गुप्तचर्या
गुप्तचर्या या गुप्तचरी (गुप्त रहते हुए भेद निकालने का कार्य) गुप्तचरों और भेदियों द्वारा किया जाता है। विशेषकर युद्धकाल में सब देश अपने भेदियों को भेजकर दूसरे देशों की सेना, सरकार, उत्पादन, वैज्ञानिक उन्नति आदि के तथ्यों के विषय में सूचना प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। इसे चारवृत्ति, चर कार्य या गुप्तचरी या खुफियागिरी या जासूसी भी कहते हैं। गुप्तचर जो सूचना इकट्ठा करते हैं उसे आसूचना (इन्टेलिजेन्स) कहते हैं।
गुप्तचरी नैतिकता की दृष्टि से आपत्तिजनक है और बहुधा ये लोग ही इस कार्य को सफलता से कर सकते हैं जिनको अच्छे बुरे का विचार न हो।
निजी चर कार्य
इसमें चर का उद्देश्य किसी व्यक्ति विशेष अथवा किसी व्यापार के संबंध में सूचना प्राप्त करना होता है। यह सूचना सामाजिक बातचीत और मिलाप के आधार पर प्राप्त की जा सकती है। पारिभाषिक सूचना चर विभाग अथवा निजी गुप्तचरों द्वारा प्राप्त की जा सकती है। निजी चर कार्य में तो कभी कभी असभ्य नीति भी अपना ली जाती है, जैसे पड़ोसियों अथवा व्यक्तिविशेष द्वारा संबंधित लोगों के बारे में सूचना प्राप्त करना।
अन्तरराजनीतिक चर कार्य
प्राय: सब सरकारें कुछ गुप्तचर और सूचक (informer) इसलिये रखती हैं कि उन्हें जनता के विचारों की जानकारी रहे और अपने विरोधियों के कार्यक्रमों तथा विचारों से वे अवगत रहें। इस प्रकार के कार्यकर्ता समाज के सब वर्गों से मेलजोल रख सूचना प्राप्त कर सकते हैं।
शांतिकालीन दूत कार्यों में चर कार्य
शांतिकाल में दूतों का कर्तव्य केवल यही नहीं रहता कि वे अपने देश के प्रतिनिधि रहें, अपितु यह देखना भी रहता है कि जिस देश में वे भेजे गए हैं वहाँ की गतिविधि कैसी है। उनसे यह भी आशा की जाती है कि वे वहाँ की उन वर्तमान घटनाओं का ठीक विवरण प्राप्त करें जो उनके अपने देश पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभाव डालें।
आधुनिक राजदूतों के पास हर कार्य में निपुण नभ, जल तथा स्थल की सेना और व्यापार संबंधी कार्यकर्ता होते हैं। इनका कार्य दूसरे देशों की प्रत्येक राजनीतिक गतिविधि पर ध्यान रखना होता है। इसलिये हम राजदूत को राज-संरक्षण-प्राप्त माननीय गुप्तचर कह सकते हैं। जब तक राजदूत कोई अनुचित कार्य नहीं करता, उदाहरणत: अधिकारियों को रिश्वत देना अथवा काम के लेखों की चोरी करना, तबतक वह चर की परिभाषा की परिधि में नहीं आता है।
सैनिक चरकार्य अथवा तत्सदृश चरकार्य
सैनिक चरकार्य के सिद्धान्त और सूचना प्राप्त करने के साधन शांतिकाल और युद्धकाल में भिन्न होते हैं। वर्तमान काल में इस कार्य के लिये दो विभाग खोले जाते हैं। एक पुलिस विभाग और दूसरा सेना विभाग। ये विभाग परस्पर सहायता करते हैं।
इतिहास
जर्मनी में चरकार्य विभाग की स्थापना 16वीं शताब्दी के मध्य में हुई थी। चरकार्य में जर्मनी ने बड़ी प्रगति की। दो विश्वयुद्धों में जर्मनी का चरविभाग बहुत बढ़ गया था। चरकार्यकर्ताओं और विद्रोहियों पर चलाए गए मुकदमां से पता चलता है कि जर्मन चरकार्य का जाल व्यापक रूप से फैला हुआ था। हालैंड निवासी जर्मन गुप्तचर माताहारी का मुकदमा विश्वविख्यात मुकदमा था। इसे फ्रांस में गोली से उड़ा दिया गया था। चरविभाग की सहायता से ही रूस की प्रत्येक गतिविधि का ज्ञान प्राप्त कर शक्ति में कम होते हुए भी जापान ने सन् 1904-1905 में रूस को पराजित किया।
कार्यप्रणाली
चरकारर्य के तरीके उद्देश्य पर निर्भर रहते हैं। दो बातें ध्यान में रखनी आवश्यक हैं। एक तो सूचना प्राप्त करना और फिर उन सूचनाओं को अपने अधिकारियों तक पहुँचाना। सूचना प्राप्त करने के लिये या तो चरकार्यकर्ताओं को स्वयं काम करना पड़ता है, या दूसरों को रिश्वत देनी पड़ती है। यदि प्राप्त की हुई सूचनाएँ मौखिक रूप से न भेजी जा सकें तो इस प्रकार के साधन-अपनाए जाते हैं, जैसे गुप्त भाषा और संकेत आदि (साइफर) के प्रयोग।
जो सैनिक गुप्तचर पकड़ लिए जाते हैं, उनके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जाती है। शांतिकाल में प्राय: उन्हें जुर्माने और कारावास का दंड दिया जाता है, परन्तु युद्धकाल में ऐसे गुप्तचरों का विचार कोर्टमार्शल द्वारा किया जाता है और उन्हें मृत्युदंड तक दिया जाता है।
प्राचीन भारत में गुप्तचर्या
मौर्य काल में गुप्तचर का महत्वपूर्ण स्थान था। कौटिल्य का अर्थशास्त्र गुप्तचर प्रणाली का वर्णन करने वाला प्रथम ग्रंथ है। अर्थशास्त्र में दो प्रकार के गुप्तचरो का वर्णन है-
- (१) संस्था :- ऐसे गुप्तचर जो संस्थाओं में संगठित होकर कार्य करते थे। संस्था के निम्नलिखित प्रकार थे-
- (क) कापटिक रूप : यह विद्यार्थी के वेश में रहते थे।
- (ख) उदास्थित :- यह संन्यासी के वेश में रहते थे।
- (ग) गृहपतिक :- यह किसान के वेश में रहते थे।
- (घ) तापस: यह तपस्वी के वेश में रहते थे।
- (२) संचरा :-इसमें भ्रमणशील गुप्तचर आते थे -
- (क) स्त्री :- विशेष प्रशिक्षण प्राप्त गुप्तचर। कौटिल्य के अनुसार स्त्रियों का कोई परिवार नहीं होना चाहिए।
- (ख) तीक्ष्ण :-यह शूरवीर गुप्तचर थे।
- (ग) रशद :-यह क्रूर प्रवृत्ति के गुप्तचर होती थी ।
- (घ) परिब्राजिका :- ये भिक्षुणी वेश में रहती थीं, इसमें मुख्य रूप से वेश्याओं की नियुक्ति की जाती थी।
कुछ ऐसे भी गुप्तचर होते थे जो अन्य देशों में नौकरी कर लेते थे और सूचनाएं भेजते रहते थे , ऐसे गुप्त चर को उभयवेतन कहा जाता था। गुप्तचर के अतिरिक्त शांति व्यवस्था बनाए रखने तथा अपराधों की रोकथाम के लिए पुलिस भी होती थी जिसे अर्थशास्त्र में 'रक्षिन' कहा गया है।