उस्मानी साम्राज्य
उस्मानी सलतनत دَوْلَتِ عَلِيّهٔ عُثمَانِیّه देव्लेत-इ-आलीय्ये-इ-ऑस्मानिय्ये | ||||||
साम्राज्य | ||||||
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उस्मानी साम्राज्य 1683 में
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राजधानी | इस्तानबुल (1453-1922) | |||||
भाषाएँ | उस्मानी तुर्की (आधिकारिक), अरबी (धार्मिक), कई अन्य | |||||
धार्मिक समूह | सुन्नी इस्लाम | |||||
शासन | पूर्ण राजशाही (1299–1876) (1878–1908) (1918–1922) संवैधानिक राजशाही (1876–1878) (1908–1918)साँचा:ns0 | |||||
सुल्तान | ||||||
- | 1299–1326 | उस्मान प्रथम (पहला) | ||||
- | 1918–1922 | महमद छठा (आख़िरी) | ||||
वज़ीर | ||||||
- | 1320–1331 | अलाउद्दीन पाशा (पहला) | ||||
- | 1920–1922 | अहमद पाशा (आख़िरी) | ||||
विधायिका | महासभा | |||||
- | उच्च सदन | वरिष्ठ सभा | ||||
- | निम्न सदन | प्रतिनिधियों की सभा | ||||
इतिहास | ||||||
- | स्थापित | 27 जुलाई 1299 BC | ||||
- | अंतर्काल | 1402–1414 | ||||
- | 1.संवैधानिक | 1876–1878 | ||||
- | 2.संवैधानिक | 1908–1922 | ||||
- | सल्तनत को समाप्त कर दिया | 1 नवम्बर 1922 | ||||
- | तुर्की गणराज्य स्थापित | 29 अक्टूबर 1923 | ||||
- | ख़िलाफ़त को समाप्त कर दिया | 3 मार्च 1924 | ||||
क्षेत्रफल | ||||||
- | 1683 [१] | ५२,००,००० किमी ² साँचा:nowrap | ||||
- | 1914 [२] | १८,००,००० किमी ² साँचा:nowrap | ||||
जनसंख्या | ||||||
- | 1856 est. | ३,५३,५०,००० | ||||
- | 1906 est. | २,०८,८४,००० | ||||
- | 1912 est.[३] | २,४०,००,००० | ||||
मुद्रा | अक्के, पॅरा, सुल्तानी, कुरूस, लीरा | |||||
आज इन देशों का हिस्सा है: | देश आज
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उस्मानी सलतनत (१२९९ - १९२३) (या उस्मानी साम्राज्य या तुर्क साम्राज्य, उर्दू में सल्तनत-ए-उस्मानिया, उस्मानी तुर्कीयाई:دَوْلَتِ عَلِيّهٔ عُثمَانِیّه देव्लेत-इ-आलीय्ये-इ-ऑस्मानिय्ये) १२९९ में पश्चिमोत्तर अनातोलिया में स्थापित एक तुर्क राज्य था। महमद द्वितीय द्वारा १४५३ में क़ुस्तुंतुनिया जीतने के बाद यह एक साम्राज्य में बदल गया। प्रथम विश्वयुद्ध में १९१९ में पराजित होने पर इसका विभाजन करके इस पर अधिकार कर लिया गया। स्वतंत्रता के लिये संघर्ष के बाद २९ अक्तुबर सन् १९२३ में तुर्की गणराज्य की स्थापना पर इसे समाप्त माना जाता है। उस्मानी साम्राज्य सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में अपने चरम शक्ति पर था।[४] अपनी शक्ति के चरमोत्कर्ष के समय यह एशिया, यूरोप तथा उत्तरी अफ़्रीका के हिस्सों में फैला हुआ था। यह साम्राज्य पश्चिमी तथा पूर्वी सभ्यताओं के लिए विचारों के आदान प्रदान के लिए एक सेतु की तरह था। इसने १४५३ में क़ुस्तुन्तुनिया (आधुनिक इस्ताम्बुल) को जीतकर बीज़ान्टिन साम्राज्य का अन्त कर दिया। इस्ताम्बुल बाद में इनकी राजधानी बनी रही। इस्ताम्बुल पर इसकी जीत ने यूरोप में पुनर्जागरण को प्रोत्साहित किया था। सल्तनत उस्मानी का पहला सुलतान ओसमान गाजी था
इतिहास
उदय
एशिया माइनर में सन् १३०० तक सेल्जुकों का पतन हो गया था। पश्चिम अनातोलिया में अर्तग्रुल एक तुर्क प्रधान था। एक समय जब वो एशिया माइनर की तरफ़ कूच कर रहा था तो उसने अपनी चार सौ घुड़सवारों की सेना को भाग्य की कसौटी पर आजमाया। उसने हारते हुए पक्ष का साथ दिया और युद्ध जीत लिया। उन्होंने जिनका साथ दिया वे सेल्जक थे। सेल्जक प्रधान ने अर्तग्रुल को उपहार स्वरूप एक छोटा-सा प्रदेश दिया। आर्तग्रुल के पुत्र उस्मान ने १२८१ में अपने पिता की मृत्यु के पश्चात प्रधान का पद हासिल किया। उसने १२९९ में अपने आपको स्वतंत्र घोषित कर दिया। यहीं से उस्मानी साम्राज्य की स्थापना हुई। इसके बाद जो साम्राज्य उसने स्थापित किया उसे उसी के नाम पर उस्मानी साम्राज्य कहा जाता है (इसी को अंग्रेजी में ऑटोमन एम्पायर भी कहा जाता है)।[५]
विकास (१४५३–१६८३)
विस्तार और चरमोत्कर्ष (१४५३-१५६६)
मुराद द्वितीय के बेटे महमद द्वितीय ने राज्य और सेना का पुनर्गठन किया और २९ मई १४५३ को कॉन्स्टेंटिनोपल (इस्तांबुल का तत्कालीन नाम) जीत लिया। महमद ने रूढ़िवादी चर्च की स्वायत्तता बनाये रखी। बदले में चर्च ने उस्मानी प्रभुत्ता स्वीकार कर ली। चूँकि बाद के बैजेन्टाइन साम्राज्य और पश्चिमी यूरोप के बीच सम्बन्ध अच्छे नहीं थे इसलिए अधिकतर रूढ़िवादी ईसाईयों ने विनिशिया के शासन के बजाय उस्मानी शासन को ज़्यादा पसंद किया।
पन्द्रहवीं और सोलवी शताब्दी में उस्मानी साम्राज्य का विस्तार हुआ। उस दौरान कई प्रतिबद्ध और प्रभावी सुल्तानों के शासन में साम्राज्य खूब फला फूला। यूरोप और एशिया के बीच के व्यापारिक मार्गों पर भौगोलिक दृष्टि से नियंत्रण के कारण उसका आर्थिक विकास भी काफी हुआ।
सुल्तान सलीम प्रथम (१५१२ - १५२०) ने पूर्वी और दक्षिणी मोर्चों पर चल्द्रान के युद्ध में फ़ारस के सफ़ावी राजवंश के शाह इस्माइल को पराजित कर उसने नाटकीय रूप से साम्राज्य का विस्तार किया। उसने मिस्र में उस्मानी साम्राज्य का विस्तार किया और लाल सागर में नौसेना खड़ी की। उस्मानी साम्राज्य के इस विस्तार के बाद पुर्तगाली और उस्मानी साम्राज्य के बीच उस इलाके की प्रमुख शक्ति बनने की स्पर्धा आरम्भ हो गई।
मध्य पूर्व विजय
शानदार सुलेमान (१५१२-१५६६) ने 1521 में बेलग्रेड पर क़ब्ज़ा किया। उसने उस्मानी-हंगरी युद्धों में हंगरी राज्य के मध्य और दक्षिणी हिस्सों पर विजय प्राप्त की। 1526 की मोहैच युद्ध में एतिहासिक विजय प्राप्त करने के बाद उसने तुर्की का शासन आज के हंगरी (पश्चिमी हिस्सों को छोड़ कर) और अन्य मध्य यूरोपीय प्रदेशों में स्थापित किया। १५२९ में उसने वियना पर चढाई की किन्तु शहर को जीत पाने में असफल रहा। 1532 में उसने वियना पर दुबारा हमला किया पर गून्स की घेराबंदी के दौरान उसे वापस धकेल दिया गया। समय के साथ ट्रान्सिल्व्हेनिया, वलाचिया और मोल्दाविया उस्मानी साम्राज्य की अधीनस्त रियासतें बन गयी। पूर्व मे, १५३५ में उस्मानी तुर्कों ने फारसियों से बग़दाद जीत लिया और इस तरह से उन्हें मेसोपोटामिया पर नियंत्रण और फारस की खाड़ी जाने के लिए नौसनिक मार्ग मिल गया।
हंगरी का विलय
फ्रांस और उस्मानी साम्राज्य हैब्सबर्ग के शासन के विरोध में संगठित हुए और पक्के सहयोगी बन गए। फ्रांसिसियो ने १५४३ में नीस पर और १५५३ में कोर्सिका पर विजय प्राप्त की। ये जीत फ्रांसिसियो और तुर्को के संयुक्त प्रयासों का परिणाम थी जिसमे फ्रांसिसी राजा फ्रांसिस प्रथम और सुलेमान की सेनायों ने भाग लिया था और जिसकी अगुवाई उस्मानी नौसेनाध्यक्षों बर्बरोस्सा हय्रेद्दीन पाशा और तुर्गुत रेइस ने की थी। १५४३ में नीस पर अधिकार मिलने से एक माह पूर्व फ्रांसिसियो ने उस्मानियो को सेना की एक टुकड़ी दे कर एस्तेर्गोम पर विजय प्राप्त करने में सहायता की थी। १५४३ के बाद भी जब तुर्कियों का विजयाभियान जारी रहा तो आखिरकार १५४७ में हैब्सबर्ग के शासक फेर्दिनंद ने हंगरी का उस्मानी साम्राज्य में आधिकारिक रूप से विलय स्वीकार कर लिया।
सुलेमान के शासनकाल के अंत तक साम्राज्य की कुल जनसँख्या डेढ़ करोड़ थी जो की तीन महाद्वीपों में फैली हुई थी। उसके अलावा साम्राज्य एक नौसनिक महाशक्ति बन चुका था जिसका अधिकांश भूमध्य सागर पर नियंत्रण था। इस समय तक उस्मानी साम्राज्य यूरोप की राजनीति का एक प्रमुख हिस्सा बन चुका था और पश्चिम में कई बार इसकी राजनितिक और सैनिक सफलता की तुलना रोमन साम्राज्य से की जाती थी। उदहारणस्वरुप इतालवी विद्वान फ्रांसेस्को संसोविनो और फ़्रांसीसी राजनितिक दर्शनशास्त्री जीन बोदिन ने ऐसी तुलना की थी। बोदिन ने लिखा था - इकलौती शक्ति जो की सही रूप से सार्वभौमिक शासक होने का दावा कर सकती है वो उस्मानी सुल्तान है। सिर्फ वो ही सही रूप से रोमन सम्राट के वंशज होने का दावा कर सकते हैं"।
विद्रोह और पुनरुत्थान (१५६६-१६८३)
पिछली शताब्दी का असरदार सैनिक और नौकरशाही का तंत्र कमज़ोर सुल्तानों के एक दीर्घ दौर के कारण दवाब में आ गया। धार्मिक और बौद्धिक रूढ़िवादिता की वजह से नवीन विचार दब गए जिससे उस्मानी लोग सैनिक प्रौद्योगिकी के मामले में यूरोपियो से पिछड़ गए। पर इस सब के बावजूद, साम्राज्य एक प्रमुख विस्तारवादी शक्ति बना रहा। विस्तार का ये दौर १६८३ में वियना की लड़ाई तक बना रहा जिसके बाद यूरोप में उस्मानी साम्राज्य के विस्तार का दौर समाप्त हो गया।
पश्चिमी यूरोप के प्रदेशों ने नए समुद्री व्यपारिक मार्गो की खोज कर ली जिससे वो उस्मानी व्यापार के एकाधिकार से बच गए। १४४८ में पुर्तगालियों ने केप ऑफ गुड होप की खोज की। इसी के साथ हिन्द महासागर में चलने वाले उस्मानी और पुर्तगालियों के नौसनिक युद्धों के दौर का प्रारंभ हो गया। ये युद्ध पूरी सोलहवीं शताब्दी में चलते रहे। उधर नयी दुनिया से स्पेनी चाँदी की बाढ़ आ जाने से उस्मानी मुद्रा गिर गयी और मुद्रास्फीति अनियंत्रित रूप से बढ़ गयी।
इवान चतुर्थ (१५३३-१५८४) ने तातार खानत की कीमत पर रुसी जारशाही को वोल्गा और कैस्पियन के क्षेत्रों में फलाया। १५७१ में क्रिमीआ के खान देवलेत प्रथम जीरेय ने उस्मानियो की मदद से मॉस्को को जला कर ख़ाक कर दिया। अगले साल उसने फिर हमला किया पर मोलोदी की लड़ाई में उसे वापस धकेल दिया गया। क्रिमीआइ खानत ने पूर्वी यूरोप पर हमला कर गुलाम बनाने का दौर जारी रखा और सत्रवहीं सदी के अंत तक पूर्वी यूरोप की एक प्रमुख शक्ति बना रहा।
दक्षिणी यूरोप में स्पेन के फिलिप द्वितीय के नेतृत्व में एक कैथोलिक गठबंधन ने १५७१ की लेपैंटो की लड़ाई में उस्मानी बेड़े के ऊपर विजय प्राप्त की। यह हार उस्मानियो के अजय होनी की छवि को एक शुरुआती (प्रतीकात्मक ही सही) झटका था। उस्मानियो को जहाजों के मुकाबले अनुभवी लोगो का ज्यादा नुकसान हुआ था। जहाजों का नुकसान फटाफट पूरा कर लिया गया। उस्मानी नौसेना जल्दी उबरी और १५७३ में उसने वेनिस को एक शांति समझौते के लिए राज़ी कर लिया। इस समझौते से उस्मानियो को उत्तरी अफ्रीका में विस्तार करने और संगठित होने का मौका मिल गया।
दूसरी तरफ हैब्सबर्ग के मोर्चे पर चीजें स्थिर हो रही थी। ऐसा हैब्सबर्ग की रक्षा प्रणाली के मजबूत होने से उत्पन्न हुए गतिरोध की वजह से था। हैब्सबर्ग ऑस्ट्रिया से चलने वाली लम्बी लड़ाई (१५९३-१६०६) की वजह से आग्नेयास्त्रों से लैस बड़ी पैदल सेना की जरुरत महसूस हुई। इस वजह से सेना में भर्ती के नियमों में छूट दी गयी। इसने टुकड़ियों में अनुशासनहीनता और निरंकुशता की समस्या उत्पन्न कर दी जो कभी पूरी तरह हल नहीं हो पाई। माहिर निशानेबाजों (सेकबन) की भी भर्ती की गयी और बाद में जब सैन्यविघटन हुआ तो वो जेलाली की दंगो (१५९५-१६१०) में लूटमार में शामिल हो गए। इससे सोलहवीं सदी की अंत में और सत्रहवीं सदी के अंत में अनातोलिया में व्यापक अराजकता का ख़तरा पैदा हो गया। १६०० तक साम्राज्य की जनसँख्या तीन करोड़ तक पहुँच गयी जिससे जमीन की कमी होने से सरकार पर दवाब और बढ़ गया।
अपने दीर्घ शासनकाल में मुराद चतुर्थ (१६१२-१६४०) ने केंद्रीय सत्ता को फिर स्थापित किया और १६३५ में येरेवन और १६३९ में बगदाद को सफाविदों से जीत लिया। महिलायों की सल्तनत (१६४८-१६५६) एक ऐसा समय था जब युवा सुल्तानों की माओं ने अपने बेटों की और से हुकूमत की। इस समय की सबसे प्रसिद्ध महिला कोसिम सुल्तान और उसकी बहू तुर्हन हतिस थी। उनकी दुश्मनी का अंत १६५१ में कोसिम की हत्या से हुआ। कोप्रुलू के दौर के दौरान साम्राज्य का प्रभावी नियंत्रण कोप्रुलू परिवार से आने वाले प्रधान वजीरों के हाथ में रहा। कोप्रुलू परिवार के वजीरों ने नयी सैनिक सफलताएँ हासिल की जिसमे शामिल है ट्रान्सिल्व्हेनिया पर दुबारा अधिकार स्थापित करना, १६६९ में क्रीट पर विजय और पोलिश दक्षिणी यूक्रेन में विस्तार (जिसके साथ १६७६ में खोत्यं और कमियानेट्स-पोदिल्स्क्यी के गढ़ और पोदोलिया का क्षेत्र उस्मानी नियंत्रण में आ गया)।
पुनः अधिकार स्थापित करने के इस दौर का बड़ा विनाशकारी अंत हुआ जब महान तुर्की युद्ध (१६८३-१६९९) के दौरान मई १६८३ में प्रधान वजीर कारा मुस्तफा पाशा ने एक विशाल सेना लेकर वियना की घेराबंदी की। आखिरी हमले में देरी की वजह से वियना की लड़ाई में हैब्सबर्ग, जर्मनी और पोलैंड की सयुंक्त सेनायों ने उस्मानी सेना को रोंद डाला। इस सयुंक्त सेना की अगुवाई पोलैंड का राजा जॉन तृतीय कर रहा था। पवित्र संघ के गठबंधन ने वियना में मिली जीत का फायदा उठाया और इसका समापन कर्लोवित्ज़ की संधि (२६ जनवरी १६९९) के साथ हुआ जिसने महान तुर्की युद्ध का अंत कर दिया। उस्मानियों ने कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों का नियंत्रण खो दिया (कुछ का हमेशा के लिए)। मुस्तफा द्वितीय (१६९५-१७०३) ने १६९५-१६९६ में हंगरी में हैब्सबर्ग के विरुद्ध जवाबी हमला किया पर ११ सितम्बर १६९७ को वो जेंता की लड़ाई में विनाशकारी रूप से हार गया।
ठहराव और दोषनिवृत्ति (1683-1827)
इस अवधि के दौरान रूसी विस्तार एक बड़े और बढ़ते खतरे को प्रस्तुत कर रहा था। तदनुसार, स्वीडन के राजा चार्ल्स बारहवें को 1709 में पोल्टावा की लड़ाई (1700-1721 के महान उत्तरी युद्ध का हिस्सा।) में रूस द्वारा हार के बाद ओटोमन साम्राज्य में एक सहयोगी के रूप में स्वागत किया गया। चार्ल्स बारहवें ने रूस पर युद्ध की घोषणा करने को तुर्क सुल्तान अहमद तृतीय को राजी कर लिया, जिसके परिणत 1710-1711 की पृथ नदी अभियान में तुर्को की जीत हुई। 1716-1718 के ऑस्ट्रो-तुर्की युद्ध के बाद पैसरोविच की संधि ने बनत, सर्बिया और "लिटिल वलाकिया" (ऑल्टेनिआ) को ऑस्ट्रिया को देने की पुष्टि की। इस संधि से ये पता चला कि उस्मानी साम्राज्य बचाव की मुद्रा में है और यूरोप में इसके द्वारा कोई भी आक्रामकता पेश करने की संभावना नहीं है।
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:cite journal
- ↑ Dündar, Orhan; Dündar, Erhan, 1.Dünya Savaşı, Millî Eğitim Bakanlığı Yayınları, 1999, ISBN 975-11-1643-0
- ↑ साँचा:cite book
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ तुर्क साम्राज्य/ उस्मानी साम्राज्य स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। - आईना विश्व का : पुनर्जागरण तुर्क, साम्राज्य/ उस्मानी साम्राज्य, काली मौत : यूरोप के इतिहास का एक अध्याय, मंगोल साम्राज्य, इस्लाम : एक एकेश्वरवादी धर्म, ईसाई धर्म, रोमन साम्राज्य,
इन्हें भी देखें
बाहरी सूत्र
- वीडियो यू ट्यूब पर देखें- तुर्क साम्राज्य के उदय
- वीडियो यू ट्यूब पर देखें- उदय और तुर्क साम्राज्य का पतन
- ऐसे थे दुनिया के 10 बड़े साम्राज्| न्यूज़१८-हिन्दी।१५ मई २०१५