक अपेक्षाएं: आस्था-विरोहण और प्लेसीबो प्रभाव का विकासवादी मनोविज्ञान स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।", चित्त से बना शरीर : मनोविज्ञान और विकास की सीमाओं से निबंध, अध्याय 19, पृष्ठ 255-85, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ISBN 978-0-19-280227-9